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Incest मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह

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पड़ोसन की कहानी
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Incest मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
rajbr1981 Offline
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#1,111
20-02-2017, 11:37 PM
चूत जवां जब होती है

आत्मकथ्य:
‘जब चूत जवां होती है’ जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह कथा किसी भी नई नई ताजा जवान होती हुई, खिलती हुई कली की चूत में उठने वाली कसक, उमंगों तरंगों और उसकी लण्ड लील जाने की लालसा और उत्कंठा को लेकर है।
यूं तो प्रकृति के हिसाब से लड़की के पीरियड्स या मासिकधर्म ग्यारह-बारह साल की उमर में ही शुरू हो जाते हैं और पीरियड्स शुरू होने का अर्थ है कि वो सम्भोग हेतु, गर्भ धारण हेतु तैयार हो गई है।
प्रकृति ने उसकी चूत को कैसा भी मोटा लम्बा लण्ड लील जाने, आत्मसात कर लेने की और चुदाई का भरपूर आनन्द ले लेने के लायक बना दिया है, अधिकृत और स्वतंत्र कर दिया है।
परन्तु सामाजिक मान्यताएं और क़ानून ऐसी कच्ची कली को चोदने की इजाज़त नहीं देता हालांकि प्रकृति ने तो उसे तैयार कर ही दिया है इस काम के लिए!
इन मानव रचित रीति रिवाजों की बेड़ियों में जकड़ी यह जवां चूत या तो विवाह हो जाने तक सालों साल इंतजार करती है और जैसे तैसे, अपने तरीके से अपनी चूत को समझाती बहलाती रहती है, या किन्ही विषम परिस्थितियों में हम अंकल टाइप के लोगों से चुद ही जाती है जैसे ट्यूशन में, पड़ोस के अंकल जी से, पापा के घनिष्ठ मित्र से, शादी ब्याह में अचानक बिना किसी प्लानिंग के या कभी कभी किसी सगे सम्बन्धी के लण्ड से!
ज्यादातर मैंने देखा है कि लड़की जब अपने शहर से बाहर होती है जैसे किसी शादी में या छुट्टियों में मामा के यहाँ तो वहाँ पर वह खुल के खेल जाती है और चुदाई का पहला मौका मिलते ही बिछ जाती है चुदने के लिए!
बहरहाल हर चूत की अपनी अपनी नियति होती है।
अभी कुछ ही दिन पहले की सत्य घटना है जो कि टीवी समाचारों में दो तीन दिन तक छाई रही, आप लोगों ने भी देखा सुना होगा, कि हैदराबाद की एक अल्प-वयस्क लड़की ने स्कूल में एक बच्चे को जन्म दिया यह लड़की वहाँ कक्षा नौ की छात्रा थी. सोचिये यह लड़की उससे कम से कम एक साल पहले से सम्भोग रत रही होगी, उसने कभी किसी से शिकायत भी नहीं की, मतलब वो खुद अपनी मर्जी से यौन रत रही थी।
ऐसे किस्से रोज ही होते हैं सैकड़ों की संख्या में लेकिन सामने नहीं आ पाते!
पहले बाल विवाह हो जाया करते थे और जब लड़की रजस्वला हो जाती थी, रजस्वला होते ही उसका गौना हो जाता था और वो ससुराल चली जाती थी और चुदाई का आनन्द लेती थी, कई कई बच्चे पैदा करने के बाद भी जीवन भर स्वस्थ रहती थी बीमार भी शायद ही कभी होती थी। परन्तु समाज की अपनी मान्यताएँ, विवशताएँ भी हैं।
कानून किसी को भी यूं खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने की इजाजत नहीं दे सकता।
हाँ, हमारे कानून ने वयस्क युवक युवतियों को एक साथ रहने की, live-in-relationship की अनुमति तो दे ही दी है।
बहरहाल जो भी हो, प्रकृति के अपने नियम सिद्धान्त हैं जो मनुष्य के कल्याण के लिए ही बने हैं क्योंकि यह शरीर प्रकृति की ही देन है और उसी के नियमों पर चलना हितकारी होता है।
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rajbr1981 Offline
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#1,112
23-02-2017, 11:18 PM
आप पर पढ़ रहे रहे चूत जवां जब होती है
इस कहानी के विषय में:
यह कहानी मेरी पूर्व में प्रकाशित कहानी ‘लण्ड न माने रीत’ की अगली कड़ी है. पहले की कहानी में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे परिस्थितियों से विवश होकर मुझे अपने मित्र की लाडली कमसिन बिटिया आरती की चूत मारनी पड़ी और वो किस प्रकार अपने प्रथम सम्भोग में मुझे अपना कौमार्य समर्पित कर, मेरे लण्ड से अपनी चूत की सील तुड़वा कर रक्त रंजित होकर चरम आनन्द को प्राप्त हुई थी।
फिर आरती ने अपने विवाहोपरांत कामासक्त होकर मुझे बुला भेजा क्योंकि वो मेरी चुदाई को कभी भूल ही नही पाई थी और मुझसे पुनः चुदना चाहती थी।
मैं भी आरती से मिलने को व्याकुल था और उसके बुलावे पर नौकरी से छुट्टी लेकर गाँव आकर, उसके घर जाकर उससे होली के त्यौहार पर मिला। सौभाग्य से आरती के माता पिता को बाहर जाना पड़ा और वे मुझे आरती का ख्याल रखने और उसी के साथ रात दिन रहने का निवेदन कर दो तीन दिन के लिए बाहर चले गए।
फिर हमने रात में जी भर के चुदाई का आनन्द लिया और सुबह सुबह सूर्योदय के साथ ही मैंने उसे पुनः चोदा।
तभी आरती मुझे स्मरण कराती है कि उसकी मुंह बोली साउथ इंडियन ननद जो कि उसके ससुराल में उसकी किरायेदार भी है वो ट्रेन से आने वाली है, जिसका नाम वत्सला है और उसे लेने मुझे शहर जाना है।
आरती मुझे वत्सला के कामुक स्वभाव के बारे में भी बताती है कि कैसे वो आरती और उसके पति को छुप छुप कर चुदाई करते देखती थी फिर वो दोनों लेस्बियन फ्रेंड्स बनी और एक दूसरे की चूत की खुजली को मिटाने लगी, एक दूसरी की चूत को तृप्त करने लगी। पिछली कहानी यहीं तक थी।
और अब मुझे वत्सला को रिसीव करने शहर के रेलवे स्टेशन जाना है, उसे अपने साथ बस में लेकर गाँव आना है।
अब आगे की कहानी :
तो उस रात आरती को जी भर के चोदने के बाद मैं नहा धो पूजा पाठ से निवृत्त हो, चाय नाश्ता कर, आरती का चुम्मा लेकर शहर की बस पकड़ने निकल पड़ा और साढ़े आठ की बस पकड़ ली।
रास्ते में सोच रहा था कि जैसा कि आरती ने बताया था कि वत्सला एक अत्यंत कामुक कन्या है जो कान्वेंट स्कूल में बारहवीं की छात्रा है मतलब वो अभी 18 के आस पास होगी। मुझे पूरी पूरी उम्मीद नज़र आ रही थी कि वत्सला की नई नई जवां हुई चूत, उसकी भरपूर जवानी को भोगने की मेरी लालसा की तृप्ति हो जायेगी लेकिन इसके लिए आरती को राजी करना पड़ेगा।
इसी चाहत को पूरी करने की योजना पर मैं सोच विचार करता जा रहा था।
किसी साउथ इंडियन लड़की को मैंने पहले कभी नहीं चोदा था। अगर किसी ऐसी दक्षिण भारतीय लड़की की कल्पना करूं तो मुझे नारियल के तेल में रचे बालों वाली, इडली, डोसा, वडा सांभर केले के पत्ते पर खाने वाली, जूड़े में सुगन्धित फूलों की वेणी लगाये, पारम्परिक दक्षिण भारतीय वेश में ‘अई यई ओ … ये क्या करता जी’ टाइप की सांवली सी कन्या का ही स्मरण हुआ।
कहने का मतलब यह कि कोई लण्ड उठाऊ फीलिंग नहीं आई; ऐसी फीलिंग जो किसी पटाखा टाइप की लड़की को चोदने के ख्याल से लण्ड खड़ा कर जाती है।
इन्ही सब खयालों में डूबते उतराते करीब बारह बजे मैं शहर पहुँच गया, वत्सला की ट्रेन आने में अभी टाइम था और मुझे कुछ खरीदारी भी करनी थी।
सबसे पहले मैंने मेडिकल स्टोर से यौन शक्ति बढाने वाली गोली की 100 एमजी वाली चार गोलियाँ ले लीं क्योंकि दो दो चूतों का बेड़ा पार लगाना पड़ सकता था।
यदि आरती और उसकी ननद दोनों को एक साथ चोदने के नौबत आती है वैसी स्थिति में मेरा छोटू दोनों चूतों को तृप्त कर सके, निहाल कर सके, इसका इंतजाम मैंने कर लिया था।
यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

मुझे पूरी पूरी उम्मीद थी कि अगर वत्सला की चूत मारने का मौका मिला तो आरती के बिना तो संभव होगा नहीं और फिर वो भी बिना चुदे मानेगी नहीं क्योंकि लड़की का जन्मजात स्वभाव है कि जो मर्द उसे एक बार चोद लेता है लड़की उस पर अपना हक़ मानने लगती है, पुरुष पर अपनी धौंस जमाना चाहती है, अपना मालिकाना हक़ जताती है।
ऐसे में अगर आरती ने मुझे वत्सला को चोदने दिया तो वो अकेले में तो उसे चोदने नहीं देगी, खुद भी साथ चुदना चाहेगी।
तो उन यौन शक्ति बढ़ाने वाली गोलियों के साथ ही मैंने कुछ अच्छी सब्जियाँ, फल, ब्रेड, बटर, बिस्किट, मिठाई इत्यादि बहुत सा सामान ले लिया, आखिर वत्सला आरती की मेहमान थी।
यह सब खरीदारी करके मैं स्टेशन जा पहुँचा, वत्सला की ट्रेन आने में अभी देर थी तो मैंने यूँ ही उससे बात करने की सोची और उसका नंबर डायल कर दिया।
घंटी बजती रही फिर …
‘हेलो, कौन हैं जी आप?’ मेरे कानों में उसकी सुरीली लेकिन तीखी सी आवाज आई।
‘गुड़िया, मैं चाचा, अभी कहाँ हो तुम?’ मैंने जानबूझ कर ठेठ देहाती गंवई अंदाज़ में पूछा।
‘गुड़िया, चाचा?… What the hell are you talking about n who the fuck are you?’ वत्सला की झन्नाटेदार आवाज मेरी कानों में गूंजी। (क्या बकवास कर रहा है? और चोदे तू है कौन?)
‘गुड़िया मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ यहाँ… साथ ले जाने आया हूँ! मैं तुम्हें कैसे पहचानूँगा, किस रंग के कपड़े पहन रखे हैं तुमने?’ मैंने अपने ही देहाती अंदाज़ में पूछना जारी रखा।
‘Oh rubbish… What the hell is this… keep off man! I don’t talk to strangers!’ उसने चिढ़ कर लगभग डांटने वाले अंदाज़ में कहा और फोन काट दिया।
(ओह… क्या बकवास है यह… मुझसे बात मत कर बे… मैन अन्जान लोगों से बात नहीं करती!)
मैं मन ही मन मुस्कुराया, वत्सला नखरे वाली, तुनक मिजाज़, तीखी मिर्च सी लगी मुझे! अगर यह हाथ आ गई तो बहुत मज़ा देगी! मैंने सोचा।
फिर मैंने आरती को फोन लगाया और वत्सला के साथ हुई बातचीत के बारे में उसे बता दिया।
‘अरे, वो ऐसी ही है, अजनबी लोगों से फोन पर वो ऐसे ही रूखी बात करती है। आप रुको, मैं समझाती हूँ उसको!’ आरती बोली और फोन कट गया।
यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।
लगभग दस मिनट बाद मेरे फोन की घंटी बजी, देखा तो वत्सला का नंबर था।
‘हेल्लो…’ मैं बोला।
‘Am sorry uncle ji, मैंने आपको पहचाना नहीं, मेरी बात का फील न करना आप! अभी आरती भाभी ने बताया कि आप मुझे लेने स्टेशन आये हो। मैं बस पांच सात मिनट में पहुँचने वाली हूँ।’ अबकी बार वो शहद जैसी मीठी आवाज में बोली।
‘Thats okay Baby, don’t be sorry… It happens!’ मैंने जवाब दिया।
‘So kind of you uncle ji, मैं आपको पहचानूंगी कैसे?’ वत्सला बोली।
‘I am wearing jeans with white T-shirt. You can meet me near the exit gate.’ मैंने कहा और फोन काट दिया।
थोड़ी ही देर बाद ट्रेन आ गई, भीड़ का रेला निकलने लगा. मैं एग्जिट के पास ही खड़ा था, मेरी आँखें भी किसी साउथ इंडियन कन्या को ढूंढ रही थी।
भीड़ छंटने के बाद एक सुंदर सी मॉडर्न टाइप की लड़की मुझे आती दिखी, शायद यही थी वत्सला… उसकी नज़र भी मुझ पर पड़ी और उसने मुझे मेरे कपड़ों से पहचानने की कोशिश की, फिर वो अपना ट्राली बैग चलाते हुए मेरे पास चली आई।
‘आप ही अंकल जी हो न जिनसे मेरी अभी बात हुई थी?’ वो बोली।
‘हाँ, आप वत्सला जी हैं?’ मैंने पूछा।
‘हाँ…’ वो मुस्कुरा कर बोली।
अब मैंने उसे नज़र भर के गौर से देखा, ऐसी हुस्न की परी मैंने पहले कभी नहीं देखी थी, खिलती उमर, भोला सा मासूम चेहरा, कंधों पर बिखरे काले काले घने बाल, हाथ में छः इंची नारंगी रंग का स्मार्ट फोन लिए थी, हल्के जोगिया रंग का टॉप और ब्लू जींस पहने थी, जींस उसके घुटनों से थोड़ी ही नीची थी जिसमें से उसकी सुडौल चिकनी पिंडलियाँ गजब ढा रहीं थीं, ऊँची एड़ी के सैंडिल पहन रखे थे जिससे उसका सीना और तन कर और उभर गया था और उसकी चूचियाँ जैसे मुझे चुनौती देने के अंदाज़ खड़ीं थीं कि आओ, उठाओ अपने हाथ और मसल सकते हो तो मसल डालो इन्हें, जीत लो इन्हें और अमृत पान कर लो!

वत्सला आँखों में हल्की सी लालिमा थी जैसी कि सेक्सी हॉर्नी लड़कियों की आँखों में होती है। उसने होठों पर क्रिमसन कलर की लिपस्टिक लगा रखी थी जो उसके चेहरे पर खूब अच्छी लग रही थी।
कुल मिलाकर वो एक शानदार अल्ट्रा मॉडर्न, हजार वाट के बल्ब की तरह जगमग करती परी सी लगी मुझे जिसे देखकर किसी का भी लण्ड अंगड़ाई ले ले।
उसका का रंग भी खूब साफ़ था, उसकी त्वचा में कोमलता के साथ एक ख़ास दमक थी जैसे कोई रसीला मीठा फल हो।
फिर मुझे ख्याल आया कि यही वो लड़की है जो आरती की चुदाई छुप छुप के देखा करती थी, लेस्बियन भी थी, चूत भी चाटती और चटवाती है। उसका भोला सा मासूम चेहरा देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो इतनी कामुक कन्या होगी, बस यही लगता था कि उसकी चूत सू सू करने के अलावा अभी और कुछ जानती, समझती ही नहीं होगी।
‘हेल्लो, कहाँ खो गए अंकल जी?’ वत्सला ने मेरी आँखों के सामने अपना हाथ लहराते हुए पूछा।
मैं जैसे नींद से जागा- हाँ हाँ, कुछ नहीं. बस यूं ही कुछ सोचने लगा था! चलो बाहर चलते हैं।
मैं जैसे हड़बड़ाहट में बोला और उसका ट्राली बैग मैंने थाम लिया।
स्टेशन से निकलकर हम लोग ऑटोरिक्शा से बस स्टैंड आ गए। हमारी बस आने में अभी देरी थी तो हम लोग पास में ही एक कोल्ड ड्रिंक की शॉप में बेंच पर बैठ गए।
वत्सला ने अपने लिए मैंगो फ्लेवर वाली कोल्ड ड्रिंक लेली और मैंने कोक!
‘हाँ, वत्सला अपने बारे में कुछ बताओ?’ मैंने अपनी ड्रिंक का घूँट भरकर पूछा।
‘क्या बताऊँ अंकल जी?’
‘अरे क्या करती हो, कौन सी क्लास में हो? आपके पापा क्या करते हैं… हॉब्बीज़ क्या क्या हैं तुम्हारी?’
‘अंकल, अभी मैं बारहवीं में हूँ; सेंट मेरी कान्वेंट में पढ़ती हूँ, बैडमिंटन खेलना और फ़िल्में देखना अच्छा लगता है मुझे और मेरे पापा एक बैंक में मेनेजर हैं. अब उनका ट्रांसफर दूर कहीं ललितपुर के पास किसी गाँव में हो गया है, एक दो महीने बाद हम लोग ललितपुर शिफ्ट कर जायेंगे।’ वो चहकती हुई बोली।
यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

‘यह ललितपुर कहाँ है, कभी नाम नहीं सुना इस जगह का?’ मैंने पूछा।
‘क्या पता अंकल जी, मैंने भी कभी नहीं सुना था यह नाम. नेट पर सर्च किया तो पता चला कि साउथ यू पी का लास्ट डिस्ट्रिक्ट है।’ वो बोली।
‘अच्छा, पढ़ाई में कैसी हो तुम? हाई स्कूल में कितने परसेंट मार्क्स आये थे तुम्हारे?’ मैंने बात को आगे बढ़ाया।
‘अंकल जी, 87% आये थे, वैसे मुझे उम्मीद थी कि 90 से ऊपर ही आयेंगे।’ वो बोली।
‘वेरी गुड, शाबाश, कीप इट अप!’ मैं बोला और शाबासी देने के अंदाज़ में उसकी पीठ पर थपकी देते हुए हाथ फिराने लगा।
उसके बदन से उठती हुई भीनी भीनी परफ्यूम की खुशबू मदहोश कर देने वाली थी।
उसकी चिकनी, मुलायम, उष्ण और गुदगुदी पीठ का स्पर्श बड़ा ही उत्तेजक लगा मुझे, मैं धीरे धीरे उसकी पीठ, कंधों पर हाथ फिराता हुआ उसकी कसी हुई ब्रेजियर की तनियों तक जा पहुँचा और ब्रा के स्ट्रेप्स सहलाता रहा, फिर हाथ को थोड़ा नीचे लाकर ब्रा का हुक महसूस करने लगा।
इतने से ही मेरा लण्ड ठुनकने लगा, दिल कर रहा था कि उसके टॉप के ऊपर से ही उसके बूब्स सहला लूँ, दबोच लूँ या मुख में भर कर चचोर लूँ!
ये लड़कियाँ मर्द के हाथों के प्रति बहुत सजग बहुत संवेदनशील होती हैं; और हम जैसे अंकल टाइप के लोगों के छूने सहलाने के ‘इंटेंशन’ इरादे को भली भांति पहचानती हैं, वत्सला भी शायद मेरे हाथों का इरादा भांप गई थी इसलिये थोड़ा आगे को झुक गई, मैंने भी ज्यादा लालच करना ठीक नहीं समझा और संभल कर बैठ गया।
‘अच्छा, बैडमिन्टन के अलावा ‘इनडोर’ गेम्स में क्या क्या पसन्द है तुम्हें? मैंने बात को द्विअर्थी अंदाज़ में पूछा।
‘इनडोर गेम्स… मतलब?’ उसने मेरी आँखों में झाँक कर पूछा।
शायद वो मेरा इरादा कुछ कुछ समझ चुकी थी कि मैं क्या जानना चाहता था।
‘अरे वही खेल जो घर के भीतर खेला जाता है?’ मैंने भी उसकी आँखों में आँखें डाल कर जवाब दिया।
‘अच्छा… वो.. हाँ… बहुत पसन्द है मुझे, वो वाला!’ वो बोली।
‘वो वाला? अरे कोई नाम भी तो होगा उस खेल का?’ मैंने पूछा।
‘क्या नाम है… हाँ, कैरम… कैरम खेलना बहुत अच्छा लगता है मुझे, जब सामने वाले का स्ट्राइकर मेरी तरफ वाली पॉकेट में सट्ट से घुस जाता है, तब मुझे बहुत मज़ा आता है।’ वो बिंदास ढंग से बोली और खिलखिला कर हंस दी।
उसके जवाब से मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया।
वत्सला तीखी मिर्च जैसी तेज थी तो शहद जैसी मीठी भी थी, हंसमुख थी और इंटेलीजेंट भी!
तभी मेरे फोन के घंटी बजी. देखा तो आरती का फोन था… मैंने फोन रिसीव किया तो आरती की आवाज आई- वत्सला की ट्रेन आ गई बड़े पापा? उसने पूछा।
‘हाँ, अभी आई है कुछ देर पहले, वत्सला मेरे साथ है, हम लोग बस का ही इंतजार कर रहे हैं।’
‘कैसी लगी मेरी ननद रानी?’ उसने पूछा।
मैं फोन कान से लगाए थोड़ा दूर चला गया और बतियाने लगा… ‘तेरी ननद रानी अच्छी है, बहुत ही सुंदर है और सुपर हॉट भी, तुम तो कह रहीं थी कि ये साउथ इंडियन है लेकिन लगती नहीं!’ मैंने वत्सला की तरफ देखते हुए जवाब दिया।
‘हाँ वो… वत्सला की माँ कनाडा की मतलब अमेरिकन है और उसके पापा तमिल हैं… यानी काजू किशमिश का जोड़ा; इन दोनों के लव मैरिज का नतीजा है ये वत्सला! बड़े पापा सच बताना, वत्सला को देखकर नीयत ख़राब तो नहीं हो रही आपकी?’ आरती हँसते हुए बोली।
‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन है ये मस्त मस्त, किसी का भी ईमान डिगा दे!’ मैंने कहा।
‘हमम्म्म्म… मतलब आपका दिल भी डोल गया उसे देख कर… अच्छा, जरा वत्सला को फोन देना!’ आरती बोली।
मैंने फोन वत्सला को दे दिया और कहा कि उसकी भाभी का फोन है।
वत्सला ने फोन ले लिया- हल्लो, मेरी प्यारी भाभी कैसी हो?’ वत्सला बोली।
फिर पता नहीं उसे क्या सुनाई दिया कि वो मेरी ओर देख कर हंस दी और फिर दूर जाकर बात करने लगी। बीच बीच में वो मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखती भी जाती थी जिससे मुझे लगा कि वो दोनों मेरे बारे में ही बात कर रहीं थीं।
उनकी बातें ख़त्म हुईं और वत्सला मेरे पास आकर बैठ गई।
‘क्या बातें हो रहीं थीं आरती से?’ मैंने पूछा।
‘कुछ नहीं अंकल जी, बस ऐसे ही कुछ प्राइवेट बात थी।’ वो बोली और हंसने लगी।
तभी बस आ गई. बस में पहले से ही काफी भीड़ थी, वो तो कंडक्टर मेरी पहचान का निकल आया, उसने हम दोनों के लिए पीछे वाली सीट खाली करवा दी।
बस शहर से निकल कर गाँव की तरफ चल पड़ी, खस्ताहाल सड़क पर बस हिचकोले खाते हुए चली जा रही थी, वत्सला तो आसपास के नज़ारे देखने में मग्न थी और अपने मोबाइल से फोटो शूट करती जा रही थी।
और मैं उसकी नर्म गर्म जाँघों का सुखद स्पर्श महसूस करते हुए पुलकित हो रहा था, मेरी नज़र बार बार उसकी जाँघों के बीच चली जाती जहाँ से उसकी जीन्स फूली हुई दिख रही थी।
मैं सोचने लगा कि यहीं तो नीचे उसकी चूत होगी जाँघों के बीच छिपी हुई और मैं मन ही मन में उसकी चूत की कल्पना करने लगा कि ऐसी शानदार लड़की की चूत कितनी शानदार होगी।
बीच बीच में मेरी नज़र उसके मम्मों की गोलाइयों का नज़ारा करती उसके टॉप के भीतर झाँकने लगती जहाँ से एक दो बार उसकी क्लीवेज के दर्शन भी हो गए।
इसी तरह मैं उसका चक्षु-चोदन करता रहा।
सेक्सी कहानियों में पढ़ा करता था कि इस तरह के बस के सफ़र में बहुत कुछ हो जाता था, लड़की गर्म हो जाती थी, लण्ड खड़े हो जाते थे, चूत गीली होकर लड़की की पेंटी तक भिगो देती थी, मम्मे दबाना चूसना भी हो जाता था, लड़की लण्ड पकड़ लेती थी लड़का भी चूत में ऊँगली कर लेता था, लड़की लण्ड को चूस चाट लेती थी और लड़का चूत को सूंघ के चूत के दाने को चूम चुसक के लड़की को ‘टू द लिमिट’ गरम कर लेता था और रात का सफ़र हो तो चुदाई भी हो जाती थी और छोरी लौड़े के पानी को या तो खुद पी लेती थी या अपनी चूत को पिला देती थी और छोरा भी चूत से प्रवाहित होने वाले रस के झरने को लप लप कर चाट लेता था और एक बूँद भी व्यर्थ नहीं जाती थी।
अब कहानियाँ तो कहानियाँ ही होती हैं न!
बदकिस्मती से मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं लार टपकाता रहा और वत्सला आस पास के नज़ारे देखने, उन्हें मोबाइल में कैद करने में लगी रही।
कहानी जारी है!


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arav1284 Offline
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23-02-2017, 11:42 PM
Interesting ..story , lagta hai three-some ka game hone wala hai Kahani me ...          
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rajbr1981 Offline
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26-02-2017, 12:25 AM
आप पर पढ़ रहे रहे चूत जवां जब होती है
बस शहर से निकल कर गाँव की तरफ चल पड़ी, खस्ताहाल सड़क पर बस हिचकोले खाते हुए चली जा रही थी, वत्सला तो आसपास के नज़ारे देखने में मग्न थी और अपने मोबाइल से फोटो शूट करती जा रही थी, मैं उसका चक्षु-चोदन करता रहा, लार टपकाता रहा और वत्सला आस पास के नज़ारे देखने, उन्हें मोबाइल में कैद करने में लगी रही।
शाम होने से पहले ही हम लोग गाँव पहुँच गए, आरती और वत्सला मिलकर बहुत खुश हुईं।
मेरे सोने का इंतजाम आरती के बगल वाले कमरे में था, वत्सला आरती के साथ ही उसके कमरे में सोई।
रात के खाने के बाद मैं सोने चला गया, देर रात तक आरती और वत्सला के हंसने खिलखिलाने की आवाजें आती रहीं बीच बीच में आहें कराहें भी सुनाई दे जातीं जिससे मुझे लगा कि वे दोनों नंगी होकर लेस्बियन वाली मस्ती कर रहीं होंगी।
मुझसे रहा नहीं गया, मैं आरती के कमरे के पास जाकर भीतर झाँकने की जगह तलाशने लगा लेकिन कोई ऐसा छेद वेद नहीं दिखा जो मुझे भीतर का नज़ारा दिखा सके!
फिर मैं बाहर छज्जे पर गया तो वहाँ की खिड़की मुझे खुली हुई मिल गई।
कमरे के भीतर देखा तो आरती और वत्सला दोनों मादरजात नंगी थीं, वत्सला बिस्तर पर लेटी थी और उसने अपनी टाँगें मोड़ कर ऊपर उठा रखी थीं और आरती उसकी चूत को चाट रही थी और साथ में उसके मम्मों के चूचुकों को चुटकी में लेकर मसल रही थी।
वत्सला भी मस्ती में आकर बार बार अपनी कमर ऊपर तक उठा देती। आरती की पीठ मेरी तरफ थी इसलिये वत्सला की चूत के दर्शन मुझे नहीं हो पाये, सिर्फ आरती की नंगी पीठ और उसके गोल गोल हिप्स मुझे दिख रहे थे, बीच बीच में जब वो थोड़ा ऊपर उठती तो उसकी काली चूत का नजारा भी हो रहा था।
‘भाभी अब जल्दी जल्दी चाटो मेरी चूत… अपनी जीभ पूरी भीतर तक घुसा घुसा के… मैं बस झड़ने ही वाली हूँ… आआ… हाँ… ऐसे ही! मेरी प्यारी भाभी बस ऐसे ही और तेज तेज… आह.. मेरा दाना चबा दो एक बार.. आह… और गहरे घुसाओ न जीभ को भाभी!’ वत्सला बहुत ही कामुक आवाज में कह रही थी।
‘मेरी बन्नो, तुम्हारी चूत तो अब खूब मोटा और लम्बा असली लण्ड मांग रही है जो गहराई तक जाके चूत में खलबली मचा दे! जीभ तो जितनी घुस सकती है उतनी ही घुसेगी ना!’ आरती बोली।
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‘हाँ… भाभी… किसी तगड़े लण्ड का इंतजाम कर दो न… ओफ्फ… या कुछ भी मोटा लम्बा खुरदुरा सा घुसा के घिस दो मेरी बुर को… आग लगी है मेरी चूत में… देखो न कैसे गीली हो रही है! कुछ करो न भाभी प्लीज!’ वत्सला चुदासी होकर बहक रही थी।
‘बन्नो रानी अब मैं मोटी लम्बी चीज कहाँ से लाऊँ तेरी चूत के लिए! घर में मूली करेला मोमबत्ती कुछ भी नहीं है. आज तू सब्र कर ले कल रात को सचमुच का लण्ड दिलवाउंगी तेरी चूत को… अब जल्दी से झड़ ले और सो जा!’ आरती ने उसे बच्चों की तरह दिलासा दी।
‘सच भाभी… कल असली लण्ड दिलवा दोगी ना?’ वत्सला बोली।

‘हाँ हाँ प्रॉमिस.. पक्का वादा!’ आरती ने कहा और फिर वत्सला की पूरी चूत अपनी मुंह में भर ली और उसे झिंझोड़ने लगी।
‘भा…भी… मैं आई… आ गई ये लो… आह आआआआआ!’ वत्सला बहुत ही कामुक आवाज में बोली और भलभला कर झड़ने लगी। उसने बिस्तर की चादर कसके अपनी मुट्ठियों में जकड़ ली और अपनी कमर उठा उठा कर आरती की मुंह पर अपनी चूत मारने लगी और फिर उसने अपनी टाँगें आरती के गले में लपेट कर कस दीं।
लण्ड तो मेरा कब का खड़ा हो चुका था, मुझसे रहा नहीं गया और मैं वहीं खड़े खड़े मुठ मारने लगा। करीब दस मिनट में मैं झड़ गया उधर वत्सला भी झड़ चुकी थी, उसका बदन पसीने पसीने हो रहा था और वो मुंह खोल कर गहरी गहरी साँसें ले रही थी और आरती ने अपना पैर मोड़ कर उसकी चूत के ऊपर रख लिया था और वो उसके बगल में लेटी उसका सिर सहला रही थी।
दोनों ननद भाभी यह खेल खेल कर सोने के कोशिश करने लगीं।
वत्सला की चूत देखने की मेरी तमन्ना अधूरी ही रह गई, फिर मैं वापिस कमरे में आकर सो गया।
अगली सुबह…
रोज की तरह ही मेरी नींद पांच बजे ही खुल गई और सदा की तरह Morning Erection सुबह की उत्तेजना अपने पूरे शवाब पर था और लण्ड जी चड्डी के भीतर अकुला रहे थे, व्याकुल थे बाहर आने के लिए!
नित्य की तरह मैंने अपनी चड्डी नीचे सरका दी और और लण्ड को आजाद कर दिया तथा उसे धीरे धीरे मुठियाने, मसलने लगा।
सुबह सुबह ऐसा करने में मुझे बहुत अच्छा लगता है।
नींद की खुमारी बाकी थी और मैं अलसाया हुआ आँखें बंद करके लण्ड को सहला के सुखानुभूति ले रहा था कि तभी किसी की पदचाप सुनाई दी।
‘गुड मोर्निंग अंकल जी… गेट अप नाऊ. योर बेड टी इस हियर!’ सुरीली सी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
और आँख खोल कर देखा तो सामने वत्सला चाय का प्याला लिए खड़ी थी।
मैंने झट से लण्ड को चड्डी के भीतर धकेला लेकिन चड्डी काफी नीचे तक खिसकी हुई थी इसलिये लण्ड ठीक से अन्दर नहीं जा पाया और उछल कर फिर तन गया।
मैंने झेंप कर चड्डी को ठीक से ऊपर किया और लण्ड को दड़बे में बंद कर दिया। लेकिन इरेक्शन तो था ही इसलिये चड्डी में तम्बू तना रहा। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

वत्सला की नज़र मेरे खुले लण्ड पर पड़ चुकी थी और वो चड्डी में बने तम्बू को लगातार देखे जा रही थी।
मैंने वत्सला के हाथ से चाय का कप ले लिया और चाय सिप करने लगा साथ ही चादर को अपने ऊपर खींच लिया।
‘थैंक्स फॉर द टी, तुम इतनी जल्दी उठ गईं?’ मैंने पूछा।
‘हाँ, अंकल, मैं जल्दी ही उठती हूँ न, वो मोर्निंग वाक की आदत है! अपने लिए चाय बनाई तो सोचा कि आपको भी पिला दूँ… यहाँ आकर देखा तो आप अपनी सुबह वाली कसरत कर रहे थे! हा… हा… हा!’ कहकर वो हंसने लगी।
‘कसरत? कौन सी कसरत? मैं तो अभी बिस्तर से नीचे भी नहीं उतरा!’ मैंने पूछा।
वो फिर हंसने लगी और बोली कि ‘वो देखो ना, आपके पेट के नीचे क्या खड़ा है!’
‘अच्छा, इसकी बात कर रही हो! तुम लोग भी तो रात को कसरत कर रहीं थीं, मुझे आवाजें सुनाई दे रहीं थीं तुम्हारी… वो आह.. या या.. हाँ भाभी और जल्दी जल्दी चाटो… बहुत मज़ा आ रहा है… बस मैं आने ही वाली हूँ एक मिनट में… पूरी जीभ अन्दर तक घुसा कर चाटो मेरी चूत… यह सब तुम्ही कह रहीं थीं न कल रात को?’ मैंने भी तपाक से जवाब दिया।
मेरा जवाब सुनकर उसके गाल शर्म से लाल पड़ गए और वो झट से भाग खड़ी हुई।
कहानी जारी है!


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arav1284 Offline
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26-02-2017, 01:04 AM
 शानदार अपडेट..कृपया थोड़े बड़े अपडेट दिया करें            
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rajbr1981 Offline
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#1,116
27-02-2017, 12:56 AM
आप पर पढ़ रहे रहे चूत जवां जब होती है
‘हाँ, अंकल, मैं जल्दी ही उठती हूँ न, वो मोर्निंग वाक की आदत है! अपने लिए चाय बनाई तो सोचा कि आपको भी पिला दूँ… यहाँ आकर देखा तो आप अपनी सुबह वाली कसरत कर रहे थे! हा… हा… हा!’ कहकर वो हंसने लगी।
‘कसरत? कौन सी कसरत? मैं तो अभी बिस्तर से नीचे भी नहीं उतरा!’ मैंने पूछा।
वो फिर हंसने लगी और बोली कि ‘वो देखो ना, आपके पेट के नीचे क्या खड़ा है!’
‘अच्छा, इसकी बात कर रही हो! तुम लोग भी तो रात को कसरत कर रहीं थीं, मुझे आवाजें सुनाई दे रहीं थीं तुम्हारी… वो आह.. या या.. हाँ भाभी और जल्दी जल्दी चाटो… बहुत मज़ा आ रहा है… बस मैं आने ही वाली हूँ एक मिनट में… पूरी जीभ अन्दर तक घुसा कर चाटो मेरी चूत… यह सब तुम्ही कह रहीं थीं न कल रात को?’ मैंने भी तपाक से जवाब दिया।
मेरा जवाब सुनकर उसके गाल शर्म से लाल पड़ गए और वो झट से भाग खड़ी हुई।
मैंने आराम से चाय खत्म की और फ्रेश होने चला गया, नहा कर लौटा तो सुबह की धूप कमरे में आ रही थी, नया अख़बार भी बिस्तर पर कोई रख गया था।
मैं अख़बार के पन्ने पलटता हुआ यूं ही सरसरी निगाह से उस दिन के समाचार देखने लगा, तभी आरती चाय का दूसरा प्याला और नाश्ता लेकर आ गई।
वो नहा ली थी और ताजे खिले गुलाब की तरह एकदम फ्रेश लग रही थी।
जैसे ही उसने चाय नाश्ता टेबल पर रखा मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसके रसीले होंठों को चूसने लगा और उसके नितम्ब मुट्ठी में भर भर के उन्हें थपकी देने लगा।
आरती ने भी अपनी बाहों का हार मेरे गले में पहना दिया और मेरे चुम्बन का जवाब अपने होठों से देने लगी।
तभी मैंने गाउन के ऊपर से ही उसकी चूत मसलना शुरू कर दिया।
‘आः आह… छोड़ो ना… आप तो सुबह सुबह शुरू हो गए… छोड़ भी दो अब वत्सला आ जायेगी!’ वो बोली।
‘आ जाने दो उसे, तुम लोग रात भर से मस्ती कर रही हो नंगी होकर! मैंने देखा था खिड़की में से. अब मुझे भी थोड़ी मस्ती कर लेने दो!’ मैं बोला।
‘हाँ, वो छज्जे वाली खिड़की मैंने जानबूझ कर खुली छोड़ी थी क्योंकि मैं जानती थी कि हम लोगों की आवाजें सुनकर आप जरूर आओगे ताका झांकी करने!’ वो बोली।
‘अच्छा, तो मुझे दिखाने के लिए सब कुछ प्लान कर रखा था पहले से? इसका मतलब तुम मुझे वत्सला की नंगी जवानी दिखाना चाह रही थीं?’ मैं बोला।
‘अरे, उसकी जवानी देख के तो आप खुद फ़िदा हो चुके हो. वत्सला ने मुझे बताया था की आप कैसे बस स्टैंड पर उसकी पीठ सहला रहे थे और बार बार उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स और हुक टटोल रहे थे।’ आरती मेरा गाल मसलते हुए बोली। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

‘वो पढ़ाई में बहुत होशियार है न, अच्छे नंबर लाने की शाबासी दे रहा था उसे!’ मैंने बात बनाई।
‘रहने दो मैं सब समझती हूँ! और अभी सुबह सुबह आप उसे अपना मूसल सा लण्ड दिखा रहे थे वो?’
‘तो वत्सला ने सब कुछ बता दिया तुझे… अरे वो तो सुबह खड़ा हो गया था न सो उसे ऐसे ही सहला रहा था, इतने में वो चाय लेकर आ गई।’ मैंने सफाई दी।
‘तो वत्सला में आपका कोई इंटरेस्ट नहीं है न फिर?’ आरती ने मुझसे मुस्कुराकर पूछा।
उसका सवाल सुनकर एक पल के लिए मैं अचकचा गया कि अब क्या जवाब दूं, जबकि मैं वत्सला की चूत मारने के लिए तो कब से मरा जा रहा था क्योंकि उस जैसी शानदार लड़की मैंने जिंदगी में पहले कभी नहीं चोदी थी, चोदी क्या कभी देखी तक नहीं थी।
‘मेरी गुड़िया रानी, मेरे लिए तो तू ही काफी है. तेरे सामने तो वो कुछ भी नहीं!’ मैंने जानबूझ कर झूठ बोला।
‘अच्छा? चलो फिर जाने दो! मैं तो सोच रही थी कि अगर आपका दिल उस पर आ गया हो तो मैं कोई चक्कर चलाऊँ।’ आरती मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली।
मेरा दिमाग फिर लड़खड़ा गया कि अब क्या बोलूँ!
तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली कि उधर वत्सला खुद लण्ड लेने के लिए मचल रही है और आरती उसे प्रॉमिस भी कर चुकी है कि वो आज रात उसकी चूत को लण्ड दिलवा देगी। अब यहाँ लण्ड तो मैं ही दे सकता हूँ वत्सला की चूत को… इतना सोच के मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ गया और मैं बहुत ही संभल कर आरती से बात बनाई- अच्छा ठीक है अगर तुम कहती हो तो वत्सला की भी ले लूंगा…’ मैं बुझे मन से बोला।
मेरी बात सुन कर आरती ने मुझे हैरत से देखा, शायद उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं वत्सला जैसी शानदार, जगमग करती हुई, कान्वेंट एजुकेटिड, हाई प्रोफाइल, कुंवारी, अनचुदी लड़की को चोदने में मैं आनाकानी कर रहा हूँ।
मित्रो, इतना तो तय था कि वत्सला की चूत मुझे आज ही रात को मिलने वाली थी. परन्तु मैं अपने पत्ते अपने हिसाब से खेल रहा था। चूत लण्ड का मुकाबला तो जैसा हुआ वो आप सब को बताऊँगा ही लेकिन अभी फिलहाल मुझे यह देखना था कि मेरे इंकार करने के बाद आरती कैसे प्रतिक्रिया करती है।
‘अरे, मैं कुछ नहीं कह रही, मैं तो बस आपका मन टटोल रही थी कि अगर आपका दिल वत्सला पर आ गया हो तो…?’ आरती ने बात को अधूरा छोड़ा और मेरी आँखों में झाँकने लगी।
मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया और मैं उसका निचला होंठ अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
मेरे लण्ड ने तुरंत रियेक्ट किया और वो तन गया, मैंने अपना हाथ नीचे ले जाकर लण्ड को शॉर्ट्स से बाहर निकाल कर आजाद कर दिया और आरती के मम्मे दबाने लगा।
‘आरती… इसे चूस दो न कुछ देर!’ मैं बेताबी से बोला और अपना लण्ड आरती को पकड़ा दिया।

‘धत्त, मैं नहीं चूसती सुबह सुबह! अभी हम लोगों को मंदिर जाना है पूजा करने!’ आरती मेरा लण्ड दबाते हुए बोली।
‘गुड़िया रानी, सिर्फ पांच मिनट चूस दे न प्लीज… देख यह कैसे मचल रहा है तेरी मुट्ठी में!’ मैंने उसका गाल चूमते हुए कहा।
‘अरे कहा न सुबह सुबह नहीं, अच्छा, एक बात गौर से सुनो!’ आरती फुसफुसाती हुई बोली।
‘आज वत्सला का बर्थ डे है, आज शाम को वो पूरे अट्ठारह साल की हो जायेगी। अभी मैंने उसकी चूत क्लीन शेव करके उसे नहाने भेजा है, वो आती ही होगी, फिर हम लोग मंदिर जायेंगे पूजा करने और फिर रात को कुछ न कुछ सेलिब्रेट करेंगे।’
हाँ, आप वत्सला को कुछ मत बताना कि उसका बर्थ डे है आज क्योंकि उसे याद नहीं है, उसे सरप्राइज देना है शाम को!’ उसने मुझे बताया।
वत्सला की झांटें बनाने वाली और उसके बर्थ डे वाली बात सुनकर मेरे लण्ड ने एक जोरदार ठुमका लगाया और मेरा सुपाड़ा फूल कर कुप्पा हो गया।
आरती ने मेरे लण्ड की उछाल को गौर से देखा और फिर मुस्कुरा दी, शायद उसका तीर निशाने पे लगा था- क्यों बड़े पापा, देखा ना, वत्सला की चिकनी चूत की बात सुनकर आपका लण्ड कैसे बेकाबू होकर जम्प कर रहा है… अब क्या इरादा है आपका? आपके लण्ड ने तो आपकी चुगली कर ही दी!’
आरती हँसते हुए बोली और मेरा कठोर लण्ड फिर से अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

मैंने भी अब ज्यादा नाटक करना ठीक नहीं समझा और आरती को कस कर अपने से चिपटा लिया- हाँ, मेरी जान, चोदूंगा तेरी ननद रानी को और साथ में तुझे भी!
मैंने आरती की चूत साड़ी के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा।
‘तो फिर ठीक है बड़े पापा… रात होने दो. लेकिन एक बात बता दूँ, वत्सला सेक्स के मामले में एकदम भूखी शेरनी है… हालांकि अभी तक वो असली लण्ड से तो नहीं चुदी है लेकिन मुझे अपना लेस्बियन अनुभव है कि जब वो अपने पे आती है तो एकदम जंगली बिल्ली जैसे बिहेव करती है जब तक वो ठीक से झड़ न जाये!’ वो बोली।
‘तू चिंता मत कर… तेरी ननद रानी को उसकी जिंदगी का यह मेरा पहला लण्ड हमेशा याद रहेगा।’ मैं पूरे आत्मविश्वास से बोला।
‘और फिर मेरा क्या होगा बड़े पापा?’ आरती बड़ी मासूमियत से बोली।
‘अरे पगली… पहला नम्बर तो तेरा ही रहेगा ना फिर मैं तुम दोनों ननद-भाभी के बीच सैंडविच बन जाऊँगा… फिर तू जैसे कहेगी, वैसा ही होगा।’ मैंने आरती की सिर पर प्यार से हाथ फिराया।
मेरी बात सुनकर आरती ने अपने होठों पर जीभ फिराई और गीले होंठों से मेरा गाल चूम लिया।
थोड़ी देर बाद वत्सला और आरती दोनों मंदिर जाने के लिए निकलीं।
नहाई धोई वत्सला गजब की उजली उजली सुंदर दिख रही थी, उसने झक सफ़ेद रंग की सलवार और हल्के पीले रंग का कुर्ता पहना हुआ था, दुपट्टा भी था पर गले से लिपटा हुआ, पता नहीं किस डिजाइन की ब्रा पहन रखी थी कि उसके मम्मे बड़े ही शानदार ढंग से उन्नत नज़र आ रहे थे और उसकी क्लीवेज का नजारा भी हो रहा था।
उसके बदन से उठती हुई परफ्यूम की सुगन्ध दूर से ही महक रही थी।
तभी मुझे याद आया कि आरती ने इसकी चूत अभी अभी शेव की है, उसकी चिकनी चूत के बारे में सोचते ही मेरी नज़र उसकी जाँघों के बीच बरबस ही चली गई और दिल से इक आह निकल गई। वत्सला ने भी मुझे नज़र भर कर देखा और एक दिल फरेब मुस्कान मुझे देकर निहाल कर दिया और अपने कान में ऊँगली घुसाते हुए चली गई।
मैं पीछे से उसके कुर्ते से झांकते ब्रा के स्ट्रेप्स और उसके मटकते हुए कूल्हों को देखता रह गया जिन पर उसकी चोटी बार बार क्रम से थपकी दे रही थी।
वे दोनों मंदिर से करीब एक घंटे में लौट आईं।
आरती ने लौट कर मुझे बताया कि उसने वत्सला से बात कर ली है और वो बड़ी मुश्किल से मानी है आपसे चुदने के लिए!
‘क्यों… मुझसे चुदवाने में क्यों नखरे कर रही है वो?’ मैंने पूछा।
‘बड़े पापा, सुबह उसने आपका खड़ा लण्ड देख लिया था न सो बोल रही थी कि आपका बहुत लण्ड बहुत लम्बा और मोटा है उसकी चूत फट जायेगी… इसलिये पहले तो उसने साफ़ मना कर दिया कि वो आपसे नहीं चुदेगी!’ आरती ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘अच्छा फिर, फिर कैसे मानी वो?’ मैंने जोर देकर पूछा।
‘फिर मैंने उसे समझाया कि लण्ड कितना भी मोटा लम्बा हो कोई चूत कभी नहीं फटती। फिर मैंने उससे कहा कि तू तो पहले से ही अपनी चूत में ऊँगली, पेन्सिल घुसाती रहती है इसलिये लण्ड भी ले जायेगी आराम से… लेकिन वो बहुत डर रही थी तब भी नहीं मानी।’ आरती बोली।
‘अच्छा फिर क्या हुआ…?’
‘फिर मैंने उसे बता ही दिया कि आपके इसी हलब्बी लण्ड ने मेरी कच्ची उमर में ही मेरी सील पैक चूत को चोद डाला था आम के पेड़ पर! मैंने वत्सला को अपनी पहली चुदाई का पूरा किस्सा बताया; तब जाके उसकी हिम्मत बंधी और वो आपसे चुदने को डरते डरते राजी हुई है।’
(जिन पाठकों ने आरती की कुंवारी चूत की सील तोड़ चुदाई नहीं पढ़ी है, वे ‘लण्ड न माने रीत’ के सभी भाग पढ़ कर मज़ा लें।)
‘वाह.. मेरी गुड़िया रानी, ग्रेट है तू… आखिर मेरे लण्ड के लिए नई चूत का जुगाड़ फिट कर ही दिया तूने!’ मैंने कहा और आरती को बाहों में भर कर चूम लिया।
‘हाँ बड़े पापा, वो वत्सला खुद असली लण्ड से चुदने को बेकरार है लेकिन बोलती थी कोई पतले, छोटे लण्ड वाला लड़का हो तो ज्यादा अच्छा है। लेकिन बड़े पापा, आप तो पहली बार पूरी ताकत से एक बार में ही अपना लण्ड पेल देना उसकी चूत में… उसके रोने चीखने की फिकर मत करना… फिर उसे कस के रगड़ रगड़ के बेरहमी से ही चोदना ताकि उसे अपनी पहली चुदाई जिंदगी भर याद रहे… बिल्कुल जंगली बिल्ली है वो सेक्स में… आप देखना, एक बार लण्ड लीलने के बाद कैसे बेशर्मी से चुदवाती है फिर!’ आरती बोली।
‘अरे तू देखना आज रात को, पहले तेरी चूत लूँगा फिर मेरा लण्ड तेरी ननद रानी चूत में जा के हैप्पी बर्थडे बोलेगा उसे!’ मैंने कहा और हंसने लगा।
आरती भी हंसी और बोली- रात के खाने के बाद मैं बुलाने आऊँगी सब तैयारी कर के!
और वो अपने काम में लग गई।
कहानी जारी है!


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rajbr1981 Offline
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01-03-2017, 09:43 PM
आप पर पढ़ रहे रहे चूत जवां जब होती है
‘वाह.. मेरी गुड़िया रानी, ग्रेट है तू… आखिर मेरे लण्ड के लिए नई चूत का जुगाड़ फिट कर ही दिया तूने!’ मैंने कहा और आरती को बाहों में भर कर चूम लिया।
‘हाँ बड़े पापा, वो वत्सला खुद असली लण्ड से चुदने को बेकरार है लेकिन बोलती थी कोई पतले, छोटे लण्ड वाला लड़का हो तो ज्यादा अच्छा है। लेकिन बड़े पापा, आप तो पहली बार पूरी ताकत से एक बार में ही अपना लण्ड पेल देना उसकी चूत में… उसके रोने चीखने की फिकर मत करना… फिर उसे कस के रगड़ रगड़ के बेरहमी से ही चोदना ताकि उसे अपनी पहली चुदाई जिंदगी भर याद रहे… बिल्कुल जंगली बिल्ली है वो सेक्स में… आप देखना, एक बार लण्ड लीलने के बाद कैसे बेशर्मी से चुदवाती है फिर!’ आरती बोली।
‘अरे तू देखना आज रात को, पहले तेरी चूत लूँगा फिर मेरा लण्ड तेरी ननद रानी चूत में जा के हैप्पी बर्थडे बोलेगा उसे!’ मैंने कहा और हंसने लगा।
आरती भी हंसी और बोली- रात के खाने के बाद मैं बुलाने आऊँगी सब तैयारी कर के!
और वो अपने काम में लग गई।
मित्रो, दो दो चूतें तृप्त करने की जिम्मेवारी आन पड़ी थी मुझ पर! यूँ तो मैं नॉर्मली फिट हूँ और किसी भी चूत को खुश करने का सामर्थ्य है मुझमें लेकिन यह मेरी जिंदगी में पहली बार होने जा रहा था कि मेरे लण्ड को दो दो जवान, प्यासी, हवस की भूखी चूतों से जंग लड़नी थी और मैं नहीं चाहता था कि मेरे लण्ड के नाम पर कोई आंच आये!
इसलिये मैंने शाम को पांच बजे ही वो मैनफोर्स 100 की गोली निगल ली ताकि मेरा लण्ड लोहे जैसा टनाटन खड़ा रहे और इन दोनों कामिनियों को चोद कर उनकी काम पिपासा शान्त कर रति युद्ध में विजय श्री हासिल करे!
अँधेरा होते ही आदत के मुताबिक मैंने बोतल खोल ली और एक लार्ज पैग बना के धीरे धीरे चुसकने लगा। आरती और वत्सला किचन में खाना बना रहीं थीं।
जल्दी ही हल्का हल्का सुरूर मेरे दिमाग पर छाने लगा और मैं वत्सला को चोदने के ताने बाने बुनने लगा।
जैसा कि मुझे पता था कि वत्सला एक हाई प्रोफाइल, सेक्स की भूखी लेस्बियन लड़की है जिसकी चूत में अभी तक कोई असली लण्ड नहीं घुसा है केवल ऊँगली, पेन्सिल वगैरह का ही अनुभव है उसकी कुंवारी चूत को! यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

अब ऐसी चूत को कुंवारी कह लो या अनचुदी मतलब वत्सला ‘टेक्निकली वर्जिन’ या सील पैक माल तो नहीं है लेकिन उसने अभी तक कोई असली लण्ड भी तो नहीं लिया है अपनी चूत में… यह मेरे लिए बहुत सुकून देने वाली बात थी।
सबसे बड़ी बात कि आज उसका जन्म दिन है, अभी दो घंटे बाद वो पूरे अट्ठारह साल की हो जायेगी. ऐसी ताजा ताजा जवान हुई हुस्न की परी को चोदने के खयाल से ही मेरे बदन में रोमांच की लहर दौड़ गई।
मैंने अपने पैग में से एक बड़ा सा घूँट गटका और सिगरेट सुलगा कर धुएं के छल्ले उड़ाने लगा।
तभी वत्सला कमरे में आई, हाथ में प्लेट लिए थी जिसमें ड्रिंक के सपोर्टिंग कुछ खाने चबाने का था।
‘लीजिये अंकल जी, ये भाभी ने भेजा है!’ वो बोली और प्लेट मेज पर रख दी।
‘थैंक्स डियर, बैठो न!’ मैं बोला।
‘नहीं अंकल, किचन में बहुत काम है अभी, अब बैठना क्या कुछ देर बाद लेटना ही है न!’ वो हंसकर बिंदास अंदाज में बोली और भाग गई।
उसका चुलबुलापन देख के उसे चोदने की बेकरारी और बढ़ने लगी।
करीब नौ बजे हम लोगों का डिनर हो गया, खाने के दौरान कोई खास बातें नहीं हुईं और न मैंने न उन दोनों ने बातों से यह जाहिर किया कि अभी कुछ देर बाद चुदाई होने वाली है।
मैंने नोट किया कि आरती और वत्सला दोनों नहा कर आईं थीं और एकदम तरोताज़ा दिख रहीं थी।
आरती ने तो साड़ी ब्लाउज पहन रखा था और खूब हंस हंस कर बातें कर रही थी जबकि वत्सला जींस टॉप में थी।
खाने के दौरान वत्सला लगभग चुप ही रही और नज़रें झुकाये डिनर करती रही।
वत्सला की चुप्पी, उसके मन की उथल पुथल मैं अच्छे से समझ रहा था। जिस लड़की को यह पता हो कि वो अभी थोड़ी देर बाद सामने बैठे आदमी से चुदवाने वाली है, किसी का लण्ड पहली पहली बार उसकी चूत में उतरने वाला है तो उसके मन में कैसा द्वन्द, कैसी कशमकश चल रही होगी ये समझना कठिन नहीं था।
यह सही था कि वो बहुत सेक्सी बहुत कामुक किस्म की लड़की थी और असली लण्ड से चुदवाने को तरस रही थी लेकिन उमर और मन के हिसाब से तो अभी कच्ची ही थी। उसके मन में वैसी ही घबराहट वैसा ही डर रहा होगा जैसा किसी छोटे बच्चे को होता है कि जब कोई डॉक्टर उसे पहली बार इंजेक्शन लगाता है, इंजेक्शन की लपलपाती हुई सुई देख कर और यह सोच कर कि अभी यह सुई उसे चुभेगी, उसके बदन के भीतर घुसेगी तो मन में चिंता और डर से जो झुरझुरी उठती है वैसी ही हालत वत्सला के मन की रही होगी।
और यह स्वाभाविक भी था।
डिनर खत्म होने के बाद वे दोनों बर्तन उठा कर किचन में चली गईं, मैं अपने कमरे में आ गया और इंतज़ार करने लगा।
लगभग एक घंटे बाद मेरे फोन बजा, देखा तो आरती काल कर रही थी।
‘हाँ मेरी गुड़िया, आ जाऊँ?’ मैंने पूछा।
‘आ जाओ बड़े पापा!’ वो फुसफुसा कर बोली।
‘मैं पांच मिनट में आया, तब तक तुम वत्सला को पूरी नंगी करो!’ मैंने शरारत से कहा।
‘अच्छा…?? रहने दो, यह काम तो आप ही को शोभा देगा, आप ही करना उसे पूरी नंगी, फिर जैसे चाहे चोदना उसे! लेकिन एक बात सुन लो, सबसे पहले मैं ही चुदूंगी उसके बाद ही वत्सला की चूत मारने दूंगी… कहे देती हूँ, हाँ’ आरती इतरा के बोली।
‘अच्छा ठीक है मेरी जान, मेरी प्यारी गुड़िया रानी पहले तुम्हारा ही नंबर लगेगा। तुम जल्दी से पूरी नंगी हो जाओ, मैं आ रहा हूँ।’ मैंने कहा। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

‘आ जाओ बड़े पापा… मैं नंगी हो रही हूँ… और अपनी चूत के पट अपने हाथों से खोल के लेटती हूँ आपके स्वागत के लिए…हा हा हा!’ आरती हँसते हुए बोली और फोन कट गया।
मैं जल्दी से पूरा नंगा होकर वाशरूम में घुसा और पेशाब करके लण्ड को अच्छे से धोया।
गोली का असर तो कब का शुरू हो चुका था और मैं अपने बदन में गजब की उत्तेजना और सनसनी महसूस कर रहा था, मेरा लण्ड अब लम्बी पारी खेलने के लिए तैयार और बेकरार था। कमरे में आकर मैंने सिर्फ एक लुंगी अपनी कमर में लपेट और टी शर्ट पहन ली।
आरती के कमरे में पहुँचा तो देखा कि वत्सला बेड पर बैठी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रही थी और आरती ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी अपने बाल संवार रही थी और अभी तक नंगी नहीं हुई थी।
उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा।
मैं उसके पास गया और उसे कमर से पकड़ कर खींच कर अपने से चिपका लिया और…
‘अभी तक कपड़े पहन रखे हैं तुमने? कह तो रहीं थीं कि पूरी नंगी मिलोगी अपनी चूत के पट खोले हुए?’ मैंने उसे चूमते हुए कहा।
‘हट… बिल्कुल बेशरम समझ लिया है क्या मुझे?’ वो बोली और मेरी बाहों से फिसल कर वत्सला के पास जा बैठी।
मैं भी वत्सला के पास जाकर बैठ गया।
वत्सला अब मेरे और आरती की बीच में बैठी थी, मैंने बड़े प्यार से वत्सला की पीठ पर हाथ रखा और पूछा- गाँव आकर कैसा लग रहा है वत्सला?
‘अच्छा लग रहा है अंकल जी!’ उसने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
‘हाँ, शहर की भीड़ भाड़ से दूर शांत वातावरण, प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुभव करना… यहाँ की यादें तुम्हें हमेशा याद रहेंगी।’ मैंने कहा और उसकी पीठ सहलाना जारी रखा।
‘जी, अंकल जी… अभी अनुभव हुआ नहीं है, वैसे यहाँ की सब बातें हमेशा याद रहेंगी।’ वो बोली।
‘हाँ वत्सला अभी यहाँ तुम्हें बहुत से नये नये अनुभव होंगे जो तुम्हें जीवन भर याद रहेंगे।’ मैंने उसका साइड वाला बूब उँगलियों से हल्के से छुआ और उसका गाल चूमता हुआ बोला।
उसने मुझे अर्थपूर्ण नज़रों से देखा, थोड़ी कसमसाई लेकिन बोली कुछ नहीं।
फिर मैंने उसके गले में हाथ डाल कर अपने से सटा लिया और उसके टॉप में हाथ घुसा दिया।
मेरा हाथ सीधा उसके उरोजों घाटी की बीच जा पहुँचा जहाँ से दोनों तरफ के नर्म गर्म मम्मों का स्पर्श मुझे होने लगा।

‘यह क्या कर रहे हो अंकल जी… छोड़ो न’ वत्सला बोली।
लेकिन मैंने अपना काम जारी रखा और उसकी जींस के ऊपर से ही उसकी चूत मसलने लगा साथ में उसका निचला होंठ अपने होठों में भर के चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी वो भी मेरी जीभ चूसने लगी।
हमारा चुम्बन गहरा होता चला गया, उसने भी अपनी जीभ बाहर निकाल दी जिसे मैंने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा।
वो सिहर उठी!
किसी पुरुष का प्रथम स्पर्श था यह उसके लिए!
कहानी जारी है!


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arav1284 Offline
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01-03-2017, 09:54 PM
  एक और अपडेट हो जाए तो मज़ा दोगुना हो जाएगा ..भाई
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rajbr1981 Offline
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#1,119
03-03-2017, 10:58 PM
आप पर पढ़ रहे रहे चूत जवां जब होती है
मैं उसकी जींस के ऊपर से ही उसकी चूत मसलने लगा साथ में उसका निचला होंठ अपने होठों में भर के चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी वो भी मेरी जीभ चूसने लगी।
हमारा चुम्बन गहरा होता चला गया, उसने भी अपनी जीभ बाहर निकाल दी जिसे मैंने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा।
वो सिहर उठी!
किसी पुरुष का प्रथम स्पर्श था यह उसके लिए!
अब मैं टॉप के ऊपर से ही उसके स्तनों का मर्दन करने लगा और उसके कान की लौ, गर्दन, गाल सब जगह चूमने लगा… उधर मेरा हाथ उसकी चूत के ऊपर चल ही रहा था, जल्दी ही वत्सला का बदन ढीला पड़ने लगा और उसकी साँसें भारी हो गईं।
‘छोड़ो न बेचारी को, क्यों परेशान कर रहे हो?’ आरती बोल पड़ी और वत्सला को मुझसे छुड़ा लिया।
‘लो, जो करना हो मेरे साथ कर लो!’ आरती मुझे आँख मार कर बोली।
मैंने जल्दी से आरती की साड़ी उतार डाली और उसके ब्लाउज के हुक खोल कर उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसके भरे पूरे मम्मे थाम लिए।
वत्सला ने यह देख अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और फर्श की तरफ देखने लगी।
आरती ने अपना ब्लाउज और ब्रा उतार कर दूर फेंक दिया और वत्सला के हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रख लिए ‘अब दबा न इन्हें… शर्मा क्यों रही है; जैसे रोज करती है वैसे ही कर!’ आरती उसके दूध पकड़ कर बोली।
लेकिन वत्सला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की।
‘बड़े पापा… अब आप को ही इसकी शर्म दूर करनी पड़ेगी!’ आरती बोली।
फिर मैंने वत्सला का टॉप पकड़ कर उतारना चाहा तो उसने अपने हाथ कसकर सामने बांध लिए, लेकिन मेरे सामने उसकी एक न चली और मैंने उसका टॉप उतार कर आरती की ब्रा के ऊपर फेंक दिया. नीचे उसने फॉन कलर की डिजाइनर ब्रा पहनी हुई थी जिससे उसके दूध किसी पाषाण प्रतिमा के जैसे मनोहर लग रहे थे। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

जल्दी ही उसकी ब्रा मेरे हाथों में थी और उसके अनावृत उरोजों का जोड़ा मेरे सामने था।
मित्रो, मैंने बहुत से मम्मे देखे हैं जिंदगी में… लेकिन वत्सला के जैसे स्तन मैंने पहले कभी नहीं देखे थे, दूर से देखने में दोनों दूध ठोस आकार लिए दोनों एक सामान गोलाई लिए हुए, परस्पर सटे हुए थे।
ऐसे ही स्तन सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं जिनके मध्य कोई दूरी न हो।
उसके स्तनों की रंगत गुलाबी थी जिन पर हल्के कत्थई रंग का जैकेट के बटन जितना गोल घेरा था और उन पर पर किशमिश जैसे चूचुक थे। दूधों का साइज़ भी मस्त था न बहुत बड़े न बहुत छोटे… उसके शेष बदन की बनावट से मेल खाते हुए मम्मे थे उसके!
ब्रा के सहारे की तो जरूरत थी ही नहीं उन अमृत कलशों को!
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने धीरे से उसके दोनों नंगे पयोधर थाम लिए… बड़े आराम से… एहतियात से… बहुत ही मृदुता से… कि कहीं कसकर पकड़ने से उनका आकार न बिगड़ जाये… उन्हें कुछ हो न जाये… और फिर मैं वो किशमिश जैसे चूचुक चुटकी में भर के हौले हौले मसलने लगा।
वत्सला की आँखें स्वतः ही मुंद गईं और मैं उन अमृत कलशों में से अमृत पान करने लगा… मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को व्याकुलता से चूसने लगा।
वत्सला का हाथ कब मेरे सिर पर आ कर कब सहलाने लगा, मुझे पता ही नहीं चला।
‘अब छोड़ो भी उसे बड़े पापा… सब कुछ एक बार में ही थोड़े न मिलेगा!’ आरती बोली और उसने वत्सला के हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रख लिए और दबाने लगी।
वत्सला ने मुझे असहाय दृष्टि से देखा जैसे उसे मुझसे दूर होना पसन्द न आया हो।
मैंने आरती के पेटीकोट के नाड़े की गाँठ खोल दी और वो उसके पैरों पर जा गिरा… पैंटी तो उसने पहनी ही नहीं थी तो अब वो पूरी नंगी हो चुकी थी। मैंने भी झट से अपनी टी शर्ट और लुंगी निकाल फेंकी और आरती के पीछे चिपक गया और वत्सला के हाथों को हटा कर आरती के बूब्स खुद ताकत से दबाने मसलने लगा।
इधर मेरा खड़ा लण्ड आरती की गांड में दस्तक दे रहा था।
आरती ने वत्सला का हाथ पकड़ कर अपनी नंगी चूत पे रख दिया और उसे दबाने लगी। वत्सला को भी अब मज़ा आने लगा था और उसकी शर्म और झिझक धीरे धीरे दूर होती जा रही थी और वो भी अब कामाग्नि में सुलगने लगी थी… और उसने आरती के गले में बाहें डाल के मेरे सिर के बाल पकड़ के जोर से खींच लिए।
मैंने भी वत्सला के दोनों हाथ पकड़ कर नीचे की तरफ ला के अपने लण्ड पर रख दिये।
वत्सला की मुट्ठी एक क्षण के लिए मेरे लण्ड पर कसी फिर तुरंत उसने अपने हाथ हटा लिए।
अब आरती हम दोनों के बीच से निकल गई और बेड पर बैठ गई।
मैं और आरती पूरे नंगे हो चुके थे, वत्सला भी ऊपर से नंगी ही थी लेकिन अभी कमर के नीचे से वो ढकी छुपी हुई ही थी। आरती के बेड पर बैठते ही मैं और वत्सला आमने सामने हो गए… मेरा खड़ा लण्ड वत्सला की तरफ मुंह उठाये खड़ा उसे तक रहा था।
वत्सला ने शरमा कर झट से अपने नंगे उरोजों को हाथों से छिपा लिया और सिर झुका कर फर्श पर बैठ गई मगर आरती ने वत्सला को पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया और उसके स्तन दबाने लगी।
मैंने भी मौका देखकर उसकी जींस खोल दी और उसे खींच कर निकाल दिया।
उसने विरोध किया, अपने पैर फड़फड़ाये लेकिन उसकी चिकनी जांघों से जींस फिसलती हुई मेरे हाथों में आ गई।
अब वत्सला के बदन पर मात्र उसकी नारंगी रंग की पैंटी ही शेष थी।
मैंने अपना लण्ड वत्सला के मुंह के सामने कर दिया मगर उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया और मैं अपने लण्ड से उसके हाथों पर ही दस्तक देने लगा।
‘बन्नो, चूस ले न अंकल जी का लण्ड!’ आरती वत्सला से बोली।
‘छिः… भाभी, यह मुझसे नहीं होगा! अंकल जी इसी से तो सू सू करते हैं! इसे कैसे मुंह में ले लूं मैं?’ वत्सला मुंह छिपाए हुए ही बोली।
‘पगली, हम लोग भी तो एक दूसरी की सू सू करने वाली चूत चाटते हैं की नहीं?’
‘हमारी आपस की बात अलग है भाभी… लेकिन आदमी का नहीं…’ वत्सला ने इंकार किया।
‘बन्नो रानी, समझने की कोशिश कर… जैसे मुझे और तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है, वैसा ही मज़ा हमें आदमी को भी देने का फ़र्ज़ बनता है या नहीं? हमें इतना खुदगर्ज नहीं होना चाहिये न? अरे जब मज़ा लेना जानती हो तो मज़ा देना भी चाहिये न… तभी तो दोनों को अच्छा लगेगा न… और तू फिल्मों में भी तो देखती है कि कैसे लड़की लण्ड चूस कर शुरू करती है खेल को…’ आरती ने उसे समझाया।
‘वो तो ठीक है भाभी पर… मुझसे नहीं होगा बस!’ वत्सला बोली।
‘अच्छा रुक.. मुझे देख पहले!’ आरती बोली और वत्सला को गोद से उतार दिया और मुझे बेड पर बैठा दिया और खुद फर्श पर उकड़ूं बैठ गई और साथ में वत्सला को भी अपने साथ बैठा लिया।
अब आरती ने मेरा लण्ड पकड़ कर मुठियाया… चार छह बार चमड़ी को ऊपर नीचे किया और फिर वत्सला को दिखाते हुए मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराने लगी, फिर सुपारा गप्प से मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसते हुए अधिक से अधिक भीतर तक लेने लगी। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।

कुछ देर बाद उसने मुंह हटा लिया और उसकी लार से चुपड़ा हुआ मेरा लण्ड लहराने लगा; उसके मुखरस का एक गाढ़ा सा तार अभी भी मेरे लण्ड और उसके होठों के बीच झूल रहा था।
वत्सला ये सब बड़े गौर से देख रही थी, सीखने समझने का प्रयास कर रही थी, जैसे कोई विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करता है।
‘अब मुंह खोल और चूस इसे अपने मुंह में भर के!’ आरती ने वत्सला से कहा और उसकी गर्दन पकड़ के उसका मुंह मेरे लण्ड के सामने कर दिया…
‘नहीं भाभी… मुझसे नहीं चूसा जायेगा उल्टी हो जायेगी मुझे!’ वत्सला मरी सी आवाज में बोली।
‘अच्छा रुक अभी!’ आरती बोली और कमरे से बाहर चली गई।
लौटकर आई तो उसके हाथ में एक कटोरी थी जिसमें शहद भरा हुआ था। उसने अपनी एक ऊँगली शहद में डुबोई और ऊँगली वत्सला के मुंह में घुसा दी। वत्सला ने झट से उसे चाट लिया।
फिर आरती ने खूब सारा शहद मेरे सुपारे पर चुपड़ दिया और सुपारा चमड़ी से ढक कर सारे लण्ड पर शहद लगा दिया। फिर लण्ड के अगले सिरे को शहद की कटोरी में डुबा कर वत्सला से चाटने को बोला।
कहानी जारी है!


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arav1284 Offline
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03-03-2017, 11:05 PM
 छोटा परंतु बहुत ही कामुक अपडेट ।            
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