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Romantic "दिल अपना प्रीत परायी" (completed)

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Romantic "दिल अपना प्रीत परायी" (completed)
arav1284 Offline
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#1
23-03-2017, 01:06 AM (This post was last modified: 03-08-2017, 11:21 PM by arav1284.)
 "दिल अपना प्रीत परायी" 
___________________________ 
प्रिय दोस्तों..प्रस्तुत है एक और नयी कहानी , उम्मीद करता हूँ मेरी अन्य कहानियों की तरह ईस कहानी को भी आप सब की भरपूर सराहना मिलेगी..ईसी उम्मीद के साथ ।  
             
अपडेट~ 1
____________

“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं , इक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं .......... नाआअन ऩा ऩा ना नना ”

कमरे की खिड़की से बाहर होती बरसात को देखते हुए मैं ये गाना सुन रहा था धीमी आवाज में बजते इस गाने को सुनते हुए बाहर बरसात को देखते हुए पता नहीं मैं क्या सोच रहा था, शायद ये उस हवा का असर था जो हौले हौले से मेरे गालो को चूम कर जा रही थी या फिर उस अल्हड जवानी का नूर था जो अब दस्तक दे रही थी

पता नहीं कब मेरे होंठ उस गाने के अल्फाजो को गुनगुनाने लगे थे चेहरे पर एक मुस्कान थी जिसका कारण मैं नहीं जानता था... पर कुछ तो था इन फिज़ाओ में कोई तो बात थी इन हवाओ में जो सब कुछ अच्छा अच्छा सा लग रहा था पहले का तो पता नहीं पर अब दिल ये जरुर कहता था की कोई तो हो , मतलब..............

“क्या बात है आज तो साहब का मूड अलग अलग सा लग रहा है ये बरसात की बुँदे ये चेहरे पर हसी और रोमांटिक गाने आज तो बदले बदले लग रहे हो ”

“आप कब आई भाभी , ” मैंने पीछे मुड कर कहा

“क्या फरक पड़ता है देवर जी, अब आपको हमारा होश कहा आजकल भाभी आपको दिखाई 
कहाँ देती है वैसे भी ”

“क्या भाभी आपको तो बस मौका चाहिए टांग खीचने का ”

“अच्छा, बच्चू , और जो मेरा गला बैठ गया कितनी देर से चिल्ला रही हु मैं की स्पीकर की आवाज कम कर लो, कम कर लो..
नीचे से मम्मी जी गुस्सा कर रही है ”

“मैं कम ही तो है भाभी ”

“मम्मी जी को पसंद नहीं घर में डेक बजाना पर आप मानते नहीं हो ”

“भाभी इसके सहारे ही तो थोडा टाइम पास हो जाता है ”

“मुझे नहीं पता मैं बस बोलने आई थी अच्छा, मौसम थोडा मस्ताना है तो ऐसे में एक एक कप चाय हो जाये ”

“मैं भी आपको ये ही कहने वाला था भाभी ”

“बनाती हु रसोई में आ जाना जल्दी ही ”

“आता  हु  ”

मैंने एक गहरी साँस ली और डेक को बंद किया और 
सीढ़ियाँ उतरते हुए निचे आने लगा तभी मम्मी से मुलाकात हो गयी

“ओये, कितनी बार तुझे कहा की बरसात में आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता है फिर नाली जाम हो जानी है तो साफ कर दिया कर पर तूने तो कसम खा ली है की मम्मी का कहा नहीं करना ”

“मैं , अभी कर दूंगा 
मम्मी जी 

“ये तो तू कब से बोल रहा है कुछ दिन पहले जब बरसात आई थी तब भी ऐसे ही बोल रहा था नालायक कुछ जिम्मदार बन तू कब तक मुझसे बाते सुनता रहेगा ”

“मैं करता हु ”

मुझे बरसात में भीगना बहुत बुरा लगता था पर क्या करू आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता तो भी दिक्कत तो मैंने कपडे उतारे और कच्छे बनियान में ही लग गया पानी बाहर निकालने को, पर बरसात को भी पता नहीं क्या दुश्मनी थी अपने से वो भी तेज होने लगी

बदन में हल्ल्की हलकी सी कम्पन होने लगी बरसात की ठंडी बुँदे मेरे वजूद को भिगोने लगी बनियान मेरे जिस्म से चिपकने लगी तो एक कोफ़्त सी होने लगी मैं तेजी से झाड़ू को बुहारते हुए पानी को इधर उधर कर रहा था पर मरजानी बारिश भी आज 
अपने मूड में थी

तभी मैंने देखा की भाभी एक बाल्टी और डिब्बा लिए मेरी ही और आ रही है

“आप क्यों भीगते हो भाभी मैं कर तो रहा हु ”

“तुझे तो पता है मुझे बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है और इसी बहाने तेरी मदद भी हो जाएगी वर्ना शाम हो जानी पर तूने न ख़तम करना ये काम ”

वो बाल्टी में पानी इकट्ठा कर के फेकने लगी और मैं नाली को साफ़ करने लगा तभी मेरी नजर भाभी पर पड़ी और मेरी नजर रुक सी गयी , देखा तो मैंने उसे कितनी बार था पर इस पल मेरी नजरो ने वो देखा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था या यु कहू की कभी महसूस नहीं किया था

काली साड़ी में वो बारिश में भीगती, उसने जो साड़ी के पल्लू को अपनी कमर में लगाया हुआ था तो उसके पेट पर पड़ती वो बारिश की बुँदे जैसे चूम रही हो उसकी नरम खाल को, उसने जो धीरे से अपने चेहरे पर आ गयी जुल्फों की उन गीली लटो को अहिस्ता से कान के पीछे किया तो मैंने जाना की नजाकत होती क्या है

पता नहीं ये मेरी नजर का खोट था या कोई और दौर था पर कुछ भी था आज पहली बार महसूस हुआ था उसके हाथो में पड़ी वो चूडिया जो खनक पर बरसात के शोर के साथ अपना संगीत बाँट रही थी या फिर उसके होंठो पर वो लाल लिपिस्टक जिसे बुँदे अपने साथ हलके हलके से बहा रही थी

भीगी साड़ी जो उनके बदन से इस तरह चिपकी हुई थी पता नहीं क्यों मुझे जलन सी हुई वो खूबसूरत सा चेहरा, पतली कमर वो सलीका साड़ी बंधने का वो बड़ी बड़ी आँखे एक मस्तानापन सा था उनमे, तभी मर ध्यान टुटा मैंने नजर नीची कर ली और नाली साफ़ करने लगा पर दिल ये क्या सोचने लगा था ये मैं नहीं जानता था

करीब आधे घंटे तक हम पानी साफ करते रहे बरसात भी अब मंद हो चली थी भाभी मेरी और आ ही रही थी की तभी उनका शायद पैर फिसला और गिरने से बचने के लिए उसने अपना हाथ मेर कंधे पर रखा मैं एक दम से हडबडा गया पर किस तरह से थाम ही लिया

पर मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर आ गया , वो अधलेटी सी मेरी बाहों में थी आँखे बंद हो गयी उनके आज पहली बार उनको मैंने यु छुआ था मेरी नजरे भाभी के ब्लाउज से दिखती उनकी चूची की उस घाटी पर जो लगी तो हट ना पाई

“अब छोड़ो भी , ”उन्होंने कहा तो मुझे होश आया

मैंने देखा मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर था तो मुझे शर्म सी आई और मैंने अपना हाथ हटा लिया भाभी ने कुछ नहीं बोला बस अंदर चली गयी मैं बाल्टी उठाने को हुआ तो मैंने देखा मेरे कच्छे में तनाव था , ओह कही भाभी ने देखा तो नहीं

अगर देख लिया तो क्या सोचेगी वो कही मेरे बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेंगे मैं शर्म से पानी पानी हो गया पर पता नहीं क्यों अच्छा भी लगा पता नहीं ये उफनती हुई सांसो में जो एक खलबली सी मची थी या फिर ऊपर आसमान में उमड़ते हुए उन बादलो का जोश था जो अभी अभी ठन्डे हुए थे पर फिर से बरसने को मचल रहे थे

उस एक पल में भाभी का वो रूप किसी हीरोइन से कम ना लगा कुछ देर बाद काम समेट कर मैं अन्दर गया भीगा हुआ तो था ही बस अब नहा कर कपडे बदलने थे मैं बाथरूम में गया पर दरवाजा बंद था मैंने हलके से खटखटाया

“मैं हु अन्दर ” भाभी की आवाज आई

“भाभी ”

“मुझे थोडा टाइम लगेगा तुम बाहर नलके पे नहा लो ”

“मैं पर भाभी ”

“पर वर क्या अब चैन से नहाने भी ना दोगे क्या वैसे तो रोज क्या नलके पे नहीं नहाते हो ”

“भाभी वो दरअसल मेरा कच्छा बाथरूम में है ”

“तू भी ना , अच्छा रुक एक मिनट जरा ”

तभी सिटकनी खुलने की आवाज आई और फिर भाभी का हाथ बाहर आया कच्छा पकड़ते हुए जो उनकी गीली उंगलिया मेरी हथेली से छू गयी कसम से पुरे बदन में करंट सा दौड़ गया कंपकंपाहट लगने लगी

“अब छोड़ भी मेरा हाथ या ऐसे ही खड़ा रहेगा ”

“सॉरी भाभी ” मैंने जल्दी से हाथ हटाया और दौड़ पड़ा नलके की और...
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rajbr1981 Offline
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23-03-2017, 01:21 AM
नए सूत्र के लिए बधाईयाँ...
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arav1284 Offline
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#3
23-03-2017, 01:29 AM
             
अपडेट ~ 2

नलके पे नहाते हुए पानी मुझे भिगो तो रहा था पर मेरे अन्दर एक आग सी लग गयी थी एक खलबली सी मच गयी थी उनकी उंगलियों ने जो छुआ था वैसे तो कई बार उन्होंने मुझे छुआ था पर ऐसा कभी महसूस नहीं किया था मैंने जैसे तैसे मैं नहाया उसके बाद मैं अपना कच्छा सुखाने बाथरूम में गया तब तक भाभी निकल चुकी थी

पर उनके गीले कपडे वही थे , मैंने एक बार इधर उधर देखा और फिर अपने कापते हुए हाथो से उसकी ब्रा को उठाया ओफफ्फ्फ्फ़ ऐसा लगा की भाभी की चूची को ही हाथ में ले लिया हो मैंने.. धड़कने बढ़ सी गयी पास ही उसकी कच्छी पड़ी थी एक बार उसको भी देखने की आस थी पर बाहर किसी के कदमो की आहट आई तो फिर मैं वहा से निकल गया

बस कपडे पहन कर तैयार ही हुआ था की भाभी की आवाज आई “चाय पी लो ” तो मैं निचे रसोई में आया भाभी ने गिलास मुझे पकडाया और उसकी उंगलिया एक बार फिर से मेरी उंगलियों से टकरा गयी भाभी ने सूट-सलवार पहना हुआ था जो उनके बदन पर खूब जंच रहा था

“क्या हुआ देवर जी ऐसे क्या ताक रहे हो मुझे ”

“नहीं तो भाभी , ऐसा कहा ”

“वैसे आजकल कुछ खोये खोये से लगते हो क्या माजरा है ”

“ऐसा तो कुछ नहीं भाभी ”

“कुछ तो है देवर जी वैसे आजकल मुझसे बाते छुपाने लग गए हो ”

भाभी, कुछ होता तो आपको ना बताता ”

“चलो कोई बात ना, मैं कह रही थी की बारिश भी रुक गयी है तो याद से बनिए की दुकान से घर का राशन ले आना मम्मी जी को मालूम हुआ तो फिर गुस्सा करेगी ”

“मैं ठीक है पर हमेशा मैं ही क्यों कामो में पिलता हु ”

“क्योंकि घर में आप ही तो हो आपके भाई और तो साल में दो तीन बार ही आते और पिताजी तो बस सरपंची के कामो में ही ब्यस्त रहते  है तो बाकि टाइम आपको ही सब संभालना होगा ”

मैं- ठीक है भाभी ले आऊंगा और कोई फरमाइश

वो बस मुस्कुरा दी और मैं अपनी साइकिल उठा के घर से निकल गया बरसात से रस्ते में कीचड सा हो रहा था तो मैं थोडा संभल के चल रहा था पर वो कहते हैं ना की बस हो ही जाता है तो पता नहीं कहा से एक चुनरिया उडती हुई आई और मेरे चेहरे पर आ गिरी

उसमे मैं ऐसा उलझा की सीधा कीचड में जा गिरा कपडे ही क्या मैं मेरा चेहरा सब सन गया आसपास के लोग हसने लगे मुझे गुस्सा भी आया पर उठा साइकिल को भी उठाया और देखने लगा की चुन्नी आई कहा से तो देखा की साइड वाले घर की छत पर एक लड़की खड़ी है

बिना दुपट्टे के गुस्से से उसको कुछ कहने ही वाला था की नजरो ने धोखा दे दिया एक बार नजर जो उस पर रुकी तो बस बगावत ही हो गयी समझो सफ़ेद सूट में खुल्ल्ले बाल उसके गोरा रंग लम्बी सी गरदन और उसकी वो नीली आँखे बस फिर कुछ कह ही ना पाए

जैसे ही उसने मुझे देखा एक बार तो उसकी भी हंसी छुट गयी पर फिर उसने धीरे से कान पकड़ते हुए जो सॉरी कहा कसम से हम तो पिघल ही गये.. बस हस दिए कीचड में सने अपने दांत दिखा के , अब कैसा जाना था बनिए के पास तो हुए वापिस घर को

और जैसे ही रखा कदम मम्मी ने बारिश करदी हमारे ऊपर जली- कटी बातो की

“अब कहाँ लोट आया तू , एक काम ठीक से ना होता पता नहीं क्या होगा इस लड़के का हमेशा उल जलूल हरकते करनी है इसको.. जा मर जा बाथरूम में और जल्दी से नहा ले राणा जी आते ही होंगे तुझे ऐसे देखंगे तो गुस्सा करेंगे ”

कभी कभी इतना गुस्सा आता था की घर का छोटा बेटा न बनाये भगवन किसी को मेरा भाई फ़ौज में था साल में दो तीन बार आता तो सब उसके आगे पीछे ही फिरते पर उसके जाने के बाद मैं थक सा गया था ये सब काम संभालते हुए पिताजी बहुत कम जाते थे खेतो पर ज्यादातर वो अपनी सरपंची में भी रहते

मैं पढाई करता और दोपहर बाद खेत संभालता ऊपर से घरवालो की बाते भी सुनता

अब मैं ना जाऊंगा बनिए की दुकान पर चाहे कुछ भी हो ”

“तो फिर खाना तू रोटी आज मैं भी देखती हु , तेरे नखरे कुछ ज्यादा होने लगे है आजकल मैं बता रही हु तू उल्टा जवाब ना दिया कर वर्ना फिर् मेरा हाथ उठ जाना है ”

गुस्से में भरा हुआ मैं अपने कमरे में आया और पलंग पर बैठ गया पर निचे से मम्मी की जली कटी बाते सुनता रहा तो और दिमाग ख़राब होने लगा

मैं घर से बाहर निकल पड़ा खेतो की तरफ शाम होने लगी थी चूँकि बरसात हुई थी तो अँधेरा थोडा सा जल्दी होने लगा था मैं खेतो के पास पम्टसेट पर बैठा सोच रहा था कुछ

जब मैंने भाभी को थामा था अपनी बाँहों में तो कैसे उसके चूतडो पर मेरा हाथ कस गया था कितने मुलायम लगे थे वो और भाभी की चुचियो की घाटी मेरा मन डोलने लगा अजीब से ख्याल मेर मन में आने लगे भाभी के बारे में और मेरा लंड टाइट होने लगा उसमे तनाव आने लगा मुझे बुरा भी लग रहा था की भाभी के बारे में सोच के मेरा लंड तन रहा है और अच्छा भी लग रहा था

मेरी कनपटिया इतनी ज्यादा गरम हो गयी थी की मैं क्या बताऊ , मैंने अपना हाथ पायजामे में डाला और अपने लंड को सहलाया पर वो और ज्यादा खड़ा हो गया ,

वैसे मौसम भी था अब अपने को चूत कहा मिलनी थी तो सोचा की हिला ही लेता हु आज मैने उसको बाहर निकाला और सहला ही रहा था की..


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arav1284 Offline
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23-03-2017, 01:31 AM
(23-03-2017, 01:21 AM)rajbr1981 : नए सूत्र के लिए बधाईयाँ...

धन्यवाद भाई , साथ बनें रहें ।
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Sunilnitharwal3 Offline
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23-03-2017, 02:01 AM
Nice story
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23-03-2017, 04:24 PM
Achchhi shuruaat hai.
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dpmangla Online
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#7
23-03-2017, 06:33 PM
(23-03-2017, 04:24 PM)urc4me : Achchhi shuruaat hai.

Shuruwaat Aahi hai, par Arav ki jo aur Threads un updated pade hain, unka kya hoga, unhen bhi toh update karo
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arav1284 Offline
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#8
23-03-2017, 07:22 PM
(23-03-2017, 06:33 PM)dpmangla : Shuruwaat Aahi hai, par Arav ki jo aur Threads un updated pade hain, unka kya hoga, unhen bhi toh update karo

भाई सभी थ्रेड पर नियमित अपडेट दे ही रहा हूँ ..हाँ कभी कभार अपडेट देने में देर हो गई होंगी उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । धन्यवाद अभी तक साथ देने के लिए ।
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dpmangla Online
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#9
23-03-2017, 09:03 PM
(23-03-2017, 07:22 PM)arav1284 : भाई सभी थ्रेड पर नियमित अपडेट दे ही रहा हूँ ..हाँ कभी कभार अपडेट देने में देर हो गई होंगी उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । धन्यवाद अभी तक साथ देने के लिए ।

Dear, Mein Thread_ Meri Pyari Behenen Aur Bhabhi ki Baat kar raha Hoon. Woh bhi Aap hi ka Thread Hai
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arav1284 Offline
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#10
24-03-2017, 12:45 AM
               
अपडेट~3

मैंने पायजामे को थोडा सा निचे सरकाया और अपने लंड को कस लिया मुठी में उसको दबाने लगा जैसे बिजली की सी तरंगे दौड़ने लगी थी मेरे तन बदन में लिंग आज हद से ज्यादा कठोर हो गया था उसकी वो हलकी नीली सी नसे फूल गयी थी जिन्हें मेरी हथेली साफ़ महसूस कर रही थी मैंने धीरे से अपने सुपाडे को पीछे की तरफ किया और उस पर अपनी उंगलिया फेरी

सुपाडे की संवेदनशील चमड़ी से जैसे ही मेरी सख्त हथेली रगड़ खायी, बदन में कंपकंपी सी मच गयी “आह ” धीमे से एक आह मेरे होंठो से फुट पड़ी

पता नहीं ये भाभी के ख्यालो का असर था या बरसात के बाद की चलती ठंडी हवा का जोर था हाथो में उत्तेजित लिंग लिए मैं पंप हाउस के पास खड़ा मैं मुठी मारने का सुख प्राप्त कर रहा था

धीमी धीमी आहे भरते हुए मैं भाभी के बारे में सोचते हुए अपने लंड को मुठिया रहा था आज से पहले मैंने भाभी के बारे में ना कभी ऐसा महसूस किया था और ना ही कभी ऐसे हालात हुए थे जब कच्छा पकड़ाते हुए उनकी वो नरम उंगलिया मेरे हाथ से उलझ गयी थी या जब मेरे कठोर हाथो ने भाभी के नितम्बो को सहलाया था उफ्फ्फ मेरा लंड कितने झटके मार रहा था

रगों में खौलता गरम खून वीर्य बन कर बह जाना चाहता था पल पल मेरी मुठी लंड पर कसती जा रही थी बस दो चार लम्हों की बात और खेल ख़तम हो जाना था

दिल में बस भाभी समा गयी थी उस पल में ऐसी कल्पना करते हुए की मैं भाभी ही चोद रहा हु मैं अपनी वासना के चरम पर बस किसी भी पल पहुच ही जाने वाला था मेरा बदन अकड़ने लगा था पर तभी

पर तभी एक स्वर मेरे कानो में गूंजा “ये क्या कर रहे हो तुम ”

और झट से मेरी आँखे खुल गयी और मैंने देखा की हमारी पड़ोसन चंदा चाची मेरे बिलकुल सामने खड़ी है मेरी आँखे जो कुछ पल पहले मस्ती में डूबी हुई थी अब वो हैरत और डर से फटी हुई थी
“चाची......... आआआपप यहाह्ह्हह्ह ” मैं बस इतना ही बोल पाया और अगले ही पल मेरे लंड से वीर्य की पिचकारिया निकल कर सीधा चाची के पेट पर गिरने लगी

हालत बिलकुल अजीब थी चाची उस छोटे से पल में अपनी आँखे फाडे मेरी तरफ देख रही थी और मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं पा रहा था बल्कि वीर्य छुटने से जो मजा मिल रहा था उसके साथ ही सामने खड़ी चाची को देख कर दिल में दो तरह की भावनाए उमड़ आई थी

हम दोनों बस एक दुसरे को देख रहे मेरा झटके खाता हुआ लंड चाची के पेट और साडी को पर अपनी धार मार रहा था चाची कुछ कदम पीछे को हुई और तभी मेरी अंतिम धार ठीक उसकी नाभि पर पड़ी स्खलित होते ही डर चढ़ गया

मैंने तुरंत अपने पायजामे को ऊपर किया चाची की आँखे तब तक गुस्से से दहक उठी थी

“मरजाने ये क्या कर दिया ” चिल्लाते हुए वो मेरा वीर्य साफ़ करते हुए बोली

“माफ़ कर दो चाची वो , वो बस ........ ”

“शर्म नहीं आती तुझे, कैसे गंदे काम कर रहा है नालायक और मुझे भी गन्दी कर दिया तू आज घर चल तेरी मम्मी को बताती हु तेरी करतुते मैं तो कितना भोला समझती थी पर देखो खुले में ही कैसे......... तू आज आ घर ”

“चाची, चाची जैसा आप समझ रही है वैसा कुछ नहीं है ” मैंने नजर झुकाए हुए कहा

“पूरी तो चिपचिपी कर दिया और कहता है ऐसा कुछ नहीं है ”

“चाची, गलती हो गयी माफ़ी दे दो आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा वो बस ........ ”

“बस क्या ......................... ”!!

“चंदा कितनी देर लगाएगी अँधेरा हो रहा है देर हो रही जल्दी आ ” मैंने देखा थोड़ी दूर से ही एक औरत चाची को पुकार रही थी तो चाची ने एक बार मुझे देखा और फिर बोली “आ रही हु ”

थोड़ी दूर जाने पर वो पलटी और बोली “तेरी मम्मी को बताउंगी ” और फिर चल दी

मैं घबरा गया बुरी तरह से क्योंकि घर में वैसे ही डांट पड़ती रहती थी और अब ये चंदा चाची ने भी मुठी मारते हुए पकड़ लिया था अब वो घर पे कह देगी तो मुसीबत हो ही जानी थी कुछ देर वही बैठा बैठा मैं सोचता रहा पर घर तो जाना ही था वहा नहीं जाऊ तो कहा जाऊ

जब कुछ नहीं सुझा तो धीमे कदमो से चलते हुए मैं घर पंहुचा तो देखा की राणाजी आँगन में बैठे हुक्का पी रहे थे मुझे देख कर बोले “आ गया, मैं तेरी ही राह देख रहा था ”

और उसी पल मेरी गांड फट गयी मैं जान गया की चंदा चाची शिकायत कर गयी है और अब सुताई होगी तगड़ी वाली


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