Desi कमसिन कलियाँ और हरामी लाला
|
(22-06-2017, 11:38 AM)urc4me : Shuraat achchhi hai.
(22-06-2017, 07:00 PM)arav1284 : [color="darkorchid"]Good
लालाजी ने अपने लंड के पिस्टन से उसकी चूत को किसी मशीन की तरह चोदना जारी रखा..
शबाना : "आआआआआहह लालाजी ...आज तो कसम से आपके बूड़े शरीर में जैसे कोई ताक़त आ गयी है....किस कली को देख आए आज....अहह''
लालाजी बुदबुदाए : "वो है ना साली....दोनो रंडिया...अपने मोहल्ले की....पिंकी और निशि ....साली बिना ब्रा पेंटी के घूमती है आजकल ......साली हरामजादियाँ .....आज तो कसम से उन्हे दुकान पर ही ठोकने का मन कर रहा था....''
शबाना हँसी और बोली : "उन दोनो ने तो पुरे मोहल्ले की नींद उड़ा रखी है लालाजी .... उफफफफ्फ़....उन्हे देखकर मुझे अपनी जवानी के यही दिन याद आ गये...... अहह.....
मैने तो इस उम्र में खेत में नंगी खड़ी होकर अपनी चूत मरवाई थी और वो भी 4 लौड़ो से.....और कसम से लालाजी, आज भी वैसी ही फीलिंग आ रही है जैसे एक साथ 4 लंड चोद रहे है मुझे....''
लालाजी को वो अपनी जवानी के किस्से सुना रही थी और लालाजी एक बार फिर से पिंकी और निशि के ख़यालो में डूबकर उसकी चूत का बाजा बजाने लगे...
और जल्द ही, पिंकी और निशि के नाम का ढेर सारा रसीला प्रसाद उन्होने शबाना की चूत में उड़ेल दिया...
उसके बाद लालाजी ने अपने कपड़े पहने और बिना कुछ कहे बाहर निकल गये...
दुकान खोलकर वो फिर से अपने काम में लग गये पर उनका मन नही लग रहा था...
अब उन्हे किसी भी हालत में उन दोनो को अपनी बॉटल में उतारना था और उसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार थे.
लालाजी का साहूकारी का भी काम था और गाँव के लोग अक्सर उनसे ऊँचे रेट पर पैसे ले जाते थे...
वैसे तो लालाजी का रोब ही इतना था की बिना कहे ही हर कोई उनकी दुकान पर आकर सूद के पैसे हर महीने दे जाता था, पर फिर भी कई बार उन्हे अपना लट्ठ लेकर निकलना ही पड़ता था वसूली करने ...
उनका रोबीला अंदाज ही काफ़ी होता था गाँव के लोगो के लिए, इसलिए जब वो उगाही करने जाते तो पैसे निकलवा कर ही वापिस आते...
लालाजी की पत्नी को मरे 5 साल से ज़्यादा हो चुके थे...
उनकी एक बेटी थी जो साथ के गाँव में ब्याही हुई थी...
शादी के बाद उसने भी एक फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया था और वो भी अब 18 की हो चली थी और अक्सर अपने नाना से मिलने, अपनी माँ के साथ उनके घर आया करती थी..
पर जब से लालाजी की बीबी का देहांत हुआ था, उसके बाद से उनकी सैक्स लाइफ में बहुत बदलाव आए थे...
पहले तो उनकी सैक्स लाइफ नीरस थी...
2-4 महीने में कभी कभार उनकी बीबी राज़ी होती तो उसकी मार लेते थे...
पर बीबी के जाने के बाद उनके चंचल मन ने अंगडाइयाँ लेनी शुरू कर दी...
शबाना के साथ भी उनके संबंध उसी दौरान हुए थे...
वो अक्सर उनकी दुकान से सामान उधार ले जाती और पैसे लौटाने के नाम पर अपनी ग़रीबी की दुहाई देती...
ऐसे ही एक दिन जब लालाजी उसके घर गये और पैसे का तक़ाज़ा किया तो उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया और लाला जी के कदमो मे बैठ गयी...
बस एक वो दिन था और एक आज का दिन है, ऐसा शायद ही कोई हफ़्ता निकलता होगा जब लालाजी का लंड उसकी चूत में जाकर अपनी वसूली नहीं करता था .. बदले में वो अपने घर का राशन बिना किसी रोक टोक के उठा लाती..
पर एक ही औरत को चोदते -2 अब लालजी का मन ऊब सा चुका था...
उनके सामने जब गाँव की कसी हुई जवानियां, अपने मादक शरीर को लेकर निकलती तो उनके लंड का बुरा हाल हो जाता था... और ये बुरा हाल ख़ासकर पिंकी की कच्ची अम्बियों को देखकर होता था...
उन दोनो की कामुक हरकतों ने लालाजी का जीना हराम कर रखा था..
खैर, आज जब लालाजी ने अपना बही ख़ाता खोला तो उन्होने पाया की रामदीन ने जो पैसे उधार लिए थे, उसका सूद नही आया है अब तक...
रामदीन दरअसल पिंकी का पिता था..
बस , फिर क्या था...
लालाजी की आँखो में एक चमक सी आ गयी..
उन्होने झट्ट से अपना लट्ठ उठाया, दुकान का शटर नीचे गिराया और चल दिए पिंकी के घर की तरफ..
वहां पहुँचकर उन्होने दरवाजा खटकाया पर काफ़ी देर तक कोई बाहर ही नही निकला...
एक पल के लिए तो लालजी को लगा की शायद अंदर कोई नही है...
पर तभी उन्हे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी..
''कौन है....'' ??
लालाजी के कान और लंड एकसाथ खड़े हो गये...
ये पिंकी की आवाज़ थी.
वो अपने रोबीले अंदाज में बोले : "मैं हूँ ...लाला...''
अंदर खड़ी पिंकी का पूरा शरीर काँप सा गया लालाजी की आवाज़ सुनकर...
दरअसल वो उस वक़्त नहा रही थी...
और नहाते हुए वो सुबह वाली बात को याद करके अपनी मुनिया को मसल भी रही थी की कैसे उसने और निशि ने मिलकर लालाजी की हालत खराब कर दी थी...
और अपनी चूत मसलते हुए वो ये भी सोच रही थी की उसकी नंगी गांड को देखकर लालाजी कैसे अपने खड़े लंड को रगड़ रहे होंगे...
पर अचानक दरवाजा कूटने की आवाज़ ने उसकी तंद्रा भंग कर दी थी..
काफ़ी देर तक दरवाजा पीटने की आवाज़ सुनकर वो नंगी ही भागती हुई बाहर निकल आई थी क्योंकि उसके अलावा घर पर इस वक़्त कोई नही था..
उसके पिताजी खेतो में थे और माँ उन्हे खाना देने गयी हुई थी..
पिंकी के शरारती दिमाग़ में एक और शरारत ने जन्म ले लिया था अब तक..
पिंकी बड़े सैक्सी अंदाज में बोली : "नमस्ते लालाजी ...कहिए...कैसे आना हुआ...''
लालाजी ने इधर उधर देखा, आस पास देखने वाला कोई नही था...
वो बोले : "अर्रे, दरवाजा बंद करके भला कोई नमस्ते करता है...दरवाजा खोल एक मिनट.... बड़ी देर से खड़का रहा हूँ, तेरे पिताजी से जरुरी काम है ''
पिंकी : "ओह्ह ...लालाजी ...माफ़ करना...पर..मैं नहा रही थी...दरवाजे की आवाज़ सुनकर ऐसे ही भागती आ गयी...नंगी खड़ी हूँ , इसलिए दरवाजा नही खोल रही...एक मिनट रूको..मैं कुछ पहन लेती हूँ ...''
उफफफफ्फ़.....
एक तो घर में अकेली...
उपर से नहा धोकर नंगी खड़ी है....
हाय ....
इसकी इसी अदाओं पर तो लालाजी का लंड उसका दीवाना है...
उसने ये सब दरवाजे के इतने करीब आकर, अपनी रसीली आवाज़ में कही थी की दरवाजे के दूसरी तरफ खड़े लालाजी का लंड उनकी धोती में खड़ा होकर दरवाजे की कुण्डी से जा टकराया...
लालाजी दम साधे उसके दरवाजा खोलने का इंतजार करने लगे..
एक मिनट में जब दरवाजा खुला तो पिंकी को देखकर उनकी साँसे तेज हो गयी....
वो जल्दबाज़ी में एक टॉवल लपेट कर बाहर आ गयी थी...
उसने सिर्फ टॉवल पहना हुआ था और कुछ भी नही...
और उपर से उसके गीले शरीर से पानी बूंदे सरकती हुई उसके मुम्मों के बीच जा रही थी..
लालाजी का दिल धाड़-2 करने लगा..वो उनके सामने ऐसे खड़ी थी जैसे ये पहनावा उसके लिए आम सी बात है, पर अंदर से वो ही जानती थी की उसका क्या हाल हो रहा है ..
पिंकी : "हांजी लालाजी ,आइए ना अंदर...बैठिये ...''
लालाजी अंदर आ गये और बरामदे में पड़ी खाट पर जाकर बैठ गये...
उनकी नज़रें पिंकी के बदन से ही चिपकी हुई थी...
आज वो सही तरह से उसके शरीर की बनावट को देख पा रहे थे...
पिंकी की कमर में एक कटाव पैदा हो चुका था जो उसके रसीले कुल्हो की चौड़ाई दर्शाते हुए नीचे तक फैलता हुआ दिख रहा था...
ब्रा तो वो पहले भी नही पहनती थी इसलिए उसकी गोलाइयों का उन्हे अच्छे से अंदाज़ा था...
करीब 32 का साइज़ था उसके गुलगुलो का..
और उनपर लगे कंचे जितने मोटे लाल निप्पल....
उफफफ्फ़..
उनकी नोक को तो लालजी ने कई बार अपनी आँखो के धनुषबाण से भेदा था..
पिंकी : "लालाजी ...पानी.....ओ लालाजी .....पानी लीजिए....''
लालाजी को उनके ख़यालो से, लंड के बाल पकड़ कर बाहर घसीट लाई थी पिंकी, जो उनके सामने पानी का ग्लास लेकर खड़ी थी..
नीचे झुकने की वजह से उस कॉटन के टॉवल पर उसकी जवानी का पूरा बोझ आ पड़ा था...
ऐसा लग रहा था जैसे पानी के गुब्बारे, कपड़े में लपेट कर लटका दिए है किसी ने...
और उनपर लगे मोटे निप्पल उस कपड़े में छेद करके उसकी जवानी का रस बिखेरने तैयार थे...
पर इन सबसे अंजान बन रही पिंकी, भोली सी सूरत बना कर लालाजी के पास ही बैठ गयी और बोली :
"पिताजी तो शाम को ही मिलते है लालाजी , आपको तो पता ही है...और माँ उनके लिए खाना लेकर अभी थोड़ी देर पहले ही निकली है...घंटा भर तो लगेगा उन्हे भी लौटने में ...''
लालाजी को जैसे वो ये बताना चाह रही थी की अगले एक घंटे तक वो अकेली ही है घर पर ...
लालाजी ने उसके गोरे बदन को अपनी शराबी आँखो से चोदते हुए कहा : "अर्रे, मैं ठहरा व्यापारी आदमी, मुझे क्या पता की कब वो घर पर रहेगा और कब खेतो में ...मुझे तो अपने ब्याज से मतबल है...आज ही देखा मैने, 20 दिन उपर हो चुके है और ससुरे ने ब्याज ही ना दिया...''
लालाजी अपनी आवाज़ में थोड़ा गुस्सा ले आए थे...
पिंकी ने तो हमेशा से ही उनके मुँह से मिठास भरी बातें सुनी थी...
इसलिए वो भी थोड़ा घबरा सी गयी...
वो बोली : "लालाजी ...इस बार बापू ने नयी मोटर लगवाई है खेतो में, शायद इसलिए पैसो की थोड़ी तंगी सी हो गयी है....''
वैसे तो उसका सफाई देने का कोई मतलब नही था पर लालाजी ताड़ गये की उसे अपनी फैमिली की कितनी चिंता है...
लालाजी : "देख पिंकी, तेरा बापू मोटर लगवाए या मोटर गाड़ी लेकर आए, मेरे पैसे टाइम से ना मिले तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ ...''
लालाजी का ये रूप देखकर अब पिंकी को सच में चिंता होने लगी थी...
उसने सुन तो रखा था की लालाजी ऐसे लोगो से किस तरह का बर्ताव करते है पर ये नही सोचा था की उसके बापू के साथ भी ऐसा हो सकता है...
उसने लालाजी के पाँव पकड़ लिए : "नही लालजी...आप ऐसा ना बोलो...मेरा बापू जल्दी ही कुछ कर देगा...आप ऐसा ना बोलो...थोड़े दिन की मोहलत दोगे तो वो आपके सूद के पैसे दे देंगे..''
लालाजी ने उसकी बाहें पकड़ कर उपर उठा लिया....
उस नन्ही परी की आँखो में आँसू आ रहे थे..
लाला : "अर्रे...तू तो रोने लगी...अर्रे ना....ऐसा ना कर.....मैं इतना भी बुरा ना हूँ जितना तू सोचन लाग री है''
बात करते-2 लालाजी ने उसे अपने बदन से सटा सा लिया...
उसके जिस्म से निकल रही साबुन की भीनी -2 खुश्बू लालाजी को पागल बना रही थी...
पानी की बूंदे अभी तक उसके शरीर से चू रही थी...
लालाजी की धोती में खड़ा छोटा पहलवान एक बार फिर से हरकत में आया और उसने अपने सामने खड़ी पिंकी को झटका मारकर अपने अस्तित्व का एहसास भी करवा दिया..
एक पल के लिए तो पिंकी भी घबरा गयी की ये क्या था जो उसके पेट से आ टकराया...
उसने नज़रें नीचे की तो लालाजी की धोती में से झाँक रहे उनके मोटे लंड पर उसकी नज़र पड़ी, जो बड़ी चालाकी से अपना चेहरा बाहर निकाल कर पिंकी के बदन को टच कर रहा था...
वो तो एकदम से डर गयी...
आज से पहले उसने लंड का सिर्फ़ नाम ही सुना था
कभी देखा नही था...
ये तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई काली घीस हो...उसकी कलाई कितना मोटा था और लगभग उतना ही लम्बा
उसने घबराकर लालाजी को धक्का दिया और दूर जाकर खड़ी हो गयी...
लालाजी ने भी अपने पालतू जानवर को वापिस उसके पिजरे में धकेल दिया और हंसते हुए चारपाई पर वापिस बैठ गये...
उन्हे तो पता भी नही चला की पिंकी ने उनका जंगली चूहा देख लिया है..
लालाजी : "चल, तेरी बात मानकर मैं कुछ दिन और रुक जाता हूँ ...इसी बात पर एक चाय तो पीला दे....''
पिंकी बेचारी सहमी हुई सी अंदर गयी और चाय बनाने लगी...
उसके जहन में रह-रहकर लालाजी के लंड की शक्ल उभर रही थी...
उसने तो सोचा था की गोरा-चिट्टा , सुंदर सा लंड होता होगा...
जिसे सहलाने में , दबाने में , चूसने में मज़ा मिलता है
इसलिए लड़किया उसकी दीवानी होती है....
उसे क्या पता था की वो निगोडा ऐसा कालू निकलेगा..
जैसे-तैसे उसने चाय बनाई और लालाजी को देने पहुँच गयी..
लालाजी की नज़रें उसके अंग-2 को भेदने में लगी थी, ये बात तो उसे भी अच्छे से पता थी
पर उसे भी तो उन्हे अपना शरीर दिखाकर सताने में मज़ा आता था...
खैर, चाय पीकर लालाजी चले गये...
और उसने आवाज़ देकर अपनी सहेली सोनी को अपने घर बुला लिया..
और उसे लालाजी के घर आने के बाद से लेकर जाने तक का पूरा किस्सा विस्तार से सुनाया..
[/color]
« Next Oldest | Next Newest »
|