22-10-2017, 02:06 PM
अंशिका : तू कुत्ता साले...
मैं : देखो अब तुम भी गाली दे रही हो
अंशिका : तुमने ही सिखाया है, मैं तो एक सीधी साधी सी लड़की थी
मैं : हाँ, देख रहा हूँ, कितनी सीधी साधी है, तेरी माँ नीचे है और ऊपर तू मेरा लंड चूस रही है..साली रंडी..
अंशिका : ऐ , रंडी मत बोलो...
मैं : क्यों नहीं, पहले भी तो बोला था, पर अंग्रेजी में, प्रोस्तितूत बोला था, तब तो बुरा नहीं माना
अंशिका : अंग्रेजी में इतना बुरा नहीं लगता, जितना हिंदी में
मैं : भाई, मैं तो ऐसे ही बोलूँगा, तू है ही मेरी पर्सनल रंडी..
अंशिका : तुम्हारा बस चले तो सभी की रंडी बना डालो, जाओ मैं नहीं करती कुछ.
मेरा लंड दो बार झड चूका था, पर आज ना जाने क्यों इसमें कड़कपन जाने का नाम नहीं ले रहा था, थोडा दर्द जरुर करने लगा था नसों में.
मैं : अरे मेरी जान, तुम तो बुरा मान गयी, खुद ही बोल लेती हो और गुस्सा भी मान जाती हो, तुम्हे सिर्फ मेरी रंडी बनकर रहना है, मैं तुम्हे किसी और से क्यों बांटूं..
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गयी, साली के रस से भीगे होंठ बड़े सेक्सी लग रहे थे, में तो दो बार झड चूका था, पर मैं जानता था की उसकी चूत में से नदियाँ बह रही होंगी इस समय, मैंने अपना हाथ नीचे लेजाकर उसकी चूत पर रखा ही था की उसने फिर से अपनी जांघे भींच ली, उसकी आँखें बंद सी होने लगी..
मैंने दुसरे हाथ से उसकी नाईटी को ऊपर खिसकाना शुरू ही किया था की उसने मेरी आँखों में देखकर कहा.."प्लीस आज नहीं...ऊपर से ही कर लो, नीचे मम्मी है, फिर कभी कर लेना, आज मत करो प्लीस..."
पर मैं नहीं माना और उसे ऊपर करता ही गया, उसकी दूध जैसी टाँगे नंगी होती चली गयी मेरी आँखों के सामने, मैंने इतना गोरा रंग किसी का भी नहीं देखा था, उसकी कसी हुई पिंडलियाँ देखकर और उसके ऊपर मोती जांघे पकड़कर तो मेरा बुरा हाल हो गया.
अंशिका बुरी तरह से साँसे ले रही थी, वो मना भी कर रही थी और मुझे करने भी दे रही थी. आज तो मैं उसकी चूत भी मार लूं तो वो मना नहीं करेगी, इतनी गरम हो चुकी थी वो.
पर एक प्रोब्लम थी, मैं पहले से ही दो बार झड चूका था, अब कोई पोर्नस्टार तो था नहीं जो तीसरी बार भी खड़ा करके शुरू हो जाऊ , दोबारा खड़ा करने में, और वो भी चूत मारने के लिए, कम से कम दो घंटे तो लगेंगे ही, और इतनी देर तक अगर मैं ऊपर रहा, अंशिका के कमरे में, तो उसकी माँ को शक हो जाएगा, इसलिए मैंने अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते हुए कहा "ठीक है, मैं तुम्हारी चूत नहीं मार रहा....पर क्या मैं इसे देख भी नहीं सकता "
अंशिका को विशवास नहीं हुआ की मैंने उसकी चूत ना मारने की बात इतनी जल्दी मान ली है..उसने अपनी नाईटी को ढीला छोड़ दिया और मैंने उसे उसकी कमर से ऊपर कर दिया
अब वो मेरे आधी नंगी लेटी हुई थी, उसने ब्लेक कलर की पेंटी पहनी हुई थी..जो बुरी तरह से भीग चुकी थी उसके रस से..
मैंने अपनी एक ऊँगली से उसकी पेंटी के बीचो बीच एक लकीर सी खींची, जो उसकी चूत के दोनों पाटों को फेलाते हुए अन्दर की और जाने लगी..
आआआआआआह्ह्ह्ह विशाल.......मत तडपाओ....न.....
मेरी ऊँगली के दोनों तरफ उसकी चूत से निकलते रस का गीलापन आ चूका था, मैंने ऊँगली को ऊपर करके चूस लिया, थोडा खट्टा सा स्वाद था, पर मुझे अच्छा लगा, एक दो बार और चूसने पर थोडा मीठापन भी आने लगा, मैंने जिन्दगी में पहली बार किसी लड़की की चूत का रस चखा था..वैसे मैंने जो भी अंशिका के साथ किया था वो सब भी पहली बार ही किया था.
अंशिका : कैसा लगा
मैं : क्या
अंशिका : मेरा जूस और क्या...कैसा लगा
मैं :टेस्टी है, खट्टा मीठा सा, तुम्हारी तरह
अंशिका : मैं खट्टी मीठी हूँ, कैसे
मैं :कब मना कर दो, कब मान लो, तुम्हारा पता नहीं चलता, तुम्हारा जूस भी तुमपर गया है
अंशिका : हेहे ..
मैं : तुम भी चखोगी..अपना जूस
अंशिका : मैंने चखा है, मुझे मालुम है मेरे जूस का स्वाद कैसा है
मैं : तो तुम्हे मेरा जूस ज्यादा अच्छा लगा या अपना
अंशिका :तुम्हारा.
मैं : और मुझे तुम्हारा..
ये कहते हुए मैंने उसकी पेंटी को नीचे की तरफ खिसका दिया..
मैं : देखो अब तुम भी गाली दे रही हो
अंशिका : तुमने ही सिखाया है, मैं तो एक सीधी साधी सी लड़की थी
मैं : हाँ, देख रहा हूँ, कितनी सीधी साधी है, तेरी माँ नीचे है और ऊपर तू मेरा लंड चूस रही है..साली रंडी..
अंशिका : ऐ , रंडी मत बोलो...
मैं : क्यों नहीं, पहले भी तो बोला था, पर अंग्रेजी में, प्रोस्तितूत बोला था, तब तो बुरा नहीं माना
अंशिका : अंग्रेजी में इतना बुरा नहीं लगता, जितना हिंदी में
मैं : भाई, मैं तो ऐसे ही बोलूँगा, तू है ही मेरी पर्सनल रंडी..
अंशिका : तुम्हारा बस चले तो सभी की रंडी बना डालो, जाओ मैं नहीं करती कुछ.
मेरा लंड दो बार झड चूका था, पर आज ना जाने क्यों इसमें कड़कपन जाने का नाम नहीं ले रहा था, थोडा दर्द जरुर करने लगा था नसों में.
मैं : अरे मेरी जान, तुम तो बुरा मान गयी, खुद ही बोल लेती हो और गुस्सा भी मान जाती हो, तुम्हे सिर्फ मेरी रंडी बनकर रहना है, मैं तुम्हे किसी और से क्यों बांटूं..
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गयी, साली के रस से भीगे होंठ बड़े सेक्सी लग रहे थे, में तो दो बार झड चूका था, पर मैं जानता था की उसकी चूत में से नदियाँ बह रही होंगी इस समय, मैंने अपना हाथ नीचे लेजाकर उसकी चूत पर रखा ही था की उसने फिर से अपनी जांघे भींच ली, उसकी आँखें बंद सी होने लगी..
मैंने दुसरे हाथ से उसकी नाईटी को ऊपर खिसकाना शुरू ही किया था की उसने मेरी आँखों में देखकर कहा.."प्लीस आज नहीं...ऊपर से ही कर लो, नीचे मम्मी है, फिर कभी कर लेना, आज मत करो प्लीस..."
पर मैं नहीं माना और उसे ऊपर करता ही गया, उसकी दूध जैसी टाँगे नंगी होती चली गयी मेरी आँखों के सामने, मैंने इतना गोरा रंग किसी का भी नहीं देखा था, उसकी कसी हुई पिंडलियाँ देखकर और उसके ऊपर मोती जांघे पकड़कर तो मेरा बुरा हाल हो गया.
अंशिका बुरी तरह से साँसे ले रही थी, वो मना भी कर रही थी और मुझे करने भी दे रही थी. आज तो मैं उसकी चूत भी मार लूं तो वो मना नहीं करेगी, इतनी गरम हो चुकी थी वो.
पर एक प्रोब्लम थी, मैं पहले से ही दो बार झड चूका था, अब कोई पोर्नस्टार तो था नहीं जो तीसरी बार भी खड़ा करके शुरू हो जाऊ , दोबारा खड़ा करने में, और वो भी चूत मारने के लिए, कम से कम दो घंटे तो लगेंगे ही, और इतनी देर तक अगर मैं ऊपर रहा, अंशिका के कमरे में, तो उसकी माँ को शक हो जाएगा, इसलिए मैंने अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते हुए कहा "ठीक है, मैं तुम्हारी चूत नहीं मार रहा....पर क्या मैं इसे देख भी नहीं सकता "
अंशिका को विशवास नहीं हुआ की मैंने उसकी चूत ना मारने की बात इतनी जल्दी मान ली है..उसने अपनी नाईटी को ढीला छोड़ दिया और मैंने उसे उसकी कमर से ऊपर कर दिया
अब वो मेरे आधी नंगी लेटी हुई थी, उसने ब्लेक कलर की पेंटी पहनी हुई थी..जो बुरी तरह से भीग चुकी थी उसके रस से..
मैंने अपनी एक ऊँगली से उसकी पेंटी के बीचो बीच एक लकीर सी खींची, जो उसकी चूत के दोनों पाटों को फेलाते हुए अन्दर की और जाने लगी..
आआआआआआह्ह्ह्ह विशाल.......मत तडपाओ....न.....
मेरी ऊँगली के दोनों तरफ उसकी चूत से निकलते रस का गीलापन आ चूका था, मैंने ऊँगली को ऊपर करके चूस लिया, थोडा खट्टा सा स्वाद था, पर मुझे अच्छा लगा, एक दो बार और चूसने पर थोडा मीठापन भी आने लगा, मैंने जिन्दगी में पहली बार किसी लड़की की चूत का रस चखा था..वैसे मैंने जो भी अंशिका के साथ किया था वो सब भी पहली बार ही किया था.
अंशिका : कैसा लगा
मैं : क्या
अंशिका : मेरा जूस और क्या...कैसा लगा
मैं :टेस्टी है, खट्टा मीठा सा, तुम्हारी तरह
अंशिका : मैं खट्टी मीठी हूँ, कैसे
मैं :कब मना कर दो, कब मान लो, तुम्हारा पता नहीं चलता, तुम्हारा जूस भी तुमपर गया है
अंशिका : हेहे ..
मैं : तुम भी चखोगी..अपना जूस
अंशिका : मैंने चखा है, मुझे मालुम है मेरे जूस का स्वाद कैसा है
मैं : तो तुम्हे मेरा जूस ज्यादा अच्छा लगा या अपना
अंशिका :तुम्हारा.
मैं : और मुझे तुम्हारा..
ये कहते हुए मैंने उसकी पेंटी को नीचे की तरफ खिसका दिया..