21-06-2017, 05:32 PM
मैं अब भी बिस्तर के नीचे ही थी जब मैने दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़ा पूरा नही खुला था, सिर्फ़ थोड़ा सा जितना के अंदर देखने के लिए काफ़ी हो. और दरवाज़े के पिछे से एक जाना पहचाना चेहरा कमरे के अंदर झाँक रहा था. गुड्डो का चेहरा. जैसे वो कमरे के अंदर झाँक कर ये तसल्ली कर रही हो के मैं अब तक सो रही हूँ.
मुझे अच्छी तरह याद है के वो पूरी रात मैने यूँ ही बिस्तर के नीचे रोते हुए गुज़ारी थी और अगली सुबह मुझे सर्दी से बुखार चढ़ गया था.
अगले दिन मैने पुछा तो मुझे बताया गया के गुड़िया नीचे के कमरे में सोफे पर बैठी हुई मिली.
ड्रॉयिंग रूम में टीवी ऑन था जिसके लिए पापा उसके लाख इनकार करने पर भी मेरे भाई और मम्मी को ही ज़िम्मेदार मान रहे थे.
"रात को 9 बजे के बाद कोई टीवी नही और जाने से पहले टीवी बंद करके जाया करो" मैने पापा को भाई पर चिल्लाते हुए सुना.
डॉक्टर आया और मुझे दवाई देकर चला गया. बुखार काफ़ी तेज़ था और मैं पूरी सुबह अपने कमरे में बिस्तर पर ही रही.
"और ये है मेरी प्यार गुड़िया की गुड्डो" कहते हुए पापा गुड़िया हाथ में लिए मेरे कमरे में दाखिल हुए.
और उस गुड़िया को देखते ही फ़ौरन मेरे दिमाग़ में कल रात की याद ताज़ा हो गयी के किस तरह वो दरवाज़े के पिछे खड़ी मेरे कमरे में झाँक रही थी. डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी और मैं पास बैठी मम्मी से लिपट गयी.
"अर्रे क्या हुआ?" कहते हुए पापा फ़ौरन हाथ में थामे मेरी तरफ बढ़े और मैं इस तरह से चीखने लगी जैसे वो कोई साँप हाथ में ला रहे हो और मुँह मम्मी के पल्लू में च्छूपा लिया.
थोड़ी देर के लिए किसी को कुच्छ समझ नही आया पर मेरा बर्ताव देख कर मम्मी समझ गयी और पापा को इशारे से गुड़िया दूर करने को कहा.
"क्या हुआ बेटा? आइ थॉट यू लाइक्ड इट" पापा के जाने के बाद उन्होने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
"शी ईज़ अलाइव" मैने सुबक्ते हुए कहा "आइ सॉ हर वॉकिंग लास्ट नाइट"और उसके बाद मैने कल रात की पूरी बात उन्हें बताई. के किस तरह मेरे कमरे की खिड़की खुली हुई थी, और कैसे वो गुड़िया दरवाज़ा खोल कर कमरे से बाहर निकल गयी थी.
"टीवी उसने ऑन छ्चोड़ा था मम्मी" मैने उन्हें समझाना चाहा "वो मेरे कमरे से निकल कर बाहर गयी और टीवी ऑन करके खुद टीवी देख रही थी. और कमरे की खिड़की भी उसने खोली थी"
मेरी बात सुन कर माँ हस पड़ी.
"ऐसा कैसे हो सकता है बच्चे? वो छ्होटी सी गुड़िया इतनी बड़ी खिड़की कैसे खोलेगी? उस खिड़की तक तो आपना हाथ भी नही पहुँचेगा"
"तो खिड़की कैसे खुली?" मैने पुछा
"मैं भूल गयी थी खिड़की बंद करना. ऐसे ही अपने कमरे में चली गयी और मेरी प्यार बच्ची बीमार पड़ गयी. और वो गुड़िया टीवी देख कर क्या करेगी?" उन्होने हस्ते हुए कहा पर मैं जानती थी के वो मुझे बहलाने के लिए झूठ बोल रही हैं.
थोड़ी देर बाद पापा मेरे कमरे में आए और उन्होने बताया के वो गुड़िया को घर से बहुत दूर फेंक कर आ गये हैं.
"अब आपको डरने की कोई ज़रूरत नही"
"वो वापिस आ गयी तो?" मैने फिर भी डरते हुए पुछा
"हम उसे वहाँ दूर खाई में फेंक कर आए हैं" पापा ने कहा "और वो गुड़िया तो वैसे भी लंगड़ी है, चाहे भी तो इतना दूर नही चल सकती. और फिर आपके कमरा भी तो 1स्ट्रीट फ्लोर पर है ना. आपके कमरे की सीढ़ियाँ वो लंगड़ी गुड़िया कैसे चढ़ेगी भला?"
मैं उनकी बात सुनकर हस दी पर फिर भी दिल को जैसे तसल्ली नही हुई.
"मैने आपके साथ सो जाऊं प्लीज़?" मैने उनसे पुछा
"मम्मी यहाँ आपके कमरे में आपके साथ सोएगी" मम्मी ने बेड पर मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा
"और वैसे भी तो आपकी तबीयत खराब है ना बच्चे. हम आपको अकेला कैसे सोने दे सकते हैं?"
पूरा दिन मेरे बुखार में कोई तब्दीली नही आई जिसका नतीजा ये हुआ के मैं बिस्तर से उठ ही नही पाई. दवाइयाँ खाए मैं बेड पर पड़ी पूरा दिन सोती रही.
"आप आज मेरे साथ सोएंगी ना?" मैने डिन्नर टेबल पर माँ से पुछा. शाम होते होते मेरा बुखार काफ़ी कम हो चुका था इसलिए रात के डिन्नर के लिए पापा मुझे उठाकर नीचे ही ले आए थे. मुझे डर था के कहीं ये सोच कर के मेरा बुखार उतर गया है, मम्मी मेरे साथ सोने का अपना इरादा बदल ना दें.
"हां जी बेटा" मान ने जवाब दिया "मम्मी आपके साथ ही सोएगी"
और ऐसा हुआ भी. उस रात जब मैं सोई, तो मेरा सर माँ की बगल में था. मैं पूरा दिन सोई थी इसलिए माँ के सोने के बाद भी काफ़ी देर तक जागती रही थी. और जब सोई, तो ऐसी कच्ची नींद के हल्की सी आहट पर भी मेरी आँख खुल जाती थी. और जैसे ही मेरी आँख खुलती, मैं सबसे पहले मम्मी को देख कर ये तसल्ली करती के वो अब भी मेरे साथी ही हैं और उसके बाद दूसरी तसल्ली ये करती के
दरवाज़ा खुला हुआ नही है.
"वो लंगड़ी गुइडया भला कैसे आपके कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ेगी?" मुझे पापा की कही बात याद आती तो थोड़ा हौसला और मिल जाता.
रात यूँ ही आँखों आँखों में और जागने सोने का खेल करते हुए गुज़र रही थी.
ऐसी ही एक आहट पर मेरी आँख फिर खुली. हर बात की तरह इस बार भी सबसे पहले मैने मम्मी और फिर दरवाज़ा बंद होने की तसल्ली की. फिर मेरा ध्यान उस आवाज़ की तरफ गया जिसकी वजह से मेरी आँख खुली थी.
आवाज़ दरवाज़े की तरफ से आ रही थी. मैं डर से सहम गयी और मम्मी का हाथ थाम लिया. आहट एक बार फिर हुई तो मुझे यकीन हो गया के आवाज़ दरवाज़े की बाहर से आ रही थी.
"एक ......"
आवाज़ फिर आई तो इस बार मुझे साफ सुनाई दी. बड़ी अजीब सी आवाज़ थी जैसे कोई हांफता हुआ बोल रहा हो.
"दो ......"
आवाज़ के साथ साथ साँस की आवाज़ भी सॉफ सुनाई दे रही थी जैसे कोई बहुत भाग कर आया हो और बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हो.
"तीन ......."
और इसके साथ ही पापा की कही बात भी जैसे एक बार फिर मेरे कान में गूँज उठी.
"हम उसे बहुत दूर फेंक कर आए हैं बेटा ..... और वैसे भी, लंगड़ी गुड़िया आपके कमरे की सीढ़ियाँ कैसे चढ़ेगी?"
"वो मेरे कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ रही है .... वो वापिस आ गयी है !!!!!" मेरे दिमाग़ में जैसे बॉम्ब सा फटा.
"चार ......"
और इसके साथ ही मैने बगल में लेटी अपनी माँ के कंधे को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर बाद ही सुबह की हल्की हल्की रोशनी चारो तरफ फेल गयी पर हमारे घर में सब लोग जाग चुके थे.
"मैने कहा था ना के यहाँ मत आओ. कुच्छ है इस घर में" बाहर मम्मी पापा के साथ झगड़ा कर रही थी.
"ओह कम ऑन !!!" पापा ने जवाब दिया "तुम भी क्या बच्चो की बातों में आ गयी. वो एक छ्होटी बच्ची है और डरी हुई है"
"जो भी है पर क्या तुमने नही देखा के डर के मारे उस बेचारी की हालत कैसी हो रखी है? बुखार में काँप रही है वो. डर के मारे उसका गला बैठ गया है. शी कॅन बेर्ली स्पीक"
"डॉक्टर को बुला भेजा है मैने" पापा ने जवाब दिया
"बात डॉक्टर की नही है. आइ डोंट वाना स्टे इन दिस हाउस अनीमोर. लेट्स गो बॅक"
"आंड रूयिंड और वाकेशन?"
"ईज़ युवर वाकेशन वर्त दा लाइफ ऑफ युवर डॉटर?"
इस बात का शायद पापा के पास भी कोई जवाब नही था. कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"ऑल राइट, वी विल हेड बॅक टुमॉरो" उन्होने मम्मी की ज़िद के आगे हथियार डालते हुए कहा.
मैं बड़ी मुश्किल से अपने बेड से उठी और दरवाज़े तक आई. दरवाज़ा खोलकर मैने अपने कमरे के बाहर की सीढ़ियाँ गिनी. पूरी 11 सीढ़ियाँ.
रात की आवाज़ की तरफ मैने फिर से ध्यान दिया. सीढ़ियों पर कोई निशान तो नही थे पर मुझे यकीन था के वो आवाज़ उस गुड़िया के घिसटने की थी. वो लंगड़ी थी और अपने एक पावं को खींचते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.
मैने फ़ौरन दरवाज़ा बंद किया और आकर बेड पर लेट गयी.
"वी विल हेड बॅक टुमॉरो" पापा की कही बात ने मुझे तसल्ली तो दी थी पर एक बड़ा सवाल अब भी बाकी था. आज की रात कुच्छ हुआ तो?
"बाइ दा वे, वो गुड़िया है कहाँ?" मम्मी की बाहर से फिर आवाज़ आई
"आइ थ्र्यू इट इन दा बेसमेंट"
मुझे अच्छी तरह याद है के वो पूरी रात मैने यूँ ही बिस्तर के नीचे रोते हुए गुज़ारी थी और अगली सुबह मुझे सर्दी से बुखार चढ़ गया था.
अगले दिन मैने पुछा तो मुझे बताया गया के गुड़िया नीचे के कमरे में सोफे पर बैठी हुई मिली.
ड्रॉयिंग रूम में टीवी ऑन था जिसके लिए पापा उसके लाख इनकार करने पर भी मेरे भाई और मम्मी को ही ज़िम्मेदार मान रहे थे.
"रात को 9 बजे के बाद कोई टीवी नही और जाने से पहले टीवी बंद करके जाया करो" मैने पापा को भाई पर चिल्लाते हुए सुना.
डॉक्टर आया और मुझे दवाई देकर चला गया. बुखार काफ़ी तेज़ था और मैं पूरी सुबह अपने कमरे में बिस्तर पर ही रही.
"और ये है मेरी प्यार गुड़िया की गुड्डो" कहते हुए पापा गुड़िया हाथ में लिए मेरे कमरे में दाखिल हुए.
और उस गुड़िया को देखते ही फ़ौरन मेरे दिमाग़ में कल रात की याद ताज़ा हो गयी के किस तरह वो दरवाज़े के पिछे खड़ी मेरे कमरे में झाँक रही थी. डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी और मैं पास बैठी मम्मी से लिपट गयी.
"अर्रे क्या हुआ?" कहते हुए पापा फ़ौरन हाथ में थामे मेरी तरफ बढ़े और मैं इस तरह से चीखने लगी जैसे वो कोई साँप हाथ में ला रहे हो और मुँह मम्मी के पल्लू में च्छूपा लिया.
थोड़ी देर के लिए किसी को कुच्छ समझ नही आया पर मेरा बर्ताव देख कर मम्मी समझ गयी और पापा को इशारे से गुड़िया दूर करने को कहा.
"क्या हुआ बेटा? आइ थॉट यू लाइक्ड इट" पापा के जाने के बाद उन्होने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
"शी ईज़ अलाइव" मैने सुबक्ते हुए कहा "आइ सॉ हर वॉकिंग लास्ट नाइट"और उसके बाद मैने कल रात की पूरी बात उन्हें बताई. के किस तरह मेरे कमरे की खिड़की खुली हुई थी, और कैसे वो गुड़िया दरवाज़ा खोल कर कमरे से बाहर निकल गयी थी.
"टीवी उसने ऑन छ्चोड़ा था मम्मी" मैने उन्हें समझाना चाहा "वो मेरे कमरे से निकल कर बाहर गयी और टीवी ऑन करके खुद टीवी देख रही थी. और कमरे की खिड़की भी उसने खोली थी"
मेरी बात सुन कर माँ हस पड़ी.
"ऐसा कैसे हो सकता है बच्चे? वो छ्होटी सी गुड़िया इतनी बड़ी खिड़की कैसे खोलेगी? उस खिड़की तक तो आपना हाथ भी नही पहुँचेगा"
"तो खिड़की कैसे खुली?" मैने पुछा
"मैं भूल गयी थी खिड़की बंद करना. ऐसे ही अपने कमरे में चली गयी और मेरी प्यार बच्ची बीमार पड़ गयी. और वो गुड़िया टीवी देख कर क्या करेगी?" उन्होने हस्ते हुए कहा पर मैं जानती थी के वो मुझे बहलाने के लिए झूठ बोल रही हैं.
थोड़ी देर बाद पापा मेरे कमरे में आए और उन्होने बताया के वो गुड़िया को घर से बहुत दूर फेंक कर आ गये हैं.
"अब आपको डरने की कोई ज़रूरत नही"
"वो वापिस आ गयी तो?" मैने फिर भी डरते हुए पुछा
"हम उसे वहाँ दूर खाई में फेंक कर आए हैं" पापा ने कहा "और वो गुड़िया तो वैसे भी लंगड़ी है, चाहे भी तो इतना दूर नही चल सकती. और फिर आपके कमरा भी तो 1स्ट्रीट फ्लोर पर है ना. आपके कमरे की सीढ़ियाँ वो लंगड़ी गुड़िया कैसे चढ़ेगी भला?"
मैं उनकी बात सुनकर हस दी पर फिर भी दिल को जैसे तसल्ली नही हुई.
"मैने आपके साथ सो जाऊं प्लीज़?" मैने उनसे पुछा
"मम्मी यहाँ आपके कमरे में आपके साथ सोएगी" मम्मी ने बेड पर मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा
"और वैसे भी तो आपकी तबीयत खराब है ना बच्चे. हम आपको अकेला कैसे सोने दे सकते हैं?"
पूरा दिन मेरे बुखार में कोई तब्दीली नही आई जिसका नतीजा ये हुआ के मैं बिस्तर से उठ ही नही पाई. दवाइयाँ खाए मैं बेड पर पड़ी पूरा दिन सोती रही.
"आप आज मेरे साथ सोएंगी ना?" मैने डिन्नर टेबल पर माँ से पुछा. शाम होते होते मेरा बुखार काफ़ी कम हो चुका था इसलिए रात के डिन्नर के लिए पापा मुझे उठाकर नीचे ही ले आए थे. मुझे डर था के कहीं ये सोच कर के मेरा बुखार उतर गया है, मम्मी मेरे साथ सोने का अपना इरादा बदल ना दें.
"हां जी बेटा" मान ने जवाब दिया "मम्मी आपके साथ ही सोएगी"
और ऐसा हुआ भी. उस रात जब मैं सोई, तो मेरा सर माँ की बगल में था. मैं पूरा दिन सोई थी इसलिए माँ के सोने के बाद भी काफ़ी देर तक जागती रही थी. और जब सोई, तो ऐसी कच्ची नींद के हल्की सी आहट पर भी मेरी आँख खुल जाती थी. और जैसे ही मेरी आँख खुलती, मैं सबसे पहले मम्मी को देख कर ये तसल्ली करती के वो अब भी मेरे साथी ही हैं और उसके बाद दूसरी तसल्ली ये करती के
दरवाज़ा खुला हुआ नही है.
"वो लंगड़ी गुइडया भला कैसे आपके कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ेगी?" मुझे पापा की कही बात याद आती तो थोड़ा हौसला और मिल जाता.
रात यूँ ही आँखों आँखों में और जागने सोने का खेल करते हुए गुज़र रही थी.
ऐसी ही एक आहट पर मेरी आँख फिर खुली. हर बात की तरह इस बार भी सबसे पहले मैने मम्मी और फिर दरवाज़ा बंद होने की तसल्ली की. फिर मेरा ध्यान उस आवाज़ की तरफ गया जिसकी वजह से मेरी आँख खुली थी.
आवाज़ दरवाज़े की तरफ से आ रही थी. मैं डर से सहम गयी और मम्मी का हाथ थाम लिया. आहट एक बार फिर हुई तो मुझे यकीन हो गया के आवाज़ दरवाज़े की बाहर से आ रही थी.
"एक ......"
आवाज़ फिर आई तो इस बार मुझे साफ सुनाई दी. बड़ी अजीब सी आवाज़ थी जैसे कोई हांफता हुआ बोल रहा हो.
"दो ......"
आवाज़ के साथ साथ साँस की आवाज़ भी सॉफ सुनाई दे रही थी जैसे कोई बहुत भाग कर आया हो और बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हो.
"तीन ......."
और इसके साथ ही पापा की कही बात भी जैसे एक बार फिर मेरे कान में गूँज उठी.
"हम उसे बहुत दूर फेंक कर आए हैं बेटा ..... और वैसे भी, लंगड़ी गुड़िया आपके कमरे की सीढ़ियाँ कैसे चढ़ेगी?"
"वो मेरे कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ रही है .... वो वापिस आ गयी है !!!!!" मेरे दिमाग़ में जैसे बॉम्ब सा फटा.
"चार ......"
और इसके साथ ही मैने बगल में लेटी अपनी माँ के कंधे को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर बाद ही सुबह की हल्की हल्की रोशनी चारो तरफ फेल गयी पर हमारे घर में सब लोग जाग चुके थे.
"मैने कहा था ना के यहाँ मत आओ. कुच्छ है इस घर में" बाहर मम्मी पापा के साथ झगड़ा कर रही थी.
"ओह कम ऑन !!!" पापा ने जवाब दिया "तुम भी क्या बच्चो की बातों में आ गयी. वो एक छ्होटी बच्ची है और डरी हुई है"
"जो भी है पर क्या तुमने नही देखा के डर के मारे उस बेचारी की हालत कैसी हो रखी है? बुखार में काँप रही है वो. डर के मारे उसका गला बैठ गया है. शी कॅन बेर्ली स्पीक"
"डॉक्टर को बुला भेजा है मैने" पापा ने जवाब दिया
"बात डॉक्टर की नही है. आइ डोंट वाना स्टे इन दिस हाउस अनीमोर. लेट्स गो बॅक"
"आंड रूयिंड और वाकेशन?"
"ईज़ युवर वाकेशन वर्त दा लाइफ ऑफ युवर डॉटर?"
इस बात का शायद पापा के पास भी कोई जवाब नही था. कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"ऑल राइट, वी विल हेड बॅक टुमॉरो" उन्होने मम्मी की ज़िद के आगे हथियार डालते हुए कहा.
मैं बड़ी मुश्किल से अपने बेड से उठी और दरवाज़े तक आई. दरवाज़ा खोलकर मैने अपने कमरे के बाहर की सीढ़ियाँ गिनी. पूरी 11 सीढ़ियाँ.
रात की आवाज़ की तरफ मैने फिर से ध्यान दिया. सीढ़ियों पर कोई निशान तो नही थे पर मुझे यकीन था के वो आवाज़ उस गुड़िया के घिसटने की थी. वो लंगड़ी थी और अपने एक पावं को खींचते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.
मैने फ़ौरन दरवाज़ा बंद किया और आकर बेड पर लेट गयी.
"वी विल हेड बॅक टुमॉरो" पापा की कही बात ने मुझे तसल्ली तो दी थी पर एक बड़ा सवाल अब भी बाकी था. आज की रात कुच्छ हुआ तो?
"बाइ दा वे, वो गुड़िया है कहाँ?" मम्मी की बाहर से फिर आवाज़ आई
"आइ थ्र्यू इट इन दा बेसमेंट"