मैं :तो ठीक है, कल ही तुम्हे एक ऐसी जगह ले जाता हूँ, जहाँ जाकर प्यार करने में तुम्हे मजा आएगा..
अंशिका : कोन सी जगह ?
मैं :वो तो मैं कल ही बताऊंगा..तुम घर पर बोल देना की तुम लेट आओगी..मैं तुम्हे कॉलेज से पिक कर लूँगा..
अंशिका : देखो...कोई मुसीबत ना आ जाए, मेरा मतलब वो भी नहीं था...जैसा तुम समझे....
मैं : अब तो मैंने सोच लिया है...तुम्हे उस जगह लेकर ही जाऊंगा..कोई अगर मगर नहीं..समझी.
अंशिका : ठीक है...तुम दो बजे आ जाना कॉलेज.वहीँ से चलेंगे..
मैं :ठीक है..अब एक पप्पी तो दे दो..
अंशिका (इठलाते हुए) : कल ही दे दूंगी...जहाँ कहोगे..
मैं : वो तो मैं ले ही लूँगा..पर अभी के लिए तो कुछ करो..मेरे लंड पर एक किस करो ना..
अंशिका : आज मैं तुम्हे लंड पर नहीं, उसके नीचे वाली जगह यानी तुम्हारी बाल्स पर किस दूंगी..ऊऊउम्म्म्माअ ...और उसपर किस ...कल ही मिलेगी..हे हे...
मैं : ठीक है...हंस लो...कल देख लूँगा.
अंशिका : देख लेना..जो चाहे..जैसे चाहे.
साली बड़ी दिलदार बन रही है...कल बताऊंगा इसे तो.
********
अब आगे
********
आज पता नहीं अंशिका से बात करने के बाद मुझे एक अजीब तरह की ख़ुशी मिल रही थी, जिस तरह से वो बात करने लगी है आजकल, मैं उसका श्रेय खुद को दे रहा था, कहाँ वो कॉलेज की सिंपल सी मेडम और कहाँ अब ये लंड और चूत की बातें करने वाली, और पब्लिक प्लेस में प्यार का खेल खेलने को तेयार गर्म और रसीली जलेबी.
मैंने अंशिका के बारे में सोचते हुए सो गया..
अगले दिन मैंने स्नेहा को फोन करके बोल दिया की मैं आज नहीं आ पाउँगा, वो थोड़ी निराश तो हुई पर उसने जाहिर नहीं होने दिया..वैसे भी जब से मैंने उसके साथ फोन सेक्स किया था उसके बाद मेरा और उसका सामना आज ही होना था और शायद खेल उसके आगे बढ़ सकता था, जहाँ पर हमने उसे छोड़ा था...पर अभी तो मुझे अंशिका की प्यास पहले बुझानी थी.
ठीक २ बजे मैं उसके कॉलेज के पास पहुँच गया, आज मौसम बड़ा अजीब सा था, बादल थे लाल से रंग के, शायद बारिश हो जाए.
मैं किटी मेम से बच रहा था, कहीं उन्होंने मुझे आज यहाँ देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी, वो पूछेंगी, की आज मैं उनकी बेटी को पड़ाने क्यों नहीं गया..मैंने अंशिका को पहले से ही ये बात बता दी थी.
वो थोड़ी देर बाद मुझे आती हुई दिखाई दी.
उसने आज पिंक कलर का सूट पहना हुआ था, और सफ़ेद रंग की पायजामी. बाल खुले और चुन्नी से ढके उसके विशाल पर्वत.
वो मेरे पास आई और मुझे एक क्यूट सी स्माईल करी और मेरी बाईक पर बैठ गयी..थोड़ी ही दूर जाकर उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया. अब उसकी ब्रेस्ट की हलचल में अपनी पीठ पर महसूस कर पा रहा था.
अंशिका : हां जी...अब बोलो, कहाँ ले जा रहे हो.
मैं : यूनीवर्सिटी में एक बहुत बड़ा गार्डेन है...कमला नेहरु रिड्ज पार्क ...वहीँ पर.
अंशिका : बोंटे पार्क...पागल हो क्या...तुम मरवाओगे...हमारे कॉलेज के कई लड़के लड़कियां वहां जाते हैं...कहीं किसी ने देख लिया तो मर जाउंगी मैं..ना बाबा ना.कहीं और चलो..नहीं तो मुझे घर छोड़ दो.
मैं : देखो, तुम अब पलट रही हो...तुमने ही कहा था की तुम्हे ऐसी जगह प्यार करवाने में मजा आता है, जहाँ किसी के आने का डर हो..और वैसे भी, हमने अभी तक जहाँ भी प्यार किया है, वहां भी तो कोई जान पहचान वाला आ सकता था..तुम फिकर मत करो, वहां इतनी झाड़ियाँ है की कोई किसी को नहीं देख पाता..
वो कुछ देर तक और बोलती रही पर मैंने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया..और लगभग आधे घंटे में हम वहां पहुँच गए..
मैं बाईक से उतरा और हम अन्दर चल दिए, अंशिका ने थोड़ी समझदारी दिखाई और अपनी चुन्नी से अपने चेहरे को पूरी तरह से ढक लिया, सिर्फ उसकी आँखें ही दिखाई दे रही थी..पर ऐसा करने से उसके मोटे-२ चुच्चे साफ़ दिखाई देने लग गए थे..मैंने एक हाथ आगे करके उसके दांये चुच्चे को दबा दिया..उसने अपनी आँखें फेला कर मुझे घुर.
अंशिका : ये क्या कर रहे हो...कोई देख लेगा.
मैं अंशिका को लेकर अन्दर तक चला गया, वहां काफी हरियाली थी, और आज मौसम भी थोडा सुहाना था, इसलिए आशिको की भीड़ भी थी..पर अभी तक अंशिका ने मुझे ये नहीं कहा की वो देखो, वो है मेरे कॉलेज के लड़के/लड़कियां...
वहां जो भी छुप कर बैठने की जगह थी, वहां पहले से ही कोई न कोई बैठा हुआ था..हर जोड़ा एक दुसरे को चूसने और चाटने में लगा हुआ था, किसी को दिन दुनिया की कोई खबर नहीं थी, मेरी जींस में मेरे लंड ने अंगडाई लेनी शुरू कर दी थी, अंशिका मेरा हाथ पकड़ कर चल रही थी, जिसकी वजह से उसका मुम्मा मेरी बाजू से रगड़ खा रहा था..
अंत में मुझे अपनी मनचाही जगह मिल ही गयी, वो एक बड़ी सी झाडी थी और उसके नीचे घांस में बैठने की जगह थी, ऊपर से वो झाडी किसी छतरी की तरह से थी, उसके नीचे हम दोनों घुस गए..अब अगर कोई सामने से निकले भी तो उसे नीचे बैठकर देखना होगा की अन्दर कोन है और क्या कर रहा है...
बैठते के साथ ही अंशिका ने अपने पर्स से पानी की बोतल निकाली और उसका ढक्कन खोला.
मैंने उसके हाथों से पानी छीन लिया.
अंशिका : दो न प्लीस....मुझे बड़ी प्यास लगी है..
मैंने बोतल को अपने मुंह से लगा कर पानी अपने मुंह में भर लिया और अपना चेहरा उसके आगे किया..और आँखों से इशारा करके उसे कहा...लो पी लो फिर.
उसने मेरा इरादा समझ लिया और अपने चेहरे पर कातिल मुस्कान बिखेरते हुए अपने बालों को एक तरफ किया और अपने हाथों की उँगलियाँ मेरे चेहरे पर फिराते हुए उसने अपने पिंक लिपस्टिक वाले होंठ मेरे मुंह से लगा दिए और मैंने अपने होंठ उसके दोनों होंठों के चारों तरफ लपेट दिए और अगले ही पल ठंडा पानी मेरे मुंह से झरने की तरह दूसरी तरफ जाने लगा, मैं धीरे -२ पानी छोड़ रहा था और हर घूँट के साथ उसके होंठ चूस रहा था, गीले-२ होंठ चूसने में आज बड़ा मजा आ रहा था..अचानक उसका एक हाथ मेरे लंड के ऊपर आ गया..मैंने भी उसकी ब्रेस्ट को अपने हाथों से नापना शुरू कर दिया...जल्दी ही मेरे मुंह से सारा पानी ख़त्म हो गया, पर हमने एक दुसरे को चुसना नहीं छोड़ा..थोडा पानी निकल कर अंशिका की चिन से होता हुआ, उसकी गर्दन को भिगोता हुआ, अन्दर की और चल दिया...मैंने अपनी जीभ से उस पानी की लकीर का पीछा करना शुरू कर दिया और जैसे ही मेरे गर्म होंठ उसकी लम्बी गर्दन के ऊपर आये, उसने मेरे सर को अपने हाथों से जोर से दबा कर अपनी छाती में समां लिया..मेरे मुंह में उसकी नर्म ब्रेस्ट आ गयी और मैंने उसे सूट के ऊपर से ही उसे चुसना शुरू कर दिया..
आह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल्लल्ल्ल ....सक में.....सक में हार्ड...
और ये कहते हुए उसने अपने सूट के गले से अपना एक मुम्मा बाहर निकाल दिया..
उसका निप्पल तन कर खड़ा हुआ था, मैंने ठंडी जीभ उसके ऊपर फेराई तो वो तड़प सी उठी...उसने मेरे बालों में ऊँगली फेरते हुए मेरे मुंह को अपनी ब्रेस्ट पर दबा दिया...
अंशिका : क्यों तदपा रहे हो....चुसो न...सक इट....बाईट मी...
मैंने उसके निप्पल को मुंह में भरा और उसपर दांत गडा दिए...
उसका निप्पल तन कर खड़ा हुआ था, मैंने ठंडी जीभ उसके ऊपर फेराई तो वो तड़प सी उठी...उसने मेरे बालों में ऊँगली फेरते हुए मेरे मुंह को अपनी ब्रेस्ट पर दबा दिया...
अंशिका : क्यों तदपा रहे हो....चुसो न...सक इट....बाईट मी...
मैंने उसके निप्पल को मुंह में भरा और उसपर दांत गडा दिए...
मैं : धीरे बोलो अंशिका......इतना तेज बोलोगी तो पुरे पार्क वाले लोग यहाँ आकर तुम्हे चोद देंगे..
अंशिका की आँखें गुलाबी सी हो गयी थी, वो समझ नहीं पा रही थी की मैंने जो कहा वो मैं चाहता हूँ या फिर ऐसे ही...पर शायद वो इमेजिन करने की कोशिश कर रही थी की अगर वहां सब लोग इकठ्ठा हो जाएँ और उसके साथ....ये सोचते ही उसने थूक से भीगे होंठ मेरे होंठों पर रगड़ने शुरू कर दिए...मैंने इतना गरम अंशिका को कभी नहीं देखा था..उसकी एक ब्रेस्ट बहार निकली हुई थी और वो बुरी तरह से मुझसे लिपट कर मुझे किस कर रही थी...और एक हाथ से वो मेरी जींस के ऊपर से ही मेरे लंड को रगड़ रही थी..
मैंने उसे सीधा किया और उसकी दूसरी ब्रेस्ट को भी बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, पर वो दोनों एक साथ बाहर नहीं आ पा रही थी, मैं उसका सूट ऊपर से उतारना नहीं चाहता था...पर मेरी सोच और अंशिका की सोच में अंतर निकला, उसने एक ही झटके में सूट को नीचे से पकड़ा और सर से घुमा कर उतार दिया और मेरी मुश्किल आसान कर दी.
मैं उसकी हिम्मत देखकर अवाक रह गया, दिन के 3 बजे, अंशिका जैसी कॉलेज में पड़ाने वाली टीचर , मेरे सामने एक पार्क में टोपलेस हो गयी , अपने आप...सच में उसकी अन्दर से जो हालत हो रही होगी, मैं ये सोचकर ही उत्तेजित सा होने लगा.
अब मेरे सामने ब्लेक ब्रा के अन्दर सिमटी उसकी जवानी थी, एक बाहर और एक अन्दर...उसने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी ब्रा के दोनों स्ट्रेप कंधे से नीचे खिसका दिए..और अगले ही पल उसकी दोनों बाल्स मेरे चेहरे के सामने नंगी होकर नाच रही थी..मुझसे और सब्र नहीं हुआ...मैंने अपना मुंह खोला और उनपर टूट सा पड़ा..मैंने उसे नीचे घांस पर लिटा दिया और उसके दोनों मोम्मो के रस को एक एक करके निचोड़ने लगा अपने मुंह में..
अह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......लव मी ....अह्ह्हह्ह .....अह.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्म.......सक ईट...सक हार्ड.....और जोर से...चुसो...इन्हें....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम्म.....बाईट मी हेयर.......ओ येस ...ओ येस........गोड.......म्मम्मम........
वो मेरे सामने लेटी हुई ऊपर से नंगी होकर तड़प रही थी और मैं उसके ताजा फलो का रस पीकर मजे ले रहा था...
उसके दोनों निप्पल इतने बड़े हो चुके थे की मैं उसपर अपनी शर्ट टांग सकता था..
मेरे दांतों से बनाया हुआ निशान अभी तक उसकी ब्रेस्ट के ऊपर था....मैंने उसपर फिर जीभ और दांत लगा दिए और चूस चूसकर उसे फिर से रीचार्ज कर दिया...वो भी हलकी -२ मुस्कुराते हुए मुझे अपनी ब्रेस्ट पर वो ख़ास टाटू बनाते हुए देख रही थी और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरा रही थी...
मैं जब ऊपर उठा तो अंशिका बोली : इसे ऐसे ही हमेशा मेरी ब्रेस्ट पर बनाये रखना...जैसे ही हल्का होने लगे, दोबारा बना दिया करो...समझे..
मैं : समझ गया मेडम.
अंशिका ने मुझे पीछे किया और झुक कर मेरी जींस के बटन खोलने लगी..
और फिर हाथ अन्दर डालकर उसने मेरा लंड बाहर निकाल लिया..जो इतना गर्म हो चूका था की मुझे लगा उसका मुंह ही ना जल जाए आज..लंड के ऊपर मेरी नसे चमक रही थी, जिन्हें वो बड़े गोर से देख रही थी...फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकली और मेरे लंड के ऊपर से जाती हुई हरे रंग की नस के ऊपर फिराने लगी...और उसका पीछा करते -२ वो नीचे मेरी बाल्स तक पहुँच गयी..
अंशिका : ये मेरी वो किस, जो मैंने तुम्हे कल फोन पर दी थी.
और ये कहर उसने एक गीली सी किस्स मेरी बाल्स के ऊपर कर दी..
अंशिका : अब हिसाब साफ़ हो गया सब..
बड़ी हिसाब वाली है ये तो..मैं मन ही मन सोचने लगा.
और फिर उसी नस का पीछा करते हुए उसकी जीभ ऊपर तक आई और मेरे लंड के टॉप तक आकर रुक गयी और बड़ी ही नजाकत के साथ उसकी गुलाबी जीभ ने लंड से निकलते प्रीकम को समेटा और उसे निगल गयी...रस का स्वाद मिलते ही वो जैसे पागल सी हो गयी और अगले ही पल उसने अपना पूरा मुंह खोला और मेरे लंड को एक ही बार में अपने मुंह के अन्दर भर लिया.
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अंशी........का.......अह्ह्ह्हह्ह.........आई लव....द वे यु सक......अह्ह्ह्हह्ह....सक मी बेबी....सक में हार्ड......अह्ह्ह....
अब चूसने का काम अंशिका का था..
वो मेरे लंड का पूरा स्वाद लेते हुए, उसे ऊपर से नीचे तक चूस रही थी...
तभी मेरा मोबाइल बज उठा..मैंने देखा तो वो स्नेहा का फोन था...मैं सोच रहा था की उसे उठाऊ या नहीं..तभी अंशिका बोल पड़ी.."उठाते क्यों नहीं...किसका है.."
मैं : "दोस्त का है..."
अंशिका (शरारती लहजे में) : तो फोन उठाओ और उसे बताओ की तुम क्या कर रहे हो...
मैं : पागल हो गयी हो क्या..
अंशिका : अरे मजा आएगा...उठाओ न प्लीस..
मैं : उसे नहीं मालूम की मेरी कोई गर्लफ्रेंड है...तुमने ही तो मन किया था न किसी को भी बताने के लिए..
अंशिका : ओह हां...कोई बात नहीं, उसे कहो की तुम अपनी टीचर को सोचकर मास्टर बेट कर रहे हो...प्लीस...मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या..
और उसने ललचाने के लिए अपने दोनों मुम्मे मेरे लंड के चरों तरफ लपेट दिए..और उनमे फंसा कर वो मेरे लंड को अजीब सा मजा देने लगी..
मैंने फोन उठा लिया
अंशिका ने मेरा लंड अपने मुंह में डाला और उसे फिर से चुसना शुरू कर दिया.
मैं : हाय...क्या हाल है.
स्नेहा : कितनी देर से फोन कर रही हूँ...इतनी देर क्यों लग गयी...
मैं : मैं कुछ कर रहा था.
स्नेहा : क्या ??
अचानक अंशिका ने मेरे लंड पर हलके से बाईट किया और मेरे मुंह से आह निकल गयी..
स्नेहा : आर यू मास्टरबेटिंग...??
मैं : येस....आई एम् मास्टरबेटिंग ...
स्नेहा : वाव...किसे सोचकर कर रहे हो.. (उसने धीमी आवाज और तेज साँसों के बीच कहा.)
मैं अब सोच में पड़ गया की क्या बोलू, मैंने अंशिका को देखा , वो अपनी आँखें बंद करे लंड चूसने में लगी हुई थी..मैंने रिस्क ले ही लिया
मैं : यु...
मैंने ये "यु" इतना जल्दी और धीरे से कहा की अंशिका को सुनाई न दे...और ऐसा हुआ भी, अंशिका ने उस बात को नोट नहीं किया...और ऐसा करने में मुझे इतना अडवेंचर मिला की मैं आपको बता नहीं सकता...एक तरफ अंशिका मेरा लंड चूस रही थी और दूसरी तरफ वो स्नेहा ये सुनकर की मैं उसके बारे में सोचकर मुठ मार रहा हूँ....थोड़ी देर तक तो बात करना ही भूल गयी...सिर्फ उसकी साँसों की आवाज आ रही थी फोन पर..
अंशिका भी मेरे लंड को आज ऐसे चूस रही थी..जैसे आज वो उसे कच्चा खा जायेगी..
मेरे मुंह सी हलकी-२ सिस्कारियां सी निकलने लगी...
अह्ह्ह्हह्ह......मम्म...
मैं : तुम भी मेरे साथ मास्टरबेट करो, मजा आएगा..
अब यहाँ अंशिका को क्या मालुम था की मैं ये बात अपने दोस्त संजय को नहीं बल्कि किटी मेम की बेटी स्नेहा को कह रहा हूँ...
स्नेहा : .....ह..हाँ....ठीक....है...
और फिर उसकी जींस के उतरने की आवाज और फिर उसने जब अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में डाली तो एक लम्बा सा मोन उसके मुंह से निकल गया
और फिर अपने उसी अंदाज में उसने अपने चेहरा ऊपर उठाया और अपनी ठोडी पर लगे सफ़ेद वीर्य को मुंह में समेटते हुए जोर से एक चटखारा लिया...और बोली...यम्मी.....
और वो ऊपर आई और मेरे मुंह को चूसने लगी...मुझे फिर से अपने ही रस की खुशबू उसके मुंह से सुंघनी पड़ी...पर अब मुझे भी इसमें मजा आने लगा था..
तभी बाहर से किसी लड़के की आवाज आई : "आओ...डार्लिंग...यहाँ बैठते हैं...ये सबसे सेफ जगह है यहाँ की...कोई भी बाहर से नहीं देख सकता की अन्दर क्या हो रहा है..."
ये कहते हुए वो अपना सर झुका कर नीचे झाडी के अन्दर घुस गया..
और अगले ही पल उसका चेहरा मेरे और अंशिका से थोडी ही दूर पर था...हम सभी एक दुसरे को आँखे फाड़े देख रहे थे, वो इतनी तेजी से अन्दर आया था की मुझे उसे रोकने का मौका भी नहीं मिला, और जब उसकी नजरे अंशिका की खुली हुई छाती पर पड़ी..तो वो हडबडा कर सॉरी कहता हुआ बाहर निकल गया...और थोडी ही देर बाद उसके और उसकी गर्ल फ्रेंड के हंसने की आवाज आई और वो कहीं और चले गए.
उनके हंसने की आवाज सुनकर मुझे और अंशिका को भी हंसी आ गयी...
मेरा तो मन कर रहा था की अंशिका को अपने लंड के ऊपर बिठा कर आज उसकी चूत मार ही लूँ...पर यहाँ काफी रिस्क था..कोई भी आ सकता था...मैं तो झड ही चूका था, मैंने अपनी पेंट के अन्दर लंड ठुंसा और अंशिका को भी ब्रा ठीक करके अपना सूट पहनने को कहा..और फिर मैंने उसे नीचे लिटा दिया और उसकी पयजामी का नाड़ा खोल दिया..उसने भी बिना कोई विरोध करे मेरी सब बाते मानते हुए अपनी पेंटी नीचे खिसका दी...और अब मेरे सामने अंशिका की रस से भीगी हुई गीली चूत थी...जिसे मैंने जैसे ही अपनी जीभ से साफ़ करना शुरू किया उसकी सिस्कारियां बड़ी तेजी से निकलने लगी..
अह्ह्ह्हह्ह .....ओह्ह्ह्हह्ह....विशाल्ल्ल्ल.....मार डालोगे तुम तो मुझे....अह्ह्ह......आई एम् डाईंग तो टेक यूर कोक्क.....सक माय पुसी...हार्ड...ओ य़ा.....हा....ऐसे ही......गुड....एस ऐसे ही.....और तेज.....अह्ह्हह्ह्ह्ह....मम्म.......
और फिर उसकी चूत का झरना मेरे मुंह के अन्दर फूट पड़ा..मैंने सारा गरमागरम पानी पी लिया..और उसी अंदाज में उसे देखकर कहा...यम्मी...
उसने मुस्कुराते हुए मुझे ऊपर खींच लिया और मेरे गीले होंठों को चूसने लगी...अब मेरे मुंह से उसके रस का स्वाद अंशिका के मुंह में जा रहा था.
अब काफी देर हो चुकी थी....हम अलग हुए ही थे की बाहर से फिर से एक और तेज आवाज आई...ओ रे छोरे...चल बाहर निकल...जल्दी से...
और डंडा खडकाने की आवाज आई....
मर गया, ये तो कोई हवलदार है...पोलिस को देखते ही अंशिका की तो हवा ही खिसक गयी...मैंने उसे आश्वासन दिया की कुछ नहीं होगा...और मैं बाहर आ गया..अंशिका अभी भी अन्दर थी, नीचे से नंगी.
बाहर खड़े हवलदार ने मुझे देखा और पूछा : क्यों भाई...कहाँ से आया है...और क्या कर रहा है अन्दर...निकाल अपनी मेडम को भी बाहर, चलो थाने.
मैं : अरे सर...क्यों गुस्सा हो रहे हो...बस थोडा मस्ती कर रहे थे....समझा करो...
हवलदार : हमें भी करा दे फिर थोडी मस्ती...जाऊ के , मैं भी अन्दर..बोल..साला....सीधी तरह से थाने चल..
मैं समझ गया की बात ऐसे नहीं बनेगी...और मैंने जेब में हाथ डालकर 100 रूपए उसके हाथ में रख दिए..
हवलदार : ये क्या हे रे...भिखारी समझा है क्या...मैं कह रहा हूँ...जल्दी निकल मेडम को बाहर और थाने चलो.
31-10-2017, 01:04 PM (This post was last modified: 31-10-2017, 01:04 PM by honey boy.)
मैंने एक और नोट निकला और उसे दिया.
हवलदार : खेल मत खेल...500 रूपए दे और बात ख़तम कर.
मैंने बहस करनी उचित नहीं समझी और उसे 500 निकल कर दे दिए. वो खुश होकर चला गया.
उसके जाते ही अंशिका भी बाहर आ गयी, वो अपने कपडे पूरी तरह से पहन चुकी थी...और वो थोडी डरी हुई सी लग रही थी.
अंशिका : जल्दी चलो यहाँ से...मुझे बड़ा डर लग रहा है.
मैं : अरे तुम भी न..मेरे होते हुए तुम घबराया मत करो...चलो अन्दर...अब तो मैंने यहाँ का किराया भी दे दिया है..
और मैं हंसने लगा..पर अंशिका काफी डर चुकी थी...और हारकर हम वापिस चल दिए..
वापिस पहुंचकर मैंने अंशिका को उसके घर पर उतारा और वापिस चल दिया, मैंने टाईम देखा तो अभी 4 ही बजे थे....मैंने जल्दी से स्नेहा को फ़ोन किया...
स्नेहा :हेल्लो...
मैं : क्या कर रही हो...
स्नेहा : कुछ नहीं...तुम.?
मैं : आज मजा आया...
स्नेहा : हूँ..तुम्हे..?
मैं : मुझे भी....सुनो, मैं आ रहा हूँ शाम को तुम्हे "पड़ाने" ..मेरा वो दूसरा प्रोग्राम केंसल हो गया.
स्नेहा : (ख़ुशी से चिल्लाते हुए) : मैं आज भगवान् से कुछ और भी मांगती तो मिल जाता, तुम्हारे फ़ोन के आते ही मैं सोच रही थी की काश ये आने के लिए ही कह रहा हो..
वापिस पहुंचकर मैंने अंशिका को उसके घर पर उतारा और वापिस चल दिया, मैंने टाईम देखा तो अभी 4 ही बजे थे....मैंने जल्दी से स्नेहा को फ़ोन किया...
स्नेहा :हेल्लो...
मैं : क्या कर रही हो...
स्नेहा : कुछ नहीं...तुम.?
मैं : आज मजा आया...
स्नेहा : हूँ..तुम्हे..?
मैं : मुझे भी....सुनो, मैं आ रहा हूँ शाम को तुम्हे "पड़ाने" ..मेरा वो दूसरा प्रोग्राम केंसल हो गया.
स्नेहा : (ख़ुशी से चिल्लाते हुए) : मैं आज भगवान् से कुछ और भी मांगती तो मिल जाता, तुम्हारे फ़ोन के आते ही मैं सोच रही थी की काश ये आने के लिए ही कह रहा हो..
मैं : तो तुम तैयार रहना ...आज..
स्नेहा (ख़ुशी को दबाते हुए) : किस लिए ...?
मैं : वो तुम जानती हो..
और ये कहते हुए मैंने फ़ोन रख दिया.
*******
अब आगे
*******
मैं जल्दी से बाईक उठा कर स्नेहा के घर पहुंचा, बेल बजायी तो उसने ही दरवाजा खोला
उसने अपनी स्कूल की युनिफोर्म अभी तक पहनी हुई थी, ग्रे कलर की शोर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी और ऊपर कसी हुई सी व्हाईट शर्ट..बड़ी ही सेक्सी लग रही थी वो..
मैं : ये क्या, तुमने अभी तक चेंज नहीं किया..
स्नेहा : मन नहीं कर रहा था, तुमने आज आने को मना कर दिया था, इसलिए मन उदास था, ऐसे ही लेटी हुई थी स्कूल से आकर..
मैं : अब तो मैं आ गया हूँ, अब तो उतार दो अपनी स्कूल की ड्रेस...
और मैंने उसे एक आँख मार दी
उसका चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हो गया..
स्नेहा : तुम बहुत बदमाश हो...चलो अन्दर आओ..
मैं अन्दर आ गया..स्नेहा ने दरवाजा बंद किया और एकदम से आकर पीछे से मुझसे लिपट गयी...
ओह्ह्ह्ह विशाल.....आई मिस्स्ड यु सो मच.....
उसकी ब्रेस्ट मेरी पीठ से पिस कर दबी जा रही थी...और उसके दोनों हाथ मेरी छाती से चिपके हुए थे..
वो मुझसे ऐसे लिपटी हुई थी मानो मुझसे बरसों के बाद मिली हो..ये सब दोपहर में हुए फोन सेक्स का नतीजा था...उसकी चूत शायद मुझे देखकर फिर से गीली हो गयी थी..सच में बड़ी आग है इस लड़की में, अभी तो हमने सही तरह से एक दुसरे से बात भी नहीं की और ये चुदने को तैयार सी लग रही है..
घर पर कोई भी नहीं था, उसकी मम्मी भी नहीं और शायद नौकरानी को उसने पहले ही भगा दिया था, मेरे आने की खबर सुनकर..
मैं पलटा और उसकी तरफ मुंह घुमा कर खड़ा हो गया, मेरी जींस में से मेरा लंड खड़ा होकर उसकी स्कर्ट में छुपी चूत को ठोकरे मार रहा था..
वो मुझसे लिपटी रही, मैंने उसका चेहरा ऊपर किया, उसकी आँखें बंद थी, हाथ मेरी कमर से लिपटे हुए और गहरी साँसे लेने की वजह से उसकी ऊपर नीचे होती छाती की गुद्दुदाहत मुझे मदहोश सा कर रही थी..
मैं : आँखे खोलो...स्नेहा..
और मैंने उसके चेहरे पर होंठ गोल करके फूंक मारनी शुरू कर दी..
स्नेहा : उन....हूँ...नहीं...ऐसे ही खड़े रहो...अच्छा लग रहा है...
ये कहकर वो और जोर से मुझसे लिपट गयी..
मैंने भी अपने हाथ उसकी पीठ पर लगा दिए और उसे एक जोर से हग किया..उसके दोनों कलश मेरी छाती से लगकर मानो चटक से गए..
स्नेहा : उम्म्म्म ...धीरे...तुम तो मार ही डालोगे मुझे..
मैं : तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे आई एम् ट्राईंग टु फक यु....
स्नेहा के चेहरे पर फिर से लालिमा सी तेर गयी...
स्नेहा : बड़ी आगे की सोचने लगे हो मिस्टर....ह्म्म्म..
मैं : और मैं कभी गलत नहीं सोचता..
और ये कहते हुए मैंने उसके लरजते हुए होंठों पर अपने गर्म होंठ रख दिए..
ओफ्फ्फ क्या नर्म होंठ थे साली के....मजा आ गया, मैंने अंशिका को भी किस किया था पर जो नर्मपन स्नेहा के होंठों में था वो अंकिता के नहीं...मैंने उन्हें अपने मुंह में लेकर चुसना शुरू किया, स्नेहा भी अपने आपको मेरे हवाले करके आराम से फ्रेंच किस करने में लग गयी, मैंने उसके मुंह में अपनी जीभ डाली तो उसके पैने दांतों ने उसपर काट लिया...मैंने झटके से उसके मुंह से अपनी जीभ बाहर निकाल ली..
वो हंसने लगी..
मैं : यु बिच ...
स्नेहा (अपने चेहरे पर अलग किस्म के भाव लाते हुए) : यु काल्ल्ड मी बिच...नाव आई विल शो यु ..हाउ बिच बाईट...
और अगले ही पल उसने अपने मुंह से मेरे होंठों को ऐसी बुरी तरह से चुसना और काटना शुरू किया मानो वो उनमे से खून निकलना चाहती हो..पूरी जंगली लग रही थी...मैंने मौके का फायेदा उठाते हुए उसके दोनों मुम्मो को दबाना शुरू कर दिया, पता नहीं क्यों पर मैं उसकी हर बात को अंशिका से कम्पेयर कर रहा था..पहले किस और अब उसकी ब्रेस्ट भी..पर यहाँ स्नेहा मात खा गयी..उसकी छोटे संतरे जैसी चूचियां, अंशिका के रसीले आमों के आगे कुछ भी नहीं थे..
पर उन्हें दबाने में काफी मजा आ रहा था..खाने में कितना आएगा वो तो वक़्त ही बताएगा..
मेरे हाथ उसकी ब्रेस्ट को दबा रहे थे और होंठ उसके होंठों को चूस रहे थे, वो खड़ी-2 बडबडाने लगी...
उसकी सिस्कारियों को सुनकर मुझे उसके बर्थडे वाला दिन याद आ गया जब वो अपने "फ्रेंड" के साथ ऊपर छत्त पर किस करने में लगी हुई थी...उस समय भी ऐसी ही सिस्कारियां निकल रही थी उसके मुंह से...
थोड़ी देर तक एक दुसरे को चूसने के बाद हम अलग हुए..उसकी पोनिटेल खुल चुकी थी और उसके लाल चेहरे पर बिखरी जुल्फे उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे..मैं थोडा पीछे हुआ और सोफे पर जाकर बैठ गया..वो धीरे-२ चलती हुई मेरे पास आई, नंगे पैर, बदहवास सी, सुबह से अपनी स्कूल ड्रेस में लिपटी हुई, जिसकी शर्ट अब उसकी शोर्ट स्कर्ट से आधी बाहर निकली हुई थी..और उसके गले में अभी तक उसकी टाई भी लटक रही थी..
वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी.
मैं अपने हाथ सोफे के दोनों तरफ ऊपर रखकर किसी राजा की तरह बैठ गया..और उससे कहा : अनड्रेस फॉर मी..
स्नेहा मेरी बात सुनकर भोचक्की रह गयी...पर कुछ बोली नहीं..मैंने थोडा और रोबीली आवाज में उससे कहा : सुना नहीं...अनड्रेस फॉर मी..
वो कुछ देर तक ऐसी ही खड़ी रही और फिर उसके चेहरे पर नशीले भाव आये और उसके हाथ ने हरकत की और उसने अपने गले में लिपटी हुई टाई उतार कर मेरी तरफ फेंक दी..जो सीधा मेरे लंड के ऊपर आकर गिरी.
और फिर उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू किये..और इस बीच उसकी निगाहें मेरी नजरों से मिली रही..मैं कभी उसकी नशीली आँखों को देखता और कभी उसके नंगे होते शरीर को..
जल्दी ही उसने सारे बटन खोल दिए..और उसके अन्दर से मुझे व्हाईट कलर की स्पोर्ट्स ब्रा दिखाई देने लगी..मेरे लंड का तो बुरा हाल था, जींस की वजह से उसे अडजस्ट करने में काफी मुश्किल हो रही थी...मन तो कर रहा था की लंड को निकाल दूँ जींस से...पर ये काम मैं स्नेहा से करवाना चाहता था...
उसने सारे बटन खोल दिए और दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी शर्ट को उतार दिया...
ओह्ह गोड...क्या सीन था...
और फिर उसने अपनी स्कर्ट के साईड में लगे हूक को खोला और उसके नीचे लगी हुई चैन को खींच कर नीचे किया...और फिर उसे छोड़ दिया..और अगले ही पल उसकी स्कर्ट भी नीचे आ गिरी..
माय गोड......साली ने डिसाईनर पेंटी पहनी हुई थी...फ्रिल वाली..डार्क ब्राउन कलर की..जो आगे से काफी गीली सी लग रही थी..और उसके नीचे उसकी मोटी-२ टाँगे, जिनपर एक भी बाल नहीं था...पता नहीं वो आये नहीं थे या उसने साफ़ किये हैं..
उसने थोड़ी देर रुक कर मुझे देखा, मानो पूछ रही हो की और भी उतारूँ क्या ?
मैंने सर हिला कर उसे बाकी के दोनों कपडे भी उतारने को कहा..
बड़ा ही रोमांटिक सा माहोल बना हुआ था...पुरे कमरे में हलकी सी रोशनी आ रही थी...कोने में AC चल रहा था..पर हम दोनों के जिस्म अभी भी जल रहे थे..