बात बहुत पुरानी है पर आज आप लोगो के साथ बाटने का मन किया इसलिए बता रहा हूँ . हमारा परिवारिक काम धोबी (वाशमॅन) का है. हम लोग एक छोटे से गाँव में रहते हैं और वहां धोबी का एक ही घर है इसीलिए हम लोग को ही गाँव के सारे कपड़े साफ करने को मिलते थे. मेरे परिवार में मैं , माँ और पिताजी है. मेरी उमर इस समय 15 साल की हो गई थी और मेरा सोलहवां साल चलने लगा था. गाँव के स्कूल में ही पढ़ाई लिखाई चालू थी. हमारा एक छोटा सा खेत था जिस पर पिताजी काम करते थे. मैं और माँ ने कपड़े साफ़ करने का काम संभाल रखा था. कुल मिला कर हम बहुत सुखी सम्पन थे और किसी चीज़ की दिक्कत नही थी. हम दोनो माँ - बेटे हर सप्ताह में दो बार नदी पर जाते थे और सफाई करते थे फिर घर आकर उन कपड़ो की स्त्री कर के उन्हे वापस लौटा कर फिर
से पुराने गंदे कपड़े एकत्र कर लेते थे. हर बुधवार और शनिवार को मैं सुबह 9 बजे के समय मैं और माँ एक छोटे से गधे पर पुराने कपड़े लाद कर नदी की ओर निकल पड़ते . हम गाँव के पास बहने वाली नदी में कपड़े ना धो कर गाँव से थोड़ी दूर जा कर सुनसान जगह पर कपड़े धोते थे क्योंकि गाँव के पास वाली नदी पर साफ पानी नही मिलता था और हमेशा भीड़ लगी रहती थी.
मेरी माँ 34-35 साल के उमर की एक बहुत सुंदर गोरी औरत है. ज़यादा लंबी तो नही परन्तु उसकी लंबाई 5 फुट 3 इंच की है और मेरी 5 फुट 7 इंच की है. सबसे आकर्षक उसके मोटे मोटे चुत्तर और नारियल के जैसी स्तन थे ऐसा लगते थे जैसे की ब्लाउज को फाड़ के निकल जाएँगे और भाले की तरह से नुकीले थे. उसके चूतर भी कम सेक्सी नही थे और जब वो चलती थी तो ऐसे मटकते थे कि देखने वाले के उसके हिलते गांड को देख कर हिल जाते थे. पर उस वक़्त मुझे इन बातो का कम ही ज्ञान था फिर भी तोरा बहुत तो गाँव के लड़को की साथ रहने के कारण पता चल ही गया था. और जब भी मैं और माँ कपड़े धोने जाते तो मैं बड़ी खुशी के साथ कपड़े धोने उसके साथ जाता था. जब मा कपड़े को नदी के किनारे धोने के लिए बैठती थी तब वो अपनी साड़ी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर पीछे एक पत्थर पर बैठ कर आराम से दोनो टाँगे फैला कर जैसा की औरते पेशाब करने वक़्त करती है कपरो को साफ़ करती थी. मैं भी अपनी लूँगी को जाँघ तक उठा कर कपड़े साफ करता रहता था. इस स्थिति में मा की गोरी गोरी टाँगे मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी सारी भी सिमट कर उसके ब्लाउस के बीच में आ जाती थी और उसके मोटे मोटे चुचो के ब्लाउस के उपर से दर्शन होते रहते थे. कई बार उसकी सारी जेंघो के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय में उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी केले के ताने जैसे चिकनी जाँघो को देख कर मेरा लंड खरा हो जाता था. मेरे मन में कई सवाल उठने लगते फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था. मैं और मा कपरो की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गाँव - घर की बाते भी करते जाते कई बार हम उस सुन-सन जगह पर ऐसा कुच्छ दिख जाता था जिसको देख के हम दोनो एक दूसरे से अपना मुँह च्छुपाने लगते थे.
कपड़े धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फिर साथ लाए हुआ खाना खा नदी के किनारे सुखाए हुए कपड़े को इक्कथा कर के घर वापस लौट जाते थे.
मैं तो खैर लूँगी पहन कर नदी के अंदर कमर तक पानी में नहाता था, मगर मा नदी के किनारे ही बैठ कर नहाती थी. नहाने के लिए मा सबसे पहले अपनी सारी उतरती थी. फिर अपने पेटिकोट के नारे को खोल कर पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दाँत से पाकर लेती थी इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउस पूरा धक जाता था फिर वो पेटिकोट को दाँत से पाकरे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतरती थी. और फिर पेटिकोट को छाति के उपर बाँध देती थी जिस से उसके चुचे पूरी तरह से पेटिकोट से ढक जाते थे और कुच्छ भी नज़र नही आता था और घुटनो तक पूरा बदन ढक जाता था. फिर वो वही पर नदी के किनारे बैठ कर एक बारे से जाग से पानी भर भर के पहले अपने पूरे बदन को रगर- रगर कर सॉफ करती थी और साबुन लगाती थी फिर नदी में उतर कर नहाती थी. मा की देखा देखी मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना सुरू कर दिया फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा. मैं जब साबुन लगाता तो मैं अपने हाथो को अपने लूँगी के घुसा के पूरे लंड आंड गांद पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा के सफाई करता था क्यों मैं भी मा की तरह बहुत सफाई पसंद था. जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की मा बरे गौर से मुझे देखती रहती थी और अपने पैर की आरिया पठार पर धीरे धीरे रगर के सॉफ करती होती. मैं सोचता था वो सयद इसलिए देखती है की मैं ठीक से सफाई करता हू या नही इसलिए मैं भी बारे आराम से खूब दिखा दिखा के साबुन लगता था की कही दाँत ना सुनने को मिल जाए की ठीक से सॉफ सफाई का ध्यान नही रखता हू . मैं अपने लूँगी के भीतर पूरा हाथ डाल के अपने लौरे को अcचे तरीके से साफ करता था इस काम में मैने नोटीस किया कई बार मेरी लूँगी भी इधर उधर हो जाती थी जससे मा को मेरे लंड की एक आध जहलक भी दिख जाती थी. जब पहली बार ऐसा हुआ तो मुझे लगा की शायद मा डातेगी मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ. तब निश्चिंत हो गया और मज़े से अपना पूरा ढयन सॉफ सफाई पर लगाने लगा.
मा की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज़यादा कुच्छ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर बरी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर अपनी च्चती की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना हाथ च्चती में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को मोड़ के अपने छाति से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर से छाति की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जेंघो और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन मसोस के रह जाता था. एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने जेंघो तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जघो को देख कर मेरा लंड खरा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा. तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी से नहा के काम ख़तम कर" मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी से नदी में जाने के लिए उठ कर खरा हो गया, पर मुझे इस बात का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है
और मेरी लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खरा था धूप की रोशनी में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी से अपनी लूँगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बरा डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट परेगी और मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की सांश ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली. दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज़यादा ही खुल कर हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल मीनिंग में भी बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बरा मज़ा आ रहा था.
मैने जब भी किसी के घर से कापरे ले कर वापस लौटता तो
माँ बोलती "क्यों राधिया के कापरे भी लाया है धोने के लिए क्या".
तो मैं बोलता, `हा',
इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना उसके कापरे बरा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोइ नही जाती". फिर पूछती थी "अंदर के कापरे भी धोने के लिए दिए है
क्या" अंदर के कपरो से उसका मतलब पनटी और ब्रा या फिर अंगिया से होता था,
मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती "तू लरका है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी" फिर अगली बार जब वो कापरे लाने जाती तो सच मुच में वो उसकी पनटी और अंगिया ले के आती थी और बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तू लरका है ना तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब जवान भी हो गया है" मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पनटी और ब्रा या अंगिया फैला कर दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो बोलती "अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा" कह के हसने लगती. हलकी आक्च्युयली ऐसा कुच्छ नही होता और जायदातर मर्दो के कापरे मैं और औरतो के मा ही धोया करती थी क्योंकि उस में ज़यादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्यों मा अब कुछ दीनो से इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप- चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.जब हम नदी पर कापरे धोने जाते तब भी मैं देखता था की मा अब पहले से थोरी ज़यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी च्चती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउस को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोरा दूर जा के बैठ जाता तब पूरा नहाती थी. मेरे नहाते वाक़ूत उसका मुझे घूर्ना बदस्तूर जारी था और मेरे में भी हिम्मत आ गई थी और मैं भी जब वो अपने च्चातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घूर कर देखता रहता. मा भी मज़े से अपने पेटिकोट को जेंघो तक उठा कर एक पठार पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे आक्टिंग करती जैसे मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मूरे हुए होते थे और एक पैर थोरा पहले आगे पसारती और उस पर पूरा जाँघो तक साबुन लगाती थी फिर पहले पैर को मोरे कर दूसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती.