30-03-2015, 12:24 AM
(This post was last modified: 30-03-2015, 12:25 AM by Rohitkapoor.)
गरमी की दोपहर
लेखक : अंजान ©
लेखक : अंजान ©
कहते हैं कि किसी औरत को गैर-मर्द के साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहिये क्योंकि मर्द उसे पकड़ कर चोदने की ही सोचेगा। कैसे इसकी चूत में अपना लंड डाल दूँ - यही ख्याल उसके मन में कुलबुलायेगा। दोस्तों मेरे साथ ऐसा ही हुआ।
गरमी के दिन थे और भरी दोपहर थी। मैं अपने घर में अकेला था क्योंकि अभी मेरी शादी नहीं हुई थी। मैंने घर में कुछ ज़रूरी काम करने के लिये ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। काम निबटा कर मैं बेडरूम में ठंडी बीयर का आनन्द ले रहा था।
करीब एक बजे दरवाजे पर हुआ टिंग-टोंग! दरवाजा खोला तो सामने मानो एक अप्सरा खड़ी थी। पैंतीस-छत्तीस साल की साँवली और गज़ब की सुंदर औरत साड़ी पहने हुए और हाथों में कागज़ और कलम लिये हुए कोयल का आवाज़ में बोली, "माफ़ कीजियेगा! क्या कोई लेडी हैं घर में?"
मैंने कहा, "जी नहीं, मैं बेचलर हूँ और अकेला ही रहता हूँ। आप कौन हैं?"
उसके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें थी। वोह बोली, "ज़रा एक ग्लास पानी मिलेगा?"
मैंने कहा, "हाँ, क्यों नहीं?"
वोह ज़रा सा अंदर आयी। मैंने पानी का ग्लास देते हुए पूछा, "क्या बात है, आप हैं कौन?"
पानी पी कर वोह बोली, "जी मेरा नाम सना खान है और मुझे एक कनज़्यूमर कंपनी ने भेजा है सर्वे के लिये। क्या आप मेरे कुछ सवालों का जवाब दे देंगे?"
मैंने कहा, "जी कोशिश कर सकता हूँ। आप प्लीज़ यहाँ बैठ जाइये।"
वोह सोफ़े पर बैठ गयी और हमारे घर का दरवाजा अभी खुला ही था। मैंने दूसरे सोफ़े पर बैठ कर कहा, "पूछिये जो पूछना है।"
वो बोली, "जी आपका नाम और आपकी उम्र क्या है?"
"जी मैं प्रताप सिंघ हूँ और उम्रछब्बीस साल!" मैंने जवाब दिया।
“आप अपने घर की ज़रूरत की चीजें कहाँ से खरीदते हैं?" इस तरह वो सवाल पर सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता गया।
कुछ देर बाद मैंने पूछा, "इस तरह इतनी गर्मी के वैदर में भी आप क्या सब घरों में जाकर सर्वे करती हैं?"
"जी, जॉब तो जॉब ही है ना।"
"तो आप शादी शुदा हो कर (उसने बड़ी सी अंगूठी पहनी हुई थी) भी जॉब कर रही हैं?"
अब वो भी थोड़ी-सी खुल सी गयी। बोली, "क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती?"
"जी यह बात नहीं, घर-घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जायें?"
उसने जवाब दिया, "वैसे तो दिन के वक्त ज्यादातर हाऊज़वाइफ ही मिलती हैं। कभी-कभी ही कोई मेल मेंबर होता है।"
"तो आपको डर नहीं लगता।"
"जी अभी तक तो नहीं लगा। फिर आप जैसे शरीफ इंसान मिल जायें तो क्या डर?"
‘शरीफ इंसान’ - एक बार तो सुन कर अजीब लगा। इसे क्या मालूम कि मैं इसे किस नज़र से देख रहा था। साड़ी और ब्लाऊज़ के नीचे उसकी चूचियाँ तनी हुई थीं और मेरे लंड में खुजली सी होने लगी। जी चाह रहा था कि काश सिर्फ़ एक बार चूम सकता और ब्लाऊज़ के नीचे उन चूचियों को दबा सकता। हाथों कि अँगुलियाँ लंबी-लंबी मुलायम सी। वैसे ही मुलायम से सैक्सी पैर ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में कसे हुए। देख-देख कर लंड महाराज खड़े हो ही गये। मन में ज़ोरों से ख्याल आ रहा था कि क्या गज़ब की अप्सरा है। इसकी तो चूत को हाथ लगाते ही शायद हाथ जल जायेगा।
तभी वोह बोली, "अच्छा, थैंक्स फ़ोर एवरीथिंग। मैं चलती हूँ।"
मानो पहाड़ टूट गया मेरे ऊपर। चली जायेगी तो हाथ से निकल ही जायेगी। अरे प्रताप, हिम्मत करो, आगे बढ़ो, कुछ बोलो ताकि रुक जये। इसकी चूत में अपना लंड नहीं डालना है क्या? चूत में लंड? इस ख्याल ने बड़ी हिम्मत दी।
"माफ़ कीजियेगा सना जी, आप जैसी खूबसूरत औरत को थोड़ा केयरफुल रहना चाहिये।" मैंने डरते हुए कहा।
"खूबसूरत?"
मैं थोड़ा सा घबराया, लेकिन फिर हिम्मत करके बोला, "जी, खूबसूरत तो आप हैं ही। बुरा मत मानियेगा। आप प्लीज़ अब तो चाय पी कर ही जाइये।"
"चाय, लेकिन बनायेगा कौन?"
"मैं जो हूँ, कम से कम चाय तो बना ही सकता हूँ।"
वोह हंसते हुए बोली, "ठीक है... लेकिन इतनी गर्मी में चाय की बजाय कुछ ठंडा ज्यादा मुनासिब होगा!"
गरमी के दिन थे और भरी दोपहर थी। मैं अपने घर में अकेला था क्योंकि अभी मेरी शादी नहीं हुई थी। मैंने घर में कुछ ज़रूरी काम करने के लिये ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। काम निबटा कर मैं बेडरूम में ठंडी बीयर का आनन्द ले रहा था।
करीब एक बजे दरवाजे पर हुआ टिंग-टोंग! दरवाजा खोला तो सामने मानो एक अप्सरा खड़ी थी। पैंतीस-छत्तीस साल की साँवली और गज़ब की सुंदर औरत साड़ी पहने हुए और हाथों में कागज़ और कलम लिये हुए कोयल का आवाज़ में बोली, "माफ़ कीजियेगा! क्या कोई लेडी हैं घर में?"
मैंने कहा, "जी नहीं, मैं बेचलर हूँ और अकेला ही रहता हूँ। आप कौन हैं?"
उसके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें थी। वोह बोली, "ज़रा एक ग्लास पानी मिलेगा?"
मैंने कहा, "हाँ, क्यों नहीं?"
वोह ज़रा सा अंदर आयी। मैंने पानी का ग्लास देते हुए पूछा, "क्या बात है, आप हैं कौन?"
पानी पी कर वोह बोली, "जी मेरा नाम सना खान है और मुझे एक कनज़्यूमर कंपनी ने भेजा है सर्वे के लिये। क्या आप मेरे कुछ सवालों का जवाब दे देंगे?"
मैंने कहा, "जी कोशिश कर सकता हूँ। आप प्लीज़ यहाँ बैठ जाइये।"
वोह सोफ़े पर बैठ गयी और हमारे घर का दरवाजा अभी खुला ही था। मैंने दूसरे सोफ़े पर बैठ कर कहा, "पूछिये जो पूछना है।"
वो बोली, "जी आपका नाम और आपकी उम्र क्या है?"
"जी मैं प्रताप सिंघ हूँ और उम्रछब्बीस साल!" मैंने जवाब दिया।
“आप अपने घर की ज़रूरत की चीजें कहाँ से खरीदते हैं?" इस तरह वो सवाल पर सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता गया।
कुछ देर बाद मैंने पूछा, "इस तरह इतनी गर्मी के वैदर में भी आप क्या सब घरों में जाकर सर्वे करती हैं?"
"जी, जॉब तो जॉब ही है ना।"
"तो आप शादी शुदा हो कर (उसने बड़ी सी अंगूठी पहनी हुई थी) भी जॉब कर रही हैं?"
अब वो भी थोड़ी-सी खुल सी गयी। बोली, "क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती?"
"जी यह बात नहीं, घर-घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जायें?"
उसने जवाब दिया, "वैसे तो दिन के वक्त ज्यादातर हाऊज़वाइफ ही मिलती हैं। कभी-कभी ही कोई मेल मेंबर होता है।"
"तो आपको डर नहीं लगता।"
"जी अभी तक तो नहीं लगा। फिर आप जैसे शरीफ इंसान मिल जायें तो क्या डर?"
‘शरीफ इंसान’ - एक बार तो सुन कर अजीब लगा। इसे क्या मालूम कि मैं इसे किस नज़र से देख रहा था। साड़ी और ब्लाऊज़ के नीचे उसकी चूचियाँ तनी हुई थीं और मेरे लंड में खुजली सी होने लगी। जी चाह रहा था कि काश सिर्फ़ एक बार चूम सकता और ब्लाऊज़ के नीचे उन चूचियों को दबा सकता। हाथों कि अँगुलियाँ लंबी-लंबी मुलायम सी। वैसे ही मुलायम से सैक्सी पैर ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में कसे हुए। देख-देख कर लंड महाराज खड़े हो ही गये। मन में ज़ोरों से ख्याल आ रहा था कि क्या गज़ब की अप्सरा है। इसकी तो चूत को हाथ लगाते ही शायद हाथ जल जायेगा।
तभी वोह बोली, "अच्छा, थैंक्स फ़ोर एवरीथिंग। मैं चलती हूँ।"
मानो पहाड़ टूट गया मेरे ऊपर। चली जायेगी तो हाथ से निकल ही जायेगी। अरे प्रताप, हिम्मत करो, आगे बढ़ो, कुछ बोलो ताकि रुक जये। इसकी चूत में अपना लंड नहीं डालना है क्या? चूत में लंड? इस ख्याल ने बड़ी हिम्मत दी।
"माफ़ कीजियेगा सना जी, आप जैसी खूबसूरत औरत को थोड़ा केयरफुल रहना चाहिये।" मैंने डरते हुए कहा।
"खूबसूरत?"
मैं थोड़ा सा घबराया, लेकिन फिर हिम्मत करके बोला, "जी, खूबसूरत तो आप हैं ही। बुरा मत मानियेगा। आप प्लीज़ अब तो चाय पी कर ही जाइये।"
"चाय, लेकिन बनायेगा कौन?"
"मैं जो हूँ, कम से कम चाय तो बना ही सकता हूँ।"
वोह हंसते हुए बोली, "ठीक है... लेकिन इतनी गर्मी में चाय की बजाय कुछ ठंडा ज्यादा मुनासिब होगा!"