घर की चौखट पार कर दोनो माँ-बेटे मल्टी की सीढ़ियां उतर रहे थे, एक-दूसरे के बिलकुल समानांतर और जल्दी ही वे निचले तल पर पहुँच गए। अभिमन्यु को सहसा अहसास हुआ जैसे उसकी माँ थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी, अपने हर बढ़ते कदम पर कभी वह अपनी टांगों को चिपकाकर छोटे-छोटे कदमों से चलने लगती तो कभी एकदम से टांगों को चौड़ाकर लंबे-लंबे पग धरना शुरू कर देती। पार्किंग तक वह बड़े गौर से अपनी माँ की चाल मे आए अंतर का अवलोकन करता रहा मगर जब उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ को चलने मे तकलीफ हो रही है, वह तत्काल कारण बताओ नोटिस जारी कर देता है।
"क्या हुआ मॉम, चलने मे दिक्कत हो रही है?" उसने वैशाली के सैंडि़ल की हील को देखते हुए पूछा, भले हील की ऊंचाई मीडियम थी पर हाल-फिलहाल तो उसकी लंगड़ाहट की वजह उसे यही समझ आती है।
"इतना गौर तो मैं भी तुमपर नही कर पाती जितना आजकल तुम अपनी माँ पर करने लगे हो। डिटेक्टिव मत बनो, चुपचाप बाइक चलाओ। समझे!" वैशाली मुस्कुराते हुए कहती है।
"इतना शक तो तुम अपने पति पर भी नही करती जितना आजकल अपने बेटे पर करने लगी हो। पुलिसवाली मत बनो चुपचाप बाइक पर बैठो। समझीं!" अभिमन्यु ने भी फौरन नहले पर देहला दे मारा और मल्टी के बाहर हमेशा सभ्यता से रहने वाले माँ-बेटे खुलेआम जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं।
दोनो माँ-बेटे बाइक पर सवार हो चुके थे और जल्द ही बाइक हवा से बातें करने लगी।
"मन्यु कन्ट्रोल योरसेल्फ! मैं माँ हूँ तुम्हारी, कोई गर्लफ्रेंड नही जो मुझे इम्प्रेस करने के लिए बाइक इतनी तेज चलाओगे" बाइक की तेज गति से घबराकर वैशाली ने बेटे को टोकते हुए कहा।
"मुझे कसकर पकड़ लो मॉम, मेरी तमन्ना थी कि कभी किसी लड़की को अपने पीछे बिठाकर वाकई उसे इम्प्रेस कर सकूं। डोन्ट वरी, खुद से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है" कहकर अभिमन्यु एकाएक एक्सलरेटर बढ़ा देता है ताकि उससे दूरी बनाकर बैठी उसकी माँ खुद ब खुद उससे चिपककर बैठ जाए और हुआ भी ठीक यही, वैशाली ने फौरन अपना बायां हाथ आगे लाकर बेटे के पेट पर रख दिया और दाएं को उसकी गरदन से नीचे लाते हुए वह बलपूर्वक उसकी बाईं पसली पकड़ लेती है। जब-जब अभिमन्यु उसे एक लड़की की संज्ञा देता था जाने क्यों हरबार उसका दिल खुशी से नाच उठता था, माना अपने पति मणिक के स्कूटर के पीछे वह अनगिनत बार बैठी थी मगर जिस बुरी तरह अभी उसने अपने बेटे को जकड़ा हुआ था, अपनी उस जकड़ पर वह खुद को बेहद रोमांचित होना महसूस कर रही थी।
'कारण' या तो विधि के विधान से बनते हैं या अपनी स्वयं की करनी से। मणिक का इस अधेड़ उम्र मे अचानक से पैसे कमाने मे जुट जाना विधि का विधान था क्योंकि अपने और अपने परिवार के सुखमय भविष्य के लिए उसे घर के मुखिया होने का अपना फर्ज हर हाल मे पूरा करना था यकीनन जिस कर्तव्य के लिए ही उसका जन्म हुआ था। एक पति और पिता की भूमिका मौखिक निभाने के अलावा उसे अपने आश्रितों का हर संभव पालन-पोषण भी करना था। वैशाली जो कि अचानक अपने पति से बिछड़ गई थी, भले ही इस बिछड़न को पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर नही रचा गया था मगर मणिक के साथ ताउम्र जीवन का निर्वाह करते हुए उसे हर विवाहित नारी की तरह अपने पति के साथ की एक चिरपरिचित आदत हो चुकी थी। पति का साथ सिर्फ उसके साथ हँस-बोल लेने या ऊपरी प्यार दर्शा लेने आदि भर से पूरा नही होता, एक पत्नी को बिस्तर पर अपने पति रूपी मर्द के नीचे चरमरा उठने की चाह भी हमेशा रहती है और जिस चाह से वैशाली एकदम से वंचित रहने लगी थी। अब यदि ऐसे मे उसकी चाह बिस्तर पर किसी पराए मर्द का साथ चाहने लगे और वह पराया मर्द भी कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा अभिमन्यु तो इसे विधि का विधान कदापि नही कहा जाएगा, यह पति से तिरस्कृत अपने यौवन के हाथों मजबूर उस नारी की अपनी स्वयं की करनी थी।
"अगर मैं गिरी तो याद रखना बहुत मारूंगी तुम्हें" बाइक की गति तेज होने की वजह से वैशाली बेटे के दाएं कान मे चिल्लाते हुए बोली, सट तो वह उससे पहले से ही चुकी थी और अब उसका बायां चिकना गाल सीधे अभिमन्यु के दाएं कान से रगड़ खाने लगा था।
"मैं कुछ कहना चाहता हूँ मॉम पर चौंकना मत वर्ना जरूर बाइक गिर जाएगी" वह भी जोर से चिल्लाया।
"क्या कहना चाहते हो?" उत्सुकता वश वैशाली ने तुरन्त पूछा और वैसे भी जब बेटे ने उसे पहले ही चौंक ना पड़ने की चेतावनी दे दी थी तब वह अवश्य कोई ऐसी शैतानी भरी बात कहने वाला था जो यकीनन उसकी माँ को हैरत से भर देती।
"मेरी दूसरी तमन्ना भी पूरी हो गई मम्मी, मुझसे सटकर बैठने वाली लड़की के बूब्स मेरी पीठ पर गड़ रहे हैं। काश कि अभी उसने ब्रा नही पहनी होती मगर फिर भी मैं बता नही सकता मुझे कितना मजा आ रहा है ...हु! हूऽऽ!" अभिमन्यु बेशर्मों की भांति हँसते हुए बोला और अकस्मात् बाइक को और भी तेजी से भगाने लगता है।
"हुंह! तुम्हारी बेशर्मी का बस चले तो अपनी माँ को नंगी ही बाइक पर बिठा लो" वैशाली ने चिढ़ने का दिखावा करते हुए कहा, साथ ही वह महसूस करती है कि अश्लीलता से प्रचूर उनके कथनों के प्रभाव से उसके निप्पल अचानक तीव्रता से तनने लगे थे और जिन पर उसके बेटे की मजबूत पीठ का दबाव उसे बड़ा सुखमय सा प्रतीत हो रहा था।
"अच्छा है मम्मी कि तुमने कपड़े पहन रखे हैं वर्ना राह चलते मर्दों को कहीं की भड़स कहीं पर निकालनी पड़ती। खीं! खीं! खीं! खीं!" वह खिखियाते हुए बोला।
"वैसे एक बताओ, क्या कभी पापा के स्कूटर पर तुम्हें इतने मजे आए हैं?" उसने पूछा तो वैशाली एकाएक गहरी सोच मे डूब गई।
घर हो या बाहर, मणिक का अनुशासन हमेशा से कड़क रहा था। वह ना तो खुद कभी फूहड़पने की बात या हरकतें करता और ना किसी अन्य का फूहड़पन कभी उसे बरदाश्त होता, अपनी मर्यादा और गरिमा दोनो को सदा एक-सा बनाए रखने वाले मणिक को उसके सभी मित्रगण और रिश्तेदार सदैव बड़ी गम्भीरता से लिया लिया करते थे। जबतब अपने बीवी-बच्चों से उसका हँसी मजाक होता भी तब भी उसके अलावा अन्य तीनों मे से किसी को हँसी नही आया करती थी, वह तो इज्जत की मजबूरी होती तो जबरन हँस दिया करते थे। पत्नी संग एकांतवास मे भी उसकी गंभीरता यूं ही बरकरार रहती मगर इसका यह अर्थ कदापि नही कि उसकी मर्दानगी मे कभी कोई कमी रही हो, बल्कि अपने बच्चों के जवान हो जाने के बावजूद वह रोजाना नियम से अपनी पत्नी की जमकर चुदाई किया करता था। 'पेट भर कौरा और कलाई भर लौड़ा' इस अत्यंत मजेदार पू्र्ण स्वदेशी कहावत का सही अर्थ वैशाली जैसी समझदार और घरेलू स्त्रियां ही जान सकती हैं, जिन्हें अपने पति द्वारा उनके विवाहित जीवन मे पेट भर खाना और संतुष्ट संभोग इन दोनो मूलभूत आवश्यकताओं की कभी कोई कमी नही रहती।
"मुझे तो कोई मजा नही आ रहा, तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है" अपनी सोच से बाहर निकल वैशाली थोड़ा क्रोधित स्वर मे बोली, एकाएक पति के स्मरण ने उसे खुद पर ही क्रोध दिला दिया था। एक उसका पति था जो अपने परिवार के साथ का त्याग कर उन सब के खुशहाल भविष्य को संजोने मे जी जान से जुटा हुआ था और एक वह थी जो अपने ही सगे बेटे संग व्यभिचार करने को उतावली हुई जा रही थी।
"झूठ! जानवर हो या इंसान, आजादी सभी को चाहिए। मैं जानता हूँ कि पापा के नाम से हम भाई-बहन के अलावा तुम्हारी भी उतनी ही फटती है मॉम, तुम्हें भी उनका अकड़ू नेचर पसंद नही लेकिन फिर भी तुम हमेशा से उसे पसंद करती आ रही हो, उसे झेलती आ रही हो क्योंकि वह तुम्हारे पति हैं" कहकर अभिमन्यु बाइक की रफ्तार को हौले-हौले कम करने लगता है। उसका कहा हर शब्द सीधे उसके दिल से निकला था, उसके उसी दिल से जिसके एक छोटे--से कोने मे नही बल्कि अब उसकी माँ उसके पूरे दिल मे ही रच-बस गई थी।
"तुम्हें अपनी जुबान पर लगाम लगाने की जरूरत है मन्यु वर्ना हम यहीं से घर लौट सकते है" यह आवाज वैशाली के दो-तरफा बंटे हुए मन से बाहर आई थी। अपने बेटे के कथन से वह पूर्णतः सहमत थी, उसे वाकई मणिक का भय जीवनपर्यंत सताता रहा था मगर अपने बहुमूल्य राज़ के अकस्मात् उजागर हो जाने से वह सहसा दुखी हो गई थी। अभिमन्यु पर उसकी कोई भी नाराजगी नही होने का प्रमाण यह था कि वह अबतक उससे उसी तरह से सटकर बैठी हुई थी जब माँ-बेटे के बीच अश्लील वार्तालाप और उससे पनपा हँसी-मजाक शुरू हुआ था, यहां तक कि अपने दोनो हाथ भी उसने जरा भी पीछे नही खींचे थे।
"अजीब लड़की हो तुम, अपनी पहली डेट पर साथ आए लड़के को यूं बेवजह धमकाते हुए तुम्हें शर्म नही आती। पता भी है मेरा कितना खर्चा हो गया? सत्ताइस सौ के अंडरगारमेंट्स, चालीस का गुलाब, आने-जाने का डेढ़ लीटर पेट्रोल और दोबारा घर से निकलने के बाद भी लगभग आधा लीटर पेट्रोल जल चुका है। हाँ यार! लड़कियां नही हुईं आफत हो गईं" बाइक को दाएं मोड़ते हुए ऐसा कहकर वह फौरन अपनी माँ के अत्यंत कोमल होठों को चूम लेता है। उसने बिलकुल सही समय का चुनाव किया था, बाइक मोड़ते वक्त उसका चेहरा भी स्वभाविक रूप से दाहिनी और घूमा था और इससे पहले की उससे सटकर बैठी उसकी मायूस माँ को पहले से ही उसकी इस शरारत का पता चल पाता अभिमन्यु उसके रसभरे होठों का प्रथम चुम्बन लेने मे सफल हो गया था।
"ये ये क्या? उफ्फ! मैं क्या करूं इस बेशर्म लड़के का, बातें भी गंदी करता है और हरकतें तो बातों से भी कहीं ज्यादा गंदी हैं" वैशाली लज्जा से दोहरी होते हुए बोली, खुलेआम चलती सड़क पर बेटे का उसके होंठों को चूम लेना मानो पलभर मे उसकी सारी मायूसी तत्काल हवा हो जाती है। हालांकि उनका चुम्बन क्षणिक था, अहसास भी ना हो सकने जैसा मगर फिर भी दोनो माँ-बेटे खुशी से फूले नही समा रहै थे।
"नौटंकी मत करो लड़की, तुम्हें भी अच्छे से पता है कि पहली डेट पर कपल और क्या-क्या गंदे काम करते हैं" मुस्कान के साथ कड़क आवाज बनाकर ऐसा कहते हुए वह पुनः अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाने लगता है ताकि दोबारा अपनी माँ को चौंकने पर मजबूर कर सके। भले उसे अब और चुम्बन नही लेने थे क्योंकि जो आंतरिक आनंद उसे अपने पहले चुम्बन मे महसूस हुआ था उतना शायद वह उनके आगामी अनगिनती चुम्बनों मे भी महसूस नही कर सकता था, एक विशेष बात और थी कि जब उसने वैशाली के होठों को चूमा था तब उसका ध्यान अपने बेटे की हरकत की ओर जरा भी नही था और वह अकस्मात् किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच गई थी, लज्जा और बेतुकी घबराहट से उसका मुंह खुला का खुला रह गया था, वह बुरी तरह कांप उठी थी। यही उनके पहले चुम्बन की विशेषता थी जिसे सरल शब्दों मे अबोध, आश्चर्य से भरा हुआ एक निष्कपट, निष्छल कृत्य कहा जाए तो उसका सही भाव समझने मे आसानी होगी।
"लो! लो! करो ...किस करो, अब रुक क्यों गए मन्यु?" जब वैशाली को समझ आ गया कि उसके बेटे ने दूसरी बार सिर्फ उसे हैरान-परेशान करने के लिए ही अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाया है, वह स्वयं अपना चेहरा उसके दाएं कंधे के पार निकालते हुए बोली, पहले-पहल तो वह वास्तव मे पुनः चौंक गई थी और तीव्रता से अपना चेहरा पीछे खींच लिया था मगर सत्य जानने के उपरान्त वह खुद ही अपने होठों को सिकोड़कर उसे चिढ़ाने लगती है। सत्य तो यह भी था कि वह चाहती थी कि उसका बेटा उसके उकसावे पर दोबारा उसके होठों को चूमे मगर अभिमन्यु ने ऐसा कुछ भी ना कर उसे लगातार तीसरी बार चौंका दिया था।
"तुम्हें तो कोई शर्म है नही मम्मी मगर मुझे है, जमाना क्या सोचेगा? छि!" कहकर वह हँसने लगा और वैशाली फौरन उसकी पीठ पर मुक्के जड़ने लगती है।
"वैसे जब घर पहुँच जाएंगे तब मैं पक्का बेशर्म बन जाऊँगा माँ, तब देखूँगा तुममे कितना दम है मुझे रोकने का" अभिमन्यु पहले से भी कहीं तेज हँसते हुए बोला और उसके कथन के अर्थ को सोचते ही वैशाली के खुले मुंह से एकाएक लंबी सीत्कार बाहर निकल जाती है।
"तुम्हें रोक तो मैं चाहकर भी नही सकूंगी मन्यु, क्या पता मैं ही खुद को ना रोक पाऊं" वह अपनी चूत के अंदरूनी स्पंदन को स्पष्ट महसूस करते हुए सोचती है, उसकी गांड का छेद भी स्वतः ही कुलबुलाने लगा था।
अगले कुछ क्षणों तक दोनो चुप रहे और तबतक मॉल भी नजदीक आ गया मगर हर-बार की तरह इस बार वैशाली के उतरने के लिए अभिमन्यु ने बाइक को मॉल के बाहर जरा भी नही रोका बल्कि अपने साथ वह उसे भी सीधे मॉल की भूमिगत पार्किंग के भीतर ले जाता है।
"तुम जानते हो ना कि तुम्हारे पापा मुझे और अनुभा को कभी पार्किंग के अंदर नही ले गए, फिर तुम मुझे क्यों वहाँ साथ ले जा रहे हो मन्यु?" वैशाली ने तत्काल पूछा, पार्किंग नीचे चार मालों तक थी और अभी वे दूसरे तल पर पहुँचे थे। उसका दिल धुकनी की तरह जोर-जोर से धड़कने लगता है जब उसका बेटा उसके प्रश्न का जवाब देने की बजाय बाइक को तीसरे तल पर ले जाने के लिए मोड़ने लगता है।
"मन्यु उतारो मुझे ...यहीं उतार दो, मुझे नही जाना और नीचे" किसी अनिष्ठ की कल्पना से घिरी वह माँ एकाएक इतनी अधिक घबरा जाती है कि चंद लम्हों मे उसकी कजरारी आँखों मे आँसू उमड़ने लगते हैं, सिसकियां लेनी शुरू कर चुकी वह माँ यह तक भूल जाती है कि अभी वह संसार के सबसे सुरक्षित हाथ अपने सगे बेटे के साथ है।
"उतरो माँ, यहां से लिफ्ट मे साथ चलेंगे। मैंने बाइक ऊपर इसलिए नही रोकी क्योंकि मुझे तुम्हारा नेचर पता है, कोई गार्ड-वार्ड भी तुमसे अगर पुछताछ करने लगता तो तुम बेवजह घबरा जातीं" जब बाइक रोक देने के बावजूद वैशाली उसपर से नीचे नही उतरी तब अभिमन्यु ने उसे शांत स्वर मे वजह समझाते हुए कहा, बेटे की बात सुन हथप्रभ वह फौरन बाइक से उतर जाती है।
"मन्युऽऽ" वह बाइक साइड स्टेंड पर खड़ी कर पाता इससे पहले ही रोती हुई वैशाली उसकी पीठ से चिपक गई।
"माँ, तुम अचानक रोने क्यों लगीं?" अभिमन्यु ने बाइक को विपरीत दिशा मे गिरने से बचाते हुए पूछा और फिर ठीक तरह से उसे पुनः स्टेंड पर लगाकर वह अपनी माँ की ओर घूम जाता है।
"मुझे लगा ... मुझे लगा" वैशाली ने उसे अपनी मूर्खता की सत्यता से परचित करवाने लिए अपना मुंह खोला भी मगर ज्यादा कुछ वह नही कह पाती, बस उसकी बलिष्ठ छाती मे अपना चेहरा छुपाकर सिसकती रहती है।
"ओह! तो तुम्हें लगा कि मैं पार्किंग मे तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती करूँगा, जबरदस्ती वह भी अपनी माँ के साथ। तुम्हारे साथ हँसी-मजाक करने लगा हूँ, तुम्हें अपना दोस्त बना लिया, अम्म! कितनी बार ... हाँ याद आया, दो बार तुम्हें बिच कहकर भी बुलाया पर सैक्स तुम्हारे साथ नही करना चाहता, मैं पहले ही बता चुका हूँ। बाकी यह भी अभी से जान लो कि सैक्स के अलावा तुम्हारे साथ मैं अपनी हर वह फैंटसी पूरी करूंगा जो मेरे दिल मे है, अब जरूर तुम इसे मेरी जबरदस्ती मान सकती हो मगर फिर भी मुझे रोक नही पाओगी मॉम" अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, वह नही चाहता था कि अपनी माँ की बेवकूफी पर क्रोधित होकर वह उसे और भी ज्यादा रुला दे, उसे बेवजह शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दे।
"कैसी फैंटसी?" हुआ वही जैसा उसने सोचा था, उसके कथन को सुन सिसकते हुए ही वैशाली ने तत्काल अपना चेहरा उसकी छाती से ऊपर उठाते हुए पूछा।
"पहले अपने यह आँसू पोंछो बिच, फिर बताऊंगा" हँसते हुए ऐसा कहकर वह स्वयं अपनी कमीज की दाईं बांह से अपनी माँ के आँसुओं को पोंछने लगता है, उसने खास यह भी ध्यान दिया कि उसकी माँ का बचा हुआ काजल किसी भी तरह उसकी कहर ढ़ाने वाली आँखों की खूबसूरती पर यूं ही सजा रहे ताकि उनकी अकल्पनीय सुंदरता को खुद अभिमन्यु की नजर भी ना लग सके।
"शहर भर की लड़कियां मरी जा रही हैं मेरे साथ डेट पर जाने को और एक मैं हूँ जो ना जाने किस रोतलू के चक्कर मे पड़ गया। चलें रोतलू या अभी और रोना है?" ऐसा पूछकर वह अपनी माँ के कंधे पर से सरक चुके उसके पल्लू को पुनः उसके कंघे पर व्यवस्थित कर देता है।
वैशाली बेटे के मजाकिया और प्रेम भरे कथनों से फौरन सिसकना छोड़ गर्व के उस सबसे ऊँचे शिखर पर पहुँच जाती है जहां संसार की हर माँ उसे अभिमन्यु समान बेटे के लिए ही तप करती हुई नजर आती है मगर उन अनगिनती माँओं मे से तप सिर्फ उसी का पूरा हुआ जिसके फलस्वरूप उसका लाड़ला प्रत्यक्ष उसकी आँखों के समक्ष खड़ा मुस्कुरा रहा था।
"मन्यु मुझे माफ ...." वैशाली ने कहना शुरू किया था पर उसका बेटा उसे बीच मे ही टोक देता है।
"अपनी माँ से माफी मंगवाने का अधिकार मैंने किसी को नही दिया, खुद मुझे भी नही लेकिन मुझे मेरे सवालों के मुझे सही-सही जवाब चाहिए। बोलो क्या कहती हो, डन?" अपने कथन से उसने एकबार फिर से वैशाली का दिल जीत लिया, वह तत्काल अपना सिर हाँ के सूचक मे ऊपर-नीचे कर देती है।
"लंगड़ाकर क्यों चल रही थीं?" उसने अपना पहला प्रश्न पूछा और जैसे सहसा उसकी माँ को सांप सूंघ जाता है, तभी पार्किंग के किसी कर्मचारी की उन्हें आवाज सुनाई पड़ती है जो चौथे माले पर बाइकों को एक--सा लगवाने का प्रयास कर रहा था।
"समय नही है जल्दी बोलो, चलने मे तुम्हें क्यों तकलीफ हो रही थी?" उसने दोबारा वही प्रश्न किया, अपनी माँ के चेहरे पर छाई सुर्खता से उसे लग रहा था कि उसकी लंगड़ाहट का कोई तो विशेष कारण अवश्य था।
"वो मन्यु वो ... जो पेंटी तुमने पहनाई थी, उसे पहनने के बाद ..." इतना कहकर वैशाली तीव्रता से अपने बाएं हाथ का पंजा अपने बोलते हुए मुंह पर रख लेती है, इसी प्रयास मे कि यदि वह अपनी बोलती जुबान को काबू मे नही कर पाई तो उसे रोकने के लिए कम से कम अपने बाएं पंजे का सहयोग वह ले सके।
"पेंटी नही कच्छी मॉम, मैंने तुम्हें कच्छी पहनाई थी। खैर चलो आगे बोलो" अभिमन्यु को जैसे जरा--सा भी सब्र नही हो रहा था, एक दुष्ट सी मुस्कान बिखेरते हुए वह बेहद अश्लीलता पूर्वक बोलता है। वहीं बेटे का कथन और उसमे शामिल घोर नंगपर से वैशाली भी समझ जाती है कि अब अभिमन्यु उससे किसी भी प्रकार की शर्म नही करेगा, फिर चाहे वह अपनी माँ से वार्तालाप करे या उसके साथ कोई कुकृत्य।
"हाँ वही! जो कच्छी तुमने अपनी माँ को खुद अपने हाथों से पहनाई थी, उसने तुम्हारी माँ को तुम्हारी तरह ही बहुत परेशान कर रखा है" वह बेटे से भी अधिक नंगपन दिखाते हुए बेझिझक कहती है, उसने साफ देखा अभिमन्यु उसके अश्लील शब्दों पर खुशी से मानो झूम सा उठा था।
"उस नाचीज कच्छी की इतनी हिम्मत की मेरी माँ को परेशान करे, आई डोन्ट लाइक दिस टाइप अॉफ हिमाकत, जुर्ररत एण्ड अॉल। यू कन्टिन्यू मॉम, आई एम लिसनिंग" वह खिलखिलाकर ताली ठोकते हुए कहता है।
"अब और क्या कहूँ? बस परेशान कर रखा है" वह खुद भी हँसते हुए बोलती है।
"मगर क्यों कर रखा है परेशान, आखिर मै भी तो जानूं कि वहज क्या है?" अपने जिद्दी स्वभाव की तरह अभिमन्यु एकबार पुनः अपनी माँ के पीछे पड़ जाता है और फिर वैशाली तो माँ थी, उसका स्वभाव क्या, उसकी रग-रग से वाकिफ।
"अब अगर तुम सुनना ही चाहते हो तो सुनो। जो कच्छियां तुम अपनी माँ के लिए खरीदकर लाए हो वैसा पैटर्न उसने पहले कभी नही पहना और आज जब पहना तो ठीक से चल भी नही पा रही। जानना चाहते हो क्यों?" वैशाली के प्रश्न के जवाब मे अभिमन्यु ने फौरन अपनी गर्दन ऊपर-नीचे कर दी।
"क्योंकि ... क्योंकि कच्छी बार-बार तुम्हारी माँ की गांऽऽड मे घुस जाती है, अब चलें या मेरे मुंह से दो-चार और गंदी बातें सुनने का मन है" वैशाली ने झूठा क्रोध दिखाते हुए कहा, बल्कि इसके ठीक विपरीत वह महसूस करना अब शुरू कर चुकी थी कि उसकी चूतरस से गीली होकर उसकी कच्छी उसके चूतमुख से बुरी तरह चिपक गई है।
"वाउ! मैं अपने शब्द इसी वक्त वापस लेता हूँ। कच्छी जी, यह तुम्हारी हिम्मत का ही रिजल्ट है तो तुम्हें बार-बार हैवन मे घूमने जाने का मौका मिलता है" अभिमन्यु के ऐसा कहते ही वैशाली उसके दाएं कंधे पर लगातार घूंसे चलाने लगती है।
"बेशर्म, बद्तमीज, घटिया इंसान। तुमने तो जैसे सबकुछ बेच खाया, उफ्फ! मैं क्या करूं इस ढी़ठ लड़के का, मेरा ही हाथ टूट जाएगा" वह अपनी मुट्ठी पर फूंकते हुए बोली, तभी अभिमन्यु ने उसके चोटिल हाथ को पकड़ा और सीधे उसे लिफ्ट की ओर ले जाने लगता है।
"जब तुम्हें पता है कि मैं वाकई ढ़ीठ हूँ फिर क्यों बेफालतू के हाथ-पैर चलाती हो। सच मे लगी क्या?" उसने वैशाली समेत लिफ्ट के भीतर प्रवेश करते हुए पूछा, माँ-बेटे के अलावा भी चार-पाँच लोग उनके साथ ही लिफ्ट मे घुसे थे।
"हम्म!" अपरिचितों की उपस्थिति मे वैशाली सिर्फ इतना सा जवाब देकर चुप हो जाती है, अभिमन्यु उसकी चुप्पी का कारण समझ गया और बिना किसी परवाह के वह उन अपरिचितों के सामने ही अपनी माँ की चोटिल मुट्ठी को चूमने लगता है। उसने पाया कि उसकी माँ एकाएक असहज हो गई थी और अपने हाथ को बेटे के होंठों से दूर खींचने का प्रयत्न करने लगी थी मगर उसने अपनी माँ का हाथ नही छोड़ा, बल्कि उसकी आँखों मे झांकते हुए उसे यह विश्वास दिलाता रहा कि उसके होते हुए वैशाली को किसी से भी डरने की कोई जरूरत नही है, उसके जीवित रहते कोई उसकी माँ का बाल भी बांका नही कर सकता है।
"इतनी घबराती क्यों हो? अपने बेटे पर भरोसा नही है क्या?" लिफ्ट से बाहर निकलकर अभिमन्यु ने उससे मौखिक रूप से पूछा।
"औरत हूँ, डर लगता ही है" वैशाली ने जवाब मे कहा।
"अपने इसी बेतुके डर से तुमने अपनी पूरी लाइफ घुटन और परेशानी मे बिता दी, अपने बेटे के प्यार पर भी शायद तुम्हें कोई भरोसा नही" अभिमन्यु गहरी सांसें लेते हुए शांत स्वर मे बोला।
"तुम और तुम्हारे प्यार पर भरोसा नही होता तो तुम्हारी माँ होकर भी कभी तुम्हें बेशर्मों की तरह अपने शरीर का वह अंग नही दिखाती जिसे देखने का अधिकार केवल मेरे पति को है" वैशाली भी पूरी गंभीरता से बोली।
"पर एक बात तो है मॉम। जब भी तुम अपने मुंह से कच्छी, गांड, लंड और चूत जैसे देशी शब्द बोलती हो, कसम से कहर ढ़ा देती हो" अपनी माँ का मायूस चेहरा देख अभिमन्यु ने उसे लजाने के उद्देश्य से कहा, सचमुच उसकी माँ का शर्म से बेहाल चेहरा उसके दिल मे किसी नुकीली कटार--सा धंसता चला जाता था।
"कच्छी और गांड तक तो ठीक है मगर इसके आगे सिर्फ तुम्हारी गंदी कल्पना का विशाल समंदर है" वैशाली मुस्कुराते हुए बोली, धीरे-धीरे उसे भी समझ आने लगा था कि अभिमन्यु पलभर को भी उसका दुखी चेहरा नही देख पाता है फिर भले ही वह अपनी अश्लील या मजाकिया बातों से ही उसे हँसाने का प्रयास क्यों ना करे पर उसे हँसाकर ही मानता था।
इसी बीच वे चलते-चलते पिज्जा हट की होस्टिंग डेस्क तक पहुंचे, कांच से अंदर देखा तो एक सिंगल टेबल भी खाली नही थी। वैशाली यह देखकर हैरान हो गई कि वहाँ उसके उम्र की कोई भी अन्य औरत किसी जवान लड़के के साथ नही आई थी, औरतें थी भीं तो उनका परिवार उनके साथ वहां मौजूद था।
"डाइन इन इज फुल, इफ देयर इज ऐनी कैन्सलेशन आई लेट यू नो। मैम! सर! विल यू प्लीज वेट देयर" कहते हुए होस्टिंग कर रही धमाल लड़की ने अपनी दाईं ओर बनी एक गोल सीमेंटेड पट्टी की ओर इशारा किया जहाँ पहले से ही वेटिंग वाले लगभग आधा दर्जन कपल बैठे हुए थे।
"सर अगर चाहें तो टेक-अवे हो जाएगा" लड़की वैशाली की नजरों को ताड़ते हुए बोली जो वेटिंग कपलों की अधिकता को देख मायूस सी हो रही थी।
"ना! ना! वील वेट, थैंक्स अम्म! या थैंक्स मिस गौरी" अभिमन्यु ने लड़की के नेमबैच पर लिखे उसके नाम को पढ़ते हुए कहा और फिर अपनी माँ को उस दूसरी गोल सीमेंटेड पट्टी पर ले जाने लगता है जहाँ कोई भी मौजूद नही था। उसने पुनः गौर किया उसकी माँ लंगड़ाकर चल रही है और उसकी उस लंगड़ाहट पर वैशाली का जरा-सा भी ध्यान नही था, उसके शांत मुखमंडल पर कोई ऐसे लक्षण नही पनप रहे थे जो उसकी चाल से संबंधित उसके जबरन पाखंड को दर्शा पाते।
"तुम फिर लंगड़ाकर चल रही हो?" देर हुई नही कि उसकी शैतानी शुरू हो गई।
"अब इतनी भीड़ मे टांगें चौड़ाकर तो चल नही सकती तभी लंगड़ा रही हूँ" वैशाली सीमेंटेड पट्टी पर बैठते हुए बोली।
"ज्यादा दिक्कत हो तो टेक-अवे करवा लूं?" अभिमन्यु ने मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए पूछा।
"अगर ऐसा कर सको तो मेरी बहुत हैल्प हो जाएगी बैटा, मुझसे अब सहा नही जा रहा और भीड़-भड़क्के मे बार-बार अपने पीछे हाथ लगा नही सकती" वैशाली उसके बाएं हाथ को सहलाते हुए कहती है, उसकी आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह अवश्य किसी तकलीफ मे है।
"मगर बाइक पर तो कोई दिक्कत नही हुई थी" अभिमन्यु ने अपनी माँ के दाएं कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा।
"उसपर बैठी हुई थी इसलिए, चलने मे दिक्कत आती है मन्यु" वैशाली एक हाथ से उसका सिर सहलाते हुए बताती है।
"मगर बाइक तो चल रही थी ना फिर क्यों दिक्कत नही आई?" पूछकर वह हँसने लगता है और उसकी हँसी से वैशाली झेंप जाती है, फौरन उसने बेटे के सिर पर हल्की सी चपत लगा दी।
"चलो ठीक है मगर हमारी डेट" रंग बदलने मे माहिर वह उदास होते हुए बोला।
"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है। हम घर पर अपनी डेट सेलिब्रेट करेंगे, टीवी देखते हुए" वैशाली ने उसका मन रखने के लिए आधिकारिक तौर पर उसकी डेट प्रपोजल को स्वीकारते हुए कहा।
"ओके! मुझे मंजूर है मगर मेरी एक शर्त है" अभिमन्यु सहसा चहककर बोला।
"बको क्या शर्त है तुम्हारी, वैसे मुझे पता था कि तुम जात के मुताबिक पक्के बनिया हो" वैशाली मुस्कान के साथ पूछती है, अब वह अपने बेटे हर संभव समझ चुकी थी।
"घर जाकर तुम्हारी कच्छी मैं खुद अपने हाथों से उतारूंगा" अभिमन्यु जैसे कोई विस्फोट करते हुए कहता है, उसकी माँ उसकी शर्त को सुन अकस्मात् हक्की-बक्की सी उसके चेहरे को घूरने लगती है।
"नही मन्यु, जो आज हो गया वह दोबारा अब कभी नही होगा, तुम उस बीते वक्त को तुरन्त भूल जाओ" उसने घबराते हुए कहा, बेटे की सर्वदा अनुचित शर्त ने उसकी माँ को हैरानी से भर दिया था।
"तुमने भी उस वक्त को एन्जॉइ किया था मॉम, हम फिर से उसे इन्जॉइ करेंगे। प्लीज मम्मी" यह अभिमन्यु का लगातार दूसरा विस्फोट था, वैशाली पसीने से तरबतर होने लगी थी।
"मैंने तुमसे ऐसा नही कहा मन्यु, यह बस तुम्हारे शैतानी दिमाग की उपज है" वह जरा क्रोधित लहजे मे बोली और उसका क्रोध करना जरूरी भी था, यह तो सीधे उसपर झूठा इल्जाम लगाने जैसा था और जिसे वह चाहकर भी कभी स्वीकार नही करती।
"अडल्ट हूँ मॉम, सबकुछ जानता हूँ। तुमने वाकई इन्जॉय किया था और इसीलिए उस वक्त तुम्हारी चूत से झरना बह रहा था" आखिरकार अभिमन्यु तीसरा विस्फोट भी कर ही देता है और उसके कथन को सुन अब वैशाली पूरी तरह से निरुत्तर हो जाती है। अपने बेटे के बुद्धि बल का वह माँ आज लोहा मानने पर मजबूर है, जो बेटा अपनी सगी माँ को एक स्त्री के रूप मे जीत सकता है वह संसार की किसी भी अन्य स्त्री को यकीनन ही फांस सकता है।
"ओके! तो फिर मैं टेक-अवे करवा लेता हूँ" वह प्रसन्न होकर सीमेंटेड पट्टी से उठते हुए बोला, उसकी माँ की चुप्पी ने उसे पुनः जीत का स्वाद चखा दिया था।
"बैठो अभी, हमारी बात पूरी नही हुई" वैशाली बलपूर्वक उसे दोबारा पट्टी पर बिठते हुए बोली।
"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है" वह तत्काल अपनी माँ के ही कहे कथन की पुनरावृत्ति करता है और इसबार वैशाली पूर्वरूप से टूट जाती है।
"थैंक्स मॉम, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें कभी कोई दुख नही दूंगा" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वह तेजी से होस्टिंग डेस्क पर पहुँचा और अपना अॉर्डर पंच करवाने लगता है। उसकी नजर गौरी के गौरवर्ण से हट नही पा रही थी मगर कहीं उसकी माँ उसकी हरकतों से भड़क ना पड़े वह चुपचाप अपना टेक-अवे लेकर चलता बनता है।
पार्किंग से बाइक निकालकर वह उसे पुनः हवा से बातें करवाने लगा, वैशाली पहले की तरह ही उससे चिपककर अवश्य बैठी मगर एकदम शांत थी और लौटते वक्त ना जाने क्यों अभिमन्यु भी उसे बिलकुल नही छेड़ता, बस जल्द से जल्द घर पहुँचने के इंतजार मे बाइक दौडा़ता रहता है।