अभिमन्यु की अतिउत्तेजित मगर अनैतिक हरकत देख और उसके पापी कथन को सुन वैशाली के अंदर की ममता विकृत वासना मे परिवर्तित होते देर ना लगी। उसकी रक्तरंजित आंखों मे झांकते हुए उसका जवान बेटा उसके बदन का सबसे गुप्त व वर्जित अंग उसकी गांड के कुंवारे छेद को गहरी-गहरी सांसें लेते हुए सूंघ रहा था। अपने जिस गंदे मलद्वार का जीवनपर्यंत उपयोग उस माँ ने सिर्फ मल-त्याग करने के लिए किया था, अपने बेटे की नाक के दोनो फूलते-पिचकते नथुओं को उसके बेहद समीप देख वैशाली का ममतामयी अंतर्मन पुनः चीख-पुकार मचाने लगता है।
"म ...मत मन्यु, उन्घ! गंदी ...गंदी जगह है वह" वह अपने जबड़े भींचते हुए हकलाई।
"हम्फ्! माँ तुम्हारे बदन का कोई भी अंग गंदा नही। हाँ मुझे घिन आ रही है मगर तुम्हारा शिटहोल इतना ज्यादा इरॉटिक है कि मैं चाहकर भी इसकी गंध को सूंघने से खुद को रोक नही पा रहा हूँ ...हम्फ्। हम्फ्। अपनी मम्मी की गांड का छेद देख हूँ, जिसने मुझे पैदा किया अपनी उस सगी मॉम का एसहोल ...उफ्फ्फ्! नशा चढ़ रहा है मुझ पर ...हम्फ्। हम्फ्।" लगभग चीखते स्वर में ऐसा कहते हुए अभिमन्यु आखिरकार अपनी नाक की नुकीली नोंक वैशाली के अनछुए गुदाद्वार से रगड़ने लगा। अपने हाहाकारी कथन के समर्थन मे उसकी नाक के फूले नथुए स्वतः ही उसकी माँ के सिकुड़न से भरे मलद्वार की गहरी महरून रंगत की गोलाई पर मानो चिपक से जाते हैं, छेद के आसपास उगी उसकी माँ की काली झाटों पर पनपी पसीने की बूंदों को भी उसके छेद की मादक गंध के साथ अपने भीतर समाने लगते हैं।
"आऽऽईऽऽऽऽ! मन्यु मा ...मान जाओ, वहाँ मत ...मत बेटा" सिसयाते हुए वैशाली छाती के पार निकली अपनी दोनों टांगों को यथासंभव पुनः सीधा करने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के नीचे दबी होने के कारण उसके दर्जनों प्रयत्न भी पूरी तरह से विफल साबित होते हैं। उसकी गांड के छेद की कुलबुलाहट तब पहले से भी अधिक कष्टकारी मोड़ ले लेती है जब अभिमन्यु की लौटती गर्म साँसें उसके मलद्वार को एकाएक झुलसाना आरम्भ कर देती हैं, इस विस्फोटक विचार से की अब उसके संस्कारी व पवित्र शरीर का ऐसा कोई अंग नही बचा जिसे उसके इकलौते जवान बेटे ने नग्न ना देखा हो अपने बेडरूम के बिस्तर पर छटपटाती वह नंगी माँ अत्यधिक उत्तेजना के प्रभाव से जैसे बेहोशी की कगार पर पहुँच जाती है। अपनी अधेड़ उम्र तक अपने बदन के जिस अन्य सबसे अधिक संवेदनशील कामांग को सदैव तिरस्कृत होना महसूस करती आई वैशाली वर्तमान मे अपनी गांड के छेद से होती असहनीय छेड़छाड़ को कैसे बरदाश्त कर पाती जबकि उसके मलद्वार को जबरन छेड़ने वाला शख्स कोई और नहीं उसका अपना जवान खून था।
"अच्छा ...अच्छा ठीक है, नही सूंघता तुम्हारे शिटहोल को पर एक बात जरूर कहूंगा माँ की तुम्हारा पति चुदाई के मामले मे एकदम चूतिया है ...हम्फ्!" एक अंतिम बार अपनी माँ की गांड के छेद को तन्मयता से सूंघने के उपरान्त वह वैशाली की कष्टप्रद फड़फड़ाती आँखों मे झांकते हुए बोला, उत्तेजना के साथ-साथ अखंड रोमांचवश अब अभिमन्यु की घिन भी काफी हद तक समाप्ति की ओर अग्रसर हो चली थी।
"बेशर्म कहीं के ...वह बाप है तुम्हारा। एक औरत के मुंह पर उसके पति का मज़ाक उड़ाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी?" अपने बेटे के नीच कथन को सुन वैशाली तत्काल क्रोध से तिलमिलाते हुए बोली।
"ह ...हा! बेशर्म तो मैं हूँ मम्मी पर उससे भी ज्यादा कमीना हूँ। मैंने तुम्हें बताया था की मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन चोदम-पट्टी के अलावा मेरी कई फैन्टेसी हैं, तो अब अपनी गांड ...मेरा मतलब है अपने कान खोलकर सुनो की मैं कितना बड़ा बेशर्म ...मेरा मतलब की कमीना हूँ" अपनी माँ के क्रोध के जवाब में अभिमन्यु ने ठहाका लगाकर हँसते हुए कहा, अब वह उस तात्कालिक क्षण को इतना अधिक उत्तेजक बना देने को उत्सुक था कि उसकी माँ इन क्षणों को ताउम्र कभी भूल न सके, वह कमरे के गरमा-गर्म वातावरण को ज्वलनशीलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचाने का फैसला कर चुका था।
"न ...नही मन्यु, मुझे और कुछ नही जानना। खाने का समय हो चुका है, तुम्हें भी भूख लगी होगी" वैशाली एकाएक भयभीत होते हुए बोली, वह खुदपर आशंकित थी की बहककर एक माँ से औरत बनने के उपरान्त अब बेटे के समक्ष कहीं वह किसी रंडी, छिनाल, कुलटा सामान बर्ताव ना करने लग जाए।
"मेरा खाना तो मेरे नीचे दबा पड़ा है, सोच रहा हूँ माँ की आज एक जैनी से मांसाहारी बन ही जाऊं" वह दोबारा अपना वैशाली की विपरीत दिशा में खुली टांगों के मध्य झुकाते हुए कहता है।
"तुम्हारे निप्पल चूस चुका, होंठ चख लिए, तुम्हारी चूत चाटकर उसका भी थोड़ा-बहुत स्वाद ले चुका हूँ मम्मी मगर कुछ तो कमी है ...अम्म् हाँ! तुम्हारी गांड का छेद नही चूमा मैंने, नाचीज़ को इजाज़त हो तो क्या तुम्हारे एसहोल की एक किस्सी ले लूँ? छोटू सी किस्सी?" अपने पिछले कथन में जोड़ते हुए अभिमन्यु ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा और बिना अपनी माँ के जवाब का इंतजार किए अपने होंठों को गोलाकार आकृति मे ढाल वह उन्हें हौले-हौले उसके मलद्वार के समीप ले जाने लगा।
"उई! नही मन्यु ...उई! रुक ...रुक जाओ। उफ्फ्! पागल लड़के ...मत करो ना" वैशाली तब लगातार बिस्तर पर अपनी गांड उछालते हुए चिल्ला उठती है जब उसका बेटा अपने होंठ उसकी गांड के छेद से सटा देने का भ्रम पैदा करते हुए हरबार उन्हें पीछे खींच लेता है।
"लंड नही घुसेड़ रहा तुम्हारी गांड मे जो तुम इतने नखरे चोद रही हो, सिर्फ चुम्मा लेना है माँ तुम्हारी क्यूट सी पोंद के छेद का। बोलो लूँ किस्सी की सीधा जीभ ही घुसा दूँ अंदर? फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती की है" हँसकर कहते हुए अभिमन्यु वास्तविकता मे अपनी जिह्वा को अपने सिकुड़े होंठों से बाहर निकाल देता है और ज्योंही उसकी जीभ की नुकीली नोंक को वैशाली ने अपने मलद्वार का लक्ष्य साधते देखा, मजबूरन वह माँ चीखते हुए अपने बेटे की अनैतिक इच्छा को अपनी स्वीकृति प्रदान कर बैठी।
"चूम लो मन्यु पर अंदर जीभ मत घुसाना। मेरे ...मेरे अलावा आजतक किसी और ने उस जगह को कभी छुआ तक नहीं है, मैं सहन नही कर सकूंगी बेटा ...बहुत गंदी जगह है वह" वैशाली कंपकपाते स्वर मे चीखी, उसकी चीख को पल मे और गहरा करते हुए अभिमन्यु ने तीव्रता से अपनी जीभ होंठों के भीतर कर उन्हें बिना किसी अतरिक्त झिझक के सीधे अपनी माँ की गांड के कुंवारे छेद से कठोरतापूर्वक चिपका दिया। अपनी जिह्वा को मुंह से बाहर निकालने का कारण उसका वैशाली को भयभीत करना कतई नही था बल्कि वह अपने खुश्क होंठों को अपनी लार से तर-बतर करना चाहता था ताकि उसकी माँ को उसके चुम्बन का हरसंभव स्पर्श महसूस हो सके, यह भी एहसास हो सके की उसकी गांड जोकि उसके बदन का सबसे कामुक अंग है, अब और तिरस्कृत नही रहेगा।
"ह्म्म्! ब ..बस उफ्फ्फ्!" अपने जवान बेटे के गीले होंठों के शीत स्पर्श को अपने फड़फड़ाते मलद्वार पर कसता महसूस कर एकाएक वैशाली की आँखें नाटिया गयीं और वह फ़ौरन उसकी दोनों जाँघों को बलपूर्वक थामे अभिमन्यु के हाथों की कलाई को स्वयं ताकत से जकड़ लेती है। उसका पेट तेजी से फूलने-पिचकने लगा, जिह्वा मुंह के बाहर लटक आयी, उसकी चूत के भीतर का स्पन्दन क्षणमात्र मे इतना प्रचंड हो उठता है कि उसका कामोन्माद अतिशीघ्र चरम पर पहुँच गया।
"उन्घ्! बस मन्यु ...मर जाऊंगी ओह!" सिसकते हुए उस माँ की गर्दन भी अपने आप बिस्तर से ऊपर उठ जाती है, उसके बेटे के होंठ मानो किसी जहरीली जोंक की भांति उसके अत्यन्त संवेदनशील गुदाद्वार से बुरी तरह चिपक चुके थे और इसमे भी शायद अभिमन्यु को संतोष नहीं था क्योंकि वह अपने होंठों की कड़कता से अपनी माँ की गांड के छेड़ की अतिमुलायम सिकुड़न से भरी त्वचा को जबरन अपने मुंह के भीतर खींचने का प्रयत्नशील हो चला था, यकीनन अपनी माँ को जताना चाहता था कि अब उसे वाकई अपनी जन्मदात्री के बदन के किसी भी अंग को अपने मुंह से लगाने में जरा-सी भी अकबकाई नही आ रही, कोई घिन महसूस नही हो रही।
"पुच्च्च्ऽऽ!" एक लंबी पुचकार ध्वनि के साथ ही अभिमन्यु ने अपने होंठों को अपनी माँ की गांड के छेद से पीछे खींच लिया और उसके ऐसा करते ही अविलंब आह लेती हुयी वैशाली की गर्दन पुनः बिस्तर पर गिर पड़ी।
"मुझे झड़ना है मन्यु ...आई! मुझे झड़ा दो" तत्काल वैशाली
का रुदन स्वर अभिमन्यु के कानों को थरथरा जाता है, वह स्खलन के समीप पहुँचते-पहुँचते भी स्खलित नही हो पाई थी।
"अभी नही माँ, अभी वक्त है। अभी तो हमें बहुत सी बातें करनी हैं, गंदी-गंदी बातें। इतनी गंदी की तुम आज बिना किसी सहारे के झड़ोगी, वादा करता हूँ अपने आप झड़ोगी और इतना झड़ोगी कि तुम्हारी बरसों की चुदास आज बिना चुदे ही शांत हो जायेगी। आज मैं तुम्हें वह सुख दूंगा जो तुम ताउम्र अपने पति से चुदकर भी कभी ले पायीं जबकि जिसकी तुम हमेशा से हकदार थीं" दृढ़ विश्वास से भरे स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की जाँघों को अपने हाथों की पकड़ से मुक्त कर बिना किसी रुकावट के उसके नंगे बदन पर पूरी लंबाई में पसारने लगता है। वैशाली की टांगों की जड़ पूर्व से खुली होने के कारण उसके बेटे का खड़ा विशाल लंड उसकी चूत की सूजी फांकों के समानांतर उनके बीचों-बीच धंस गया, उसके वीर्य से भरे टट्टे उसकी माँ के गुदाद्वार को थपथपाने लगे। दोनों की नाभि आपस में सट गयीं, बेटे की बलिष्ठ छाती के दबाव ने उसकी माँ के गोल-मटोल फूले मम्मों को पिचकाकर रख दिया। जबड़ों से जबड़े मिल गए, होंठों से होंठ, नाक से नाक चिपक गयी और साथ ही माथे से माथा टकराने लगा।
"उम्मम्! तुम्हारी जवानी तो जैसे अब खिली है मम्मी, बहुत चुदासी हो तुम ...वैसे तुम बूढ़ी कब होगी?" किसी अत्यन्त रोमांचित नाग की भांति अपनी माँ रुपी नागिन के छरहरे नग्न बदन से लिपटते ही अभिमन्यु आहें भरते हुए बुदबुदाया।
"बूढ़ी ...बूढ़ी ही तो हूँ मन्यु। इश्श्! मैं अब जवान नही रही" वैशाली ने ज्योंही अपना कथन पूरा किया, अभिमन्यु उसकी रस उगलती चूत के चिकने होंठों पर अपने कठोर लंड के बारम्बार लंबे-लंबे घर्षण देने लगता है।
"नही मन्यु ...तुमने वादा किया था, तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते। उफ्फ्! मत ...अंदर मत उफ्फ्फ्फ्फ्!" वैशाली छटपटाते हुए सिसकी, आगामी भविष्य के विचार मात्र से उसकी कामपिपासा पैश्विक होते देर ना लगी।
"क्या करूं मॉम, वादा तोड़ना तो नही चाहता मगर मजबूरन तोड़ना पड़ेगा मुझे क्योंकि तुम भी तो अपना वादा तोड़ने वाली हो। आह! चोद लेने दो मुझे अपनी माँ को, मुझे भर देने दो अपना गाढ़ा वीर्य मुझे पैदा करने वाली ...मेरी सगी माँ की चूत मे" अभिमन्यु अपने भालेनुमा दैत्य सुपाड़े से वैशाली के कुनमुनाते भंगुर को छीलते हुए बोला, साथ ही वह अपनी माँ के सिर को बिस्तर से ऊपर उठाकर उसके रेशमी मुलायम बालों के भीतर अपना संपूर्ण चेहरा घुसा देता है। उसकी कमर शीघ्र-अतिशीघ्र उसकी माँ के निचले नंगे धड़ पर स्वतः ही रगड़ खाने लगी थी, उसके गोल मांसल मम्मों को उसके बेटे की कठोर छाती ने पूर्णरूप से चपटा कर दिया था इतना चपटा की उसकी माँ के ऐंठे निप्पल उल्टे स्वयं उसीके मम्मों के मांस के भीतर दब गए थे।
"क ...कैसा वादा मन्यु, मैंने तुमसे कौन सा वादा किया जो तोड़ने वाली हूँ? इश्श्श्! अगर धोखे से भी तुम्हारा लंड मेरी चूत के अंदर घुसा मैं ...मैं रंडी कहलाऊंगी मेरे लाल, एक कुलटा बन जाऊंगी जो अपने ही सगे बेटे से चुदवाती है" वैशाली ने तड़पते हुए कहा मगर फौरन अचरज से भर उठी जब पाया कि उसकी अपनी कमर भी अपने-आप उसके बेटे की कमर से ताल मिलाते हुए जाने कब बिस्तर पर उछलने लगी थी, उसकी हथेलियां बेटे के सिर को थाम चुकी थीं और तो और बिना उस माँ के करे-धरे उसकी टांगें तक अभिमन्यु की जाँघों पर कठोरतापूर्वक कस चुकी थीं, मानो उसका उत्तेजित बदन ने उसके ममतामयी हृदय और सुलझे मस्तिष्क से पूरी तरह नाता तोड़ दिया था।
"चुदोगी तो तुम पक्का माँ, खैर कुछ देर पहले तुमने कहा था कि अब से तुम अपने बेटे ...यानी मेरे सामने हमेशा नंगी ही रहना चाहती हो। तो बताओ शाम को क्या करोगी जब तुम्हारा पति घर लौट आएगा? तब भी निभा सकोगी अपने वादे को, अपने शब्दों को?" अभिमन्यु ने विध्वंशक विस्फोट करते हुए पूछा।
"वह ...वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया था मन्यु, तुम्हारे पापा के सामने मैं कैसे..." वैशाली बेटे के अश्लील प्रश्न के जवाब में बस मिमियाकर रह जाती है। अभिमन्यु के पत्थर सामान कठोर लंड की अपनी संवेदनशील चूत के मुहाने पर रगड़, दोनों माँ-बेटे की घनी झांटों का आपसी घर्षण, उनके नग्न शरीर का एक-दूसरे से बुरी तरह गुत्थम-गुत्था होना उस माँ की शर्म को, उसकी आतंरिक लज्जा को तार-तार कर देने में पूर्णतयः सक्षम था।
"मैं आज तुम्हारे वार्डरॉब को ताला लगा देने वाला हूँ माँ, तुम अब से इस घर में नंगी रहोगी। ना ही तुम्हें ओढ़ने को चादर मिलेगी और ना ही बदन पोंछने को टॉवल मगर क्योंकि तुम मेरी माँ हो इसलिए चाहो तो अपने गहने पहन सकती हो ...हाँ! तुम्हें सैंडिल पहनने की भी छूट है, तुम भी क्या याद रखोगी किस दिलदार से पाला पड़ा है" अभिमन्यु अपनी माँ के खुले केशों से अपना चेहरा बाहर निकालते हुए बोला तत्पश्चयात सीधे उसकी नाक को अपने होंठों से चूमने लगता है।
"मम्मी चाटूँ तुम्हारी नाक को, जैसे जानवर एक-दूसरे से अपना प्यार दिखाते हैं" अपने पिछले कथन मे जोड़ वह बिना इजाज़त के वैशाली की नाक की ऊपरी सतह को अपनी गीली जीभ से चाटने लगा, जल्द ही उसकी जीभ की नोंक उसकी माँ के दोनों फूले नाथुओं के भीतर घुसने का विफल प्रयत्न शुरू कर चुकी थी।
"उइईई माँ! मुझे नही पता था कि तुम इतने गंदे निकलोगे मन्यु ही ...ही, छी:! कहाँ जीभ घुसा रहे हो तुम्हें पता भी है" बेटे की बचकानी हरकत से गुदगुदी महसूस कर अचानक से वैशाली हँसते हुए कहती है।
"नमक है तुम्हारी नाक के अंदर माँ, काश कि मैं अंदर तक इसे चाट पाता। खैर तुम्हारा पसीना भी गजब है, पता है वियाग्रा का काम कर रहा है मुझपर, लग रहा है तुम्हारा पूरा शरीर ही चाट डालूं। उफ्फ्! तुम्हारे इन मुलायम रोमों को चूसूं, इनपर पनपे पसीने की हर बूँद को अपने गले से नीचे उतार लूँ" अभिमन्यु के शब्द उसके अखंड उन्माद के सफल परिचायक थे। वैशाली प्रत्यक्ष देख रही थी कि उसके गौरवर्णी पुत्र का सम्पूर्ण चेहरा लहू सामान झक्क लाल हो गया था, उसका शारीरिक कंपन और शरीर की गरमाहट तो मानो उस माँ को जबरन विचारमग्न हो जाने पर विवश करने लगी थी।
"अपनी माँ के पसीने से उत्तेजित हो रहे हो ना तुम? लो चाहो तो मेरी बगलें चाट सकते हो, हर किसी के शरीर का सबसे अधिक पसीना उसकी काँख मे ही इकठ्ठा होता है। एक कतरा भी मत छोड़ना मन्यु, साफ कर दो अपनी माँ की काँखें। चाट लो इनके अंदर उगे सारे रोमों को, हम्म्म्! उतार लो सारा पसीना अपने गले के नीचे" एकाएक वैशाली के भीतर भी उबाल आ गया, वह जबरदस्ती अभिमन्यु के सिर को अपनी बायीं काँख के ऊपर दबाते हुए चिल्लाई।
"हे ...हे! आ ...आराम से हे ...हे! हे ...हे! आईईऽऽ पागल काटो ...काटो मत हे ...हे!" वैशाली के नीच कथन और उसकी अनुमति ने अभिमन्यु को जैसे सचमुच पागल बना डाला, वह तत्काल अपनी माँ की बायीं काँख पर टूट पड़ता है। पहले-पहल उसने काँख के चहुंओर चूमा, फिर अपनी जीभ को उसकी पूरी काँख के भीतर लपलपाते हुए वहाँ की कोमल त्वचा को रोमों सहित जोश-खरोश से चाटना शुरू कर देता है। उसकी उत्तेजना इस बात का प्रमाण थी की जल्द ही वह बेकाबू होकर अपनी माँ की काँख के भीतर अपने नुकीले दाँत गड़ाने लगा था, उसके नर्म रोमों को अपने दांतों की पकड़ से खींचने लगा था, उन्हें उखाड़ तक देने को उत्सुक हो चला था। वैशाली की हंसी, उसकी कामुक सिसियाहट, उसकी पीड़ा, उसकी अनय-विनय उस जवान मर्द के उत्साह को दूना कर रही थीं। अबतक उस नए-नवेले मर्द ने सिर्फ चुदाई का आनंद उठाया था, वह भी कुछेक बाजारू रंडियों के साथ मगर वर्तमान मे पहली बार वह महसूस कर रहा था कि सिर्फ चूत मार लेना सच्चा सुख नही, बल्कि सहवास जितना लंबा और गंदा होगा उतना ही आनंद पहुँचाता है।
"बस बहुत हुआ मन्यु, अब उठो फटाफट" ज्योंही अभिमन्यु ने अपना चेहरा अपनी माँ की बायीं काँख से बाहर निकाला वह बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोली।
"पहले मेरी फैंटेसी सुन लो मम्मी, पापा शाम को आएंगे और तबतक मुझे तुम्हें पूरी तरह से तैयार करना है। आखिर तुम जैसा गदराया माल कोई चूतिया ही होगा जो तुम्हें अपने नीचे लाने के बाद बिना कुछ किए छोड़ देगा" जवाब मे अभिमन्यु ने पुनः अपनी माँ को अपने शरीर के नीचे दबाते हुए कहा।
"तैयार? नही मन्यु ...तुम्हारे पापा के लौट आने के बाद मैं कुछ भी गलत-शालत नही करने वाली" वैशाली अपने निचले होंठ को दांतों के मध्य भींचते हुए एलान करती है।
"तुम क्या मॉम, तुम्हारे फ़रिश्ते भी अब वही करेंगे जो तुम्हारा बेटा चाहेगा। सबसे पहले आज से इस घर के अंदर तुम नंगी ही रहोगी, चाहे घर मे मैं मौजूद रहूँ या तुम्हारा पति और या फिर हम दोनों ही मौजूद रहें" पलटवार मे अभिमन्यु भी एलान करता है।
"अब तुम्हारा दिनभर का रूटीन सुनो। सुबह नहा-धोकर सीधा तुम मेरे कमरे मे आओगी और वह भी बिना अपना गीला बदन पोंछे, एकदम नंगी। समझी मम्मी, रोज सुबह तुम्हें ऐसा ही करना होगा" उसने शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ा।
"ऐसा कुछ नही होगा मन्यु, तु ...तुम्हारा दिमाग खराब तो नही हो गया ना" वैशाली की घबराहट उसके शब्दों की कपकपाहट से बयान हो रही थी।
"होगा मम्मी, जरूर होगा। अब आगे सुनो, मेरे कमरे मे आने के बाद तुम मुझे अपने गीले बालों, अपने गीले नंगे बदन की मदद से नींद से जगाने की कोशिश करोगी। तुम अपने गीले बदन को मेरे नंगे शरीर पर रगड़ोगी, अपने गीले बालों से निचुड़ती पानी की बूंदों को मेरे चेहरे पर टपकाओगी, मुझे प्यार से पुचकारोगी, पुकारोगी मगर मैं नही उठूँगा और पता है माँ इसके बाद तुम क्या किया करोगी?" अभिमन्यु ने अपनी माँ की आश्चर्य से फट पड़ी कजरारी आँखों मे झांकते हुए पूछा, उसके चेहरे की शैतानी मुस्कराहट ज्यों की त्यों जारी थी।
"मुझे नही पता और मुझे जानना भी नही है मन्यु, ऐसा कुछ नही होगा ...कभी नही होगा" वैशाली अपनी आँखों को दूसरी दिशा मे मोड़ने का प्रयास करते हुए बोली, वह नही चाहती थी कि उसके अनुमानित भय के अंशमात्र का संकेत भी उसके बेटे को पता चल सके।
"नही पता तो पूछ लो मॉम क्योंकि कल से तुम्हें वाकई वही सब करना होगा जो मैंने तुम्हारे डेली रूटीन के लिए तय किया है" अभिमन्यु अपने चेहरे को एक बार फिर अपनी माँ के चेहरे पर झुकाते हुए कहता है ताकि वैशाली की आँखों का टूटा जुड़ाव पुनः उसकी आँखों से हो सके और ऐसा हुआ भी, अनजाने डर से घबराई उसकी माँ दोबारा उसकी आँखों में झाँकने लगी थी।
"पूछो जल्दी वरना मेरी कमर के रुके झटके फिर से चालू हो जाएंगे और फिर मुझे दोष मत देना की मैंने जानबूचकर तुम्हें चोद दिया" अपने कथन की सत्यता को प्रदर्शित करते हुए अभिमन्यु सचमुच अपनी कमर को हौले-हौले झटकने लगता है और यहीं वैशाली का साहस जवाब दे गया।
"बोलो मुझे आगे क्या करना होगा?" प्रश्न पूछते ही वैशाली की आँखें डबडबा जाती हैं मगर उस माँ के अनुमान मुताबिक उसके बेटे की वासना पर शायद उसकी नम आँखों का अब कोई प्रभाव पड़ना शेष ना था।
"ह्म्म! यह सही सवाल किया ना तुमने। तो हाँ! जब मैं नींद से बाहर नही आऊंगा तब तुम मेरे बिस्तर पर चढ़ोगी और अपने घुटने मोड़कर सीधे मेरे चेहरे के ऊपर बैठ जाओगी। तुम मेरे लंड को अपने दोनों हाथों से हिलाते हुए मेरे होंठों पर अपनी चूत रगड़ना शुरू करोगी और साथ ही तब तुम्हारी गांड का छेद बिलकुल मेरी नाक से चिपका होगा। पता है मॉम इसके बाद क्या होगा?" अभिमन्यु के इस प्रश्न के जवाब में वैशाली ने मूक इशारा करते हुए फौरन अपनी पलकें झपका दीं।
"तुम्हारा पति तुम्हें कई आवाजें देगा मगर तुम उसे कोई जवाब नही दे सकोगी क्योंकि तबतक तुम भी मेरे लंड को चूसने भिड़ चुकी होगी और इसीके साथ तुम्हारा पति शोर मचाते हुए कमरे के अंदर आ जाएगा। उसे ऑफिस जाने मे देर हो रही होगी, वह तुमपर चिल्लाएगा लेकिन तुम उसकी नही सुनोगी, जीवन भर से तो सुनती चली आ रही हो। ठीक उसी वक्त मैं भी जाग जाऊंगा और तुम्हारी गुदाज गांड को थप्पड़ लगाकर तुम्हारे एसहोल को सूंघते हुए तुम्हारी चूत चूसने लगूंगा, उसे अपनी जीभ से चाटने लगूंगा, जीभ से चोदने लगूंगा और हम तुम्हारे पति ...यानी कि मेरे पापा के सामने ही एक-दूसरे के मुँह के अंदर झड़ने लगेंगे। हमें कोई शर्म नही होगी कि कमरे के अंदर हमारे अलावा भी कोई और मौजूद है, तुम मेरा गाढ़ा वीर्य पीने लगोगी और मैं तुम्हारी स्वादिष्ट रज को अपने गले के नीचे उतरने लगूंगा" बोलते-बोलते एकाएक अभिमन्यु को भी समझ नही आया कि बिना सोचे-विचारे उसने यह क्या अनर्थ कह दिया मगर तत्काल वह यह भी महसूस करता है कि स्वयं की मनघड़ंत कल्पना से उसके लंड की कठोरता जैसे कई गुना बढ़ गयी है, उसके टट्टों मे अविश्वसनीय उबाल आ गया है।
"उफ्फ्फ्! तुम्हारे पाप हम दोनों को मार नही देंगे भला?" वैशाली ने लंबी आह भरते हुए पूछा, अकस्मात् उसे भी ठीक वैसी ही कामोत्तेजना का एहसास हुआ जैसी उसके बेटे ने महसूस की थी। अपने सगे जवान बेटे के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकड़े जाने का रोमांच क्या होता है यह रोमांच वह कुछ वक्त पीछे झेल चुकी थी और अब तो अभिमन्यु ने उसे अपनी झूठी कल्पना के जरिए सचमुच उसके पति द्वारा पकड़वा दिया था, यह वाकई उस नारी, पत्नी व एक माँ के लिए अखंड रोमांच की पराकाष्ठा थी।
"उनसे कुछ ना हो पाएगा माँ। वह तुम्हारी जवानी का भार नही उठा पा रहे, तुम्हारी प्यास बुझाना अब उनके बस मे नही रहा। नामर्द हो गया है तुम्हारा पति, अब मुझे ही तुम्हें तृप्त करना होगा। एक तरह से अब तुम मुझे ही अपना पति मान लो, रात-दिन चोद-चोदकर मैं तुम्हारी जीवन भर की प्यास मिटा दूंगा" अब अभिमन्यु नही बोल रहा था, वासना उसके सर पर नंगी नाच रही थी।
"धत्त! वह नामर्द नही हैं" कहते हुए वैशाली के चेहरे पर चौड़ी मुस्कान छा गई, जिसे देख अभिमन्यु का दिल प्रसन्नता से झूम उठा। जहाँ एक स्त्री को अत्यन्त-तुरंत उसके पति की उपेक्षा, उसका प्रत्यक्ष अपमान करने वाले का मुंह नोंच लेना चाहिए था वहीं वैशाली के मुखमंडल पर सहसा मुस्कराहट छा जाना उसके कौटुम्बिक व्यभिचार पर पूर्णतयः अपनी मोहर लगा देने समान था।
"रोज सुबह नाश्ते की टेबल पर ठीक तुम्हारे पति की कुर्सी के पास खड़े होकर मैं तुम्हारी भरपूर चुदाई किया करूंगा माँ, तुम टेबल पर नंगी लेटी हुई अपनी कामुक सिसकियों से मुझे उकसाया करोगी और मैं तुम्हारे पति की शर्मिंदा आँखों मे झांकते हुए तुम्हारी चूत के भीतर ऐसे करारे धक्के मारा करूंगा, जिससे पूरी टेबल हिल जाया करेगी। ओह! मम्मी कितना मजा आएगा जब तुम बेशर्मों की तरह चीख-चीखकर अपने बेटे का नाम लेते हुए, अपने पति की आँखों के सामने झड़ा करोगी और ...और मैं भी उसी वक्त तुम्हारी चूत की गहराइयों मे अपना वीर्य उड़ेल दिया करूंगा" कहकर अभिमन्यु अपनी दायीं हथेली की मदद से अपने कठोर लंड का बेहद सूजा सुपाड़ा अपनी माँ की चूत के रस उगलते होंठों के ठीक बीचों-बीच तेजी से रगड़ने लगता है, उसे पक्का यकीन हो चला था कि अब उसकी माँ ताउम्र उसके बस मे रहने वाली थी।
"मजा आएगा ना मम्मी, जब तुम रोज अपने नामर्द पति के सामने अपने बेटे से चुदवाया करोगी। बोलो मम्मी मजा आएगा ना तुम्हें" उसने अपने सुपाड़े के घर्षण को तीव्र करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।
"हाँ मन्यु मजा ...नही! नही! उन्घ्! कोई मजा नही। उफ्फ्फ्! मान जाओ" वैशाली को पुनः अपना चरम महसूस हुआ और वह फौरन अपनी चूत को अपने बेटे के लंड पर ठोकने लगती है, इस विचार से कि यदि वह अब नही झड़ पाई तो कहीं पागल ना हो जाए। यह ख्याल ही बहुत उत्तेजक था कि वह वास्तविकता मे अपने पति की उपस्थिति में अपने बेटे से चुदवा रही है और उसे इस नीच, पापी कार्य को करने में जरा सी भी शर्म महसूस नही हो रही।
"सोचो माँ कितना मजा आएगा जब तुम घर आए मेहमानों के स्वागत के लिए नंगी ही घर का दरवाज़ा खोला करोगी। उन्हें नंगी ही चाय-नाश्ता करवाओगी, अपने मम्मों को घड़ी-घड़ी उछाला करोगी, जानबूचकर अपनी चूत को खुजाया करोगी, उनके सामने ठुमक-ठुमक कर चला करोगी। हम हर मेहमान को तुम्हारा नंगा मुजरा भी दिखवाया करेंगे, हम अनुभा ...अनुभा को भी इसमे शामिल करेंगे, तुम्हारा दामाद भी मौजूद होगा। तुम माँ-बेटी के छिनालपन की हम प्रतियोगिता रखेंगे" अभिमन्यु बोलता ही जाता अगर उसकी माँ की चीखों से पूरा बैडरूम नही गूँज गया होता।
"रंडी ...रंडी बनाना है ना अपनी माँ को, उन्घ्! अपनी बहन को भी इसमे शामिल करना है। ओह! फिर चो ...चोदो मुझे, चोदो अपनी माँ को ...आईईऽऽ! चोदो मुझे उफ्फ्फ्! और बन जाओ मादरऽऽचोदऽऽऽऽ" वैशाली की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले, उसका गला चीखते-चीखते रुंध गया।
"पता तो चले सभी रिश्तेदारों को की तुम माँ-बेटी कितनी बड़ी छिनाल हो। यह संस्कार, मान-मर्यादा तो एक ढोंग है ...सच तो यह है माँ की तुम मर्दों से क्या, जानवरों तक से चुदवा लो। कोठे पर बेच देना चाहिए तुम रंडी माँ-बेटी को और तुम्हारे जिस्म की कमाई से ही हमारे घर का चूल्हा जलना चाहिए। तुम्हें पड़ोसियों, दुकानदारों, दूधवाले, सब्जीवाले, रद्दीवाले, पपेरवाले, धोबी ...यहाँ तक कि अपने बेटे-भाई के दोस्तों तक से चुदना चाहिए और हम बाप-बेटे तुम्हारी चुदाई को देखकर मुट्ठ मारेंगे" इसबार भी खलल पड़ा और अभिमन्यु पुनः बोलते-बोलते रुक गया मगर इसबार का खलल वैशाली की चीख के साथ उसके थप्पड़ भी थे जो वह पूरी ताकत से अपने बेटे के गालों पर अपने दोनों हाथों से जड़ती जा रही थी।
"बेशर्म! तू पैदा होते ही मर क्यों नही गया हरामजादे। तेरे प्यार की वजह से तेरी माँ होकर भी मैं तेरे नीचे नंगी दबी पड़ी हूँ और तू है जो मुझे, मेरी बेटी और मेरे पति को गाली पर गाली दिए जा रहा है, हमें अपमानित कर रहा है। थू है तुझपर थूऽऽ!" रोते हुए अपने कथन को पूरा कर सत्यता मे वैशाली ने बेटे के मुँह पर थूक दिया और बिस्तर से उठने का प्रयत्न करने लगी मगर वह हिल भी ना सकी क्योंकि अभिमन्यु के लंड का घर्षण अब इतने वेग से उसकी चूतमुख पर होने लगा था कि वह उठते-उठते अपने आप दोबारा बिस्तर पर गिर पड़ी थी।
"अब तो झड़ जाओ माँ, आखिर किस मिट्टी की बनी हो तुम" यहाँ अभिमन्यु का टोकना हुआ और वहाँ वैशाली की गर्दन अकड़ जाती है।
"आईऽऽ! हट ...हट जाओ मेरे ऊपर से, उफ्फ्! लानत है तुम जैसे बेटे पर। मैं आई मन्युऽऽ ...मैं आई" जोरदार स्खलन को पाते हुए वैशाली की गांड के छेद और उसके निप्पलों मे भी सनसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ जाती है।
"झड़ो माँ खुल कर झड़ो, इसीलिए मैंने खुद को कमीना कहा था। मैं तुम्हारा बेटा हूँ कोई दल्ला नही जो दूसरों के सामने अपने घर की अमानत को परोसने में सुख महसूस करते हैं, काट कर ना फेंक दूँ जो तुमपर या अनुभा पर गलत नजर रखते हों। मैं पापा से भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना की तुम और अनुभा करते हो मगर आज तुम्हें खुलकर झड़वाने की कोशिश में शायद मैं ही पापी बन गया, अपनी माँ की नजरों मे गिर गया। वाकई लानत है मुझपर जो मैंने तुम्हारे और अनुभा के बारे मे इतना गलत सोचा, माफ करना माँ मैं जो करना चाहता था वह कर ना सका, सब उलटा-पुलटा हो गया" कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को उसके स्खलन के बीचों-बीच छोड़ उसके नग्न बदन से करवट लेते हुए बिस्तर से नीचे उतरने लगा मगर इससे पहले की उसके कदम फर्श को छू भी पाते वैशाली उसकी दायीं कोहनी को बलपूर्वक थाम लेती है।
"सजा ...सजा सुने बैगर तुम कहीं नही जा सकते मन्यु, उफ्फ्फ्! यह ड्रामा भी तुम्हें अभी करना था। देख तो लो कि तुम्हारी माँ किसी तरह झड़ती है, उन्घ्! करीब से देखो तुम्हारी माँ ने कितनी ज्यादा रज उगली है" झड़ते हुए भी वैशाली के मुंह से शब्दों का लगातार बाहर आना अभिमन्यु के आश्चर्य का केंद्रबिंदु बन गया और ना चाहते हुए भी उसकी आँखें उसकी माँ की तीव्रता से रस उगलती चूत से चिपकी रह जाती हैं। उसकी माँ के पंजे ऐंठ गए थे, कमर स्वतः ही बिस्तर पर उछल रही थी, जाँघों का मांस ठोस हो गया था, बाएं हाथ की मुट्ठी भिंच चुकी थी।
"तुमसे नाराज नही हूँ मन्यु पर मैं वाकई डर गयी थी" स्खलन समाप्ति पर एकाएक वैशाली की जोरदार रुलाई फूट पड़ी, अभिमन्यु भी जान रहा था कि उसकी माँ को उसके इस बेतुके, बेवक़्त स्खलन का कोई विशेष आनंद नही पहुँच सका था और इसी विचार से अपना सिर खुजलाते हुए वह पुनः अपनी माँ के समीप लौट आता है।
"तुम रोती हो तो मेरा दिल जलने लगता है माँ। तुम डरा मत करो, मेरे रहते कोई भेन का लौड़ा तुम्हें चोट नही पहुंचा सकता ...तुम यह अच्छे से जानती हो" ढाढ़स बंधाते हुए अभिमन्यु पुनः अपनी माँ के ऊपर पूर्व की भांति पसर जाता है।
"तुम ही डराते हो और कहते हो यह कर दूँगा ...वह कर दूँगा आज मेरा मन खट्टा हो गया मन्यु" वैशाली प्रेमपूर्वक बेटे के गालों पर अपनी नाजुक उंगलियां फेरते हुए बोली, उसके थप्पड़ों ने सचमुच अभिमन्यु के गालों को सुर्खियत प्रदान कर दी थी।
"क्या कहा, तुम्हारा खट्टा खाने का मन है मगर हमने तो अभी चुदाई की शुरुआत की ही नही। सच-सच बताओ माँ, किसका पाप है यह" अभिमन्यु का अपनी माँ को हँसाना एकबार फिर से चालू हो गया।
"मारूंगी दोबारा से" वैशाली नाक सुड़कते हुए तुनकी।
"अरे वाह माँ! अब चाटूँ तुम्हारी नाक को, अब तो बह रही है" कहते हुए अभिमन्यु ने ज्योंही अपना चेहरा अपनी माँ के चेहरे पर झुकाया, वह अपने होंठों पर जीभ फेरने लगी। इशारा तगड़ा था और निमंत्रण स्वीकारने योग्य भी, पल भर में माँ बेटे दीर्घ कालीन चुम्बन में खो जाते हैं।