उसी दिन देर रात तक आतिफ भाईजान लौट आते हैं। रात को मैं ही जागकर उन्हें खाना परोसती हूँ। बहुत देर तक न मैं उनसे नज़र मिला पा रही थीं न वो मुझसे। वो चाहते तो अब्बू को आकर सब बता सकते थे, मुझे शर्मिंदा कर सकते थे पर वो चुप रहे। खाना खाते गए और बिल्कुल आखिर में बोले कि तुम्हारी पसंद खूबसूरत थी, शेरवानी बहुत प्यारी पसंद की तुमने। बोलते बोलते वो ये भी बोल गए कि उन्होंने ने तो अंडरगारमेंट्स भी तुम्हारे फेवरेट कलर के लिए! ये सुनकर मैं लाल हो गयीं, समझ न आया उन्होंने अभी ये क्या बोला? एक दम से एक गरम एहसास पेट में उमड़ा और पूरे जिस्म में फैल गया। मैं उनसे नज़रें मिला के बात कर रहीं थीं पर अंडरगारमेंट्स की बात सुनते ही नज़रें खुद ही झुक गयीं, ऊपर नज़रें उठा के देखा तो वो भी मुझसे नज़रें चुराने लगे जैसे उन्हें भी एहसास हो गया था कि उन्होंने ने बहुत खुलकर ही बेशर्मी से मेरे सामने ये बात बोल दी। पता नहीं मन करा पूछ लूं की अंडरगारमेंट्स ब्लू कलर के लिए या ब्लैक? पर ज़ुबान को चलने से दिमाग ने रोक लिया मानो दिल को समझा रहा हो कि ज़ुबान पे हिजाब चेहरे के नक़ाब से ज़्यादा ज़रूरी है। वैसे भी आजतक ऐसी बातें कभी किसी घर के मर्द के सामने नहीं की, मैं तो खुद अपने उंडेरगार्मेंट्स नहीं लेने जाती, हमेशा अम्मी ही ला देती हैं, पता नहीं कैसे वो दुकानदार से बात करने की हिम्मत उठा लेती होंगी। खाना खत्म करके जब वो जाने लगे तो कहने लगे मेरे कपड़े भी तुम ही पसंद करना, मेरी शादी में भी तुमसे ही करवाऊंगा, मुझे नहीं पता था कि इतनी खूबसूरत पसंद है तुम्हारी। पता नहीं वो ऐसा क्यों बोले और जाते जाते बोले कि शायद परसों तुम्हें खरीदारी कराने कोई उनके घर से आएगा। मैं दरवाज़ा बंद ही कर रहीं थीं की उन्होंने कहा कि वो अब्बू के फोन से मैसेज डिलीट कर देना, ऐसी कोई बेपर्दिगी की बात नहीं पर शायद उन्हें अच्छा न लगे। मैंने तुरंत ही बोल दिया कि वो मैंने पहले ही डिलीट कर दिए थे और शब्बखैर कहके दरवाज़ा बंद कर अपने कमरे में सोने चल दीं। थोड़ा चलीं ही थीं कि दिमाग में आया की ये क्या मैंने बोल दिया, भाई भी सोंचेंगे कितनी चालाक हूँ मैं इन सब बातों में, शायद वो सोचें कि मैं अब्बू से और बातें भी छुपाती हूँ। हाय अल्लाह अब तो पूरी शब मेरी खैर नहीं, एक तरफ मेरे होने वाले उनका खूबसूरत एहसास और दूसरी तरफ भाई की जानकारी में मेरी हरकत। कमरे में जाते ही हिजाब खोलती हूँ, पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि कोई देख रहा है। आंखें चारों ओर घूमती हैं, कोई नहीं है। फोन पे उनसे बात करने के बाद ऐसा ही लग रहा है कि मैं अकेली नहीं हूं, कोई चुपके से मुझे घूर रहा है। तभी पता नहीं क्यों ज़ेहन मैं आता है कि आने वाले दिन में तो वो अपने हाथों से ही मेरा हिजाब खोलेंगे। हाय अल्लाह! छी! कैसा पागल वाला ज़हन हो रहा है। इससे ध्यान हटाने के लिए सोचती हूँ कि उनके घर से कौन आएगा शॉपिंग कराने, उनकी तो कोई बहन भी नहीं है। ये सोचते सोचते कब नींद आ जाती है पता ही नहीं चला।
दो दिन बाद लड़के वालों के यहां से फोन आता है कि मुझे शॉपिंग कराने आज कोई लेने आ जायेगा गाड़ी से। उनकी तरफ से कुछ पक्का नहीं था कि कौन आएगा, बात लड़के की अम्मी की चल रही थी कि वो आएंगी क्योंकि उनकी कोई बहन नहीं थी पर कुछ पक्का न था। मेरी अम्मी ने सोचा था कि वो मेरे साथ चली चलेंगी चाहे कोई भी आये पर आज सुबह से उनकी तबियत खराब हो गयी, पेट में दर्द और उल्टी होने लगी। तभी फ़ोन आया कि लड़के वाले गाड़ी भेज रहे हैं ड्राइवर के साथ, वो पहले मुझे लेगा घर से और बाद में लड़के की ममेरी बहन हमें बीस मिनट के रास्ते में मिल जाएगी। आधे घंटे में गाड़ी आ जाती है। मुझे अकेले जाने में डर सा लगता है, मैं अम्मी से कहती हूँ। वो तो चल देती मेरे साथ पर उनकी तबियत खराब हो गयी, अब्बू शादी के बाकी इनतेज़ाम करने पहले ही बाहर जा चुके थे। अम्मी मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए कहती हैं कि थोड़े दिन बाद तो तुम्हें अकेला ही जाना होगा उनके यहाँ और वैसे भी बीस मिनट के रास्ते में उनकी बहन का साथ तो हो जाएगा ही।
मैं हिम्मत करके गाड़ी में बैठती हूँ, मेरी नज़र ड्राइवर पे पड़ती है वो पीछे मुझे ही देख रहा था। मैं दुपट्टा और हिजाब चेक करती हूँ, दोनों अपनी जगह ही थे। अम्मी बैठते हुए मुझसे कहती हैं कि बहन से मिल जाने पे फोन करदूँ। गाड़ी चल देती है। गाड़ी में पीछे बैठे मैं साइड की विंडो से बाहर देख रहीं थी कि तभी मेरी नज़र गाड़ी में आगे लटके शीशे पे जाती है। दो काली आंखें शीशे में लगातार मुझे ही टकटकी लगाए देख रहीं थी। मैं फिर से बाहर देखती हूँ, पर थोड़ी देर बाद चुपके से तिरछी नज़र से फिर से आगे लटके शीशे में देखती हूँ। वो काली आंखें अब भी मुझे ही घूर रहीं थी। मैं बेचैन सी होती हूँ। गाड़ी में सन्नाटा है, केवल पहियों के घूमने की आवाज़ आ रही है। मैं अपने हिजाब पे हाथ रख चेक करती हूँ कि कहीं कुछ सरक तो नहीं गया जो इसकी नज़र मुझी पर है, ये गाड़ी चला रहा है या मुझे देख रहा है। आजतक मुझे समझ न आया जब भी मैं बाहर निकलती हूँ तो लोग मुझे ऐसे क्यों लगातार घूरते हैं मानो मुझे अपनी नज़रों से नंगा कर देना चाहते हो। मैं हाथ को सिर पे सहलाते हुए पाती हूँ कि मेरी बाल की एक लत बाहर आ गई है। वल्लाह तो क्या ये इसलिए तो नहीं घूरे जा रहा। मैं हल्का सा नीचे सिर करके बालों को अंदर हिजाब के खोंसती हूँ। मेरा दुपट्टा सरक जाता है और तभी गाड़ी में ज़ोर से ब्रेक लगता है, मैं आगे खिसक जाती हूँ दुपट्टा पूरा ही मेरे सीने के उभारों से गिरकर मेरी गोद में गिरता है। मैं तुरंत उसे अपने सीने पे चढ़ाती हूँ, न चाहते हुए भी बोल देती हूँ भईया ज़रा आगे देख के चलाओ। उधर से कोई आवाज़ नहीं आती, शीशे में उसकी काली आंखें अब भी मेरी तरफ ही टकटकी लगाए हैं। तभी गाड़ी मोड़ लेती है, एक दम से एक गेट के पास रुकती है। एक जीन्स टी-शर्ट पहने औरत गाड़ी का दरवाजा खोलती है और ड्राइवर से बोलती है आज तुमने आने में देर कर दी। वो मेरे बगल में बैठती है। आँखों से काला चश्मा उतारकर मुझसे कहती है- हाय! मैं निशा हूँ, उज़ैर सिर के आफिस में काम करती हूँ। उनकी बहन की तबियत खराब हो गयी तो उन्होंने मुझे आपके साथ जाने को बोला है। मैं उसे ऊपर से नीचे देख ही रहीं थी कि वो अपना हाथ मेरी तरफ करती है, मैं भी हाथ बढ़ा कर मिलाती हूँ। वो मुझसे कहती है तो चलें? मैं हाँ में सिर हिलती हूँ। वो कहती है जल्दी चलो ड्राइवर वैसे भी टाइम से लेट कर दिए हो। वो फोन निकाल कान में लगाती है और कहती है हेलो उज़ैर मैं कार में बैठ गईं हूँ और अफराह मेरे साथ है, हम दोनों शॉपिंग के लिए निकल ही रहे हैं। तभी मेरे मन में खयाल आता है मैंने तो इनको अपना नाम बताया नहीं और न ही इन्होंने मुझसे पूछा, फिर? और मुझे तो इन्होंने अपना तार्रुफ़ करते हुए कहा कि ये उज़ैर सिर के आफिस में काम करती हैं और अभी कॉल पे सिर्फ उज़ैर? क्या ये मेरे उनसे बात कर रही थीं? तभी मेरा फोन बजता है, अम्मी कालिंग लिख के आ रहा है। मैं फोन उठती हूँ और अम्मी पूछती हैं कि वो मिली तो मैं हाँ का जवाब देती हूँ। इससे पहले मैं उनको बता पाती की कौन मिली अम्मी ये कहके फोन रख देती हैं कि अल्लाह का नाम लेकर जाओ और अच्छे से कपड़े लेकर आओ। फोन रखने के बाद मेरी नज़र फिर से शीशे पे पड़ती है वो काली आँखें अब भी मुझे ही देख रहीं हैं। मैं निशी की तरफ देखती हूँ। कितनी भद्दा लिबास पहनी है। इतनी बड़े गले का टी शर्ट जिसमें उसकी आबरू की नुमाइश हो रही थी और वो चैन से बैठी थी। इधर मैं हिजाब करके बैठीं हूँ और ये ड्राइवर मुझे बेचैन कर रहा है। इसकी आंखें मेरे ऊपर से क्यों नहीं हट रहीं?
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