कल रात की घटना के कारण मदनलाल सुबह से बुझा -२ सा था। इधर काम्या भी प्यासी रह जाने के कारन उदास सी थी लेकिन उसे बाबूजी की उदासी का कारण समझ नहीं आ रहा था। कल तक बाबूजी हर मौके पर उसे छेड़ रहे थे जबकि आज चुप थे। सारा दिन ऐसे ही बीत गया रात भी आई लेकिन मदनलाल आज तांक झाँक करने नहीं गया। सुनील की जिंदगी पर उसे दया आ रही थी। तीसरे दिन सुनील वापस मुंबई चला गया लेकिन घर में सब को उदास कर गया। सबकी उदासी का कारण अलग -२ था। माँ बेटे के जाने कारण दुखी थी बाप सुनील की कमज़ोरी और काम्या का उसके प्रति रूखा बर्ताव देख कर दुखी था तो काम्या अपनी अतृप्त प्यास के कारण दुखी थी। सुनील के जाने के बाद चार दिन बीत गए लेकिन मदनलाल ने पहल नहीं की। काम्या बाबूजी के इस बदले व्यवहार से हैरान थी उसने तो सोचा था कि सुनील के जाते ही बाबूजी भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ेंगे लेकिन बाबूजी एकदम शांत थे। पांचवे दिन सुबह -२ उनकी पड़ोसन आ गई और शांति को अपने साथ बाजार ले गई और कह गई कि हमें आने में तीन चार घण्टे लग जायेंगे।
मांजी के जाने के बाद काम्या नहाने को बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद बहु के कमरे में मोबाइल बजने लगा।काफी देर बजने के बाद मदनलाल ने जाकर देखा तो बहु की माँ का फ़ोन था पहले तो उसने रिसीव करने की सोचा फिर रहने दिया और वापस हाल में आ गया। थोड़ी देर बाद समधन का फ़ोन मदनलाल के मोबाइल में आ गया।
मदनलाल :- हां। नमस्कार। कैसे हैं आप।
समधन :-- हाँ जी। हम तो बिलकुल ठीक हैं और आप।
मदनलाल :-- बस आपकी कृपा से यहाँ भी सब ठीक है। बताइये कैसे याद किया।
समधन :-- जी ऐसे ही काम्या को फ़ोन लगा रही थी लेकिन वो उठा ही नहीं रही। घर में नहीं है क्या ?
मदनलाल :-- है तो घर में ही ,शायद छत में चली गई हो। खैर मैं बहु को बता दूंगा।
कॉल ख़त्म होने के बाद मदनलाल कुछ देर बैठा रहा फिर बहु को बताने उसके कमरे की ओर चल दिया। बहु के कमरे के अंदर कदम रखते ही उसने जो देखा तो वो सांस लेना ही भूल गया। अंदर काम्या केवल ब्रा और पैंटी पहने आईने के सामने खड़ी थी और अपने गीले बालों में कँघी कर रही थी लाल कलर की पैंटी और ब्रा में वो साक्षात कामदेवी लग रही थी। संगमरमर के सामान चिकना और मख्खन के सामान उसका गोरा बदन मदनलाल के होश उड़ाए दे रहा था। चूँकि मम्मी बाजार गई थी और बाबूजी आजकल एकदम शांत थे और उनकी तरफ से कोई अंदेशा नहीं था इसलिए वो लापरवाह होकर ब्रा पेंटी में ही कँघी कर रही थी। मदनलाल आँख फाड़े बहु की सुंदरता को निहारने लगा। लम्बी पतली सुराहीदार गर्दन, नाजुक से कंधे ,चिकनी छरहरी पीठ ,पतली बलखाती कमर और उसके नीचे क़यामत। सचमुच काम्या"" कमर के नीचे कयामत"" थी। उसकी गोल मटोल -भरी २ गाण्ड ही असल में सारे दंगे फसाद की जड़ थी। और उसके नीचे लम्बी -२ मांसल केले के तने सी चिकनी जांघे। काम्या की जांघे इतनी सेक्सी थी की मदनलाल घण्टों उन्ही को चाट चूम सकता था। मदनलाल होशो हवास खो धीरे-२ बहु के एकदम पास आ गया। अब उसे काम्या के जिस्म से निकलने वाली कमल के फूल की सी सुगंध भी आ रही थी। उत्तेजना में उसकी साँसे गहरी होती चली गई। साँसों की आवाज़ से काम्या को पीछे किसी के होने का अहसास हुआ और वो पलटी। बाबूजी को देखते ही उसके मुंह से निकला - -
काम्या :--- बाबूजी आप ! यहाँ ! कहते हुए अपने उरोज़ों को ढकने का प्रयास किया जिन्हे देख कर बाबूजी लार टपका रहे थे।
मदनलाल :-- वो वो sss आपकी माँ का फ़ोन आया था कह रही थी कि तुम फ़ोन नहीं उठा रही हो।
काम्या :-- जी हम नहाने चले गए थे। और काम्या ने पास पड़ा टॉवल उठा लिया। मदनलाल ने झटके से टॉवल छीन लिया और बोले
मदनलाल :-- रहने दो बहु तुम ऐसे ही बहुत अच्छी लग रही हो। मदनलाल ने काम्या अपनी बाँहों में दबोच लिया। अगर एक साधारण सी दिखने वाली स्त्री भी ब्रा पेन्टी में सामने आ जाये तो कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है फिर बहु काम्या तो instant erection की गारंटी थी। पिछले हफ्ते भर से उसके मन में चल रहा वैराग्य हवा हो गया। जब विश्वामित्र जैसे तपस्वी मेनका को देख पिघल गए तो मदनलाल तो वैसे भी शौकीन तबियत का था। उसने बहु की ब्रा पकड़ा और एक झटके में फाड़ कर नीचे फेेंक दी। काम्या शर्म और डर से कांपने लगी। मदनलाल ने उसके मखमली बदन को उठा कर बेड में पटक दिया। अब काम्या बिस्तर चित पड़ी थी उसके शरीर पर केवल छोटी सी पेंटी थी जिससे उसकी दो तिहाई गाण्ड बाहर निकली हुई थी। मदनलाल बहु के उपर आ गया और उसके दोनों मम्मों को बेदर्दी से मसलने लगा। काम्या के मुख से दर्द और मजे की मिली जुली सिसकारी निकलने लगी। बहु की गोरी बेदाग़ चूचियाँ देख कर मदनलाल बोला -
मदनलाल :-- बहु , चूची में कोई नाख़ून या दाँत का निशान नहीं है वो उल्लू इनको छूता नहीं था क्या? काम्या ने लजाते हुए कहा
काम्या :-- वो बहुत प्यार से आहिस्ता से करते हैं । आपके जैसे जालिम थोड़े ही हैं
मदनलाल :-- अच्छा एक बात बताओ आहिस्ता से अच्छा लगता है या हमारा जालिमपना। ससुर की बात सुनकर काम्या ने आँखे बंद करते हुए कहा
काम्या :-- मर्द अगर प्यार करते समय थोड़ा जालिम भी हो जाए तो बुरा नहीं लगता।
मदनलाल :-- ठीक है तो हम जालिम हो जाते हैं। और उसके बाद मदनलाल काम्या के पूरे बदन पर दाँत गड़ाने लगा। उसके हाथ लगातार बहु के मम्मो को दबा रहे थे मसल रहे थे गूंथ रहे थे। ससुर की इन हरकतों से काम्या के बदन में ज्वालामुखी भड़क उठा। वो जोर जोर से सिसकारी ले रही थी। मदनलाल बहु की कमज़ोरी जानता था कि बूब्स बहु का सबसे वीक पॉइंट है इसलिए वो एक मिनिट भी उन्हें नहीं छोड़ रहा था। वो बूब्स को ऐसे चूस रहा था जैसे सचमुच उसमे से दूध निकल रहा हो। काम्या को अब बर्दास्त करना मुश्किल हो गया। उसने अपनी कमर उठा ली और बदन धनुषाकार बना दिया। जब मदनलाल ने देखा कि लोहा पूरी तरह गरम हो गया है तो उसने एक कदम आगे बढ़ने की सोची। वो बहु के दोनों तरफ पैर कर के बैठा और अपनी लुंगी हटा दी। लुंगी हटते ही कोबरा फुंफ़कारता हुआ बाहर आ गया और बहु के चेहरे के पास डोलने लगा। आँख के सामने बाबूजी का लण्ड को देखते ही काम्या स्तब्ध रह गई।
मदनलाल ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपना हथियार पकड़ा दिया। लम्बा मोटा गरम मांस का वो खम्बा हाथ में आते ही काम्या के शरीर में चींटी सी रेंगने लगी। डर के मारे बहु ने अपना हाथ हटा दिया। तब मदनलाल बोला
मदनलाल :-- बहु लो पकड़ो इसे। ये तुम्हारा प्यार पाने के लिए तड़प रहा है। काम्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसके संस्कार उसे पराये मर्द के उस अंग को छूने से मना कर रहे थे दूसरी तरफ उसका प्यासी जवानी ,पति से अतृप्त जीवन उसे कह रहा था कि थाम ले बाबूजी के अंग को। मन कुछ कह था तो तन कुछ और कह रहा था। इतिहास गवाह है कि जवां उम्र में इंसान हमेशा तन की सुनता है। काम्या का तन भी धीरे-२ मन पर हावी होता जा रहा था। बाबूजी ने बहु को दुविधा में देखा तो एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ कर उसके हाथ में अपनी A K 47 थमा थी । काम्या ने इस बार अपना हाथ नहीं हटाया बल्कि कस कर थाम लिया। अपने लण्ड पर बहु के हाथ का कसाव महसूस करते ही मदनलाल का पूरा शरीर झनझना गया।
मांजी के जाने के बाद काम्या नहाने को बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद बहु के कमरे में मोबाइल बजने लगा।काफी देर बजने के बाद मदनलाल ने जाकर देखा तो बहु की माँ का फ़ोन था पहले तो उसने रिसीव करने की सोचा फिर रहने दिया और वापस हाल में आ गया। थोड़ी देर बाद समधन का फ़ोन मदनलाल के मोबाइल में आ गया।
मदनलाल :- हां। नमस्कार। कैसे हैं आप।
समधन :-- हाँ जी। हम तो बिलकुल ठीक हैं और आप।
मदनलाल :-- बस आपकी कृपा से यहाँ भी सब ठीक है। बताइये कैसे याद किया।
समधन :-- जी ऐसे ही काम्या को फ़ोन लगा रही थी लेकिन वो उठा ही नहीं रही। घर में नहीं है क्या ?
मदनलाल :-- है तो घर में ही ,शायद छत में चली गई हो। खैर मैं बहु को बता दूंगा।
कॉल ख़त्म होने के बाद मदनलाल कुछ देर बैठा रहा फिर बहु को बताने उसके कमरे की ओर चल दिया। बहु के कमरे के अंदर कदम रखते ही उसने जो देखा तो वो सांस लेना ही भूल गया। अंदर काम्या केवल ब्रा और पैंटी पहने आईने के सामने खड़ी थी और अपने गीले बालों में कँघी कर रही थी लाल कलर की पैंटी और ब्रा में वो साक्षात कामदेवी लग रही थी। संगमरमर के सामान चिकना और मख्खन के सामान उसका गोरा बदन मदनलाल के होश उड़ाए दे रहा था। चूँकि मम्मी बाजार गई थी और बाबूजी आजकल एकदम शांत थे और उनकी तरफ से कोई अंदेशा नहीं था इसलिए वो लापरवाह होकर ब्रा पेंटी में ही कँघी कर रही थी। मदनलाल आँख फाड़े बहु की सुंदरता को निहारने लगा। लम्बी पतली सुराहीदार गर्दन, नाजुक से कंधे ,चिकनी छरहरी पीठ ,पतली बलखाती कमर और उसके नीचे क़यामत। सचमुच काम्या"" कमर के नीचे कयामत"" थी। उसकी गोल मटोल -भरी २ गाण्ड ही असल में सारे दंगे फसाद की जड़ थी। और उसके नीचे लम्बी -२ मांसल केले के तने सी चिकनी जांघे। काम्या की जांघे इतनी सेक्सी थी की मदनलाल घण्टों उन्ही को चाट चूम सकता था। मदनलाल होशो हवास खो धीरे-२ बहु के एकदम पास आ गया। अब उसे काम्या के जिस्म से निकलने वाली कमल के फूल की सी सुगंध भी आ रही थी। उत्तेजना में उसकी साँसे गहरी होती चली गई। साँसों की आवाज़ से काम्या को पीछे किसी के होने का अहसास हुआ और वो पलटी। बाबूजी को देखते ही उसके मुंह से निकला - -
काम्या :--- बाबूजी आप ! यहाँ ! कहते हुए अपने उरोज़ों को ढकने का प्रयास किया जिन्हे देख कर बाबूजी लार टपका रहे थे।
मदनलाल :-- वो वो sss आपकी माँ का फ़ोन आया था कह रही थी कि तुम फ़ोन नहीं उठा रही हो।
काम्या :-- जी हम नहाने चले गए थे। और काम्या ने पास पड़ा टॉवल उठा लिया। मदनलाल ने झटके से टॉवल छीन लिया और बोले
मदनलाल :-- रहने दो बहु तुम ऐसे ही बहुत अच्छी लग रही हो। मदनलाल ने काम्या अपनी बाँहों में दबोच लिया। अगर एक साधारण सी दिखने वाली स्त्री भी ब्रा पेन्टी में सामने आ जाये तो कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है फिर बहु काम्या तो instant erection की गारंटी थी। पिछले हफ्ते भर से उसके मन में चल रहा वैराग्य हवा हो गया। जब विश्वामित्र जैसे तपस्वी मेनका को देख पिघल गए तो मदनलाल तो वैसे भी शौकीन तबियत का था। उसने बहु की ब्रा पकड़ा और एक झटके में फाड़ कर नीचे फेेंक दी। काम्या शर्म और डर से कांपने लगी। मदनलाल ने उसके मखमली बदन को उठा कर बेड में पटक दिया। अब काम्या बिस्तर चित पड़ी थी उसके शरीर पर केवल छोटी सी पेंटी थी जिससे उसकी दो तिहाई गाण्ड बाहर निकली हुई थी। मदनलाल बहु के उपर आ गया और उसके दोनों मम्मों को बेदर्दी से मसलने लगा। काम्या के मुख से दर्द और मजे की मिली जुली सिसकारी निकलने लगी। बहु की गोरी बेदाग़ चूचियाँ देख कर मदनलाल बोला -
मदनलाल :-- बहु , चूची में कोई नाख़ून या दाँत का निशान नहीं है वो उल्लू इनको छूता नहीं था क्या? काम्या ने लजाते हुए कहा
काम्या :-- वो बहुत प्यार से आहिस्ता से करते हैं । आपके जैसे जालिम थोड़े ही हैं
मदनलाल :-- अच्छा एक बात बताओ आहिस्ता से अच्छा लगता है या हमारा जालिमपना। ससुर की बात सुनकर काम्या ने आँखे बंद करते हुए कहा
काम्या :-- मर्द अगर प्यार करते समय थोड़ा जालिम भी हो जाए तो बुरा नहीं लगता।
मदनलाल :-- ठीक है तो हम जालिम हो जाते हैं। और उसके बाद मदनलाल काम्या के पूरे बदन पर दाँत गड़ाने लगा। उसके हाथ लगातार बहु के मम्मो को दबा रहे थे मसल रहे थे गूंथ रहे थे। ससुर की इन हरकतों से काम्या के बदन में ज्वालामुखी भड़क उठा। वो जोर जोर से सिसकारी ले रही थी। मदनलाल बहु की कमज़ोरी जानता था कि बूब्स बहु का सबसे वीक पॉइंट है इसलिए वो एक मिनिट भी उन्हें नहीं छोड़ रहा था। वो बूब्स को ऐसे चूस रहा था जैसे सचमुच उसमे से दूध निकल रहा हो। काम्या को अब बर्दास्त करना मुश्किल हो गया। उसने अपनी कमर उठा ली और बदन धनुषाकार बना दिया। जब मदनलाल ने देखा कि लोहा पूरी तरह गरम हो गया है तो उसने एक कदम आगे बढ़ने की सोची। वो बहु के दोनों तरफ पैर कर के बैठा और अपनी लुंगी हटा दी। लुंगी हटते ही कोबरा फुंफ़कारता हुआ बाहर आ गया और बहु के चेहरे के पास डोलने लगा। आँख के सामने बाबूजी का लण्ड को देखते ही काम्या स्तब्ध रह गई।
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मदनलाल ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपना हथियार पकड़ा दिया। लम्बा मोटा गरम मांस का वो खम्बा हाथ में आते ही काम्या के शरीर में चींटी सी रेंगने लगी। डर के मारे बहु ने अपना हाथ हटा दिया। तब मदनलाल बोला
मदनलाल :-- बहु लो पकड़ो इसे। ये तुम्हारा प्यार पाने के लिए तड़प रहा है। काम्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसके संस्कार उसे पराये मर्द के उस अंग को छूने से मना कर रहे थे दूसरी तरफ उसका प्यासी जवानी ,पति से अतृप्त जीवन उसे कह रहा था कि थाम ले बाबूजी के अंग को। मन कुछ कह था तो तन कुछ और कह रहा था। इतिहास गवाह है कि जवां उम्र में इंसान हमेशा तन की सुनता है। काम्या का तन भी धीरे-२ मन पर हावी होता जा रहा था। बाबूजी ने बहु को दुविधा में देखा तो एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ कर उसके हाथ में अपनी A K 47 थमा थी । काम्या ने इस बार अपना हाथ नहीं हटाया बल्कि कस कर थाम लिया। अपने लण्ड पर बहु के हाथ का कसाव महसूस करते ही मदनलाल का पूरा शरीर झनझना गया।