कुछ समय बीते और प्रभा अपने पति के पास चली गई, स्वीटी अपने कौलेज। अब फ़िर मैं और विभा हीं अब घर पर रह गए। जब तक प्रभा थी, तब तक मैं कभी प्रभा को चोदता, और कभी विभा को। वो दोनों मेरे साथ हीं सोती और हम सब नंगे ही सोते। अब विभा मेरी बीवी की तरह रहती थी मैं भी उसको बिल्कुल वही दर्जा देता था और नियम से उसकी चुदाई करता। वो भी मस्त हो कर मेरे इशारे पर चुदाने के लिए तैयार हो जाती। प्रभा को गाँड मराने से कोई परेशानी नहीं थी पर विभा को अभी भी गाँड़ मरवाना पसंद नहीं था। मुझे अक्सर स्वीटी की याद आती, जो घर तो आई पर प्रभा और विभा के रहते मुझसे कम ही चुदी। उसको ज्यादा प्रभात ने ही चोदा। स्वीटी एक सप्ताह रही और इसमें से चार दिन प्रभात भी था। एक रात जब विभा को चोद रहा था तब अन्य बहनों की बात शुरु हो गई और विभा ने कहा, "भैया, सबसे मजेदार स्थिति दीदी की है। हम लोग चाहे जो कहें-करें, पर असल में सेक्स का लाईसेन्स तो दीदी के पास ही है। एक कानूनी पति है और वो भी ऐसा जो सेक्स को पसन्द करता है। अब जब वो विदेश चली गई है तो और आजाद हो कर सेक्स करेंगे दोनों।" मैंने भी उसकी बात से सहमति जताई, "हाँ, सो तो है। प्रभात तो शुरु से कमीना है साला और अब तो प्रभा भी उसी के रंग में रंग गई है। सुबह बात हुई थी उससे तो कह रहा था कि वो अब कोई न्युडिस्ट क्लब की सदस्यता लेने के चक्कर में है, पर अभी वो क्लबों की खासियतों का मिलान कर रहा है कि किसमें ज्यादा मस्ती हो सकता है। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।
" मैं अब अपना लंड विभा की चूत से बाहर निकाल कर उसकी खुली हुई चूत को चुसने-चाटने लगा था। विभा अब सिसिया रही थी पत वो पूछी, "नाम तो क्लब का मजेदार है, कैसा होता है यह क्लब, कुछ आईडिया है भैया?" मैंने अब उसके बगल में सो कर उसकी चूचियो मे खेलते हुए कहा, "हाँ... प्रभात बता रहा था कि इन क्लबों में स्दस्यों को १००% नंगे ही रहना होता है। आमतौर पर सप्ताह के अंत या छुट्टी के मौसम में ये क्लब खुब भर जाते हैं और यहाँ कई तरह की खेल प्रतियोगिताएँ भी होती हैं। कुछ में सेक्स खुले आम किया जा सकता है तो कुछ में सेक्स पर प्रतिबंध होता है। सब क्लबों की सदस्यता शुल्क अलग-अलग है और जो सेक्स की छुट देते हैं वो महंगे होते हैं।" विभा बोली, "काश कि यहाँ भी ऐसा क्लब होता!" मैं अब फ़िर से उसके उपर चढ़ते हुए कहा, "चल अब फ़ाईनल चुदाई करते हैं, आज भीतर निकालुँगा। ऐसा क्लब तुम खोल देना... मेम्बर्शीप फ़ी में लन्ड लेना, लाईन लग जाएग तुम्हारे क्लब में"। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैं हँसते हुए उसकी चूत में अपना लन्ड घुसा कर उसकी जोरदार चुदाई करने लगा।
(20-03-2017, 12:15 PM)rajbr1981 : कुछ समय बीते और प्रभा अपने पति के पास चली गई, स्वीटी अपने कौलेज। अब फ़िर मैं और विभा हीं अब घर पर रह गए। जब तक प्रभा थी, तब तक मैं कभी प्रभा को चोदता, और कभी विभा को। वो दोनों मेरे साथ हीं सोती और हम सब नंगे ही सोते। अब विभा मेरी बीवी की तरह रहती थी मैं भी उसको बिल्कुल वही दर्जा देता था और नियम से उसकी चुदाई करता। वो भी मस्त हो कर मेरे इशारे पर चुदाने के लिए तैयार हो जाती। प्रभा को गाँड मराने से कोई परेशानी नहीं थी पर विभा को अभी भी गाँड़ मरवाना पसंद नहीं था। मुझे अक्सर स्वीटी की याद आती, जो घर तो आई पर प्रभा और विभा के रहते मुझसे कम ही चुदी। उसको ज्यादा प्रभात ने ही चोदा। स्वीटी एक सप्ताह रही और इसमें से चार दिन प्रभात भी था। एक रात जब विभा को चोद रहा था तब अन्य बहनों की बात शुरु हो गई और विभा ने कहा, "भैया, सबसे मजेदार स्थिति दीदी की है। हम लोग चाहे जो कहें-करें, पर असल में सेक्स का लाईसेन्स तो दीदी के पास ही है। एक कानूनी पति है और वो भी ऐसा जो सेक्स को पसन्द करता है। अब जब वो विदेश चली गई है तो और आजाद हो कर सेक्स करेंगे दोनों।" मैंने भी उसकी बात से सहमति जताई, "हाँ, सो तो है। प्रभात तो शुरु से कमीना है साला और अब तो प्रभा भी उसी के रंग में रंग गई है। सुबह बात हुई थी उससे तो कह रहा था कि वो अब कोई न्युडिस्ट क्लब की सदस्यता लेने के चक्कर में है, पर अभी वो क्लबों की खासियतों का मिलान कर रहा है कि किसमें ज्यादा मस्ती हो सकता है। यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।
" मैं अब अपना लंड विभा की चूत से बाहर निकाल कर उसकी खुली हुई चूत को चुसने-चाटने लगा था। विभा अब सिसिया रही थी पत वो पूछी, "नाम तो क्लब का मजेदार है, कैसा होता है यह क्लब, कुछ आईडिया है भैया?" मैंने अब उसके बगल में सो कर उसकी चूचियो मे खेलते हुए कहा, "हाँ... प्रभात बता रहा था कि इन क्लबों में स्दस्यों को १००% नंगे ही रहना होता है। आमतौर पर सप्ताह के अंत या छुट्टी के मौसम में ये क्लब खुब भर जाते हैं और यहाँ कई तरह की खेल प्रतियोगिताएँ भी होती हैं। कुछ में सेक्स खुले आम किया जा सकता है तो कुछ में सेक्स पर प्रतिबंध होता है। सब क्लबों की सदस्यता शुल्क अलग-अलग है और जो सेक्स की छुट देते हैं वो महंगे होते हैं।" विभा बोली, "काश कि यहाँ भी ऐसा क्लब होता!" मैं अब फ़िर से उसके उपर चढ़ते हुए कहा, "चल अब फ़ाईनल चुदाई करते हैं, आज भीतर निकालुँगा। ऐसा क्लब तुम खोल देना... मेम्बर्शीप फ़ी में लन्ड लेना, लाईन लग जाएग तुम्हारे क्लब में"। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैं हँसते हुए उसकी चूत में अपना लन्ड घुसा कर उसकी जोरदार चुदाई करने लगा।
वो अब आअह... आह्ह्ह... आअह्ह्ह्ह कर रही थी और आँख बन्द करके मुझसे चुद रही थी। करीब दस मिनट की जबर्दस्त चुदाई के बाद मैंने उसकी चूत के भीतर ही अपना माल डाल दिया। हम दोनों जैसा की हमेशा होता था, चुदाई खत्म करने के बाद आराम से लिपट कर अब सोने की कोशिश करने लगे। पर विभा बोली, "भैया, मेरी शादी भी न आप किसी जीजाजी जैसे लडके से ही करवा दीजिएगा। अब तो मेरी भी आदत खराब हो गई है, जब तक एक बार जोर से आपके साथ न करवा लूँ, नींद ही सही से नहीं आती है"। मैंने विभा को प्यार से चूम लिया और बोला, "असल में न प्रभा की किस्मत अच्छी है और मुझे पता था कि प्रभात लाईन मारता है मेरी बहनों पर। सो प्रभात से बात करना आसान था"। विभा बोली, "हाँ, किस्मत वाली तो जरुर है दीदी। वैसे और भी तो लडके होंगे जो हमलोग पर लाईन मारते होंगे?" मैंने जवाब दिया, "हाँ, पक्का होंगे... कई लड़के होंगे जो तुम्हारे नाम की मूठ मारते होंगे, पर प्रभात के बारे में जैसे मुझे पता था वैसे बाकी के बारे में सीधे कह तो नहीं सकता न। मैं कोशिश करुँगा कि किसी लडके से बात फ़ाईनल करने से पहले उसको थोडा जाँच लूँ कि वो तुम्हें सही से खुश रखेगा या नहीं"। विभा यह सुन कर खुसी से चहकते हुए मेरे होठ चुमते हुए बोली, "ओह... मेरे प्यारे भैया, थैंक्यु।" मैंने भी उसके चुम्बन का जवाब चुम्बन से दिया और फ़िर बोला, "अच्छा अब सो जाओ..." और फ़िर जब वो दुसरी करवट बदल ली तो मैं भी सोने की कोशिश करते हुए सोचने लगा कि अब विभा की यह चाहत कैसे पूरी करूँ। धीरे-धीरे मुझे भी नींद आ गई। अगली सुबह विभा से पहले मैं ही जागा और लुंगी लपेट कर अपने बरामदे पर आ कर अखबार पढने लगा। विभा सामने वाले कमरे में नंगी ही सोई हुई थी।यह कहानी देसिबीस डॉट कॉम पर पढ़ रहे रहे ।
मेरे घर के सामने वाले मकान में रहने वाले सलीम जी भी मेरे बरामदे पर ही आ गए और हम बातें करने लगे। सलीम जी बैंक में काम करते थे और अपनी पत्नी और दो जवान बेटियों के साथ रहते थे। उनके साथ उनका भतीजा भी रहता था जो बी०ए० करने के बाद बैंक में नौकरी के लिए तैयारी कर रहा था। हमदोनों ही अखबार में छपी एक खबर पर चर्चा कर रहे थे जिसमें लिखा था कि हमारे शहर की एक पौश कौलोनी के एक घर में कौल-गर्ल रैकेट का पर्दाफ़ाश हुआ है और उस रेड में पाँच लड़कियाँ पकड़ाई हैं जो शहर के आसपास के गाँवों से शहर पढ़ने आईं थी और फ़िर पैसे के लिए इस धन्धे में आ गई। दो तो शहर के एक मशहूर स्कूल की ग्यारह्वीं और बारहवीं की छात्रा थी जबकि बाकी तीनों कौलेज में पढ़ती थी और ये सब दिन में दो घन्टे के लिए वहाँ चल रहे ट्युशन-सेंटर में आती और फ़िर वहीं पर मर्दों से चुदा कर चली जाती। हमारे शहर के लिए यह एक बड़ी खबर थी। बात-चीत घुमते-घुमते अब लडकियों में हो रहे बदलाव पर आ गई। सलीम जी कह रहे थे, "अब के समय में लडकियाँ भी कम उम्र में हीं जवान हो जाती है। मुझे याद है कि मेरी बहनों को इंटर से ही साड़ी या सलवार-सूट पहनने को कहा जाता था और वो सब कैसे घर पर रहती थी। सिनेमा देखती बहुत-से-बहुत, वो भी घर से कोई जाता तब। और अब देखिए मेरी बेटियों को बिना बताए, कभी किसी दोस्त के घर तो कभी सिनेमा आदि चली जाएगी। अच्छा बात यही है कि वो रास्ते से फ़ोन कर देती है। मुझे बताए न बताए, कम से कम अपनी मम्मी को सो बात बताती है। जमाना ही ऐसा हो गया है और इसी चक्कर में लडकी सब भी इसमें शुरु हो जाती है। लडके लोग तो हमारे समय में भी ऐसे ही थे, पर तब कोठा पर जाना होता था और बहुत से लोग बदनामी के डर से अपने को काबू में कर लेते थे।" मैं हाँ-हूँ कर रहा था और उनकी बात सुनते हुए यह सोच रहा था कि अगर अब धूप गर्म हो गया तो घर के भीतर जाते हुए कहीं उनकी नजर मेरे कमरे में नंगी सोई विभा पर ना पड जाए। तभी मुझे लगा कि विभा जाग गई है, और मैंने उसको आवाज लगाई कि विभा दो कप चाय बना देना, सलीम चाचा भी आये हुए हैं और मुझे विभा की एक लम्बी "हाँआआ..." सुनाई दी। वो अब आराम से जमाने को दोष देने में लगे हुए थे।