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Desi चोरी मेरा काम

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Desi चोरी मेरा काम
deshpremi Offline
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#1
03-05-2015, 05:22 PM (This post was last modified: 25-06-2016, 08:54 PM by rajbr1981.)
दोस्तों, कहानी लिखने से मेरा दूर-दूर का कोई वास्ता नहीं है. मैं तो सिर्फ इधर का माल उधर और उधर का माल इधर करता हूँ. यहाँ जो कहानियां आप पढेंगे वे इधर-उधर से मारी हुई हैं. इनमे से कोई आपकी या आपके किसी परिचित की लिखी हुई भी हो सकती है. यदि ऐसा हो तो कृपया मुझे सूचित करें ताकि मैं मूल लेखक को श्रेय दे सकूं – आखिर इस तरह की कहानियां लिखने वालों को कोई पुरस्कार या पैसा तो मिलता नहीं है. उन्हें कम से कम श्रेय तो मिलना ही चाहिए.

Story Index
  1. आशीर्वाद
  2. शराबी की बीवी और पड़ोस के साहब
  3. प्यार के साथ चुदाई
  4. बस वाला लड़का
  5. ये दिल … एक पंछी
  6. कुंवारी भोली
  7. ५५ साल की बंगालिन
  8. बाबा का आशीर्वाद
  9. समधी-समधन
  10. सावधानी नहीं बरती
  11. मालकिन और सेठजी


अब पेश है पहली कहानी.
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deshpremi Offline
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#2
03-05-2015, 05:25 PM
आशीर्वाद

जंगल के वीराने को चीरता हुआ एक रथ बहुत तेजी से भागा जा रहा था। उस रथ पर चोदनपुर की राजकुमारी लिंगप्रिया सवार थी। उन्हें शिकार का बहुत शौक था। इस समय भी उनके हाथ में धनुष था और निशाना एक सुन्दर हिरण था। लिंगप्रिया अलौकिक सौन्दर्य की स्वामिनी थी। उसके लाल लाल होंठ मानो रस भरे अंगूर हों जिन्हें देख कर मन करता था कि उसके होंठों का रस पी जायें। उसकी चूचियाँ इतनी मनमोहक थी मानो रस से भरी नारंगियां।

तभी उसके रथ के सामने वो हिरण आया और लिंगप्रिया ने तीर चला दिया। हिरण मारा गया। लिंगप्रिया रथ से उतरी और हिरण के पेट में घुसा हुआ तीर निकाल के जैसे ही वो मुड़ी, उसकी नज़र एक योगी पर पड़ी। उसने देखा कि वो योगी पूरा नंगा एक पैर पर खड़ा हो कर तपस्या में लीन है।

तभी लिंगप्रिया की नज़र उसके शिथिल पर सुडौल नंगे लण्ड पर पड़ी. उस लण्ड को देख कर लिंगप्रिया के मुँह में पानी आ गया. वो योगी के पास गई और बोली - हे योगीराज! उठो! जागो! देखो, चोदनपुर की राजकुमारी लिंगप्रिया तुम्हारे सामने खड़ी है. मेरी विनती सुनो और मेरी प्यास बुझाओ।

उसकी आवाज़ का योगी पर कोई असर नहीं पड़ा। पर लिंगप्रिया की योनी में तो कामाग्नि भड़क चुकी थी, वो बस अपनी आग को शान्त करना चाहती थी। उसने योगी के लण्ड को अपने कोमल हाथों में पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी. परन्तु योगी पर फिर कुछ असर नहीं हुआ।

लिंगप्रिया अब पूरे कामावेश में आ चुकी थी इसलिए उसने लण्ड को अपने रस भरे होंठों से लगा लिया और योगी का मुख-मैथुन करने लगी। थोड़ी ही देर में योगी का लण्ड जागृत हो कर विशालकाय हो गया। लिंगप्रिया को यही तो चाहिये था, वो मस्त हो कर लण्ड को और जोर से चूसने लगी।

राजकुमारी की चेष्टा रंग लाई और योगी का ध्यान टूट गया. वो पीछे हटते हुए बोला - कौन हो तुम? तुमने मेरी तपस्या में विघ्न क्यों डाला? मैं सात वर्षों से चूतेश्वर महाराज की तपस्या में मग्न था।

लिंगप्रिया बोली - हे योगी, मैं चोदनपुर की राजकुमारी लिंगप्रिया हूँ. मैं तुमसे क्षमा चाहती हूँ पर तुम्हारा कमनीय और बलशाली लण्ड देख कर मैं अपने आप को रोक न सकी. योगिराज, मुझे चोद कर मेरी चूत को धन्य कर दो।

योगी ने उसके मचलते हुए अंग-प्रत्यंग को उपर से नीचे तक देखा और गुस्से से बोला - तुमने मेरी बर्षों की तपस्या भंग की है, इसका दंड तुम्हे मिलेगा. मैं तुम्हारी चूत का विध्वंस कर दूंगा.

लिंगप्रिया ने कहा - मैं भी यही चाहती हूँ, योगीराज! आइये, मेरी चूत को तहस-नहस कर दीजिये!

यह कहते हुए उसने अपने सारे वस्त्र उतार दिए. वह नंगी हो कर योगी के समक्ष बैठ गई. उसने योगी के लण्ड को पकड़ा और उसे पुनः मनोयोग से चूसने लगी। अब योगी का लंड पूरे ताव में आ गया. वो लण्ड चुसवाने का मज़ा लेने लगा। लिंगप्रिया अपने अंगूर समान होठों से और जीभ से उसके लण्ड को चाटने में लग गई। योगी का हाथ लिंगप्रिया की चूचियों पर फ़िसलने लगा। लिंगप्रिया की सुडौल चूचियों को योगी अपने हाथों से दबाने लगा।

लिंगप्रिया सिसकारियाँ भरती हुई बोली - आह ! और जोर से दबाओ, योगी!

राजकुमारी भी लण्ड को अपने मुँह में जोर जोर से लेने लगी। योगी ने लिंगप्रिया को मखमली घास पर लिटा दिया और उसकी चूचियों को अपनी जीभ से चाटने लगा, उसके निप्प्लों को मुँह से चूसने लगा।

लिंगप्रिया सिसकारियाँ भरते हुए बोली - आह! चूसो मेरे प्रियतम! चूसो मेरी चूचियों को।

योगी अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को दबा दबा कर चूस रहा था जैसे कोइ बच्चा दूध पी रहा हो।

थोड़ी देर के स्तनपान के बाद लिंगप्रिया लम्बी आहें भरती हुई बोली - आह! अब मेरी चूत को पवित्र कर दो, योगीराज! पेल दो मुझे।

यह सुन कर योगी ने अपना एक हाथ लिंगप्रिया की बुर की तरफ़ बढ़ाया. उसने बुर पर हाथ लगाया तो उसे महसूस हुआ कि लिंगप्रिया की बुर गीली हो चुकी थी। योगी अब नीचे की ओर खिसका और उसने अपने होठों को राजकुमारी की बुर पर लगा दिया।

लिंगप्रिया कामावेग से तड़प उठी।

योगी अपने जीभ से बुर को चाटने लगा और अपनी एक उंगली बुर के अन्दर डाल कर उसे हिलाने लगा जैसे कोई चीज़ वो अन्दर ढूँढ रहा हो।

लिंगप्रिया बोली - योगिराज, अब पेल दो मेरी बुर में अपना लंड! अब देर न करो!

योगी ने अपने लण्ड पर थूक लगाया और लिंगप्रिया की टाँगों को ऊपर उठा कर उसकी बुर पर अपना लण्ड सटा दिया। लिंगप्रिया ने सिसकते हुए योगी के लण्ड को अपने बुर से सटा दिया। योगी ने एक ही झटके में पूरा लंड उसकी बुर में ठूंस दिया।

लिंगप्रिया जोर से चीखी - आ..आ..आ..ह! बहुत विशाल है, योगीराज।

पर अब क्या हो सकता था? चुदाई का निमंत्रण स्वयं उसने दिया था. अब तो उसे चुदना ही था. योगी पूरी शक्ति से आगे उसकी बुर को ठोक रहा था। कुछ देर बाद लिंगप्रिया को मज़ा आने लगा. वो भी अपने नितम्ब उठा-उठा कर चोदन-क्रिया का मज़ा लूटने लगी।

योगी अपने हाथों से लिंगप्रिया की चूचियाँ दबा रहा था और लण्ड को बुर में पेले जा रहा था। कुछ देर बाद योगी ने लिंगप्रिया को श्वान आसन में स्थित किया और पीछे से अपना लण्ड उसकी बुर में डाल कर उसे चोदना शुरु किया।

लिंगप्रिया आनन्द से मरी जा रही थी - आह! और जोर से चोदो,योगी! और जोर से!

योगी उसकी कमर को हाथों से पकड़ कर अपने लण्ड से धक्का दिये जा रहा था। उस वीराने जन्गल में लिंगप्रिया की सिसकरियाँ गूँज़ रही थी।

तभी मस्ती से सराबोर लिंगप्रिया बोली - आह! मैं आ रही हूँ, योगिराज! मैं स्खलित होने वाली हूँ।

और फिर लिंगप्रिया की चूत से रस की अविरल धारा निकलने लगी। लिंगप्रिया स्खलित होकर निढाल होने को थी लेकिन योगी अभी भी धक्के पर धक्के मारे जा रहा था। थोड़ी देर के बाद योगी चीखा - आह! लिंगप्रिया! लो, मैं भी आया।

और योगी ने लिंगप्रिया की चूत को अपने वीर्य से भर दिया। लिंगप्रिया को ऐसा लगा जैसे उसकी चूत में लंड-रस की बरसात हो रही हो. वह तृप्त हो कर घास पर लेट गई।

योगी ने अपने लण्ड को उसकी बुर से बाहर निकाला. वह उस पर से उतर कर बोला - राजकुमारी लिंगप्रिया, तुमने मेरी वर्षों की तपस्या भंग की, उसका दंड तुम्हे मिल गया है. परन्तु तुम्हारी सुकोमल चूत ने पूर्ण समर्पण से मेरे लण्ड के प्रहार स्वीकार किये और फिर उसका वीर्य ग्रहण किया इसलिये मैं तुम्हे एक आशीर्वाद भी देता हूँ. नौ महीने के बाद तुम एक पुत्र को जन्म दोगी जो अत्यंत बलवान और वीर्यवान होगा। बड़ा हो कर वह एक चूत-संहारक लंड का स्वामी बनेगा. यदि कोई पडोसी राज्य तुम्हारे राज्य पर बुरी नज़र डाले तो तुम अपने पुत्र को उस राज्य में भेज देना. उसके लंड के आक्रमण से उस राज्य की स्त्रियों में हाहाकार मच जायेगा। उसके लंड की चूत-संहारक ख्याति तुम्हारे राज्य को सुरक्षित रखेगी.

यह कह कर योगी फ़िर से ध्यानमग्न हो गया।

जब राजकुमारी लिंगप्रिया की मस्ती उतरी तो वह उठी. उसने योगी के लण्ड को चूम कर अपने वस्त्र पहने और रथ पर सवार होकर चोदनपुर चली गई।

नौ महीने के बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया. उसका नाम लंडेश्वर रखा गया। आगे जा कर राजकुमार लंडेश्वर एक भीमकाय लिंग और प्रचंड कामशक्ति का स्वामी बना. उसने वयस्क होने पर सर्वप्रथम अपने महल की दासियों का सेवन आरम्भ किया. दासियां उसकी चोदन-क्षमता से प्रफुल्लित हो गयीं. बात राजमहल से बाहर पहुंची तो राज्य की अन्य स्त्रियां उसके लंड के लिए लालायित हो गयीं. उसका लंड इतना आनंददायक था कि धीरे-धीरे उसकी ख्याति पूरे राज्य में फ़ैल गई. राज्य की समस्त स्त्रियों में उसका लंड ग्रहण करने की होड़ लग गई. और फिर बात पडोसी राज्यों तक पहुँच गई.

राजकुमार लंडेश्वर राज्य-राज्य घूम कर वहां की रमणियों को अपने लंड से धन्य करने लगा. जब वहां की राजकुमारियों ने उसकी कामशक्ति की ख्याति सुनी तो उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि उनका विवाह राजकुमार लंडेश्वर से कर दिया जाए. देखते ही देखते आसपास के छः राजाओं ने न केवल अपनी राजकुमारियों का विवाह उससे किया बल्कि अपने आधे राज्य भी उसे दे दिए. इस प्रकार योगिराज की भविष्यवाणी आंशिक रूप से सत्य साबित हुई. लिंगप्रिया के पुत्र ने अपने लंड की शक्ति से न केवल अपने राज्य को सुरक्षित रखा बल्कि उसका विस्तार भी किया.


समाप्त
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rajbr1981 Online
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#3
04-05-2015, 12:13 AM (This post was last modified: 05-05-2015, 01:36 AM by rajbr1981.)
वाह क्या कहानी है जिसने भी लिखी हो पर पोस्ट करने के लिए आपको धन्वाद
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#4
04-05-2015, 05:31 PM (This post was last modified: 05-05-2015, 01:39 AM by rajbr1981.)
(04-05-2015, 12:13 AM)rajbr1981 : वाह क्या कहानी है जिसने भी लिखी हो पर पोस्ट करने के लिए आपको धन्वाद

आपका और अन्य पाठकों का धन्यवाद.
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deshpremi Offline
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#5
07-05-2015, 05:52 PM
पोस्ट एडिटेड

Good-luck
rajbr1981
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09-05-2015, 09:23 PM
सूचित करने के लिए धन्यवाद.
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deshpremi Offline
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#7
21-06-2015, 05:15 PM
शराबी की बीवी और पड़ोस के साहब


दोस्तों, नीचे वाला माल चोरी का है पर मैंने इसे ठोक-पीट कर इसका हुलिया बदल दिया है। आपने पहले पढ़ा हो तब भी एक बार इसे पढ़ कर देखें।



मैं उर्मि हूँ. मेरी उम्र 27 साल, रंग गोरा, कद 5'4", वजन 55 किलो है, दिखने में सेक्सी दिखती हूँ. मुझे देख कर किसी का भी दिल मुझ पर आ सकता है, कोई भी मुझे बांहों में लेने को मचल सकता है. मेरे उरोज मध्यम आकार के हैं और नितम्ब गोल और गठीले हैं.

रमेश मेरा पति है, जिससे मेरी शादी आज से 4 साल पहले हुई थी, इनका रंग भी गोरा है, 6' कद, वजन 68 किलो है, अच्छे हैंडसम आदमी हैं, इनकी उम्र 29 साल है।

माही मेरी दो साल की बेटी है।

प्रशांत मेरी जिंदगी में आया पराया मर्द है, वह करीब 5'8" लंबा, कसे शरीर का आदमी है, इसका रंग खुला है, वजन 70 kg है, इसकी उम्र करीब 35 साल के ऊपर की है, यह एक बैंक में मैंनेजर है।

रजनी प्रशांत की बीवी है, इसका रंग भी गोरा है, यह भरे भरे शरीर वाली कुछ नाटी सी औरत है, इसके स्तन बड़े बड़े हैं और चूतड़ भारी हैं। इसकी उम्र करीब 30 साल है।

सोनू रजनी और प्रशांत का 8 साल का बेटा है जो दूसरी कक्षा में है।

अब शुरू होती है कहानी:

मेरे पिताजी का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो चुका था जब मैं बहुत छोटी थी। मेरी माँ ने मुझे बहुत मुश्किल से पाला था, और केवल बारहवीं तक पढ़ाया था, उस समय मेरी उम्र 18 बरस की थी। मेरी माँ मुझे आगे पढ़ाने की जगह मेरी जल्दी से शादी कर देने की सोच रही थी, पर गरीब बिन बाप की बेटी को अच्छा लड़का मिलना कठिन था. इस तरह दो साल निकल गए. मेरा शरीर भर गया था, जवानी की महक मेरे बदन से निकलने लगी, मेरी भी तमन्ना होने लगी कि कोई लड़का बाहों में भर कर मुझे चोदे।

इस बीच एक-दो शादी के रिश्ते आये। कुछ समय बाद एक लड़का अपने माँ बाप के साथ मुझे देखने आया। इस लड़के का नाम रमेश था। इसके पिता रेलवे विभाग में काम करते थे। लड़का देखने में सुन्दर था। उसके पिता ने मुझे पसंद कर लिया और बगैर दहेज़ के शादी के लिए हाँ कर दी। इन लोगो ने बताया कि रमेश किसी बड़ी कंपनी में काम करता है।

मेरी माँ बहुत खुश हो गई। उसके सर से एक जिम्मेदारी उतरने वाली थी। हम लोग सोच रहे थे कि काम बड़ी आसानी से हो गया। उन लोगों को शादी की जल्दी थी, सो मेरी शादी एक महीने के भीतर हो गई।

मैं अपने ससुराल आ गई। मैं बहुत खुश थी, मुझे एक सुन्दर और हैंडसम पति मिला था। वह मुझे बहुत प्यार करता था। मुझे पहली बार चोदने का सौभाग्य मेरे पति को ही मिला।

मेरी असली परेशानी अब शुरू होने वाली थी, पति मुझे साथ ले कर उस शहर में आया जहाँ वो कंपनी में काम करता था। उसकी कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी। हम एक छोटे से किराये के कमरे में रहने लगे पर मैं बहुत खुश थी। मुझे पति का पूरा प्यार यानि चुदाई मिल रही थी।

तभी मुझे पता चलने लगा कि मेरे पति को शराब पीने की बुरी आदत है, वो तम्बाकू का गुटका भी खाते थे। पहले तो वो कुछ छिपाते थे पर जब उनको भी पता चल गया कि मैं जान चुकी हूँ तो मेरे सामने ही शराब चलने लगी। उनके दोस्त भी शराबी थे, वो उनके साथ शराब पीते थे और देर रात को घर आते थे।

मैं परेशान रहने लगी, कम्पनी भी कभी जाते थे, कभी नहीं। मैंने अपने ससुर से इस बात की शिकायत की पर उन्हें यह सब पहले से ही पता था। उन्होंने फिर भी रमेश को डाँटा, फटकार लगाई।

कुछ दिन ठीक रहने के बाद फिर वो ही बात - कमाई कम थी, ऊपर से शराब। घर चलाना मुश्किल हो गया। मेरे ससुर पैसे भेज देते थे पर उसमें से भी पति शराब में उड़ा देता था। मेरी माँ ने यह सुना तो सर पीट लिया।

रमेश की एक बात अच्छी थी, वो मुझे चाहता बहुत था। अब मुझे समझ में आया कि क्यों ये लोग बगैर दहेज़ के शादी के लिए राजी हो गए और क्यों इन्हें शादी की जल्दी थी। मेरे ससुर बार बार मुझे कहते - बेटी, किसी तरह इसे सुधार दो!

पर मैं क्या करती! किसी तरह जिन्दगी चल रही थी, आये दिन कर्ज मांगने वाले आने लगे। इस बीच मैं गर्भवती हो गई। ससुर ने मुझे अपने पास बुला लिया। माही को जन्म देने के 3 माह बाद मैं वापस पति के पास आई तो फिर वही कहानी चालू हो गई।

हमारी बिल्डिंग के सामने एक छोटा बंगला था जिसमें एक बैंक मैनेजर प्रशांत, अपनी पत्नी रजनी और बेटे सोनू के साथ रहते थे। वो हमारी कभी कभी मदद क़र देते। उनकी बीवी भी हमारी मदद करती थी।

रमेश को सुधारने के सभी प्रयास विफल हो गए थे। इस बीच रजनी गर्भवती हो गई तो उसने मुझसे कहा - तुम काम में मेरी मदद कर दो तो मैं कुछ पैसे तुम्हें दे दिया करुँगी।

वैसे भी मैं उन लोगों के अहसान में दबी थी। मैं मान गई। मैं सुबह से उनके घर चली जाती थी - बर्तन साफ करना, सफाई करना, खाना बनाना और सोनू को स्कूल भेजना - ये सब मेरे काम थे। माही भी यही रहती थी। हम लोग खाना भी यहीं खा लेते थे और रात में अपने घर जाते थे। कुछ दिनों के बाद रजनी डिलीवरी के लिए अपनी माँ के घर गई तो मैं प्रशांत और सोनू के काम करने लगी।

जब घर पर मैं और प्रशांत अकेले होते तो मुझे शुरू में डर लगता था कि यह मुझसे शरारत की कोशिश न करे। वैसे तो वो सीधा आदमी था पर जवान और खूबसूरत औरत पर मर्द की नीयत कब बदल जाये कोई नहीं बता सकता। कुछ दिन बाद मैं समझ गई कि यह बस यूँ ही देखता रहेगा। जब तक मैं सावधान हूँ, यह कुछ नहीं कर सकता।

कभी कभी मेरे मन में भी चुदास उठती पर मैं अपने आप पर काबू रखे थी। आखिर मेरी जिंदगी में वो खास दिन आ ही गया౹ मैं सोनू को स्कूल भेज चुकी थी, प्रशांत भी ऑफिस जा चुके थे, माही सो रही थी। मैंने उसे गोद में लिया, प्रशांत के घर पर ताला लगाया और अपने कमरे की ओर जाने लगी कि तभी रमेश का एक आवारा दोस्त आया और बोला- "भाभी, रमेश को पुलिस पकड़ कर ले गई है।"

मेरे ऊपर बिजली टूट पड़ी౹ मैंने पूछा- "क्या हुआ?"

वो बोला - "कंपनी में लेन देन को लेकर किसी से मारपीट हो गई है, आप थाने जाकर पता करो !"

मैंने माही को एक पड़ोस के घर में दे दिया और थाने जाने लगी। पहली बार थाने जाने के कारण मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं जैसे ही थाने पहुँची, एक सिपाही ने पूछा- "क्या काम है?"

मैंने कहा- मेरे पति को पुलिस पकड़ कर लाई है।

वो बोला- तेरे आदमी का नाम क्या है?

मैं बोली- रमेश !

"अच्छा वो जो कंपनी में मारपीट में अन्दर है?"

मैंने कहा- हाँ! वो कैसे छुटेंगे?

वो बोला- "मैं कुछ नहीं कर सकता, साब से बात करो!"

फिर वो बोला- "यहीं खड़ी रह! मैं बात करता हूँ।"

वो मेरे को वहीं खड़ा कर के अंदर गया और फिर आ कर बोला- "चलो, साब बुला रहे हैं।"

मैं थानेदार के कमरे में जाने लगी, वहीं से मुझे लॉकअप में बंद रमेश दिखाई दिया, वो बहुत उदास था। मुझे देख कर उसके आँखों में आँसू आ गए। मैं थानेदार के कमरे में चली गई౹ वह बोला- "मारपीट का केस है, आज शनिवार है, कल कोर्ट की छुट्टी है, सोमवार को जमानत करा लेना।"

मैं रोने लगी तो वो बोला- "साले, पहले लफड़ा करते हैं, फिर बीवी को भेज देते है यहाँ रोने के लिए। ऐ ठाकुर, इस लड़की को बाहर ले जा कर समझा दे।"

ठाकुर नाम का एक हवलदार मुझे बाहर एक तरफ ले कर गया और बोला- "देख लड़की, अभी केस लिखा नहीं है, एक बार एफ. आई. आर. लग गई तो हम भी कुछ नहीं कर सकेंगे। तू पाँच हजार रुपये ले कर आ जा, साब को बोल कर पार्टी से समझौता करा दूँगा। नहीं तो जिंदगी भर कोर्ट और वकील के चक्कर लगाती फिरेगी౹"

मैं चुपचाप कमरे पर आई, अपने ससुर को फोन किया। वो बोले- बेटा, आज की बस तो निकल गई, मैं कल शाम तक आऊँगा।

मैं वापस थाने गई, मैंने ठाकुर से कहा- "पैसे कल तक आ जायेंगे।"

वो बोला- "ठीक है, मैं कल शाम तक पार्टी से समझौता करा दूंगा। तू अपने आदमी को छुड़ा लेना।"

मैं वापस घर आई, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, तभी माही को तेज बुखार आने लगा, मेरे पास दवा व डाक्टर के लिए पैसे नहीं थे। तभी खिड़की से देखा कि प्रशांत और सोनू आ रहे थे।

मुझे उनके लिए चाय और खाना बनाना था। मैं सोच रही थी कि ये लोग जल्दी कैसे आ गए౹ मैं चाभी ले कर प्रशांत साहब के घर गई, रोने से मेरी आँखें सूज गई थी।

प्रशांत बोला- "मुझे ऑफिस में पता चला कि रमेश अंदर हो गया है। तुम बताओ कि बात क्या है?"

तभी भाभी का फोन प्रशांत साहब के पास आया, उन्होंने रमेश का पूरा किस्सा बता दिया. साहब उनसे बात करते रहे और फिर ‘ठीक है ... करता हूँ’ कह के फोन रख दिया। साहब ने कहा - तुम्हारी मेमसाहब ने कहा है कि मै तुम्हारी मदद जरूर करूँ।

मैंने प्रशांत साहब को सारी बात बता दी, वो बोला- "ठीक है, कल छुड़ा लेंगे। तुम मेरे लिए चाय बना दो और खुद भी पी लेना। और खाना भी जल्दी बना दो।"

मैंने कहा- "माही को बहुत बुखार है।"

साहब ने कहा- "ठीक है, चाय पी कर माही को डाक्टर को दिखा देंगे।"

मैं बोली- "मेरे पास पैसे नहीं हैं।"

प्रशांत ने कहा- "पैसे की फिकर मत करो, तुम चाय पी कर माही को ले कर आओ, मैं कार बाहर निकलता हूँ।"

मैं चाय पी कर तैयार हो कर माही को ले आई, मैं, सोनू, माही और प्रशांत कार से डाक्टर के पास गए, वहाँ बहुत भीड़ थी, काफी टाइम हो गया, दवाई वगैरह लेते करते रात के 8 बज गए।

तभी पुलिस की गाड़ियों की आवाज आने लगी, लोग भागने लगे, पूरी अफरा-तफरी मच गई। पता चला कि आगे कोई दंगा हो गया है इसलिए पुलिस ने कर्फ़्यू लगा दिया है।

क्रमशः
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21-06-2015, 05:16 PM
हम कार ले कर घर चले तो पुलिस ने हमें उधर जाने नहीं दिया, बोले- रात भर शहर में कर्फ़्यू रहेगा, उस तरफ के इलाके में दंगे हो रहे हैं౹ आप उधर नहीं जा सकते।

मैं प्रशांत साहब को बोली- "अब क्या होगा?"

वो बोले- "दूसरी तरफ से निकलते हैं।"

पर पुलिस ने उधर से भी नहीं जाने दिया। रात के 9 बज गए।

तभी प्रशांत साहब बोले- "सामने होटल है, वहीं चलते हैं౹ कुछ खाने को भी मिल जायेगा।"

होटल थ्री स्टार था, महंगा था पर फिलहाल कोई रास्ता नहीं था౹ मैं, सोनू, माही और प्रशांत होटल पहुँचे।

साहब बोले- "आज यहीं रुकना पड़ेगा।"

मैं चुपचाप सुनती रही। मैं कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थी। प्रशांत साहब से रिसेप्शन वाला बोला- "साब, आप डबल बेड का एक रूम ले लो౹ आप, आपकी बीवी और बच्चे आराम से उसमें आ जायेंगे। रूम में ऐ. सी. है, टीवी लगा है, बाथरूम अटैच है।"

वो मुझे प्रशांत की बीवी समझ रहा था।

प्रशांत साहब - "ठीक है! और जल्दी से सबके लिए रूम में ही खाना पहुँचा दो।"

वो बोला- "ठीक है, सर।"

एक नौकर हम सब को ले कर कमरे में गया, रूम बहुत अच्छा था। ऐ. सी. चालू होते ही कमरे में ठंडक होने लगी, मैंने पानी पिया तब जा कर इतनी परेशानी के बाद राहत मिली।

पर मुझे लग रहा था कि एक पराये मर्द के साथ मैं होटल के कमरे में थी। लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं था, हाथ मुँह धो कर सबने खाना खाया। दिन भर की परेशानी और पुलिस के चक्कर ने मुझे थका दिया था। माही और सोनू को भी नींद आ रही ही थी। मैंने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और सोच रही थी कि मैं अगर बिस्तर पर सो गई तो प्रशांत कहा सोयेगा?

तभी प्रशांत साहब ने कहां- "तुम बिस्तर पर सो जाओ, यह सोफा काफी बड़ा है, मैं यहाँ सो जाऊँगा। वैसे भी मैं टीवी देख रहा हूँ।"

मैं चुपचाप बिस्तर पर सो गई। पर मन में डर लग रहा था कि कल जब सबको पता चलेगा तो लोग कैसी बात बनायेंगे। थकान के कारण मुझे नींद लग गई।

अचानक माही के रोने से मेरी नींद खुल गई, मैं उसे दूध पिला कर चुप कराने लगी। तभी मेरा धयान गया कि सोनू तो सोफे पर सोया है और मेरी बगल में प्रशांत साहब सोये है౹ मैं सन्न रह गई। वो अभी जाग रहे थे, मुझे जगा पा कर कहा - "मैं सोफे पर सो नहीं पा रहा था इसलिए इधर आ गया।"

मैं कुछ बोलने के लायक नहीं थी, चुपचाप रही। मेरा गला सूख गया, जबान अटक गई। बगल में मर्द सो रहा था, इस अहसास से चूत में खुजली होने लगी, नींद नहीं आ रही थी, जवानी की आग भड़क रही थी। रमेश ने कई दिनों से मुझे नहीं चोदा था। शायद यही हाल प्रशांत का भी था, बाजू में जवान औरत सो रही हो और आदमी का लंड खड़ा न हो ऐसा नहीं हो सकता। मेरा अपने आप पर से काबू छूटता जा रहा था। मैं सोच रही थी कि प्रशांत पहल करे, वो भी शायद इसी सोच में थे पर आज तक मैंने उसे लिफ्ट नहीं दी थी, इसलिए वे डर रहे थे।

तभी मुझे लगा कि प्रशांत के एक पैर का पंजा मेरे पैर के पंजे से छू रहा है। सारे शरीर में करंट दौड़ गया, मेरी वासना भड़क उठी। मैंने वैसे ही उसे छूते रहने दिया, थोड़ी देर बाद उसने उसी पंजे से मेरा पंजे को धीरे से दबाया, मानो मुझसे इजाजत मांगी हो।

मर्द के साथ कुछ करने की लालसा इतनी प्रबल हो उठी कि मैं विरोध न कर सकी, मैंने हिम्मत कर उसी अंदाज में उनका पैर दबा दिया। मेरी ओर से सकारात्मक प्रत्युत्तर पा कर उनकी हिम्मत बढ़ी और चूत की आग के आगे मुझे भी अपनी मर्यादा-इज्जत का ख्याल न आया౹ पति थाने में, बेटी बीमार, यह सब भूल कर मैं एक गैर मर्द से चुदने को तत्पर हो उठी।

उसका पैर मेरे पैर से रगड़ खा रहा था। वो अपने पैर से मेरी साड़ी ऊपर कर रहा था। चुदाई की आग में मैं अंधी हो गई थी और मजे ले रही थी। तभी उसका एक हाथ मेरे ब्लाउज़ के ऊपर आया और धीरे धीरे वो मेरी चूचियाँ दबाने लगा। कुछ देर बाद उसने मुझे बाहों में भरने की कोशिश की। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू कर उससे छुटने की कोशिश की। मैंने कहा - नहींईईई...!

ये एक कमजोर इन्कार था। पर अब वो मानने वाला नहीं था, उसने मुझे क़स कर बाहों में भर लिया और लेटे लेटे मेरे गाल चूमने लगा। मेरा बदन खुद-ब-खुद ढीला पड़ने लगा। वो समझ गया कि बात बन गई है।

मेरे इन्कार की आखिरी कोशिश असफल हो गई। मैं खुद ही उससे लिपटने लगी। उसने मुझे अलग कर मेरी साड़ी हटा दी, फिर ब्लाउज़ निकाल दिया, मैं पेटीकोट और ब्रा में थी। वो मुझसे लिपट गया, पीछे हाथ ले जा कर ब्रा के हुक खोल दिए, ब्रा नीचे ढलक गई। मैंने शर्म के मारे दूसरी तरफ मुँह कर लिया तो वो पीछे से चिपक गया और दोने हाथों से मेरे नंगे कबूतर दबाने लगा। उसका लंड मेरे चूतड़ों की दरार में गड़ रहा था। इसके बाद उसने मुझे चित लिटाया, मेरे पेटीकोट के अन्दर हाथ डाल कर मेरी पेंटी खींची। मैंने एक फिर उसे रोकने की कोशिश की, पर उसने लगभग जबरन मेरी पेंटी उतार ली। अब मैं भी बगैर चुदे नहीं रह सकती थी। चूंचे दब चुके थे और चड्डी उतर चुकी थी! चुदने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था!

अब उसने अपनी पैंट और अंडरवियर उतार कर अपना लंड निकाल लिया। वो मेरे पति के लंड जैसा ही बड़ा और मोटा था। उसने मेरी टांगें फैला कर मेरा पेटीकोट ऊपर कर दिया।

मैं बोली- "किसी से कहना मत!"

उसने हाँ में सर हिलाया और अपना लंड हाथ में ले कर वो मेरे ऊपर चढ़ गया। लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रख उसने धक्का दिया तो मेरी गर्म और गीली चूत में लंड आराम से समाता चला गया। मेरे मुँह से आहें निकलने लगी, बड़े दिनों बाद चुदाई का मजा मिल रहा था। वो हलके हलके धक्के मार रहा था। थोड़ी देर बाद मैं मजे लेने के लिए अपने चूतड नीचे से उछालने लगी तो प्रशान्त बोले - "उर्मि, मजा आ रहा है या नहीं?"

मैं कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप चूतड उछाल उछाल कर चुदवाती रही। वो अब जोर जोर से धक्के मारने लगा, जितनी जोर से वो धक्का मारता, मुझे उतना ही मजा आता। मेरे मुँह से ‘सी सी’ की आवाज निकलने लगी। उसकी स्पीड बढ़ गई।

“अह ... आह! आह्ह...!”

उसका लंड पहले से भी ज्यादा कड़क हो गया था। मेरी चूत से फच-फच की आवाज आने लगी! फिर आठ-दस ज़ोरदार धक्कों के बाद उसके लंड ने मेरी चूत में गर्म गर्म वीर्य की पिचकारी मारी तो मैं उससे चिपक गई। पांच-छः झटके मार कर उसका लंड शांत हो गया। मेरी चूत भी पानी छोड़ चुकी थी। मैं करीब पांच मिनट तक उससे चिपकी रही और फिर हट गई। मैं दूसरी तरफ मुँह कर के सोच रही थी कि जो हुआ वो अच्छा हुआ या बुरा? पर अब तो मैं चुद चुकी थी। अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं थक चुकी थी। चुदाई के बाद मुझे नींद आ गई।

सवेरा होने पर वेटर चाय ले कर आ गया। दोनों बच्चे भी जग गए थे। चाय पी कर प्रशांत बोले- "मैं कर्फ़्यू की स्थिति का पता करता हूँ।"

मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रही थी। वो बाहर चले गए, फिर वापस आ कर बोले- "आठ बजे तक हम यहाँ से घर के लिए निकल लेंगे।"

रविवार होने से छुट्टी थी। हम सभी लोग प्रशांत के घर पहुँचे। मैंने खाना बनाना शुरू कर दिया। प्रशांत बाहर चले गए और फिर लौट कर उन्होने मुझे आई-पिल की गोली दी और बोले, "रात को वैसे ही कर लिया था न!"

मैं शर्म से लाल हो गई पर सोचा कि इन्हें मेरा इतना ख्याल है। खाना खा कर मैं अपने घर आ गई। शाम चार बजे मेरे ससुर आये। हम ने थाने जा कर पाँच हजार रुपये दिए और रमेश को छुड़ा कर लाये। वो बहुत शर्मिंदा था पर वो यह नहीं जानता था कि उसकी बीवी दूसरे मर्द से चुद चुकी थी।

अगले दिन मेरे ससुर चले गए। रमेश की नौकरी जा चुकी थी। वो किराये का ऑटो चलाने लगा पर उसकी आदत में कोई सुधार नहीं आया।

अब मेरी मान-मर्यादा भंग हो चुकी थी। प्रशांत से एक बार चुदने के बाद मैंने फैसला किया था कि दुबारा ऐसा नहीं होगा। पर चुदाई एक ऐसा खेल है की एक बार खेलने में मजा आ जाये तो खेल बंद नही होता। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। प्रशांत साहब मुझे नई नई साड़ियाँ देने लगे, सजने संवरने के साधन, परफ़्यूम, कभी जेवर भी। कभी होटल में ले जा कर खाना खिलाना, कभी घुमाने ले जाना, साथ में मेरी तारीफ़।

उनकी बीवी मायके में, मेरा पति शराबी, कभी घर आता, कभी नहीं! दोनों को खुली छूट मिल गई थी। मैं दिल ही दिल में प्रशांत को साहब चाहने लगी। पर रमेश आखिर मेरा पति था। मैं प्रशांत के बहुत करीब होने लगी। घर पर या बाहर जहाँ भी मौका मिलता, प्रशांत साहब मुझे चिपका लेते, मुझे चूम लेते, मुझे सहला देते।

प्रशांत साहब से ही मुझे ब्लू फ़िल्म और पोर्न की जानकारी हुई। एक दिन प्रशांत मुझे ब्लू फ़िल्म दिखा रहे थे। हम सोफे पर बैठे थे। प्रशांत ने अपना लंड निकाल कर मेरे हाथ में दे दिया। मैं उसे मुठियाने लगी। उन्होंने मेरा ब्लाउज उतारा और मेरे बूब चूसने लगे ... मेरी चूत सुलगने लगी। धीरे धीरे हम दोनों के सारे कपड़े फर्श पर आ गए, हम दोनों के बदन पर एक धागा भी नहीं था। मेरा गोरा बदन चमक रहा था।

प्रशांत ने मुझे फिल्म के सीन की तरह घोड़ी बना दिया और बोले- "उर्मि, तेरे चूतड़ बहुत मांसल हैं। मैं पीछे से तुझे चोदूँगा तो बड़ा मजा आएगा!"

वो घोड़े की तरह मेरे ऊपर चढ़ गये और पीछे लंड को मेरी चूत पर जमा कर उन्होंने धक्का मारा। लंड चूत में घुसता चला गया, वो घोड़े के समान मुझे चोदने लगे। मैं भी अपनी कमर आगे पीछे करती चुदने लगी। मेरे चूतड़ों पर जब उसका धक्का पड़ता तो थप की आवाज आती। उन्होंने बताया कि यह स्टाइल उन्हें बहुत पसंद था।

इसके बाद जब भी वो मुझे चोदते तो घोड़ी जरूर बनाते! मेरा पसंदीदा स्टाइल यह था कि मैं प्रशांत को चित लेटा देती और उस पर नंगी बैठ जाती। फिर मैं उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत में डाल लेती और उचक उचक कर चुदवाती। मैं खुश थी कि मुझे खेलने को दो-दो जवान लण्ड मिल गए थे।

रमेश को शायद शक था पर वो कुछ बोल नहीं रहा था। मुझे सिर्फ एक बात की चिन्ता थी कि रमेश सुधर नहीं रहा था। एक दिन की बात है कि रमेश शराब पी कर रास्ते में गिर गया। मैं और प्रशांत साहब उसे लेने गए, देखा कि उसने बहुत ही ज्यादा पी रखी थी। सड़क पर गिरने से उसे सर व हाथ पर चोट आ गई थी। वो बेहोश था। उसे उठाया, फिर पास के डॉक्टर के पास ले गए। वहाँ से पट्टी करा कर घर लाये तो रात के दस बज रहे थे।

प्रशांत साहब ने कहा- "मैं बाजार से खाना लेकर आता हूँ, तुम यहीं रमेश के पास रहो!"

रमेश को होश नहीं आ रहा था, वो नशे में धुत्त था। मेरे घर में केवल एक रसोई और एक बड़ा कमरा है। साहब खाना ले कर आ गये। हम दोनों प्रशांत के घर गए, दोनों बच्चे वहीं थे, सबने खाना खाया और मैंने बच्चों को सुला दिया।

बच्चों के सोने के बाद प्रशांत ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया और चूमाचाटी करने लगे। लेकिन मेरा मन अपने पति में पड़ा था, सोच रही थी कि उसे होश आएगा तो अपने को अकेला पा कर क्या सोचेगा। यह सोच कर मैंने कहा- "आज नहीं! मैं अपने घर जा रही हूँ।"

यह कह कर मैं माही को गोद में उठाने लगी तो प्रशांत ने कहा- "इसे यहीं सोने दो! चलो, मैं भी चल कर देखता हूँ कि रमेश की तबीयत कैसी है।"

साहब भी मेरे साथ मेरे घर आ गये। घर आ कर देखा तो रमेश उसी तरह नशे में धुत्त सोया पड़ा है। कमरे में बैठे बैठे साहब को क्या सूझा कि वो मुझे पकड़ कर चुदने के लिए मनाने लगे।

क्रमशः
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deshpremi Offline
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#9
21-06-2015, 05:17 PM
मैं बोली- "रमेश यहीं है।"

वो बोले- यह तो नशे में धुत्त है, इसे रसोई में सुला देते हैं। फिर हम यहाँ कमरे में चुदाई करते हैं।

मैं मना करती रही पर वो नहीं माने। आखिर रमेश को रसोई में लिटा कर मैं चुदने के लिए तैयार हो गई। वैसे भी जब रमेश पी कर आता था मैं उसके साथ नहीं सोती थी।

अब प्रशांत मेरे करीब आये और खड़े खड़े ही मुझसे चिपक गये। मैं बोली- जल्दी से काम कर के चले जाओ।

हम दोनों बेड पर आ गए। मैं सोच रही थी कि जितने जल्दी हो इन्हें निपटा कर यहाँ से रवाना कर दूँ। मैंने चित लेट कर टांगें फैला दी, पेटीकोट और साड़ी ऊपर कर दी। पेंटी नहीं पहनी थी तो मेरी चूत प्रशांत के सामने थी। पर प्रशांत ने उसमें लंड डालने के बजाय मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे निकाल दिया। मैं नीचे पूरी नंगी हो गई तो घबरा कर मैंने कहा- "यह क्या कर रहे हो? रमेश यही है।"

वो बोले- "उसे होश नहीं आएगा और मैं जल्दी ही निपट जाऊंगा।"

वो पेंट और अंडरवियर उतार कर अपना खड़ा लंड हाथ में ले कर मेरे ऊपर चढ़ गये। यह लंड मैं कई बार ले चुकी थी पर आज मैं पनियाई नहीं थी। मैं चूत पर थूक लगा कर लंड का इंतजार करने लगी पर प्रशांत मेरा ब्लाउज़ खोल कर कर मेरे मम्मे दबाने लगे और उनको चूसने लगे। न चाहते हुए भी मेरी चूत की आग भड़क उठी। मैं भूल गई कि पति रसोई में सोया है और चुदने के लिए मतवाली हो गई।

वो मेरे ऊपर चिपक गए फिर हाथ से मेरी पीठ को कस कर पकड़ कर ऐसा पलटा मारा कि मैं ऊपर और वो नीचे हो गए। मैं उन पर बैठ गई और अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर कर के लंड को अपनी चूत के मुँह पर रखा और बोली- "धीरे से धकेलो!"

प्रशांत खुश हो गए। उनका लंड पहले से ज्यादा कड़क हो गया। उन्होंने धीरे से धक्का मारा पर लंड अन्दर जाने के बजाय फिसल गया। अब उन्होंने अपने हाथ से लंड को चूत पर जमाया और कुछ देर रुक कर अचानक जोर से धक्का मारा। फच्च से लंड अन्दर हो गया। मेरे मुँह से आह निकली- "ओउsssउ... इतनी जोर से!"

वो बेशर्मी से हंस दिये। उन्होंने लंड धीरे धीरे अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया, मैं भी गर्म हो चुकी थी इसलिये उनके लंड पर अपने चूतड़ ऊपर नीचे करने लगी। मुझे मजा आ रहा था क्योंकि यह मेरा चुदने का मनपसंद स्टाइल था।

जब मैं काफी चुद चुकी तो प्रशांत ने मुझे घोड़ी बना दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए। लंड को मेरी चूत के मुँह पर रख कर उन्होंने मेरी कमर पकड़ ली और एक ज़ोरदार धक्का मारा। एक ही धक्के में पूरा लंड मेरी चूत में घुस गया।

उन्होंने मुझे हलके धक्कों से चोदना शुरू किया पर धीरे धीरे उनकी स्पीड बढ़ने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई घोडा घोड़ी पर चढ़ा हुआ हो। मैं भी अपने चूतड़ हिला हिला कर उनका साथ दे रही थी, आगे पीछे होने के कारण मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। लंड फचाफच अंदर-बाहर हो रहा था। उनकी जांघें मेरे चूतड़ों से टकराती तो ‘थप थप’ की आवाज होती! मैं अब चुदाई का मज़ा ले रही थी। मेरे मुंह से आहें निकलने लगी। मैं ‘आह... आह ... सी... सी...’ करते हुए चुद रही थी। कहाँ मैं प्रशांत को जल्दी निपटाने की सोच रही थी और अब खुद निपटने वाली थी।

प्रशांत का लंड बहुत कड़क हो गया था और उसका पानी निकलने वाला था। तभी मेरी नजर रसोई के दरवाजे पर गई तो मुझे कुछ सेकण्ड के लिए रमेश की आँखें खुलती दिखाई दीं लेकिन वो फिर सो गया।

मैंने प्रशांत को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की पर वो इतने ताव में था कि अब उसको रोकना मुश्किल था। वो लंड पूरा अन्दर करके मेरे ऊपर लेट गया। उसने मेरे पेट को जोर से पकड़ कर खींच लिया। दो-तीन करारे धक्कों के बाद उसके लंड ने पानी छोड़ दिया।

प्रशांत मुझे चोद कर चले गये पर अब मुझे काटो तो खून नहीं! मैं पहली बार अपने पति के सामने चुदी थी। मुझे पता नहीं था कि रमेश नशे की हालत में कुछ देख-समझ पाया या नहीं! यह सोचते मुझे रात भर नींद नहीं आई।

*************

रमेश सुबह करीब 10 बजे उठा। उठने के साथ ही वो मेरे पास आया और उसने मुझे एक झापड़ मार दिया। यानि उसने रात को मुझे चुदते हुए देख लिया था। मैं किसी को शिकायत नहीं कर सकती थी। कौन मर्द अपनी बीवी का दूसरे आदमी से चुदना बर्दाश्त करेगा।

रमेश ने पूछा - "कब से मरवा रही है साहब से?"

मैं कुछ बोलती उससे पहले रमेश मेरे पास आया और मेरे बोबो को कस के दबाने लगा। मै चौक गयी। मै समझी थी की रमेश मुझे और मारेगा। मै आश्चर्य से उसके तरफ देखने लगी। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। अब उसने मेरे ब्लाउस को उतार कर मेरे बोबो को आजाद कर दिया। रमेश ने मेरी बोबो दबाते हुए मुझ से कहा - "साली, देख क्या रही है? मेरा लंड पकड़!"

मैंने उसका लंड पकड़ा तो और भी आश्चर्य हुआ। रमेश का लंड लुंगी से निकला हुआ था और पूरी तरह से खड़ा था। मै कुछ भी समझ नही पा रही थी। उसके कड़े लंड को जब मैंने मुठी में लिया तब रमेश ने मेरी साड़ी खोल दी और बोला- "मैं कब से तुझे कह रहा था कि गांड मारने दे! तूने मुझ से नहीं मरवाई और साहब से मरवा रही है!"

उसकी बात सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मैंने कहा, “तुम गलत समझ रहे हो। मैंने साहब से कभी नहीं मरवाई।”

रमेश ने मेरा पेटीकोट उतार कर जमीन पर गिरा दिया और बोला, "साली, मुझे बेवक़ूफ़ समझती है! तुझे कुतिया बना कर वो तेरी गांड नहीं मार रहा था तो क्या तेरी पूजा कर रहा था?"

उसकी बात सुन कर मै आश्चर्यचकित रह गयी। यह सच था कि रमेश ने मुझे कभी घोड़ी बना कर नहीं चोदा था लेकिन वो सोच रहा था कि यह आसन सिर्फ गांड मारने के लिए होता है, यह सुन कर मुझे अचरज हुआ। मैंने हिम्मत कर के कहा, “मैं सच कह रही हूं। उन्होंने मेरी कभी नहीं मारी।”

रमेश ने मेरे चूतड पर कस के थप्पड़ मारा और बोला - "साली कुतिया, फिर वो पीछे से क्या क्या रहा था?"

मै कल रात से अब तक जो हुआ था उससे परेशान थी पर रमेश की बात सुन कर मुझे हंसी आ रही थी। वो शादी के समय से ही मेरी गांड के पीछे पड़ा था जो मैंने उसे कभी नहीं दी थी। यह भी सच था कि उसने कभी मुझे पीछे से नहीं चोदा था। लेकिन वो सोच रहा था कि औरत को घोड़ी सिर्फ गांड मारने के लिए बनाया जाता है। मुझे इसी बात पर हंसी आ रही थी। मैंने कहा, “वो पीछे से वही कर रहे थे जो तुम आगे से करते हो!”

अब रमेश ने आश्चर्य से कहा, “यानि ... वो तेरी चूत ले रहे थे! तू सच कह रही है कि उन्होंने तेरी गांड नहीं ली?”

मैंने कहा, “मैं झूठ क्यों बोलूंगी?”

वो बोला, “उन्होंने सिर्फ तेरी चूत ली थी तो ठीक है! पर मैं आज तेरी गांड को नहीं छोडूंगा। बोल, मरवाएगी या नहीं?”

उसने फिर मेरे चूतड़ पर थप्पड़ मारा। मेरे मुँह से आह निकल गयी पर मैंने सोचा कि मैं बहुत सस्ते में छूट रही हूँ। मैं गांड मरवाने से हमेशा डरती थी पर गांड दे कर मैं रमेश के गुस्से से बच जाऊं तो सौदा बुरा नहीं था! मैंने कहा - "हां, मरवाऊंगी ... पर ज्यादा जोर मत लगाना!"

यह सुन कर रमेश खुश हो गया। उसने कहा, “तू चिंता मत कर, बस घोड़ी बन जा और फिर देख कि मैं कितने प्रेम से मारता हूँ।”

उसने अपनी लुंगी निकाल फेंकी। अब उसकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। जैसे ही मैं घोड़ी बनी, रमेश ने मेरे चूतड फैलाए और ‘पिच्च’ से मेरी गांड पर थूका। फिर उसने अपने हाथ पर थूक कर अपने लंड पर अच्छी तरह थूक लगाया और लंड को गांड से सटा कर कहा, "अब अपनी गांड ढीली छोड़ दे और प्रेम से लौड़ा डलवा!"

मै समझ गयी कि रमेश ने थूक अच्छी तरह लगाया है, अब मैं गांड ढीली छोड़ दूं तो दर्द कम होगा। मैं यथासंभव ढीली हो गई। मैंने कहा, "देख, फाड़ मत देना। धीरे-धीरे डालना।"

यह सुन कर रमेश ने मेरी गांड में कस के धक्का मारा और मेरे मुँह से चीख निकल गयी ‘उई मां!!!’ और मै आगे गिरते गिरते बची। रमेश का लंड आज प्रशांत के लंड से ज्यादा कड़क था। उस पर जैसे कोई जनून सवार हो गया था। उसने मेरी चीख की परवाह नही करी और लगातार चार-पांच धक्के मार कर अपना लंड मेरी गांड में धंसा दिया।

मेरे मुँह से दर्द भरी आवाज में निकल रहा था, "दईया रे! फाड़ दी मेरी गांड!"

रमेश मेरी बात सुन के आगे झुका और मुझे चूमने लगा। वो धक्के मारते हुए बोला, "आहा उर्मि, इसके लिए बहुत तरसाया है तूने! आज मैं तेरी गांड का भुर्ता बना दूंगा!"

मै समझ गयी कि दर्द हो तो हो, मैं रमेश को खुश करके ही बच सकती हूँ। इसके बाद मैंने सुबकना बंद कर दिया और अपना दिल कड़ा कर के उसके धक्के झेलने लगी! कुछ देर बाद दर्द ख़त्म हो गया और मुझे लगने लगा कि गांड मरवाना उतना मुश्किल नहीं है जितना मैं सोचती थी। बस शुरू में दर्द होता है।

रमेश का गुस्सा गायब हो गया था और अब वो बहुत खुश लग रहा था। उसके धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली थी। सात-आठ मिनट जम कर मेरी गांड मारने के बाद वो मेरी गांड के अंदर झड़ गया। उसका पानी मेरी गांड में गया तो मुझे अजीब सा सुख मिला। हम दोनों वही निढाल हो कर गिर पड़े, मैं नीचे और रमेश मेरे ऊपर।

कुछ देर बाद रमेश ने प्यार से मुझे चूमा और कहा, “देखा, तू बेकार में डर रही थी। शुरू में एक-दो मिनट दर्द होता है, फिर सब ठीक हो जाता है। अगर तू मुझे ये मज़ा देती रहे तो प्रशांत साहब से जी भर के चुदवा सकती है!”

वो उठ कर गुसलखाने चला गया। में वहीं नंगी पड़ी रही। रमेश ने जो कहा उस पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था।

बाद में जब मैं प्रशांत के घर पहुंची तो वो बड़ा परेशान घूम रहे थे। जब मैंने उन्हें बताया कि सब ठीक है तो ख़ुशी के मारे उन्होंने मुझे रसोईघर में ही पकड़ लिया। लेकिन मैंने उन्हें रोक कर कहा, “हम यह काम यहाँ नही कर सकते। आस पड़ोस वाले बाते करने लगेंगे और आपकी पत्नी भी आने वाली है।”

प्रशांत ने दुखी हो कर कहा, “फिर कैसे होगा यह?”

मैंने कहा, “आप मुझे मेरे घर में आ कर चोदना।”

मेरी बात सुन कर प्रशांत परेशान हो गए। वे बोले, “लेकिन वहां भी तो मेरा आना-जाना पडोसी देखेंगे।”

मैंने उन्हें कहा, “आप तभी मेरे घर आयेंगे जब रमेश वहां हो। फिर किसी को शक नहीं होगा, आपकी पत्नी को भी नहीं।”

प्रशांत मेरी बात सुन कर और मेरे आत्मविश्वास को देख कर हैरान थे। वे बोले, “लेकिन रमेश यह क्यों होने देगा?”

अब मैंने उन्हें पूरी बात बताई। वे सुन कर खुश हो गए।

फिर तो उनका मेरे घर आना शुरू हो गया, पर जब रमेश घर में हो तभी। वे मुझे मेरे पति के सामने ही चोदते। रमेश मेरी चुदाई देखता और फिर अक्सर प्रशांत के सामने ही मेरी गांड मारता। मुझे गांड मरवाने में भी मज़ा आने लगा। अब मेरे पास दो-दो तगड़े लंड थे, एक मेरी चूत के लिए और एक मेरी गांड के लिए।

मेरी चूत पा कर प्रशांत साहब तो खुश हैं ही पर जब से रमेश को मेरी गांड मिलने लगी है, वो भी बहुत खुश है। शायद इसी ख़ुशी के कारण उसकी आदतें सुधरने लगी हैं। अब उसका शराब पीना काफी कम हो गया है। परसों तो उसने मुझे कहा, “उर्मि, तू मुझे प्रशांत साहब की बीवी की गांड भी दिला दे तो मैं शराब पीना बिलकुल बंद कर दूंगा।”

अब मैं रजनी मेमसाहब को पटाने का तरीका ढूंढ रही हूँ।

समाप्त
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rajbr1981 Online
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21-06-2015, 09:18 PM
बहुत बढ़िया कहानी है अगली कहानी का इन्तेजार है
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