13-07-2017, 01:00 PM (This post was last modified: 13-07-2017, 01:11 PM by honey boy.)
【52◆●◆】
उन्हे बाय बोलकर, और उनकी गाड़ी को दूर तक जाता देखने के बाद मैने जल्दी से दरवाजा बंद किया...
और लगभग भागता हुआ सा उपर आ गया...
पर मेरे से आगे मेरा लंड था, जो तीर की तरह मेरी शॉर्ट्स में तंबू बनाकर मेरे शरीर से 1 फुट आगे निकला हुआ था...
दरवाजा खुला ही हुआ था...
पर सोनिया दी की बात मुझे अच्छे से याद थी
इसलिए मैने अंदर जाने से पहले अपने सारे कपड़े निकाल कर वहीं छोड़ दिए.
और जब दरवाजा धकेल कर अंदर आया तो मेरी साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
***********
अब आगे
***********
सोनिया दी
मेरे बेड पर
पूरी नंगी होकर
घोड़ी बनकर तैय्यार थी...
उनकी रसीली गांड मेरी तरफ थी...
उस गांड के नीचे चमक रही उनकी नाश्पति की शेप वाली चूत को देखकर मेरे मुँह में पानी आ गया...
वो अपने सिर को पीछे करके , सिसकारी मारती हुई बोली
''अब आ भी जाओ ना.....कितना तरसाओगे......जस्ट कम एन्ड फक मी भाई......फक्क मी हार्ड....''
मुझसे भी और सब्र नही हुआ और अपनी बहन की बेसब्री को देखकर तो बिल्कुल भी नही....
मन तो कर रहा था की उस रसीली गांड पर मुँह लगाकर सारा आम रस पी जाऊं पर इस वक़्त चुदाई सिर पर चढ़ चुकी थी...
इसलिए मैं अपने लंड पर थूक लगाकर सीधा बेड पर आया और अपना लंड उस घोड़ी बनी सोनिया की चूत में फँसाकर मैने एक करारा शॉट मारा और मेरा लंड एक बार फिर से घोड़े की तरह हिनहिनता हुआ अंदर घुसता चला गया...
मेरे हाथ सोनिया की मुलायम गांड को दबा रहे थे...
उसे सहला रहे थे.
और सोनिया दी के खुले मुँह से लार निकल कर नीचे गिर रही थी....
उनकी आँखे बंद थी और वो अपनी चूत में मेरे लॅंड को पाकर किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच चुकी थी..
करीब 5 मिनट तक उनकी चूत को पीछे से मारकर मैने उन्हे घुमा कर बेड पर लिटा दिया और अपना मुँह सीधा उनकी ब्रेस्ट पर लगा कर उनके निप्पल को चूसने लगा..
अपनी जीभ से सहलाने लगा...
अपने दांतो में उस अंगूर के दाने को फँसाकर उसका रस निकालने लगा..
दोनो बुब्बे अच्छे से चूसने के बाद मैं खड़ा हुआ और अपने लंड को हाथ में लेकर उसे डंडे की तरह पकड़ कर उसकी चूत पर मारने लगा...
बेचारी सोनिया दी की चिकनी चूत पर वो भारी लंड सच में किसी डंडे की तरह ही पड़ रहा था...
पर दर्द के बदले अभी भी उनके मुँह से सिर्फ़ सिसकारियाँ ही निकल रही थी..
''आआआआआआआअहह........... मेरे मास्टर बन गये हो तुम....और मैं तुम्हारी स्लेव.... मारो मुझे अपने इस डंडे से....सज़ा दो..... तड़पाओ मुझे.....तरसाओ मुझे....पर चोदना भी ज़रूर......उम्म्म्मममममम..... इस डंडे को अंदर लेने में ज़्यादा मज़ा मिलता है....''
मैं मुस्कुरा दिया और धीरे से अपने उस डंडे को उसकी चूत की दरार में फँसा कर रग़ाड़ दिया...
''आआआआआआआआहह मार ही डालो ना...इससे अच्छा तो.....अहह......डालो भी सोनू......मेरी चूत में अपना ये लंड ......अंदर तक.....घुसा दो.....ना ...प्लीईईईईस....''
मुझे भी अब ज़्यादा तरसाना सही नही लगा...
वैसे भी नीचे की गयी आधी चुदाई के बाद उस चुदाई को आगे कंटिन्यू करना भी ज़रूरी था...
इसलिए मैं अपने लंड को चूत पर लगा कर नीचे आने लगा..
और फिर धीरे-2 मैने अपने आप को सोनिया दी के जिस्म पर बिछा सा दिया...
मेरा लंड अब इतना चिकना हुआ पड़ा था की उसे चूत का दरवाजा सिर्फ़ दिखाने मात्र से ही , वो उसमें फिसलता चला गया...
''आआआआआआआआआआआहह उम्म्म्मममममममम.... हर बार .... बार-2, जब भी......ये ....अंदर जाता है....... एक अलग ही मज़ा ......आता है.......''
सोनिया दी की बात तो बिल्कुल सही थी.....
चूत की दीवारो में जो खुरदुरापन था, उसपर जब चिकना लंड रगड़ता हुआ अंदर जाता था तो उसकी फीलिंग का कोई मुकाबला नही था..
मैं आँखे बंद करके और सोनिया दी मुँह खोलकर इस चुदाई का मज़ा ले रहे थे...
हम दोनो का शरीर लगभग एक ही मोशन में आगे पीछे होकर उस लंड और चूत के मिलन को महसूस कर रहा था...
मेरे होंठ अपना काम करने में लगे थे और लंड अपना..
होंठो से उसके होंठो को चूसता हुआ मैं धीरे -2 अपनी स्पीड बड़ा रहा था...
और जब पूरी स्पीड पकड़ ली मेरी चुदाई की ट्रेन ने तो मैं उठकर बैठ गया और सोनिया दी की टांगे पकड़ कर उन्हे मरोड़ कर उनकी छाती से लगा दिया और जोरों से अपना लंड उनकी चूत में पेलने लगा...
एक तो कसी हुई छूट और उपर से टांगे फेला कर चुदाई...
सोनिया दी की तो हालत पतली हो गयी...
ऐसा लग रहा था जैसे उनके शरीर को लंड की आरी से चीरा जा रहा है...
पर ऐसे चिरने में जो मज़ा मिल रहा था वो उनकी आहें बयान कर रही थी..
''आआआआआआआआआआआआअहह सोनू....................... उम्म्म्ममममममममम......... मज़ा आ गया....... सााअले...... तेरे लंड को अंदर लेकर सच में मैं दूसरी दुनिया में पहुँच जाती हूँ .....अहह...... ऐसे ही चोद मुझे.....ज़ोर से....चोद .......अपनी बहन को.......रंडी बहन को.........अहह...''
मैं भी जोश में आ गया....
''आआआआआआआआअहह.....हाआँ तू है रंडी....साली कुतिया ........ मेरी पर्सनल कुतिया ......मेरी रंडी बहन..... मेरे लंड की प्यासी बहन...... अहह...साली........... भेन की लोड़ी ........अहह.....ये ले.....अपने भाई का माल.......अपनी चूत में ......ये ले.....आआआआआहह ये लएए...''
और इतना कहकर मैने उसकी आग उगलती चूत में अपने लंड का पानी छिड़कना शुरू कर दिया....
एक के बाद एक कई पिचकारियां मारकर मैने उसकी चूत की आग को अपने लंड के पानी से बुझा दिया...
सोनिया दी के चेहरे को देखकर सॉफ पता चल रहा था की एक घंटे तक चली इस चुदाई को उन्होने कितना एंजाय किया है...
उसके बाद उठकर हम दोनो बाथरूम में चले गये...
एक साथ नहाने...
नहाते हुए मैने साबुन से अच्छी तरह अपनी बहन के हर अंग को रगड़ा....
एक तो साबुन चिकना और उपर से उसका बदन भी...
ऐसा लग रहा था जैसे मैं संगमरमर से बनी कोई मूरत पर हाथ लगा रहा हूँ.
जहा भी हाथ लगता, मेरे हाथ फिसल कर दूसरे कोने तक अपने आप चले जाते..
मैं सोनिया दी के सीने से चिपक कर उनके बूब्स को अपने हाथो में लेकर मसल रहा था...
वो भी अपनी आँखे बंद करके एक लय बनाकर अपने शरीर को मुझसे रगड़ रही थी.मेरे लंड को साफ़ कर रही थी
मैने धीरे से पूछा : "दी...सच बताना....आप शुरू-2 में, मुझे लेकर पोस्सेसिव थी, उसके पीछे क्या राज था...? ''
सोनिया ने आँखे नही खोली बल्कि बंद आँखे करे ही मुस्कुराती रही...
और बोली : "मुझे पता है, तूने भी ये बात नोट की होगी की पहले तो मैं तुझे अपने सिवा किसी और की तरफ देखने भी नही देती थी...पर आजकल खुद ही तेरी हैल्प करके तेरे लिए जुगाड़ तैयार कर रही हूँ ...है ना....''
मैं : "हाँ दी... इंफेक्ट मुझे भी अच्छा लगता था की आप मेरे लिए पोस्सेसिव है...और ये तो और भी अच्छा लग रहा है की आप मेरी हैल्प कर रही है....पहले तनवी ...और अब मोंम को भी...''
मैं शरमा भी रहा था...
पर ये बात मैं क्लियर कर लेना चाहता था...क्योंकि ये मुझे काफी दिनों से खटक रहा था, इसलिए...
सोनिया : "हाँ ....अच्छा तो लगना ही है .....फ्री में मिल रही चूत किसे अच्छी नही लगती...''
फिर वो बोली : "वैसे सच कहूँ तो मुझे भी पता नही चला की ये बदलाव कब और कैसे आता चला गया मुझमे... शायद पहले मैं पूरी सॅटिस्फाइ हो जाना चाहती थी तुमसे...और जब एक बार वो हो गया तो मुझे लगा की ये मज़ा मैं अपने तक ही नही रख सकती...दूसरो को भी इस लव्ली कॉक का स्वाद मिलना चाहिए...इसलिए वो हैल्प की मैने...और आगे भी करती रहूंगी...''
मुझे उसकी ये दिल से निकली बात बहुत पसंद आई...
अब मैं और अच्छे से उनके जिस्म को अपने बदन से रगड़ रहा था..
चूम रहा था....
स्मूच कर रहा था...
मेरा लंड उनकी चूत के निचले हिस्से में फंसकर दूसरी तरफ से निकल चुका था, हम दोनों अपनी कमर मटका कर उसके स्पर्श का आनंद ले रहे थे
पर आज के लिए जितना होना था वो हो चुका था...
इसलिए अपने दोबारा खड़े हो चुके लंड को मैने बड़ी मुश्किल से बिठाकर चुप करवाया...
क्योंकि , अभी तो बहुत कुछ होना बाकी था....
शाम को भी...और रात को भी.