15-06-2014, 10:29 PM 
		
	
	
	
	फागुन के दिन चार
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		15-06-2014, 10:30 PM 
		
	 
		फागुन के दिन चार मेरे देवर कम नंदोई, सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो, तुमने बोला था की इस बार होली पे जरुर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ. देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है वही तुम्हारा पुराना माल...न सतरह से ज्यादा न सोला से कम ...क्या उभार हो रहे हैं उसके ...मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया इंटर में जा रही तो अब तो इंटर कोर्स करवाना ही होगा तो फिस्स से हंस के बोली...अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती अपने तो सैयां , देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और ...तो उसकी बात काट के मैं बोली अच्छा चल आरहा है होली पे एक .और कौन तेरा पुराना यार , लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा एकदम गाढा बहोत दिन तक असर रहता है. तो वो हँस के बोली अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आगया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन ...वो बाद के असर का खतरा नहीं रहता. और हां तुम मेरे लिए होली की साडी के साथ चड्ढी बनयान तो लेही आओगे उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना. मेरी साइज़ तो तुम्हे याद ही होगी मेरी तुम्हारी तो एक ही है...३४ सी और मालुम तो तुम्हे उसकी भी होगी...लेकिन चल मैं बता देती हूँ ...३० बी. हां होली के बाद जरूर ३२ हो जायेगी." मैं समझ गया भाभी चिट्ठी मैं किसका जीकर कर रही थीं ...मेरी कजिन ... हाईस्कूल का इम्तहान दिया था उसने. जबसे भाभी की शादी हुयी थी तभी से उसका नाम लेके छेडती थीं आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी . शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम ले के और भाभी तो बाद में भी प्योर नान वेज गालियां पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में वो भी ...कम चुलबुली नहीं थी . कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलतीं, हे हो गयी है ना लेने लायक ...कब तक तडपाओगे बिचारी को कर दो एक दिन..आखिर तुम भी ६१-६२ करते हो और वो भी कैंडल करके...आखिर घर का माल घर में ... पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियाँ चल रही थीं. छेड छाड़ थी मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी. 
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