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Incest फागुन के दिन चार

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Incest फागुन के दिन चार
kunal56 Offline
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#1
15-06-2014, 10:29 PM
फागुन के दिन चार
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#2
15-06-2014, 10:30 PM
फागुन के दिन चार
मेरे देवर कम नंदोई,
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,
तुमने बोला था की इस बार होली पे जरुर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ. देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है वही तुम्हारा पुराना माल...न सतरह से ज्यादा न सोला से कम ...क्या उभार हो रहे हैं उसके ...मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया इंटर में जा रही तो अब तो इंटर कोर्स करवाना ही होगा तो फिस्स से हंस के बोली...अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती अपने तो सैयां , देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और ...तो उसकी बात काट के मैं बोली अच्छा चल आरहा है होली पे एक .और कौन तेरा पुराना यार , लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा एकदम गाढा बहोत दिन तक असर रहता है. तो वो हँस के बोली अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आगया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन ...वो बाद के असर का खतरा नहीं रहता. और हां तुम मेरे लिए होली की साडी के साथ चड्ढी बनयान तो लेही आओगे उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना. मेरी साइज़ तो तुम्हे याद ही होगी मेरी तुम्हारी तो एक ही है...३४ सी और मालुम तो तुम्हे उसकी भी होगी...लेकिन चल मैं बता देती हूँ ...३० बी. हां होली के बाद जरूर ३२ हो जायेगी."


मैं समझ गया भाभी चिट्ठी मैं किसका जीकर कर रही थीं ...मेरी कजिन ... हाईस्कूल का इम्तहान दिया था उसने. जबसे भाभी की शादी हुयी थी तभी से उसका नाम लेके छेडती थीं आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी . शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम ले के और भाभी तो बाद में भी प्योर नान वेज गालियां पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में वो भी ...कम चुलबुली नहीं थी . कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलतीं, हे हो गयी है ना लेने लायक ...कब तक तडपाओगे बिचारी को कर दो एक दिन..आखिर तुम भी ६१-६२ करते हो और वो भी कैंडल करके...आखिर घर का माल घर में ...
पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियाँ चल रही थीं. छेड छाड़ थी मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी.
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kunal56 Offline
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#3
15-06-2014, 10:30 PM
" माना तुम बहोत बचपन से मरवाते डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की मां को पसीना आता है वो तुम हंस हंस के घोंट लेते हो...लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ १० रुपये का नोट भी रख रही हूं, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाडे जरूर लगाना... सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी..." लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़ कर नाच उठा,
" अच्छा सुनो, एक काम करना. आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते...रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना. गुड्डी का हाईस्कूल का बोर्ड का इम्तहान ख़तम हो गया है. वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना. जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी."
चिठ्ठी के साथ में १० रुपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहंचने पे करेंगी.
आखिरी दो लाइनें मैंने १० बार पढ़ीं और सोच सोच के मेरा तम्बू तन गया. ...


गुड्डी ...देख के कोई कहता बच्ची है मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें...एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी...सिवाय चेहरे को छोडके...एक दम भोला . लम्बी तो थी ही, ५-३ रही होगी असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे. ३० सी .. और दूसरी .मेरे सामने पिछले साल का दृश्य नाच उठा. मेरा सेलेक्शन हो गया था और मेरा मन भी ...पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुयी थी. गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं और गुड्डी भी आई थी. सब लोग पिक्चर देखने गए...डिलाईट टाकिज ...अभी भी मुझे याद है.कोई पुरानी सी पिक्चर थी...रोमांटिक ..हाल करीब खाली सा था. घर के करीब सभी लोग थे. गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी. हम लोग मूंग फली खारहे थे...सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था. उसने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पे रख लिया. मैं कुछ समझा नहीं और वहीँ हाथ रहने दिया. थोड़ी देर रह के उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हलके से दबा दिया. अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं...हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्ल फ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था. मैंने दोनों और देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी. अब मैने हलके से उसके उभार दबा दिए. उसके ऊपर कोई असर नहीं पडा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली , हे ज़रा मूंगफली बगल में पास कर दो सब तुम ही खाए जा रहो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया. थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया अब इससे ज्यादा
सिगनल क्या मिलता. मैंने उसके छोटे छोटे बूब्स हलके से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कस के दबा दिया. वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जींस के ऊपर रख दिया. लेकिन तभी इंटरवल हो गया.
हम सब बाहर निकले. वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया. मैंने लाख समझाया की बहोत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों ...कूद काद के मैं ले आया. लेकिन दो ही मिलीं. उन दोनों को पकडाते हुए मैंने कहा लो दो ही थीं मेरे लिए नहीं मिली...तब तक पिक्चर शुरू होगई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो ले के...लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी बड़ी आंखे नचा के बोली, तुम मेरी ले लेना ना. मैंने उसी टोन में जवाब दिया. लूँगा तो मना मत करना. उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है हाँ तुम्ही घबडा जाते हो ...बुद्धू और वो हाल में घुस गयी. मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सूना के बोली , कुछ लोग एक दम बुद्धू होते हैं है ना...और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खीस से हंस दी...मैं बिचारा बीच में. कोरेनेटो की एक बाईट ले के उसने मुझे पास की और बोला...देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना. मैंने कस के एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हलके से उसके कान में फुसफुसाया...मजा तो पूरा लेने में है. जवाब उसने दिया कस के मेरी जांघ पे एक कस के चिकोटी काट के...ठीक 'उस के ' बगल में और मुझसे कार्नेटो वापस लेके. बजाय बाईट लेने के उसने हलके से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगा के मुझे दिखा के पूरा गप्प कर लिया.
अगले दिन रात तो हद हो गई. गरमी के दिन थे. भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे. एक दिन रात में बिजली चली गई. उमस के मारे हालत ख़राब थी. मैंने अपने चारपायी बरामदे में मेरी cनिकाल ली. थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा तो बगल में एक और चारपाई ...मेरी चारपाई से सटी...और उसपे वो सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...हलकी हलकी खर्राटे की आवाजें...मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में...मैंने हिम्मत की और चारपाई के एक दम किनारे सट के उसकी ओर करवट ले के लेट गया और सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...थोड़ी देर बाद हिम्मत कर के मैं उसके चद्दर के अंदर हाथ डाला..पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे ...वो टस से मस नहीं हुयी. मुझे लगा शायद गहरी नींद में है. लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़ के मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर...पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे. समझ में ना आये की क्या करूँ . तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया...फिर तो...कभी मैं सहलाता कभी हलके से दाबता कभी दबोच लेता. दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ...अब मैं बल्कि पावर कट का इंतजार करता था...और उस दिन वो शलवार कुरते में थी .थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाडा पहले से खुला था. पहली बार मैंने जब 'वहां' छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा बस जो कहाए है ना गूंगे का गुड बस वही. सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला. दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो ...भाभी भी साथ होतीं और`वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती. यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगा के खुल के मजाक करतीं या गालियां सुनाती तो भी . ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिल के गर्मी की लम्बी दुपहरियों में ...और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलतीं क्यों देवर जी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा लगता है मुझे ही ट्रेन करना पडेगा वरना मेरी देवरानी आके मुझे ही दोष देगी तो वो भी हंस के तुरपन लगाती...हाँ एक दम अनाडी हैं.. उस सारंग नयनी की आंखे कह देतीं की वो मेरे किस खेल में अनाडी होने की शिकायत कर रही है.जिस दिन वो जाने वाली थी, वो उपर छत पर, अलगनी पर से कपडे उतारने गई. पीछे पीछे मैं भी चुपके से ...हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला. ना हंस के वो बोली. फिर हंस के दारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी . अब मुझसे नहीं रहा गया.मैंने उसे कस के दबोच लिया और बोला...हे दे दो ना बस एक बार ...और कह के मैंने उसे किस कर लिया ये मेरा पहला किस था. लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गयी और थोड़ी दूर खड़ी होके हंसते हुए बोलने लगी..इंतजार बस थोडा सा इंतजार . एक दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट मन जवानी की आहट एक दम तेज हो गयी थी. मैंने उससे पूछा हे पिछ.ली बार तुमने कहा था ना इंतज़ार तो कब तक...बस थोडा सा और. मैं शायद उदास हो गया था . वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली पक्का...बहोत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस . मेरे चेहरे पे तो वो ख़ुशी थी की...मैंने फिर कहा सब कुछ तो वो
हंस के बोली एक दम लेकिन तब तक बारात आगई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर.
भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उस ने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और ...उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस हो के ही जाउंगा...मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दीं.


ओह्ह कहानी तो मैंने शुरू कर दी लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं. तो चलिए शुरू करते हैं सबसे पहले मैं यानी आनंद. उम्र जब की बात बता रहा हूँ..२३वां लगा था. लम्बाई ५-११. कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं. गोरा..चिढाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थीं पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं.हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था. और शायद इसलिए मैं अब तक 'कुवांरा' था. मेरी इमेज एक सीधे साधे लडके की थी. चलिए बहूत हो गयी अपनी तारीफ़. हां अगर आप ' उस' चीज के बार मैं जानना चाते हैं हैं की ...तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था. मेरी भाभी ...बहोत अच्छी थीं...शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुल के बात कट करती थीं. और इसका एक कारण भी था.. उम्र में मुझसे शायद दो साल ही बड़ी थीं. घर में उनकी उम्र के आस पास का मैं ही था. फिर फिल्मी गानों से लेके हर चीज़ तक यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थीं. और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना बस चिढाती बहोत थीं और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेके, मजाक करने में तो एक नम्बर की...मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी. जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की उसने अभी १०वें का इम्तहान दिया था. और गुड्डी जो बनारस में रहती थी, भाभी की भतीजी थी लेकिन भाभी को दीदी कहती थी..शायद इस लिए की भाभी के परिवार में सभी उन्हें दीदी कहते थे. हाँ और उंसे दोस्ती भी उसकी वैसे ही थी. कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाक़ात हो जायेगी. तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था...यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था.
तो मैंने जल्दी से जल्दी साड़ी तयारी कर डाली. पहले तो भाभी के लिए साडी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी बनयान एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं. बनारस के लिए कोई सीधी गाडी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहांसे बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और ऑटो से बनारस. वहां मैंने एक रेस्ट हाउस पहले से बुक करा रखा था. सामान वहां रख के मैं फिर से नहा धो के फ्रेश शेव करके तैयार हुआ. क्रीम आफ्टर शेव लोशन , परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुयी सफेद शर्ट...आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्कि ...शाम हो गयी थी. मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाके मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ गुड्डी से मिल लूंगा और कल एक दम सुबह जाके उस के साथ घर चला जाउंगा. बस से २-३ घंटे लगते थे.
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#4
15-06-2014, 10:33 PM
बस से २-३ घंटे लगते थे. रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली. मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहोत पसंद हैं.
लेकिन वहां पहुंच कर तो मेरी फूँक सरक गयी. वहां सारा सामान पैक हो रहा था. भाभी की भाभी या गुड्डी की मां ( उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं. अचानक प्रोग्राम बन गया . अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बना के आया था. मैंने मन ही अपने को गालियाँ दी और प्लानिंग कर बच्चू. गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई. फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ. मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया. लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे. बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे इसलिए सब जल्दी जल्दी तयारी करनी पड़ गयी लेकिन अब सब पैकिंग हो गयी है.मेरा चेहरा और लटक गया था. हम लोग बगल के कमरे में थे. भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे. गुड्डी एक बैग में अपने कपडे पैक कर चुकी थी. वो बिना मेरी और देखे हलके हलके बोलने लगी, जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं है ना. वो उठ के मेरे सामने आ गयी और मेरे गाल पे एक हलकी सी चिकौटी काट के बोलने लगी," अरे बुध्धू ...सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं. मैं तुम्हारे साथ ही जाउंगी. पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी...और तुम्हारी रगड़ाई करुँगी. " मेरे चेहरे पे तो १२०० वाट की रोशनी जगमग हो गयी. " सच्ची'" मैं ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. " सच्ची ' और उस सारंग नयनी ने इधर उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भर के एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़ के उधर ले गयी जहां बाकी लोग थे. मेरे कान में वो बोली, " मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे. एकदम मैंने भी हलके से कहा. किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रहीं थीं. मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाउंगा रेस्ट हाउस में रुका हूँ. कल सुबह आके गुड्डी को ले जाउंगा. वो बोलीं अरे ये कैसे हो सकता hai. अभी तो आप रुको खाना वाना खा के जाओ. मैं लेकिन तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाक़ात तो हो ही गयी. आप लोग भी बीजी हैं. थोड़ी देर में ट्रेन भी है. तब तक वहां एक महिला आयीं क्या चीज थीं. गुड्डी ने बताय की वो चन्दा भाभी हैं. बहभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी...लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी ३८ डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एक दम कसा कडा...मैं तो देखता ही रह गया. मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज भी उन्होंने एक दम लो कट पहन रखा था.


मेरी और उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा. भाभी ने हंस के कहा अरे बिन्नो के देवर ...अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं जायेंगे. मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था...और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा..लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा,
" अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सखे चले जाएँ ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है. लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं..."
" अब ये आप इन्ही से पूछ लो ना...वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं..उसके ननद के यार भी हैं इसलिए ननदोई का भी तो..." भाभी को एक साथी मिल गया था.
" तो क्या बुरा है घर का माल घर में ...वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना बिन्नो की शादी में भी तो आई थी...सारे गावं के लडके .." चंदा भाभी ने छेड़ा.
गुड्डी ने भी मौक़ा देख के पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गयी.
" मेरे साथ की ही है...अभी दसवें का इम्तहान दिया है"
..." अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गयी होगी...भैया....जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा...दबवाने वग्वाने तो लगी होगी...hay न हम लोगों से क्या शर्माना..."


" अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गयी होगी...भैया....जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा...दबवाने वग्वाने तो लगी होगी...hay न हम लोगों से क्या शर्माना..."
..." अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गयी होगी...भैया....जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा...दबवाने वग्वाने तो लगी होगी...है न हम लोगों से क्या शर्माना..."
लेकिन मैं शरमा गया. मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो. और चंदा भाभी और चढ़ गयीं.
" अरे तुम तो लौंडियो की तरह शरमा रहे हो. इसका तो पैंट खोल के देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर."
भाभी हंसने लगी और गुड्डी भी मुस्करा रही थी.
मैंने फिर वही रट लगाई , " मैं जा रहा हूँ ...सुबह आ के गुड्डी को ले जाऊँगा."
" अरे कहाँ जा रहे हो रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गयी है ट्रेन में अभी ३ घंटे का टाइम है और वहां रेस्ट हाउस में जा के करोगे क्या अकेले या कोई है वहां." भाभी बोलीं.
" अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी. क्यों ...साफ साफ बताओ ना अच्छा मैं समझी ...दालमंडी ( बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने...इम्तहान तो हो ही गया है उसका...ला के बैठा देना ..मजा भी मिलेगा और पैसा भी...लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम hai ये बनारस है. किसी लौंडे बाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा. और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी. सुबह आओगे तो गौने की दुल्हिन की तरह टाँगे फैली रहेंगी. " चंदा भाभी अब खुल के चालू हो गयी थीं.
" और क्या हम लोग बिन्नो को क्या मुंह दिखायेंगे ..." भाभी भी उन्ही की भाषा बोल रहीं थीं. वो उठ के किसी काम से दूसरे कमरे में गयीं तो अब गुड्डी ने मोर्चा खोल लिया.
" अरे क्या एक बात की रट लगा के बैठे हो...जाना है जाना है. तो जाओ ना ...मैं भी मम्मी के साथ कानपुर जा रही हूँ. थोड़ी देर नहीं रुक सकते बहोत भाव दिखा रहे हो...सब लोग इत्ता कह रहे हैं..."
" नहीं...वैसा कुछ ख़ास काम नहीं ...मैंने सोचा की थोड़ा शौपिंग वापिंग ..और कुछ ख़ास नहीं...तुम कहती हो तो..." मैंने पैंतरा बदला.
" नहीं नहीं मेरे कहने वहने की बात नहीं है...जाना है तो जाओ ...और शौपिंग तुम्हे क्या मालूम कहाँ क्या मिलता है यहाँ कल चलेंगे ना दोपहर में निकलेंगे यहाँ से फिर तुम्हारे साथ सब शौपिंग करवा देंगे. अभी तो तुम्हे सैलरी भी मिल गयीं होगी ना सारी जेब खाली करवा लूँगी" ये कह. के वो थोड़ा मुस्कराई तो मेरी जान में जान आई.
चन्दा भाभी कभी मुझे तो कभी उसे देखतीं.
" ठीक है बाद में सब लोगों के जाने के बाद ..." मैंने इरादा बदल दिया और धीरे से बोला.
" तुम्हे मालूम है कैसे कस के मुट्ठी में पकड़ना चाहिए..." चन्दा भाभी ने मुस्कराते हुए गुड्डी से कहा.
" और क्या ढीली छोड़ दूं तो पता नहीं क्या..." और मैं भी उन दोनों के साथ मुस्करा रहा था. तब तक भाभी आ गयीं और गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया. मैं खुद ही बोला..
".भाभी ठीक ही है...आप लोग चली जाएँगी तभी जाउंगा..वैसे भी वहां पहुँचने में भी टाइम लगेगा और फिर आप लोगों से कब मुलाकात होगी..."
चन्दा भाभी तो समझ ही रही थीं की ...और मंद मंद मुस्करा रही थीं..लेकिन भाभी मजाक के मूड में ही थीं वो बोलीं,
" अरे साफ साफ ये क्यों नहीं कहते की पिछवाड़े के खतरे का ख़याल आ गया...ठीक है बचा के रखना चाहिए..सावधानी हटी दुर्घटना घटी."
" अरे इसमें ऐसे डरने की क्या बात है देवर जी, ऐसा तो नहीं है की अब तक आपकी कुँवारी बची होगी...ऐसे चिकने नमकीन लौंडे को तो ...वैसे भी ये कहा है ना की मजा मिले पैसा मिले और ..."
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15-06-2014, 10:33 PM
गुड्डी मैदान में आ गयी मेरी ओर से, " इसलिए तो बिचारे रुक नहीं रहे थे...आप लोग भी ना..."
" बड़ा बिचारे की ओर से बोल रही हो. अरे होली में ससुराल आये हैं और बिना डलवाए गए तो नाक ना कट जायेगी...अरे हम लोग तो आज जा ही रहे हैं वरना...लेकिन आप लोग ना..." गुड्डी की मम्मी बोलीं. .
" एकदम," चन्दा भाभी बोलीं. " आप की ओर से भी और अपनी ओर से भी इनके तो इत्ते रिश्ते हो गए हैं ...देवर भी हैं बिन्नो के नंदोई भी...इसलए डलवाने से तो बच नहीं सकते अरे आये ही इसलिये हैं की ...क्यों भैया वेसेलिन लगा के आये हो या वरना मैं तो सूखे ही डाल दूँगी. और तू किसका साथ देगी अपनी सहेली के यार का ...या..." चन्दा भाभी अब गुड्डी से पूछ रही थीं.
गुड्डी खिलखिला के हंस रही थी. और मैं उसी में खो गया था. भाभी किचेन में चली गयी थीं लेकिन बातचीत में शामिल थीं.
" अरे ये भी कोई पूछने की बात है आप लोगों का साथ दूँगी...मैं भी तो ससुराल वाली ही हूँ कोई इनके मायके की थोड़ी...और वैसे भी शर्ट देखिये कीत्ती सफेद पहन के आये हैं इसपे गुलाबी रंग कित्ता खिलेगा. एकदम कोरी है..."
" इनकी बहन की तरह ..." चंदा भाभी जोर से हंसी और मुझसे बोलीं, " लेकिन डरिये मत हम लोग देवर से होली खेलते हैं उसके कपड़ों से थोड़े ही..."
तब तक भाभी की आवाज आई " अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूडियां निकाल दे रहीं हूँ भैया को खिला दो ना...जबसे आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गयी हो.." चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गयीं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला..
" हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है ...वो वाली ( और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हंस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है..जा."
वो मुझे बगल के कमरे में ले गयी और उसने बैठा दिया.


हे कहाँ जा रही हो..." मैं फुसफुसा के बोला.
" तुम ना एकदम बेसबरे हो ...पागल...अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी ..अरे बाबा बस अभी गयी अभी आई. बस यहीं बैठो. उसे मेरी नाक पकड़ के हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती ९-२-११ हो गयी.
मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे. मैं दीवाल घडी के सेकेंड गिन रहा था. पूरे चार मिनट बाद वो आई. एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेके. गरम गरम ताज़ी और खूब बड़ी बड़ी गदराई सी. अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सट के बैठ गयी. उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थीं.
लो,,
मैंने हाथ बढाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया..और अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के बोली,
" मेरे रहते तुम्हे हाथों का इस्तेमाल करना पड़े..." उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेके कहा,
" एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहोत काम है
..." और मैंने उससे बाहों में भर लिया. बिना अपने को छुडाये वो मुस्करा के बोली...लालची बेसबरे ..और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया. मैंने जोर से सर हिलाया.
वो समझ गयी और बोली तुम ना नहीं सुधरने वाले और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगा के मेरे मुंह में डाल दिया. मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुंह में धकेल दी.
" हे आधे की नहीं होती ...पूरा अन्दर लेना होता है." मुस्कारा के वो बोली.
मेरा मुंह भरा था लेकिन मैं बोला "हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना."
" जैसा मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लुंगी.."उसकी अंगुलिया अब मेरे पैम्ट के बल्ज पे थीं. तम्बू पूरी तरह तन गया था.
मेरे हाथ भी हिम्मत कर के उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे.
" हे एक मेरी ओर से भी खिला देना..."किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई.
एक दम गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुंह में थी...
गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एक दम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी. उनके पति दुबई में रहते हैं कभी २-३ साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहोत है . इनकी एक लड़की है गुंजा ९थ में पढ़ती है. गुड्डी के ही स्कूल में ही..
"हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी..." किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई.
' प्लानिंग तो इसकी यही लगती है..." हंस के मैं भी बोला.
गुड्डी जब खाना ले के आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई.
" अरे पाहून खाना खा रहें हो और वो भी सूखे सूखे ...ये कैसे ..."मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता.
" अरे इनकी बहनों का हाल ज़रा सूना दो कस के..." भाभी बोली.
" क्या नाम है इनके माल का. " चन्दा भाभी ने पूछा. बिना नाम के गारी का मजा ही क्या.
गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी. उसने वहीँ से हंकार लगाई,
" मेरा ही नाम है ...गुड्डी."
" आनंद की बहना बिकी कोई लेलो..." गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी.


" आनंद की बहाना बिकी कोई लेलो..." गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी.
अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लौ ...अरे रुपये में ले लौ अठन्नी में ले लौ,
अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लौ अरे अठन्नी में ले लौ चवन्नी में ले लौ
जियरा जर जाय मुफ्त में ले लौ अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लौ.
और अगला गाना चन्दा भाभी ने शुरू किया..
मंदिर में घी के दिए जलें मंदिर में ..
मैं तुमसे पूछूं हे देवर राजा, हे नंदोई भडुए.. हे आनंद भडुए....तुम्हरी बहिनी का रोजगार कैसे चले
अरे तुम्हारी बहिनी का गुड्डी साल्ली का कारोबार कैसे चले ..
अरे उसके जोबना का ब्योय्पार कैसे चले, मैं तुमसे पूछूं हे आनंद भडुए..
"क्यों मजा आ रहा है अपनी बहिन का हाल चाल सुनने में" गुड्डी ने आँखे नचा
के मुझे छेड़ा.
" एक दम लेकिन घर चलो सूद समेत वसुलुन्गा तुमसे.."
" वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना hon .." हंस के मेरी बाहों से अपने को छुडा के वो किचेन में चली गयी.
" वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना हूँ .." हंस के मेरी बाहों से अपने को छुडा के वो किचेन में चली गयी.
गरमागरम पूडियां वो ले आई और बोली कैसा लगा मम्मी पूछ रही थी.
मैं समझ गया वो किसके बारे में पूछ रहीहैं. हंस के मैंने कहा "नमक थोड़ा कम था. मुझे थोड़ा और तीखा अच्छा लगता है. "
" अच्छा ज्यादा नमक पसंद है ना ऐसी मिर्चे लगेंगी की परपाराते फिरोगे. " चन्दा भाभी ne सुन लिया था और वहीँ से उन्होंने जवाब दिया. और अगली गाली वास्तव में जबर्दस्त थी.
" ,मैं तुमसे पूछूँ आनंद साले. अरे तुम्हरी बहिनी के कित्ते द्वार...
आरी तुम्हरी बहिनी गुड्डी साल्ली है पक्की छिनार...
एक जाय आगे दूसर पिछवाडे बचा नहीं कोई नौअवा कहांर ,
क्यों साथ दोनों ओर से गुड्डी ने मुस्कारा के मुझसे पूछा. उधर भाभी ने वहीँ से आवाज लगाईं...
" अरे मैं तो समझती थी की बिन्नो के सिर्फ देवरों को ही पिछवाड़े का शौक है तो क्या उसकी ननदों को भी... "
" एक दम साल्ली नम्बरी छिनार हैं ...." चन्दा भाभी ने जवाब दिया ओर अगला गाना, भाभी ने शुरू किया. मैंने खान धीमे कर दिया था..गालियाँ वो भी भाभियों के मुंह से खूब मस्त लग रहीं थीं.
कामदानी दुपट्टा हमारा है कामदानी ..आनंद की बहिना ने एक किया दू किया ....तुरक पठान किया पूरा हिन्दुस्तान किया
९०० भडुए कालिनगंज ( मेरे घर का रेड लाईट एरिया) के अरे ९०० गदहे...
अरे गुड्डी रानी ने गुड्डी साल्ली ने एक किया दो किया ...हमारो भतार किया भतरो के सार किया .
उन्होंने गाना ख़तम भी नहीं किया था की चन्दा भाभी शुरू हो गयीं...
मैं तुमसे पूछी हे गुड्डी बहना रात की कमाई का मिललई,
अरे भैया चार आना गाल चुमाई का आठ आना जुबना मिस्वाई का
ओर एक रुपिया टांग उठवाई का...
तब तक गुड्डी माल पुआ ले के आई.


एक दम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है...चन्दा भाभी वहीँ से बोलीं..कचकचोवा...
मैंने गुड्डी से कहा ऐसे नहीं तो वो नासमझ पूछ बैठी कैसे..तो मैंने खीच के उसे गोद में बैठा लिया ओर उसके होंठ पे हाथ लगा के बोला ऐसे.
वो ठसके से मेरी गोद में बैठ के मालपुआ अपने होंठों के बीच लेके मुझे दे रही थी ओर जब मिअने उसके होंठों से होंठ सटाए तो वो नदीदी खुद गड़प कर गयी.
चल तुझे अभी घोंटाता हूँ कह के मैंने उसके होंठ काट लिए.
उय्यीई ,,,उसने हलकी सी सिसकी ली ओर मुझे छेड़ा," हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा..कभी काटा तो होगा."
" ना" मैंने खाते हुए बोला.
" झूठे..चूमा चाटा तो होगा..."
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#6
15-06-2014, 10:34 PM
" ना"
" ये तो बहोत नाइंसाफी है. चल अबकी मैं होली में तो रहोंगी ना...उसका हाथ पैर बाँध के सब कुछ कटवाउन्गि.." ओर अबकी उसने मालपुआ अपने होंठों से पास करते, मेरे होंठ काट लिए.
मुझे कुछ कुछ हो रहा था इत्ती मस्ती खुमारी सी लग रही थी...तभी चन्दा भाभी की आवाज आई
"अरे गुड्डी और मालपुआ ले जाओ ओर हाँ अपनी नामवाली के यार से पूचना की अब नमक तो ठीक है ना..."
" भाभी नमक तो ठीक है लेकिन मिर्ची थोड़ी कम है..." मैंने खुद जवाब दिया.
' तुमने अच्छे घर दावत दी.." गुड्डी मुझसे बोलते , मुस्कारते , मुझे दिखा के अपने चूतड मटकाते किचेन की ओर गई ओर सच...अबकी चन्दा भाभी की आवाज खूब ठसके से जोर दार ..
" चल मेरे घोड़े चने के खेत में ...चने के खेत में...
चने के खेत में बोई थी घूंची ...आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची
दबावे दोनों चूंची चने के खेत में....चने के खेत में ......
चने के खेत में पड़ी थी राई ..चने के खेत में...
आनंद साल्ले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई
कस के करे चुदाई चने के खेत में ...चने के खेत में.
अरे चने के खेत में ( अबकी भाभी ने ये लाइन जोड़ी) चने के खेत में पडा था रोड़ा
गुड्डी रंडी को ले गया घोड़ा ...चने के खेत में..चने के खेत में...
घोंट रहीं लौंडा...चने के खेत में..
" तो क्या घोड़े से भी चन्दा भाभी ने वहीँ से मुझसे पुछा...बड़ी ताकत है उस साल्ली में"
ओर यहाँ गुड्डी पूरी तरह पाला पार कर गयी थी. बैठी मेरे पास थी लेकिन साथ ...वहीँ से उसने ओर आग लगाईं.
" अरे उसकी गली के बाहर दस बारह गदहे हरदम बंधे रहते हैं ना विश्वास हो तो उनके भैया बैठे हैं पूछ लीजिये .."
" क्यों, चन्दा भाभी ने हंस के पूछा. " तब तो तुम्हारा प्लान सही था उसको दाल मंडी लाने का...दिन रात चलती उसको मजा मिलाता ओर तुमको पैसा...क्यों है ना."
तब तक उस दुष्ट ने दही बड़े में ढेर सारी मिर्चे डाल के मेरी मुंह में डाल दी.
मैं चन्दा भाभी की बात सुनने में लागा था. इत्ती जोर की मिर्च लगी मैं बड़ी जोर से चिल्लाया पानी.


' अरे एक गाने में ही मिर्च लग गई क्या...हंस के चंदा भाभी ने पूछा.
" ऊपर लगी की नीचे..." भाभी क्यों पीछे रहतीं.
" अरे साफ साफ क्यों नहीं पूछती की गांड में मिर्च तो नहीं लग गई. " चन्दा भाभी भी ना...
पानी तो था लेकिन उस रस नयनी के हाथ में ओर वह कभी उसे अपने गोरे गालों पे लगा के मुझे ललचाती कभी अपने किशोर उभारों पे ..मुझसे दूर खड़ी.
" " चाहिए क्या..." आँखे नचा के हलके से वो बोली
" ऐसे मत देना सब कुछ कबूल करवा लेना पहले." चन्दा भाभी वहीँ से बोलीं.
" ज़रा गंगा जी वाला तो सूना दो इनको..." भाभी ने चंदा भाभी से कहा..
गुड्डी अब पास आके बैठ गयी थी लेकिन ग्लास वाला हाथ अभी भी दूर था...
" बड़े प्यासे हो..." वो ललचा रही थी तड़पा रही थी.
" हाँ..." मैंने उसी तरह हलके से कहा.
" किस चीज की प्यास लगी है ..."
" तुम्हारी"
उसने ग्लास से एक बड़ा सा घूँट लिया...ओर ग्लास अपने हाथ से मेरे होंठों से लगा दिया. हंस के वो बोली, जूठा पीने से प्यारा बढ़ता है. ओर मेरे हाथ से ग्लास लेके बाकी बचा पानी पी गयी.
' कब बुझेगी प्यास....' मैंने बेसब्रे होके उसके कानों में हलके से पूछा.
" बहोत जल्द...कल...अभी मेरी पांच दिन की छुट्टी चल रही है..कल आखिरी दिन है..." और वो ग्लास लेके बाहर चली गयी.
" गंगा जी तुम्हारा भला करें गंगा जी..." चन्दा भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी..
गंगा जी तुम्हारा भला करें गंगा जी...
अरे तुम्हरी बहनी की बुरिया पोखरवा जैसी इनरवा जैसी
ओहमें ९०० गुंडे कूदा करें मजा लूटा करें ,
बुर चोदा करें गंगा जी...
आरे गुड्डी की बुरिया पतैलिया जैसी भगोनावा जैसी....
९ मन चावल पका करे ...."
और एक के बाद एक नान स्टाप ....
आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से...
बहिनी तुम्हारी बिलिया में , क्या क्या समाय,
अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाया
बनारस के सब यार समाय
हाथी जाय घोड़ा जाय...ऊंट बिचारा गोता खाय..हमारी बुरिया में ..
सब एक से बढ़ कर एक ...
बिछी काट गयी सब के तो काटे अरिया अरिया
अरे गुड्डी छिनार के काटे बुरिया में, दौड़ा हो हमारे नंदोई साल्ले
दौड़ा आन्नद साल्ले मरहम लग्गावा भोसडिया में
और..
हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी , अरे गुड्डी रानी
गिरी पड़ीं बिछलाईं जी , अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गए लकडिया जी
अअरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गाड़ियों में घुस गई लकडिया जी...
मैं खांना ख़तम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था...एक दम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना ..तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पुछा.
" हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या...गुझिया में... मुझे कैसे लगा रहा है..."
वो हंसने लगी कस के, " क्यों कैसा लग रहा है..."
" बस मस्ती छा रही है. मन करता है की...तुम पास आओ तो बताऊँ...था न कुछ गुझिया मैं .."
" ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी ...और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाइ थी उन्ही से पूछिए ना...मैंने तो सिर्फ दिया था...सच
कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहाना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है ..."
और तब तक चन्दा भाभी आ गयीं एक प्लेट में चावल ले के....
" ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या..." गुड्डी ने मुड के चंदा भाभी से पूछा..
" मुझे क्या मालूम...मुस्करा के वो बोलीं. " खाया इन्होने खिलाया तुमने ...क्यों कैसा लग रहा है..."
" एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा...और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में..." मैं मुस्करा के बोला.
" साफ साफ क्यों नहीं कहते...अरे मान लिया रही भी हो ..तो होली है ससुराल में आए हो...साल्ली सलहज...यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा. ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है..." और वो झुक के चावल देने लगीं.
उनका आँचल गिर गया...पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में..और उनके लो कट लाल ब्लाउज से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे.
मेरी नीचे की सांस नीचे...उपर की उपर .
लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला नहीं भाभी नहीं ..
" क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह...तेरा तो सच में पैंट खोल के चेक करना पड़ेगा. अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो..."
गुड्डी खड़ी मुस्करा रही थी. ताबा तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गयी...
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15-06-2014, 10:34 PM
हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या...गुझिया में... मुझे कैसे लगा रहा है..."
वो हंसने लगी कस के, " क्यों कैसा लग रहा है..."
" बस मस्ती छा रही है. मन करता है की...तुम पास आओ तो बताऊँ...था न कुछ गुझिया मैं .."
" ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी ...और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाइ थी उन्ही से पूछिए ना...मैंने तो सिर्फ दिया था...सच
कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है ..."
और तब तक चन्दा भाभी आ गयीं एक प्लेट में चावल ले के....
" ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या..." गुड्डी ने मुड के चंदा भाभी से पूछा..
" मुझे क्या मालूम...मुस्करा के वो बोलीं. " खाया इन्होने खिलाया तुमने ...क्यों कैसा लग रहा है..."
" एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा...और मैंने खाया भी कितना... इसलिए जरूर गुझिया में..." मैं मुस्करा के बोला.
" साफ साफ क्यों नहीं कहते...अरे मान लिया रही भी हो ..तो... होली है ससुराल में आए हो...साल्ली सलहज...यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा. ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है..." और वो झुक के चावल देने लगीं.
उनका आँचल गिर गया...पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में..और उनके लो कट लाल ब्लाउज से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे.
मेरी नीचे की सांस नीचे...उपर की उपर .
लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला नहीं भाभी नहीं ..
" क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह...तेरा तो सच में पैंट खोल के चेक करना पड़ेगा. अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो..."
गुड्डी खड़ी मुस्करा रही थी. तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गयी...
चन्दा भाभी उसी तरह मुस्करा रही थीं. उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया.
" क्या देख रहे हो..." मुस्करा के वो बोलीं.
" नहीं...हाँ ... कुछ नहीं.... भाभी." मैं कुछ घबडा के शरमा के सर नीचे झुका के बोला... फिर हिम्मत कर के थूक घोंटते हुए ...मैंने कहा...
" भाभी ....देखने की चीज़ हो तो आदमी देखेगा ही."
" अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे...लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है ..." ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया. लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था. एक उभार साफ साडी से बाहर दिख रहा था और एक दम टाईट ब्लाउज खूब लो कटा हुआ...
मेरा वो तनतना गया था. तम्बू पूरी तरह तन गया था. किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन चन्दा भाभी ना...वो आके ठीक मेरे बगल में बैठ गयीं. एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोलीं...
" हाँ तो तुम क्या कह रहे थे..देखने की चीज है या ...कुछ और भी...देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है..." तब तक मैंने देखा की उनकी आँखे मेरे तम्बू पे गडी हैं.
कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का ...हिम्मत कर के मैं बोल ही गया...
" नहीं भाभी ...मन तो बहूत कुछ करने का होता है है...अब ऐसी हो...तो लालच लगेगा है ना..." अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुल के देख रहा था.


" सिर्फ ललचाते रह जाओगे..." अब वो खुल के हंस के बोलीं. " देवर जी ज़रा हिम्मत करो...ससुराल में हो हिम्मत करो...ललचाते क्यों हों...मांग लो खुल के ...बल्कि ले लो,,,एक दम अनाडी हो." और फिर जैसे अपने से बोल रही हों..एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ..ना...तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी. और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी.
" अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा...." मैं घबडा के बोला.
"झूठे देख के तो लगता है की..." उनकी निगाहें साफ साफ मेरे 'तम्बू' पे थीं. फिर मुस्करा के बोलीं,
" पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है..."
" नहीं ये बात नहीं है ज़रा भी जगह नहीं हैं...".
वो जाने के लिए उठ गयी थीं लेकिन मुड़ीं और बोलीं,
" अच्छा जी ...कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे..पूरा खाना है...एक एक दाना...और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना...पीछे वाले छेद से डाल दूँगी."




तब तक दरवाजा खुला और भाभी ( गुड्डी की मम्मी) और गुड्डी अंदर आ गए..भाभी भी चन्दा भाभी का साथ देती हुयीं बोलीं..
" एक दम और जायगा तो दोनों ओर से पेट में ही ना..."
वो दोनों तो हंस ही रही थीं ...वो दुष्ट गुड्डी भी मुस्करा के उन लोगों का साथ दे रही थी...
पता चला की क्राइसिस ये थी की ...रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाडी की क्या हालत है ओर दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुयी थी. नीचे कोई थे जिन की एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उन से बात नहीं हो पा रही थी.
मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी.
"अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहतीं." मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक दो लोगों को फ़ोन लगाया.
" बस दस मिनट में पता चल जाएगा...भाभी आप चिंता ना करें."
" चलो मैं तो इतना घबडा रही थी..." चैन की साँस लेते हुए वो चली गयी लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गयीं. "चल पैकिंग जल्दी ख़तम कर ओर अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय.."
मैंने खाना खतम किया ही था की फ़ोन आ गया.
मैंने जाके भाभी को बता दिया. गुड्डी अपने छोटे भाई बहनों को तैयार कर रही थी ओर चन्दा भाभी भी वहीँ बैठी थीं.
" गाडी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है...स्टेशन पहुँचने में २० मिनट लगेगा. तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं...ओर...
" नहीं हम सब लोग तैयार हैं...गब्बू तुम जाके रिक्शा ले आ." अपने छोटे लडके से वो बोलीं.
" ओर ...रहा आपकी बर्थ का ..तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था ...तो १९ ओर २१ नंबर की २ बर्थें मिल गई हैं. आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे. स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे ...मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा.."
" अरे भैया ये ना...बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे ...अगर तुम ना होते ना...लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी. मैं तो सोच रही थी की...ज़रा मैं नीचे से सब से मिल के आती हूँ." ओर वो नीचे चली गईं.
चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा "अरे असली पावर वाली तो तू है...जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए है.."
वो शंरमाई मुस्कराई ओर बोली हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो...
मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ.
" मतलब ..." गुड्डी ने घूर के पूछा.
" अरी यार ९ बज रहा है...इन लोगों को छोड़ के मैं रेस्ट हाउस जाउंगा...ओर फिर सुबह तुम्हे लेने के लिए...हाजिर...".
" जी नहीं ..."गुर्राते हुए वो बोली." क्या करोगे तुम रेस्ट हाउस जाके...पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ..कोई जरुरत नहीं...फिर सुबह लेट हो जाओगे...कहोगे देर तक सोता रह गया...तुम कहीं नहीं जाओगे बल्कि मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ. दो मिनट में तैयार हो के आई."
ओर ये जा वो जा...
चंदा भाभी मुस्कराते हुए बोलीं, अच्छा है तुम्हे कंट्रोल में रखती है..."
मेरे मुंह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती. तब तक वो तैयार हो के आ भी गयी. गुलाबी शलवार सूट में गजब की लग रही थी. आके मेरे बगल में खड़ी हो गयी.


क्या मस्त लग रही हो...मैंने हलके से बोला...लेकिन दोनों नें सुन लिया. गुड्डी ने घूर के देखा ओर चन्दा भाभी हलके से मुस्करा रही थीं. मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी. लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हलके से ठीक कर लिया ओर चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला,
" हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है. "
" एकदम..क्या लाना है..."
" बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो लेले ..."
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#8
15-06-2014, 10:34 PM
" अरे आप भी ना...खिलखिलाती हुयी, मेरी और इशारा करके वो बोली, 'ये चलता फिरता एटीएम् तो है ना मेरे पास.' ओर मुझे हड़काते हुए उसने कहा,
" हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकाल के मुझे दे दो. "चन्दा भाभी भी ना...मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाडा सहला रहा था. वो अपनी एक उंगली कस के दरार में रगड़ती बोलीं,
" अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो...ये तो कहीं मुंह नहीं दिखाने रहेंगे.."
गुड्डी मुस्कराती हुयी मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी. तभी उसने कुछ देखा ओर उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया. मैं समझ गया ओर घबडा गया की कही वो किशोरी बुरा ना मान जाए. जब वो कमरे से बाहर गयी थी तो उसके ड्रावर से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में ..बहोत सेक्सी लग रही थी. मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई.
" क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या..." चन्दा भाभी ने छेड़ा.
मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें.
" हाँ कुछ ख़ास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी ." मेरे पर्स से कार्ड निकाल के दिखाते हुए कहा.
" अरी उससे क्या होगा पास वर्ड चाहिए. " चन्दा भाभी ने बोला.
" वो इनकी हर चीज का है मेरे पास..." ठसके से प्यार से मुझे देख मुस्कारते हुए वो कमल नयनी बोली.
उसकी बर्थ डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से ले के सारे कार्ड्स तक...
लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ ओर था..' अरे इनके पास तो टकसाल है...टकसाल." वो आँख नचाते बोलीं.
" इनके मायके वाली ना...जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थीं. " गुड्डी कम नहीं थी.
" और क्या एक रात बैठा दें ...तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा...रात भर लाइन लगी रहेगी. " चंदा भाभी बोलीं.
" ओर अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो करी सकते हैं ना..." गुड्डी पूरे मूड में थी. फिर वो मुझे देख के बोलने लगी,
कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है, मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्करा के बोला,
" भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का ज़माना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए.
फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा " भाभी आप कह रही थीं ना...बाजार से कुछ लाना है."
" अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन..."
" हाँ मुझे बताइये ..ओर वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं..." हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली.
" वो जो एक स्पेशल पान की दूकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी."
" अरे वही जो लक्सा पे है ना ..जहां एक बार आप मुझे ले गयी थीं ना. " गुड्डी बोली.
" वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना ओर अपने लिए एक मीठा पान..."
" लेकिन मैं पान नहीं खाता...आज तक कभी नहीं खाया." मैंने बीच में बोला.
" तुमसे कौन पूछ रहा है...बीच में जरूर बोलेंगे..." गुड्डी गुर्रायी. ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं. हाँ ओर क्या लाना है..."
" कल तुम इनके मायके जाओगी ना... तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्थ्था के यहाँ से. बाकी तेरी मर्जी."
पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली ओर मुझे देती हुयी बोली, " रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पडा है."
तब तक नीचे से बच्चोंकी आवाज आई..रिक्शा आ गया...रिक्शा आ गया.
हम लोग नीचे आ गए. मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाउंगा लेकिन वो दुष्ट जान बूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गयी ओर मुझे मुड के अंगूठा दिखा रही थी.
मुझे बच्चों के साथ बैठना पडा.
गनीमत थी की गाडी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पडा. बर्थ भी मिल गयी ओर स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था...उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की...लौटते समय मैंने उसके उभारों की और देखा. हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे...ओर मुझे देख के मुस्करा के उसने दुपट्टा ओर ऊपर एक दम गले से चिपका लिया ओर मेरी ओर सरक आई ओर बोली खुश.
" एक दम " ओर मैंने उसकी कमर में हाथ डाल के अपनी ओर खींच लिया.
" हटो ना ..देखो ना लोग देख रहे हैं..." वो झिझक के बोली.
" अरे लोग जलते हैं ...तो जलने दो ना...जलते हैं ओर ललचाते भी हैं. " मैंने अपनी पकड़ ओर कस के कर ली.
" किस से जलते हैं ..." बिना हटे मुस्करा के वो बोली.
" मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीं ..."
मेरी बात काट के मुस्करा के वो बोली, : इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं...
" ओर ललचाते तुम्हारे..".मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया...
धत ...दुष्ट और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया...


" तुम भी ना चल्लो तुम भी क्या याद करोगे...लोग तुम्हे सीधा समझते हैं..." मुस्करा के वो बोली ओर दुपट्टा उसने ओर गले से सटा लिया.
"मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं..." ओर मुझे देख के इतरा के मुस्करा दी.
" तुम्हारे मम्मी पापा तो..." मेरी बात काट के ...वो बोली..' हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने ...मम्मी पापा दोनों ही ना...सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहोत अच्छा लगता है." ओर उसने मेरा हाथ कस के दबा दिया.
" सच्ची.'
सच्ची. लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे." वो हंस के बोली.
चारो ओर होली का माहौल था. रंग गुलाल की दुकानें सजी थीं. खरीदने वाले पटे पद रहे थे. जगह जगह होली के गाने बज रहे थे. कहीं कहीं जोगीड़ा गाने वाले...कहीं रंग लगे कपडे पहने..तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी रोको रोको...
" क्यों कया हुआ ...कुछ दवा लेनी है क्या..." मैंने सोच में पड के पुछा.
" हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या..." वो आगे आगे मैं पीछे पीछे ...
:" एक पैकेट माला डी ओर एक पैकेट आई पिल ...." मेरे पर्स से निकाल के उसने १०० की नोट पकड़ा दी.
रिक्शे पे बैठ के हिम्मत कर के मैंने पूछा..." ये..."
" तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुण गान हो रहा था...क्या पता होली में तुम्हारा मन उस पे मचल उठे...तुम ना बुद्धू ही हो बुद्धू ही रहोगे....मेरे गाल पे कस के चिकोटी काट के वो बोली." तुमसे बताया तो था ना की....आज मेरा लास्ट डे है ...तो क्या पता ...कल किसी की ...लाटरी निकल जाए....:"
मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो हजारों पिचारियां चल पड़ी हों साथ साथ
मैं कुछ बोलता उस के पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी....
'अरे भैया बाएं बाएं....हाँ वहीँ गली के सामने बस यहीं रोक दो....चलो उतरो."
गली के अन्दर पान की दूकान ...तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था...
दूकान तो छोटी सी थी...लेकिन कई लोग...रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये...
लेकिन वो आई बढ़ के सामने ..दो जोड़ी स्पेशल पान..पान वाले ने मुझे देखा ओर मुस्करा के पूछा...
सिंगल पावर या फुल पावर ...मेरे कुछ समझ में नहीं आया...मैंने हडबडा के बोल दिया...फुल पावर.
वो मुस्करा रही थी ओर मुझ से बोली " अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो...एक..."
" लेकिन मैं तो खाता नहीं ..." मैंने फिर फुसफुसा के बोला.
पान वाला सर हिल्ला हिला के पान लगाने में मस्त था. उस ने मेरी और देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना कर के बोल दिया...
" मीठा पान दो ..."
" दो ...मतलब.." मैंने फिर गुड्डी से बोला तो वो मुस्करा के बोली "घर पहुँच के बताउंगी की तुम खाते हो की नहीं. "
मेरे पर्स से निकाल के उसने ५०० की नोट पकड़ा दी. जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया ओर पर्स में रख लिया. रिक्शे पे बैठ के मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था.
" याद है मुझे गोदौलिया जाना पडेगा, भइया थोडा आगे मोड़ना. "
रिक्शे वाले से वो बोली.
" हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना...मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे.." मैं बोला.
हंस के वो बोली..." जैसे तुम काम देव के अवतार हो...गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी ...वरना..." मेरे कंधे हाथ रख के मेरे कान में बोली..." लाइन मारती हैं तो दे दो ना..अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक़ बनता है...वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चला चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है.."
" लेकिन तुम ...मेरा तुम्हारे सिवाय किसी ओर से...."
" मालूम है मुझे...बुद्धू राम तुम्हारे दिल में क्या है...यार हाथी घूमे गाँव गाँव जिसका हाथी उसका नाम..तो रहोगे तो तुम मेरे ही..किसी से कुछ ...थोड़ा बहूत ...बस दिल मत दे देना..."
" वो तो मेरे पास है नहीं कब से तुम को दे दिया..."
" ठीक किया...तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं...तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी..तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के..."
तब तक मिठाई की दूकान आ गयी थी ओर हम रिक्शे से उतर गए.
" गुलाब जामुन एक किलो..." मैंने बोला.
" स्पेशल वाले..." मेरे कान में वो फुसफुसाई.
' स्पेशल वाले...' मैं ने फिर से दुकान दार से कहा...
" तो ऐसा बोलिए ना...लेकिन रेट डबल है ..." वो बोला.
" हाँ ठीक है..." फिर मैंने मुड के गुड्डी से पूछा हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें कया..."
" नेकी ओर पूछ पूछ ." वो मुस्कराई.
" एक किलो ओर... अलग अलग पैकेट में." मैं बोला.
पैकेट मैंने पकडे ओर पैसे उसने दिए. लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था.
" हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या...क्या ख़ास बात है बताओ ना..."
'सब चीज बताना जरुरी है तुमको..इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं बुद्धू हो ओर अनाड़ी हो ...अरे पागल...होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा,..वो भी बनारस में..."
सामने जोगीरा चल रहा था...एक लड़का लड़कियों के कपडे पहने ओर उसके साथ ...रास्ता रुक गया था. वो भी रुक के देखने लगी...ओर मैं भी...
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#9
15-06-2014, 10:35 PM
सामने जोगीरा चल रहा था...एक लड़का लड़कियों के कपडे पहने ओर उसके साथ ...रास्ता रुक गया था. वो भी रुक के देखने लगी...ओर मैं भी...
जोगीरा सा रा सा रा ..ओर साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा...तनी धीरे धीरे डाला होली में तानी धीरे डाला होली में...
तब तक उसने हम लोगों की और देखा ओर एक नयी तान छेड़ी...


" अरे कौन सहर में सूरज निकला कौन सहर में चन्दा...अरे कौन सहर में सूरज निकला कौन सहर में चन्दा...
अरे गुलाबी दुपट्टे वाली को किसने टांग उठा के चोदा...जोगीरा सा रा सा रा "


गुड्डी को लगा की शायद मुझे बुरा लगा होगा तो मेरा हाथ दबा के बोली...'अरे चलता है यार होली है..." ओर मेरा हाथ पकड़ के आगेले गयी.
एक बुक स्टाल पे मैं रुक गया. कोई होली स्पेसल है क्या मैंने पूछो ना.
" हौ ना...ख़ास बनारसी होली स्पेशल अबहियें आयल कितना चाही.." मैंने गुड्डी की ओर मुड` के देखा उसने उंगली से चार का इशारा किया...ओर मैंने ले लिया. उसी के बगल में एक वाइन शाप भी थी. गुड्डी की निगाह वहीँ अटकी थी.
हे ले लूं क्या एक दो बोतल बीयर "
" तुम्हारी मर्जी. पीते हो क्या..."
" ना लेकिन ..."
" तो ले लो ना..तुम्हारे अन्दर यही गड़बड़ है सोचते बहोत हो. अरे जो मजा दे वो कर लेना चाहिए ऐसा टाइम कहाँ बार मिलता है...घर से बाहर होली के समय.."
मैंने दो बाटल बीयर ले ली
रिक्शे पे मैंने पढ़ना शुरू किया ...क्या मस्त चीज थी...एक दम खुली...मस्त टाईटीलें, होली के गाने ओर सबसे मजेदार तो राशि फल थे...वो भी पढ़ रही थी साथ साथ लेकिन उसने खींच के रख दिया...
" घर चल के पढेंगे..." तब तक मुझे कुछ याद आया...
" हे तुम्हारे घर में तो ताला बंद है चाभी भी मम्मी ले गयीं तो हम रात को सोयेंगे कहा..."
" जहां मैं सोउंगी..." वो मुस्करा के बोली.
' सच में तब तो...' मैं खुश हो के बोला...पर मेरी बात काट के वो बोली. इत्ती खुश होने की बात नहीं है ...अरे यार एक रात की बात है...चन्दा भाभी के यहाँ...उनका घर बहोत अच्छा है....कल तो तुम्हारे साथ चल ही दूँगी." तब तक हम लोग घर पहुँच गए थे.
वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गयी.
वो मास्टर बेडरूम में थीं. एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साडी पहने वो भी एक दम बदन से चिपकी, खूब लो कट ब्लाउज...उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली...
" देखिये आपके देवर को बचा के लायी हूँ इनका कोमार्य एक दम सुरक्षित है...हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों...मैं अभी जस्ट कपडे बदल के आती हूँ " ओर वो मुड गई.
"हेहे...लेकिन...ये तो मैंने सोचा नहीं .."
" क्या ..." वो दोनों साथ साथ बोलीं.
" अरे यार मैं ...मैं क्या कपड़ा पहनूंगा...ओर सुबह ब्रश ...वो भी नहीं लाया..."
"ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना.... चंदा भाभी बोलीं.
" सही बात है आपकी भाभी का घर है...जो वो कहें...ओर वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं...भाभी हैं मैं हूँ...गुंजा है ...तो आपको तो लड़कियों के ही कपडे मिल सकते हैं. ओर मेरे ओर गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हां .." भाभी की और आँख नचा के वो कातिल अदा से बोली. और मुड के बाहर चल दी.


आइडिया तो इसने सही दिया...लेकिन आप शर्ट तो उतार ही दो ...क्रश हो जायेगी ओर शाम से पहने होगे..अन्दर बनियाइन तो पहना होगा ना तो फिर...चलो..."
ओर मेरे कुछ कहने के पहले ही भाभी ने शर्ट के बटन खोल दिए. ओर खूँटी पे टांग दी.
बेड रूम में एक खूब चौड़ा डबल बेड लगा था. उस पे एक गुलाबी सी सिल्केन चादर दो तकिये, कुछ कुशन, बगल में एक मेज एक सोफा ओर ड्रेसिंग टेबल ...साथ में एक लगा हुआ बाथ रूम..
" छोटा है ना.." भाभी ने मुझे कमरे की ओर देखते हुए कहा...
लेकिन मेरी निगाह तब तक उनके छलकते हुए उभारों की ओर चली गयी थी. मुस्करा के मैं बोला ..." जी नहीं एक दम बड़ा है...परफेक्ट."
" मारूंगी तुमको ..लगता है पिटाई करनी पड़ेगी."
" हाँ मेरी ओर से भी..." ये गुड्डी थी.
उसने घर में पहनने वाली फ्राक पहन रखी थी जो छोटी भी थी ओर टाईट भी...जिस तरह उसके उभार छलक रहे थे साफ लग रहा था की उसने ब्रा नहीं पहन रखी है.
" अरे वाह आपको टॉप लेस तो कर ही दिया पूरा ना सही ...आधा ही सही." गुड्डी आते ही चालू हो गई . पर चन्दा भाभी कुछ सोच रही थीं.
" आप लुंगी तो पहन लेते हैं ना..." वो बोलीं.
" हाँ कभी कभी...है क्या .." मैंने पूछा...मैं भी पैंट पहन के कभी सो नहीं पाता था.
" हाँ ...नहीं ...वो गुंजा के पापा जब आते हैं ना तो कभी मेरी...मतलब वो भी कित्ते कपडे लायें ...ओर दो चार दिन के लिए तो आते हैं...तो मेरी एकाध पुरानी साडी की लुंगी बना के ...रात भर की तो बात होती है..."
" अरे पहन लेंगे ..ये ..और बाकि.... साडी क्या ये जो आप पहनी हैं वही क्या बुरी है..." गुड्डी ने बोला.
मुझे भी मजाक सूझा. मैंने भी बोला...ठीक है भाभी आप जो साडी पहने हैं वही ओर आखिर मैं भी तो दो कपडे में ही रहूँगा...ओर आप फिर भी...
ठीक है चलिए पहले आप पैंट उतारिये...भाभी ने हंस के कहा.
" एक दम नहीं" गुड्डी इस समय मेरे साथ आ गयी थी. "ये सही कह रहे हैं...पहले आप की साडी उतरेगी..आखिर आप ने ही तो साडी की लुंगी बनाने का आफर दिया था. "
हंस के वो बोलीं ..." सही की बच्ची...कल तुमको ओर इनको यहीं छत पे नंगे ना नचाया तो कहना..ओर वो भी साथ साथ.."
गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया मैं कौन होता था उसकी बात टालने वाला. जब तक चन्दा भाभी समझें समझें उनकीं साड़ी का आँचल मेरे हाथ में था.
वो मना करती रहीं पर मैं जानता था इनका मना करना कितना असली था कितना बनावटी.
ओर दो मिनट के अन्दर उनकी साडी मेरे हाथ में थी. लेकिन अब भाभी के हाथ में मेरी बेल्ट थी ओर थोड़ी देर में मेरी पैंट की बटन..मैंने झट से उनकी साडी लुंगी की तरह लपेट ली. तब तक मेरी पैंट उनके हाथ में थी ओर वो उन्होंने गुड्डी को पास कर दिया. उसने स्लिप पे खड़े फिल्डर की तरह मेरे देखने से पहले ही किक कर लिया ओर शर्ट के साथ वो भी खूँटी पे.
जब मैंने अपनी और देखा तब मुझे अहसास हुआ की गुड्डी ओर चंपा भाभी मुझे देख के साथ साथ क्यों मुस्करा रही थीं. साडी उनकी लगभग ट्रांसपरेंट थी ओर मैंने ब्रीफ भी एक दम छोटी वी कट ...ओर स्किन कलर की ...शेप तो साफ साफ दिख ही रहा था ओर भी बहोत कुछ...सब दिखता है के अंदाज़ में...
चंदा भाभी ने अपनी हंसी छुपाते हुए गुड्डी को हड़काया,
" अच्छा चल बहोत देख लिया चीर हरण...कल होली में पूरी तरह होगा...पर ये बता की तुम दोनों ने बाज़ार में खाली मस्ती ही की या जो मैंने सामान लाने को कहा था वो लायी. जरूर भूल गयी होगी. "
" नहीं कैसे भूलती, आपके देवर जो थे साथ में थे,...अभी लाती हूँ." जैसे ही वो मुड़ी भाभी ने कहा "अरे सुन ना...इनकी शर्ट पैंट सम्हाल के रख देना."
" एकदम ..." उसने खूँटी से खींचा ओर ले गई बछेडी की तरह. फिरदरवाजे पे खड़ी होके मेरी शर्ट मुझे दिखा के बोलने लगी...
" सम्हाल के ..मतलब यहाँ पे गुलाबी ...और यहां पे गाढा नीला.."
" हे मेरी सबसे फेवरिट शर्ट है..." लेकिन वो कहाँ पकड़ में आती..ये जा वो जा...
थोड़ी देर में वो बैग ले के आई ओर भाभी को दिखाया . उसने भाभी के कान में कुछ कहा ओर भाभी ने झांक के बोला....' अरे अब तो कल मजा आजायेगा."
मैं समझ गया की उसने बियर की बाटल दिखाई होंगी.
पान लायी की नहीं..
लायी लेकिन एक तो यहाँ खाते नहीं ..मालुम है वहां दूकान पे बोलने लगे मैं...तो खाता नहीं...
तब तक भाभी पान के पैकेट खोल चुकी थीं..चांदी के बर्क में लिपटा स्पेशल पान ...
" अरे ये किसकी पसंद है..."
" ओर किसकी...इन्ही की..." गुड्डी ने हंसते हुए कहा...
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#10
15-06-2014, 10:35 PM
" मैं तो इनको अनाड़ी समझती थी लेकिन ये तू पूरे खिलाड़ी निकले ..." भाभी हंसने लगी.
" आप ही ने तो कहा था की स्पेसल पान तो मैंने...' मैंने रुकते रुकते बोला.
." लेकिन उसने पूछा होगा ना की..." भाभी बोलीं...
" हाँ पूछा था की सिंगल या फुल ...तो मैंने बोल दिया...फुल..." मैंने सहमते हुए कहा.
" ठीक कहा...ये पान सुहागरात के दिन दुलहन को खिलाते हैं...पलंग तोड़ पान..." वो हंसते हुए बोली.
" अरे तो खिला दीजिये ना इन्हें ये किस दुलहन से कम हैं ओर...सुहागरात भी हो जायेगी..." गुड्डी छेड़ने का कोई चांस नहीं छोड़ती थी.
" भई, अपना मीठा पान तो..मैं....क्यों खाना है..." बड़ी अदा से उसने पान पहले अपने होंठों से, फिर उभारों से लगाया और मेरे होठों के पास ले आई और आँख नचा के पुछा,
' लेना है...लास्ट आफर ...फिर मत कहना तुम की मैंने दिया नहीं..." जिस अदा से वो कह रही थी..मेरी तो हालत ख़राब हो गयी..'वो' ९० डिग्री का कोण बंनाने लगा.
" नहीं ..मैंने तो कहा था ना तुमसे की ...मैं...." पर वो दुष्ट मेरी बात अनसुनी कर के उसने पान को मेरे होंठों से रगडा, और उसकी निगाह मेरे 'तम्बू' पे पड़ी थी. और फिर उसने अपने रसीले गुलाबी होंठों को धीरे से खोला और पूरा पान मुझे दिखाते हुए गडब कर गयी ...जैसा मेरा 'वो' घोंट रही हो..
भाभी की निगाहें ' होली स्पेशल' मैगजीन पे जमीं थीं.
मैंने निकाल के उन्हे दिखाया...इसमें होली के गाने, टाईटिलें, और सबसे मस्त होली के राशिफल दिए हैं.
" हे तू सूना पढ़ के ..." उन्होंने गुड्डी से कहा. पर वो दुष्ट...उसने अपने मुंह में चुभलाते पान की और इशारा किया और राशिफल का पन्ना खोल के मुझे पकड़ा दिया.
" अरे तू भी तो बैठ ..मैंने उससे बोला. पर सोफे पे मुश्किल से मेरे भाभी के बैठने की जगह थी. भाभी ने हाथ पकड़ के उसे खींचा और वो सीधी मेरे गोद में...
' अरे ठीक से पकड़ ना लड़की को वरना बिचारी गिर जाएगी ..." भाभी बोली..और मैंने उसकी पतली कमर को पकड़ लिया.
" तभी तो मैं कहती हूँ की तुम पक्के अनाडी हूँ अरे जवान लड़की को कहाँ पकड़ते हैं ये भी नहीं मालूम और उन्होंने मेरा हाथ सीधे उसके उभार पे रख दिया. मेरी तो लाटरी खुल गयी.
वो शरारती उसे कुछ नहीं फरक पड़ रहा था. उसने राशिफल के खुले पन्ने और भाभी की और इशारा करते हुए अपने उंगली कन्या राशि पे रख दी.
" भाभी सुनाऊं कन्या राशि..."
भाभी सुनाऊं कन्या राशि..."
" सुनाओ, लेकिन इसके बाद तुम दोनों का भी सुनूंगी.."
मैंने पढ़ना शुरू किया.
"कन्या राशी की भाभियाँ..आपके लिए आने वाले दिन बहूत शुभ हैं. आपका ...और फिर मैं ठिठक गया..आगे जो लिखा था....
देख दोनों रही थीं क्या लिखा है...लेकिन पहल गुड्डी ने की. पान चुभलाते हुए वो बोली...अरे इता खुल कर तो भाभी ने शाम को तुम्हे तुम्हारी सो काल्ड बहन का हाल सुनाया..तो तुम उनसे शरमा रहे हो या मुझसे पढो जो लिखा है...भाभी ने भी बोला पढो ना यार...पूरा बिना सेंसर के जस का तस...
और मैंने फिर शुरू किया,


"आपके आने वाले दिन बहोत शुभ हैं..आपका ..थूक गटका मैंने और बोला..आपका लंड का अकाल ख़तम होने वाला है. इस होली में खूब मोटी मोटी पिचकारी मिलेगी. आपकी चोली फाड़ चूंचियाँ खूब मसली रगड़ी जायंगी और पिछवाड़े का बाजा बजने का भी पूरा मौका है...लेकिन न सबके लिए आपको इस फागुन में एक विशेष उपाय करना पडेगा. ध्यान से सुनें..
भाभी बोलीं, "सुनाओ ना कर लुंगी यार...."
" इस मैगजीन के आखिरी पन्ने पे दिए लंड पुराण का रोज पाठ करें सुबह और शाम जोर जोर से गा के...किसी कुवांरे देवर की नथ उतार दें भले ही ही आप को उसे रेप करना पड़े..और इस होली में होली से पहले किसी कुँवारी चूत की सिल तुडवाने में सहायता करें....फागुन में कम से कम दो चूत में उंगली करें...साल भर लंड देवता की आप पे कृपा रहेगी. कहने को तो आप कन्या राशी की हैं लेकिन आप बचपन से ही छिनाल हैं. इसलिए अगर आप अन्य कन्याओं को छिनाल बनाने में सहयाता करेंगी तो होलिका देवी की आप पे विशेष कृपा रहेगी. अपाकी होली बहोत जोर दार होगी. दिन की भी रात की भी बस देवर का दिल रख दें ..." ये कह के मैंने उन की ओर देखा.
गुड्डी ने तुरंत भाभी से कहा..."अरे आपका ये कुंवारा कम कुँवारी देवर है ना...बस इसकी नथ उतार दीजिये...ओर आपका होली की भविष्यवाणी पूरी.."
" ओर वो सील तुडवाने वाली बात..." मैं क्यों पीछे रहता..गुड्डी शरमा गयी पर भाभी क्यों मौक़ा छोड़तीं. हंस के बोलीं है ना ये...
गुड्डी ने हंस के बात बदली ओर बोली...अच्छा चलो अपना सुनाओ.
नहीं पहले तुम्हारा शुरू करता हूँ मैंने बोला पर भाभी भी गुड्डी के साथ आखिर मैंने कर्क राशी का राशिफल पढ़ना शुरू किया.
" कर्क राशी के देवरों , जीजा ओर यारों के लिए..आप की पकड़ बहोत मजबूत होती है...( गुड्डी बोल पड़ी...कोई शक ..तब मैंने महसूस किया की मैंने उसके गदराये किशोर उभार बहोत कस के दबा रखे थे.) पकड़ सिर्फ हाथों की ही नहीं आगे से पीछे से आप जो भी पकड़ेगे उसे बहोत कस के घोंटेंगे...




भाभी ओर गुड्डी दोनों एक साथ कहकहा लगा के हंस पड़ीं.
" तभी तो मैं कहती थी की तुम्हारे ओर तुम्हारी बहन में कुछ ख़ास फरक नहीं है... वो आगे से लेती है तुम पीछे से लेते हो..." भाभी ने चिढाया.
" ओर क्या अच्छा हुआ हम लोगों ने इन्हें रोक लिया वरना जरोर कोई ना कोई हादसा हो जाता..." गुड्डी भी कम नहीं थी.
" अरे हादसा हो जाता या इनको मजा आ जाता. ...लेकिन चलिए कोई बात नहीं...कल सूद समेत हम ओग आपके पिछवाड़े का भी हिसाब पूरा कर देंगें. " ये चंदा भाभी थीं.
" और क्या कल आपका डलवाने का दिन होगा...और हम लोगों का डालने का..." गुड्डी बोली.
" और वैसे भी आपकी इस आदत से तो आपकी बहन की भी दूकान बढ़िया चलती होगी. जिसको जो पसंद हो.." चन्दा भाभी पूरे जोश में थीं.
" और क्या...एक के साथ एक फ्री..स्पेशल होली आफर .." गुड्डी बड़ी जोर से खिलखिलाई.
" अरे साफ साफ क्यों नहीं कहती की...बुर के साथ गांड फ्री"
" और राशिफल में हैं की कस के ...तो क्या...बहोत दिनों की प्रैकिट्स होगी. "
" बचपन के गांडू हैं..ये...जैसे बहन इनकी बचपन की छिनार है. "
दोनों की जुगलबंदी में मैं फँस गया था.
"अच्छा रुको ना वरना मैं आगे नहीं सुनाऊंगा.." झुंझला के मैं बोला.
" नहीं नहीं सुनाइये...अभी तो ये शुरुआत थी आग एदेखिये क्या बातें पता चलती हैं...तो चुप रह..." चन्दा भाभी ने प्यार से मेरे गाल सहलाते और गुड्डी को घुड़कते बोला.
" हाँ तो.." मैंने फिर शुरू किया..." आप की यह होली बहोत अच्छी भी होगी और बहोत खतरनाक भी. आप पहले ही किसी किशोरी के गुलाबी नयनों के रस रंग से भीग गए हैं ..इस होली में अप इस तरह रस रंग में भीगेंगे की ना आप छुडा पाएंगे ना छुड़ाना चाहेंगे...वो रंग आपके जीवन को रंग से पूरे जीवन के लिए रंग देगा. हाँ जिसने की शर्म उसके फूटे करम.इसलिए...पहल कीजिये थोड़ा बेशरम होइए उसे बेशरम बनाइये आखिर फागुन महीना ही शर्म लिहाज छोड़ने का है. " एक पल रुक कर मैंने गुड्डी की और देखा.
वो गुलाल हो रही थी.
उसने अपनी बड़ी बड़ी पलकें उठाएँ और गिरा लीं.
हजार पिचकारियाँ एक साथ चल पड़ीं.
मैं सतरंगे रंगों में नहा उठा.
मैंने उस किशोरी की और देखा तो बस वो धीमे से बोलीं ...धत्त और अपने होंठ हलके से काट लिए.
मेरी तो होली हो ली पर चन्दा भाभी बोलीं, " अरे लाला आगे भी तो पढो " और मैंने पढ़ना शुरू किया पर एक शरारत की, मैंने अपनी टाँगे उसकी लम्बी लम्बी टांगों के बीच में इस तरह फंसा दी की अब वो पूरी तरह ना सिर्फ मेरी गोद में थी बल्कि उसका मुंह मेरे चेहरे के पास था और वो मेरी और फेस कर के बैठी थी. मैंने आगे पढ़ना शुरू किया.
" कर्क राशि वालों के लिए विशेष चेतावनी ...इस होली में अगर अप अपनी अपने भाई की या कैसी भी ससुराल की और रुख करेंगे तो ...
" अब तो आही गए हैं अब क्या कर सकते हैं"...गुड्डी ने मुस्करा के मेरी बात काटते हुए कहा और चन्दा भाभी ने भी सर हिला के उस का साथ दिया. अमिएं आगे पढ़ना जारी रखा...
" ...ससुराल की और रुख करेंगे तो आपका कौमार्यत्व खतरे में पड़ जाएगा. भाभिया...सालिया या आपकी चाहनेवालियाँ...अब मिल के नथ उतार देंगी. इसलिए अगर फट्नी है है चुपचाप फड़वा लीजिये
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