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Incest Seedi achi MAA

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Incest Seedi achi MAA
Zohra muskan Offline
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#1
10-05-2018, 08:21 AM
निर्मला ए,सी, की ठंडी हवा में अपने कमरे में अपने पति के साथ गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे उसकी बांह पकड़ कर सीधे पीठ के बल कर दीया, और तभी ऊसे ऊसकी गाउन ऊपर की तरफ सरकती हुई महसूस होने लगी। एक पल तो ऊसे ऐसा लगा कि वह सपना देख रही है, क्योंकि वह बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी वह चाहकर भी अपनी आंखों को खोल नहीं पा रही थी। गाउन पूरी तरह से उसके कमर तक चढ़ चुकी थी कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी, केवल पेंटी ही ऊसके नंगेपन को छीपाए हुए थी की तभी एक झटके से उसकी पैंटी भी उसकी टांगों से होकर के बाहर निकल गई,, कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन कुछ भी उसके समझ में नहीं आ रहा था उसकी आंखें बंद थी। वह इतनी गहरी नींद में थी की आंखें खोलने भर की ताकत उसमें नहीं थी बस एक सपना सा ऊसे लग रहा था। तभी उसकी मोटी मोटी जांघो पर दो हथेलियां महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी, तबीयत पर था इसलिए उसे अपने ऊपर झुकती हुई महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुर पर कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आंख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,

आहह,,,,,,,,
( उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में पूरा लंड जड़ तक घुस गया,,,, )

आहहहहह,,,,,,, रुक जाइए प्लीज ऐसा मत करिए मुझे बहुत दर्द होता है,,,,,,, रहने दीजिए प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है,,,,,,,,,,,

आहहहहहहह,,,,,,,,, अाहहहहह,,,,,,, औहहहहह,,,, मा्ंआ,,,,,,,, ( निर्मला के दर्द कि उसकी पीड़ा की परवाह किए बिना ही वह उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता हुआ बोला।)

शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी तू चुदवाते समय ऐसे चिल्लाती है जैसे की पहली बार करवा रही हो। ( इतना कहते हुए वह फिर से जोर जोर से दो-चार धक्के और लगा दिया।)
आहहहहहहह,,,,,, आहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,,,
ओहहहहह,,,, म्मांआआ,,,,,,, तो यह भी कोई तरीका है कितना दर्द होता है मालूम है आपको,,,,,,

मेरा तो यही तरीका है तेरे कहने पर तुझे नहीं चोदुंगा जब मेरा मूड करेगा तभी तुझे चोद़ूंगा।

मैंने कब आपसे कभी कही कि मुझे यह सब करना है,,,,,, ( निर्मला आंखों में दर्द के आंसू छलकाते हुए रुंवासी होकर बोली।)

तो कुछ नहीं कहती यही तो तेरी गलती है,, तुझसे शादी करके मेरी जिंदगी खराब हो गई,, मुझे खुले बिचारो वाली बीबी चाहिए थी लेकिन मेरीे नसीब खराब थी कि मुझे तुम मिल गई।
( इतना कहते हुए जोर जोर से दो चार धक्के और लगाया ही था कि वह झड़ने लगा, वह अपना पानी निर्मला की बुर में उड़ेलने लगा और हाँफते हुए शोभा के ऊपर ही ढह गया। कुछ देर तक वह निर्मला के ऊपर ही लेटा रहा और फिर उठकर सीधे कमरे के बाहर चला गया,,, निर्मला अपनी किस्मत को कोसते हुए आंसू बहाते हुए लेटी रही,,,,, निर्मला अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह अशोक से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान निर्मला के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति पढ़ा-लिखा और समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी निर्मला खुद ग्रेजुएट थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी। संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी स्कूल में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में स्कूल में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था। निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया। वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,,,,,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था। निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,,,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी। धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी। अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।

निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा। वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, । वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ऊसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10:00 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी । वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई । वैसे तो उसके रूम में ही अटैच बाथरूम था लेकिन वह उसका उपयोग बहुत ही कम ही करती थी। बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी ब्रश करने लगी ब्रेस्ट करने के बाद वहां आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने को हुई ही थी कि वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,, चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। ठीक है मैंने नाक और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी। बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह शॉवर के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की निर्मला बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो मदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे। गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।
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#2
10-05-2018, 08:23 AM
गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस निर्मला के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से निर्मला को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।
निर्मला शॉवर को चालू किए बिना ही उसके नीचे खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।
निर्मला अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही निर्मला के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। निर्मला खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली। उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर निर्मला की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, निर्मला तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल निर्मला ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई। इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, निर्मला ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, निर्मला की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था वह पूरी तरह से अपनी बुर को हमेशा चिकनी ही रखती थी क्योंकि बुर पर बाल अशोक को बिल्कुल भी पसंद नहीं था ।निर्मला के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी। नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी निर्मला की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि निर्मला पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।
उसने शॉवर चालू कर दि और सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते खुशबूदार साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही महंगी रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर के उसके मैचिंग का ब्लाउज पेटीकोट और उसी रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।
उसके बाद वह आईने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई निर्मला को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।
अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की गुलाबी रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। निर्मला कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था ।निर्मला आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।
थोड़ी ही देर में निर्मला पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में निर्मला को पाने की लालसा जाग जाए। निर्मला खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति अशोक को आखिर क्या चाहिए था।
निर्मला तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई की घर में बने मंदिर में से घंटी की आवाज आने लगी।
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#3
10-05-2018, 08:25 AM
घर के मंदिर से आ रही घंटी की आवाज सुनकर वह समझ गई की शुभम तैयार हो चुका है। निर्मला के बेटे का नाम शुभम था। जोकि बड़ा ही संस्कारी लड़का था।
घर में सब से पहले वही उठता था और नित्य कर्म करके नहा धोकर के सबसे पहले वह भगवान की पूजा किया करता था। शुभम का व्यवहार दूसरे लड़कों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वह बहुत ही सादगी में रहता था घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। अशोक ने मौज शौख के सारे सामान घर में बसा रखे थे लेकिन इन सब से शुभम का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था वह बस अपने काम से काम रखता था। पढ़ाई लिखाई व्यायाम और कसरत बस इसी में हमेशा रचा पचा रहता था। सुबह 4:00 बजे ही उठ कर उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। कसरत और व्यायाम करना वह कभी नहीं भूलता था।
निर्मला कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाने लगी जैसे ही सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुंच ही रही थी कि सामने से पूजा कब से शुभम बाहर आ रहा था और वहां अपनी मां को देखकर सबसे पहले ऊन्हे नमस्ते किया।

प्रणाम मम्मी (अपनी मां के पैरों को छू कर के)

जीते रहो बेटे,,,,, तैयार हो गए,,,

हां मम्मी मैं तैयार हो गया।

जाओ कुछ फ्रूट खाकर के दूध पी लो।

जी मम्मी ( इतना कहकर वह रसोईघर में फ्रूट और दूध लेने चला गया,, कभी अशोक भी जोगिंग करके वापस आ गया । घर में घुसते ही वह निर्मला पर नजर डाले बिना ही बाथरूम की तरफ चला गया। इसी तरह से अशोक का निर्मला को नजर अंदाज करना कांटे की तरह चुभता था। अशोक की इस तरह की हरकत को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी लेकिन कर भी कुछ नहीं सकती थी इसलिए वह मन में दर्द की वेदना लिए अंदर ही अंदर घुटती रहती थी।

थोड़ी देर बाद वह नाश्ता तैयार करके, नाश्ते को टेबल पर लगाकर अशोक का इंतजार कर रही थी, निर्मला शुरू से ही अशोक के खाने के बाद ही या उसके साथ ही नाश्ता या भोजन करती थी लेकिन इस बात की अशोक को बिल्कुल भी परवाह नहीं होती थी। रोज की ही तरह वह तैयार होकर के आया और कुर्सी पर बैठकर निर्मला से बिना कुछ बोले ही नाश्ता करने लगा। ब्रेड पर मक्खन लगाकर वह खाते समय तिरछी नजर से निर्मला पर जरूर नजरें फेर ले रहा था लेकिन बोल कुछ भी नहीं रहा था। निर्मला अशोक के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ में दो शब्द सुनने को तरस गई थी।
अशोक से तो झूठ मूठ का भी तारीफ में दो शब्द नहीं निकलते थे। लेकिन राह चलते कभी भी लफंगो के मुंह से उसे अश्लील तारीफ सुनने को मिल ही जाती थी।
हाय क्या माल है,,,, हाय चिकनी कहां जा रही हो,,,,, कभी कभी तो ईससे भी ज्यादा गंदे कमेंटस सुनने को मिल जाते थे।

हाय मेरी रानी,,,, चुदवाओगी,,,,,,,, तुम्हारी गांड कीतनी बडी़ है,,,,,,, कभी हमे भी दुध पिला दीया करो,,,,,,,

इस तरह के कमेंट सुनकर के तो निर्मला अंदर ही अंदर डर के मारे थरथरा जाती थी। वह अपने बारे में इस तरह के कमेंट सुनने की बिल्कुल भी आदी नहीं थी वह तो अपने पति के मुंह से अपनी खूबसूरती में चंद शब्द सुनने को तरस रही थी। लेकिन उसकी यह तरस दिन-ब-दिन तड़प मे बदलती जा रही थी। अशोक चुपचाप नाश्ता करके निर्मला से बिना कुछ बोले ऑफिस के लिए निकल गया । निर्मला भी आखिरकार अपनी किस्मत से समझौता करते हुए चुपचाप नाश्ता कर ली।
शुभम भी नाश्ता करके स्कूल जाने के लिए बिल्कुल तैयार बैठा था शुभम एक दम गोरा चिट्टा गठीला बदन वाला लड़का था कसरत और व्यायाम करने की रोज की आदत की वजह से वह एकदम सुगठित बदन का मालिक बन चुका था उम्र कम होने के बावजूद भी वह अपनी उम्र से 2 साल बड़ा ही लगता था। लड़कियां शुभम के सुगठित बदन को देखकर मन ही मन सिसकारी भरा करती थी। लड़कियां हमेशा कोई ना कोई बहाना ढूंढती रहती थी शुभम के नजदीक जाने की लेकिन शुभम थाकी उन लोगों को जरा भी घास नहीं डालता था। वह बिना वजह के कुछ बोलता ही नहीं था।
निर्मला को शुभम का यह शांत स्वभाव बहुत अच्छा लग रहा था वह सुबह से हमेशा प्यार से ही बातें करती थी।
निर्मला ने आज तक शुभम को किसी भी बात के लिए ना डांटी ना फटकारी,,,, और शुभम भी कभी कोई ऐसी गलती करता ही नहीं था कि निर्मला को इस तरह के कदम उठाने पड़े।
शुभम शुरू शुरू में 10 साल तक गांव में अपने दादा दादी के पास ही रहता था जहां पर उन्होंने उसे सिश्त में रहना सिखाया,,,,, संस्कार का बीज बचपन से ही शुभम के अंदर बोना शुरु कर दिए थे। जिसका असर आज शुभम के व्यवहार में नजर आता था। शुभम के दादा दादी के निधन के बाद अशोक और निर्मला ने वापस उसे अपने पास लाकर पढ़ाने लगे,,,,,
निर्मला अभी नाश्ता करके तैयार हो चुकी थी वह अपने कमरे में जाकर कि अपना पर्स ले आई, शुभम घर के बाहर आकर के गेराज के बाहर खड़ा हो कर के अपनी मां का ही इंतजार कर रहा था। निर्मला जिस स्कूल में पढ़ाती थी उसी स्कूल में शुभम भी पढ़ता था। निर्मला गैराज में जाकर के कार्य का दरवाजा खोल करके ड्राइविंग सीट पर बैठ गई,,,,,, निर्मला अपनी कार को खुद ड्राइव करती थी। पहले वह बस ऐसे ही उस कुल आया जाया करती थी लेकिन अपने बारे में गंदे कमेंट को सुन सुनकर बहुत परेशान हो चुकी थी इसलिए वह
कार से ही आने जाने लगी। चाबी लगाकर कार स्टार्ट करके उसने अपने पांव का दबाव एक्सीलेटर पर बढ़ा कर कार को आगे बढ़ाई और शुभम के करीब लाकर के ब्रेक लगाई शुभम झट से कार का दरवाजा खोलकर आगे वाली सीट पर बैठ गया।
कुछ ही सेकंड में निर्मला कार को मुख्य सड़क पर दौड़ाने लगी।

बेटा तुम्हारी पढ़ाई तो ठीक चल रही है ना,,,( एक हाथ को दुलार से सुभम के सर पर रखते हुए)

हां मम्मी मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। ( शुभम शीसे में से बाहर झांकते हुए)

कभी कोई दिक्कत हो तो जरुर बोलना,,,,,,

हां मम्मी ने जरूर बोलूंगा पर आप ऐसा क्यों बोल रही है,,,,,,


तुम्हारे स्वभाव की वजह से तुम हमेशा शांत रहते हो और बहुत ही कम बोलते हो इसलिए कह रही हूं कि भी बेझिझक पढ़ाई में कोई भी तकलीफ हो तो मुझे जरुर बताना।

ठीक है मम्मी,,,,,, ( इतना कहकर वह फिर से शीशे से बाहर झांकने लगा। अपनी बेटे की बात और उसका व्यवहार देखकर वह मुस्कुरा दी और अपनी नजरें सड़क पर रखकर कार चलाने लगी,,,,,, 15 मिनट की ड्राइविंग के बाद वह अपने स्कूल के पार्क में कार पार्क करके स्कूल की तरफ जाने लगी। शुभम अपनी मां के आगे आगे चल रहा था और निर्मला उसके पीछे पीछे,,,,

तभी पीछे से शीतल ने निर्मला को आवाज़ लगाई जो की वह भी अपनी स्कूटी को पार्क करके निर्मला के पीछे पीछे आ रही थी और वह भी निर्मला कि सहअध्यापिका ही थी।,,,,,,,,,,

निर्मला,,,,, निर्मला,,,,,,, ( तभी जानी-पहचानी आवाज सुनकर निर्मला खड़ी होकर के पीछे की तरफ देखने लगी और शीतल को आती देख कर मुस्कुराने लगी,,,, शीतल जल्दी-जल्दी निर्मला की तरफ बढ़े चली आ रही थी।)

अरे इतनी जल्दी जल्दी,,,,, क्यों चली जा रही हो क्लास भाग नहीं जाएगी,,,,,,, क्लास शुरु होने में अभी 10 मिनट का समय है,,,,,, ( शीतल मैडम की आवाज सुनकर शुभम भी रुक गया था जिसे देखकर शीतल बोली।)
तुम जाओ बेटा हम दोनों अभी आते हैं।

जी मेडम,,,,,, ( इतना कहकर सुभम अपनी क्लास की तरफ चला गया उसे जाते हुए शीतल कुछ देर तक उसे देखती ही रही,,, जब भी वह शुभम से मिलती थी तो उसकी नजरें उसके गठीले बदन पर ऊपर से नीचे की तरफ घूमती रहती थी,,,, और शुभम इतना नादान था कि शीतल की कामुक नजरों को वह पहचान नहीं पाता था। शीतल भी लंबे कद काठी की गोरी औरत थी,,, उसके भी बदन का हर एक उभार और कटाव बड़ा ही कामुक लगता था। गोल गोल बड़ी चूचियां लेकिन निर्मला से थोड़ी छोटी,,,, उभार लिए हुए नितंब भी बड़े ही उन्मादक और कामुक थे लेकिन निर्मला से कम ही।
शीतल की ब्लाउज थोड़ी सी डीप ही रहती थी, जिससे कि उसके चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही नजर आती थी। सुंदरता के मामले में शीतल भी कुछ कम नहीं थी लेकिन निर्मला उसे एक कदम आगे ही थी क्योंकि शीतल भी उसकी खूबसूरती के आगे पानी भर्ती थी जो कि यह बात वह खुद उसके सामने मान चुकी थी।
शीतल बड़े ही तेज कदमों से चलती हुई निर्मला के पास आई थी इसलिए थोड़ा सा हांफ रही थी और हांफते हुए बोली।

क्या यार इतनी जल्दी जल्दी कहां चली जा रही हो गांड मटकाते हुए।

शीतल,,,,, यह क्या कह रही हो तुम कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा तुम्हारे बारे में,,,,, आखिर तुम एक टीचर हो टीचर को ऐसी गंदी भाषा का प्रयोग करना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता।,,,,

हां जानती हूं लेकिन अपनी भी तो कोई लाइफ है अपना भी मन करता है कुछ ऐसी बातें करने का जिससे अपने अंदर भी गनगनाहट आ जाए। ( इतना कहकर वह हंसने लगी और उसको हंसता हुआ देखकर निर्मला बोली।)


तुम नहीं सुधरोगीे,,,,,, (इतना कहकर वह स्कूल की तरफ कदम बढ़ाने लगी और उसके पीछे पीछे चहकते हुए शीतल भी जाने लगी,, शीतल उससे बस एक कदम की दूरी पर चल रही थी कि उसका हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए बोली। )

रुको तो सही निर्मला,,, तुम्हें तो ना जाने कौनसी जल्दी पड़ी रहती है,,,, क्लास में जाने के लिए,,,,,,

अरे शीतल समय हो गया है कुछ ही मिनटों में क्लास शुरु हो जाएगी।( हाथ में बंध़ी घड़ी की तरफ देखते हुए बोली।)

यार तुम्हे तो बस गांड मटकाने का बहाना चाहीए ।

क्या शीतल तुम भी ना शुरू हो जाती हो तो चुप रहने का नाम ही नहीं लेती।,,,,,

यार जो सच है वही कह रही हूं झूठ नहीं कह रही,,,, तुमको शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि जब चलती हो तो न जाने कितनों पर अपनी यह मदमस्त गांड का ( हाथ से निर्मला की गांड की तरफ इशारा करते हुए) कहर ढाते हुए चलती हो।

शीत,,,,,,ल,,,,,,,, चुप भी करो किसी ने अगर सुन लिया तो तुम्हारे साथ साथ मैं भी बदनाम हो जाऊंगी।

अरे छोड़ो भी यार कुछ नहीं होगा,,,,,,,,, सच में यार तुम्हारी मटकती हुई बड़ी-बड़ी गांड देखकर तो मेरे मुंह से सिसकारी निकल जाती है।,,,,, ( शीतल की बातें सुनकर निर्मला आंखें तरेर कर उसकी तरह बनावटी गुस्सा दिखाते हुए देखने लगी।)
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#4
10-05-2018, 08:26 AM
सच यार निर्मला मुझे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं होता कि इस उम्र में भी तुम्हारी गांड का कसाव जवानी के दिनों वाला है। तुम्हें जब भी चलते हुए देखती हूं तो सबसे पहले मेरी नजर तुम्हारी मटकती हुई गांड पर ही जाती है। तुम इतना टाइट साड़ी कमर के नीचे से बांधती हो कि तुम्हारी नितंबों का एक-एक उभार साफ-साफ नजर आता है।

अरे यार शीतल,,,,,,,,,,,


सुनो तो सही यार निर्मला तुम भी हो की,,,,,,,,, मैं सच कह रही हूं कोई मजाक नहीं कर रही,,,,, तुम्हारी बात ही कुछ अलग है। मेरी भी मस्त है लेकिन तुमसे थोड़ी कम ही है इसलिए तो तुम्हारे नितंबों को देख कर मुझे तुमसे जलन होती है।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

जलन,,,,,,,,,, किस बात की जलन!

अरे यार पूरी खूबसूरती का खजाना हो और कहती हो किस बात की जलन,,,,,, तुम्हारे रूप लावण्य ओर अंगों का उभार कटाव देखकर तो हर औरत तुमसे जलती होगी।( निर्मला उसकी बातें सुनकर मंद मंद मन में ही मुस्कुरा रही थी।)
यार निर्मला कसम से अगर मेरे पास तुम्हारी जैसी बड़ी बड़ी चूचियां और यह बडी़े-बडी़े गोल-गोल गांड होती तो मैं तो जिस पर जाहती उस पर कहार बरसाती।,,,,,

बस करो शीतल अब समय हो गया है हमें चलना चाहिए।( इतना कहकर निर्मला चलने लगी और उसके पीछे-पीछे सीतल भी चलने लगी लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी।)

निर्मला सच कह रही हो भाई साहब तुम्हारे रूप तुम्हारे खुबसुरत बदन को देख कर दो दीवाने ही हो जाते होंगे और तो और रोज तुम्हारी जमकर लेते होंगे।


बस यार शीतल कितना बकबक करती हो बस अब कुछ मतं बोलना क्लास शुरु हो रही है।

ठीक है कुछ नहीं बोलूंगी लेकिन बाद में मिलते हैं ठीक है ना,,,,,,( इतना कहकर सितम अपनी क्लास की तरफ जाने लगी और निर्मला अपने क्लाश की तरफ,,,, चलते-चलते निर्मला को शीतल के द्वारा कही गई सारी बातें याद आने लगी और मन ही मन वह खुश होकर मुस्कुराने लगी भले ही निर्मला उपर से एसी बातो को नापसंद करने का ढोंग करती हो लेकिन अंदर ही अंदर शीतल की कही गई एक एक बात से वह बेहद प्रसन्न होती थी। यही सब बातें वह अपने पति के मुंह से सुनने के लिए तरस जाती थी। जो बातें अशोक को कहनी चाहिए थी वह सारी बातें शीतल कहती थी। लेकिन निर्मला को भी यह बात बड़ी अजीब लगती थी कि यही सारे कमेंट अगर कोई मर्द करता था तो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और वह अंदर ही अंदर घबराहट महसूस करती थी, लेकिन यही सब बातें शीतल के मुंह से बड़ी अच्छी लगती थी। उसके बदन के एक-एक अंग का तारीफ जिस तरह से शीतल करती थी उसे सुनकर निर्मला के बदन में झनझनाहट सी होने लगती थी। निर्मला के लिए भी एक तरह से यह बड़ी फक्र वाली बात थी, क्योंकि अगर किसी औरत की तारीफ एक मर्द करता है तो वह अलग बात होती है,,,,, क्योंकि मर्द अपने फायदे के लिए ही औरत की तारीफ करता है,,,, उसी औरत से जब अपने मतलब की कोई चीज चाहिए रहती है तभी वह औरत की तारीफ करता है। लेकिन एक औरत जब किसी औरत की तारीफ करें तो जरुर उस औरत ने कोई न कोई बात जरुर होती है जो दूसरी औरतों को भी आकर्षित करती है। इसलिए वह शीतल की बातें सुनकर हमेशा प्रसन्नता से गदगद हो जाया करती थी। लेकिन इस बात को कभी भी वह शीतल पर जाहिर होने नहीं दी। शीतल के सामने वह हमेशा ऐसा ही बर्ताव करती थी की उसे उसकी बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं होती हैं। तभी चलते चलते उसे गांड मटकाने वाली बात याद आ गई और वह ना चाहते हुए भी अपनी नजरें पीछे घुमाके अपनी गांड की तरफ देखने लगे कि क्या वाकई में चलते समय उसकी गांड ज्यादा मटकती है। नजरें घुमा कर भी वहां अपनी मटकती हुई गांड के उतार-चढ़ाव को देखकर फैसला नहीं कर पाई।
तब तक ऊसकी क्लासरुम आ गई।
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#5
10-05-2018, 08:28 AM
निर्मला क्लास रूम के बाहर पहुंच चुकी थी क्लास रुम में सभी विद्यार्थी शोर शराबा कर रहे थे,,, विद्यार्थियों की नजर जैसे ही क्लास रूम के दरवाजे पर पड़ी तो सभी विद्यार्थी एक दम शांत हो गए और अपने-अपने बेंच पर बैठ गए,,,, क्योंकि सभी विद्यार्थी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थे कि निर्मला मैडम शिष्त की बहुत कड़क थी सभी विद्यार्थियों को सिष्त में रखने की आग्रही थी,,,,, इसलिए कोई चाहकर भी उनकी मौजूदगी में शोर शराबा या किसी भी प्रकार का अभद्र व्यवहार नहीं कर पाता था। इसलिए तो क्लास के बाहर निर्मला को देखते ही सभी विद्यार्थी एक दम शांत हो गए और जैसे ही निर्मला क्लास के अंदर प्रवेश की वैसे ही सभी विद्यार्थी एक साथ अभिवादन करते हुए अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए।

गुड मॉर्निंग मैडम,,,,,,,, ( सभी विद्यार्थी एक साथ अभिवादन करते हुए बोले,,,,, निर्मला भी सभी विद्यार्थियों का अभिवादन स्वीकार करते हुए बोली)

मॉर्निंग डीयर स्टूडेंट,,,,,,,,,,

( सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए और निर्मला मैथ्स पढ़ाना शुरु कर दी,,,,, क्लास में बैठे सभी लड़के और लड़कियां शुभम के ही हमउम्र थे और उनके बीच सुभम भी बैठा हुआ था,,,, सभी को इस बात की अच्छी तरह से जानकारी थी कि शुभम निर्मला मैडम का ही लड़का है लेकिन निर्मला ने कभी भी क्लास के अंदर इस बात का फायदा अपने बेटे शुभम को नहीं लेने दि की वह उसका बेटा है बल्कि जिस तरह से वह दूसरे विद्यार्थियों के साथ बर्ताव करती थी ठीक उसी तरह से ही वह अपने बेटे शुभम के साथ भी एक विद्यार्थी के संबंध वाला ही बर्ताव करती थी। निर्मला पूरी स्कूल में सभी विद्यार्थी की फेवरेट मैडम थी क्योंकि वह बड़े ही प्यार से और बहुत ही अच्छे तरीके से पढ़ाती थी जिससे की सभी विद्यार्थियों को एक ही बार में समझ आ जाता था।
निर्मला जिस क्लास के विद्यार्थियों को पढ़ाती थी उनकी उम्र के हिसाब से उनके मन में नई नई उमंगे भी जागती रहती है सभी विद्यार्थी उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे जहां पर,,,, लड़कों को लड़की के प्रति और लड़कियों को लड़के के प्रति आकर्षण जन्म लेता है। यही असर क्लास के विद्यार्थियों को भी जरूर होता था क्योंकि जब भी निर्मला ब्लैक बोर्ड पर चौक से मैथ के सवाल हल करती थी,,,,तो अधिकतर विद्यार्थियों की नजर निर्मला के भरावदार बदन के उस खास हिस्से पर फिर नहीं लगती थी जहां से मर्दों के लिए औरतों के प्रति आकर्षण शुरू होता था। क्लास के अधिकतर लड़के निर्मला के भराव दार गोरे बदन को निहारने में ही लगे रहते थे,,,, खास करके तब जब वह ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखती रहती थी क्योंकि जैसे जैसे ब्लैक बोर्ड पर निर्मला के हाथ चलते थे वैसे वैसे उसके बदन में एक अजीब प्रकार की मदद हरकत होने लगती थी जो कि वह हरकत खास करके उसके नितंबों पर गहरा असर डालती थी। बदन में हो रही हरकत के साथ साथ उसकी कमर के नीचे उसके भरावदार नितंबों में अजीब सी मादक थिरकन होने लगती थी,,, जिसकी वजह से क्लास में सभी लड़कों का ध्यान अपने आप ही ऊस खास स्थान पर चला जाता था। क्लास में उपस्थित सभी लड़कों का बस इसी पल का बेसब्री से इंतजार रहता था कि कब मैडम ब्लैक बोर्ड पर लिखना शुरु करें,,और उन लोगों को ऊस मादक पल को अपने जेहन में उतारने का पूरा भरपूर मौका मिल सके। ऐसा कोई भी लड़का क्लास में नहीं था जो कि यह नजारा देखने के बाद ऊसका लंड खड़ा ना हुआ हो,,,,, उन लोगों की पेंट में हमेशा तंबु बन जाता था। और वह तंबू तब तक बना रहता था जब तक निर्मला क्लास में उपस्थित रहती थी उसके जाने के बाद खुद ब खुद स्थिति सामान्य हो जाती थी। क्या रोज का हो चुका था शुरु शुरु में तो निर्मला का ध्यान इस बात पर बिलकुल नहीं किया लेकिन धीरे-धीरे उसे इस बात का एहसास होने लगा कि जब भी वह ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखती है तो क्लास के लड़कों की नजरें उसके कमर के नीचे वाले भाग पर ही टिकी रहती थी। इस बात का एहसास होते ही कि लड़कों की नजर उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही टिकी होती है तो वह शर्मिंदा हो गई। उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि इस उम्र के लड़के भी इस तरह की हरकत कर सकते हैं लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। अब वह लड़कों से तो खुल कर बोल नहीं सकती थी कि तुम लोग मेरी गांड क्यों देखते हो,,, वह इस बारे में सोच-सोच कर बहुत परेशान हो रही थी,,, सारा सारा दिन इसी बात को सोचकर वह अपने आप को परेशान किए हुए थी,,,, कुछ दिन तक तो वहां ब्लैक बोर्ड पर लिखना ही बंद कर दी थी बस कुर्सी पर बैठे-बैठे ही समझाती रहती लेकिन ऐसे काम चलने वाला नहीं था क्योंकि इस तरह से समझाने में विद्यार्थियों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,, दूसरी तरफ विद्यार्थियों का भी बुरा हाल था क्योंकि वह अभी निर्मला के प्रति आकर्षित हो चुके थे खास करके उसके बड़े बड़े नितंबो के प्रति जो की निर्मला के इस व्यवहार के कारण उंन्हें आंख सेंकने का मौका नहीं मिल पा रहा था। विद्यार्थियों का उतरा हुआ मुंह देख कर तो ऐसा लगता था कि उनके मुंह से कोई निवाला छीन लिया हो,,,,, लेकिन निर्मला भी क्या कर सकती थी टीचर की जॉब जो करनी थी इसलिए उसे एक स्थिति का सामना तो करना ही था इसलिए ना चाहते हुए भी वह मन कड़ा करके फिर से पहले की ही तरह ब्लैक बोर्ड पर सवालों को समझाने लगी,,
और निर्मला के इस व्यवहार की वजह से क्लास में ऐसा लग रहा था कि जैसे,,,, रेगिस्तान में बरसात हो गई हो सुखे खेतों में फिर से हरियाली छा गई हो,,,,,,
निर्मला के ही वजह से क्लास में विद्यार्थियों की उपस्थिति शत प्रतिशत होने लगी थी,,, जिससे स्कूल के प्रिंसिपल भी खुश थे,,,,,
लड़के तो लड़के लड़कियां भी निर्मला की खूबसूरती की दीवानी थी और जिस तरह से लड़के उस खास अंग पर ज्यादा नजर बनाए रखते थे उसी तरह से लड़कियां भी
निर्मला के उसी भरावदार नितंब पर अपनी नजर गड़ाए रहती थी। इस बात का एहसास निर्मला को तब हुआ जब एक बार रिशेष समाप्त होने के बाद वह क्लास के करीब पहुंची ही थी कि अंदर से फुसफुसाहट की आवाज सुनकर कोतूहल वश वह दरवाजे पर कान लगाकर अंदर से आ रही आवाज को सुनने लगी। अंदर से आ रही लड़कियों के बातचीत की आवाज को सुनकर निर्मला हैरान हो गई उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि लड़कियां इस तरह की बातें कर सकती हैं। सभी लड़कियां निर्मला के बारे में ही अपनी अपनी राय दे रही थी।

यार निर्मला मैडम कितनी खूबसूरत है मैंने आज तक ऊन जैसी खूबसूरत औरत कभी भी नहीं देखी,,,,,


हां यार तू बिल्कुल सच कह रही है। भगवान ने उन्हें बड़ी फुर्सत से बनाया है । लगता है कि पानी से नहीं दूध से नहाती है तभी तो इतनी ज्यादा गोरी है,,,
( तभी तीसरी लड़की की आवाज आई,,,,)

तूने उनकी चूचियां देखी है,,,,,,,, चुचीयां,,,,,,,,, कितनी बड़ी-बड़ी है,,,,,
( तभी बीच में दूसरी लड़की बोली)

मुझे तो लगता है कि मैडम अपनी चुचियों के साइज से कम साइज की ब्रा और ब्लाउज पहनती है,,,,,, तभी तो देख उनकी चुचियों के बीच की लकीर कितनी लंबी नजर आती है,,,,,,
( तभी उनमें से एक लड़की बात को बीच में काटते हुए बोली,,,,,)

नहीं यार ऐसा नहीं है उनकी चूचियां है ही इतनी बड़ी-बड़ी के ब्लाउज में ही नहीं समा पाती,,, इसलिए तो उनकी छातीयां ऐसी लगती है जैसे कि कोई विशाल पर्वत हो,,,,,, उनकी चूचियां देख कर तो ऐसा ही लगता है कि उनके हस्बैंड रोज दबा दबा कर और घंटों मुंह में भर कर पीते होंगे तभी तो इतनी मस्त गोल-गोल और बड़ी है,,, और सबसे खास बात तो यह कि इस उम्र में भी उनकी चुचियो का कसाव बरकरार है,,, वर्ना ईस उम्र में तो ढीली पड़ जाती है और लटकने लगती है
( तभी उनमें से एक लड़की बोली,,,,)

काश भगवान ने मेरी भी चुचीयां इतनी बड़ी-बड़ी बनाई होती तो कितना मजा आ जाता है,,,,,,
( उसकी सहेली बीच में चुटकी लेते हुए बोली,,,,,)
चिंता मत कर तेरी चूचियां भी बड़ी बड़ी हो जाएंगी जब तेरा पति ईसे दबा दबा कर पिएगा,,,,,,

यार शादी होने में तो अभी काफी समय है तब तक इन छोटे-छोटे शंतरों से बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा है,,,,
( अब दूसरी लड़की उसके इस बात पर चुटकी लेते हुए बोली।)

मेरी जान तब तक अपने बॉयफ्रेंड को ही बोल दे वह खूब दबा दबा कर पीएगा तब शादी से पहले ही तेरे संतरे खरबूजे हो जाएंगे,,,,,
( उसकी बात पर सारी लड़कियां खिलखिलाकर हंस दी,, और दरवाजे के बाहर खड़ी निर्मला उन लड़कियों की बात सुनकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,,, लड़कियां भी इतनी गरम और गंदी बातें कर सकती है आज पहली बार वह अपने कानों से सुन कर ही उस बात पर भरोसा कर पाई थी,,,,, निर्मला उन लड़कियों की बात सुनकर गनंगना गई थी,,,, निर्मला को लड़कियों की बातें सुन कर रहा नहीं गया और उसने एक नजर अपनी छातियों पर फिरा दी,,,,, लेकिन इस पर भी निर्मला को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह उन लड़कियों की बात सुनकर हैरान हो या उन लड़कियों के द्वारा की गई तारीफ सुनकर प्रसन्न हो,,,,,, वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही कुछ देर से खामोश बैठी लड़की बोली,,, जिसकी बातें सुनकर निर्मला पूरी तरह से दंग और स्तब्ध रह गई


यार तुम लोग तो मैडम की चुचियों के पीछे पड़े हो असली खूबसूरती की तरफ तो तुम लोगों का ध्यान ही नहीं जाता,,,,,

(सभी लड़कियां एक साथ बोली,,,)

कौन सी असली खूबसूरती,,,,,,,


मैडम जी की गांड,,,,,,, ( गर्म आहें भरते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में वह लड़की बोली,,,,,)

गांड,,,,,,, ( एक साथ सभी लड़कियों के मुंह से निकला)

हां यार गांड,,,,,, कसम से यार उनकी बड़ी-बड़ी भरावदार गांड पर जब भी मेरी नजर जाती है तो ना जाने मुझे क्या होने लगता है,,,,, एक अजब सी ख़ुमारी मेरे अंदर अपना असर दिखाने लगती है और मैं मंत्रमुग्ध सी बस मैडम की भरावदार नितंबों को ही घुरती रहती हूं

( तभी दूसरी लड़की उसके सुर में सुर मिलाते हुए बोली,,,)

हां यार तू सही कह रही है मैं भी जब भी मैडम की गांड देखती हूं तो मुझे भ
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#6
10-05-2018, 08:29 AM
हां यार तू बिल्कुल सच कह रही है मैं भी जब भी मैडम की गांड देखती हूं तो मुझे भी अजीब सा नशा छाने लगता है जी करता है कि बस उनकी गांड को देखते ही जाऊं,,,,,,
( बारी-बारी से सभी लड़कियों ने मैडम की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मैडम की गांड देख करके हम लड़कियों की हालत खराब हो जाती तो सोचो लड़कों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,

( इतना सुनते ही तो निर्मला की हालत खराब होने लगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी की लड़कियां इस हद तक इतनी गंदी बातें कर सकती हो इतने गंदे शब्दों का प्रयोग कर सकती है,,,,,, लड़कियों की गंदी बातों का असर निर्मला पर पूरी तरह से छा चुका था,,,,,, उसे अपनी जांघो के बीच बुर में से पानी जैसा रिसाव महसूस हो रहा था,,,, उनकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, शर्म के मारे निर्मला का चेहरा सुर्ख लाल हो वह वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी उन लड़कियों की बातें सुनकर उनके कदम वही के वही ठीठक से गए थे।,,, लड़कियों की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी,,,,

यार कसम से जब वह चलती है ना तो ऊनकी मटकती हुई गांड देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती है,,,,,
( तभी फिर से एक लड़की बीच में चुटकी लेते हुए बोली)

तुझे किस बात की जलन होने लगी तेरी भी तो गांड बड़ी-बड़ी है।

हां वह तो है लेकिन मैडम की बात कुछ और ही है ऊनकि गांड का घेराव कितना गोल है,,, जब चलती है तो उनकी बड़ी-बड़ी गोल गांड कितनी थिरकती है,,, उस तरह की थिरकन अपनी गांड में कहां देखने को मिलती है,,,

हां यार यह भी सच है कुछ भी हो निर्मला मैडम की खूबसूरती और उनके बदन की बनावट खास करके उनकी चूचियां और बड़ी-बड़ी गांड उनकी उम्र की तो ठीक हम लड़कियों को भी पानी भरने पर मजबूर कर दे,,,,
( निर्मला तो लड़कियों के मुंह से अपनी तारीफ इस उम्र में भी इस हद तक सुन करके गर्वित हुए जा रही थी उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था,,,,, लेकिन अपनी तारीफ सुनकर भी उसे अंदर ही अंदर शर्म सी महसूस हो रही थी,,,,, समय हो चुका था वह शर्म के मारे कमरे में अंदर जाने से हिचकीचा रही थी इसलिए कुछ देर के लिए आगे बढ़ गई,,,,,,, जब सारे विद्यार्थी कमरे में जाने लगे उसके बाद ही वह कमरे में दाखिल हुई,,,, लेकिन तब भी उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी,,,,,,,, निर्मला की खूबसूरती की तारीफ का सिलसिला उस दिन से लेकर के आज तक चलता ही जा रहा था,,,


निर्मला अपनी कुर्सी पर खड़ी होकर के रोज की ही तरह ब्लैक बोर्ड पर मैथ्स के सवाल हल करने लगी, वह अपने कदम बड़े ही सहज भाव से बढ़ाती थी,,, ताकि उसकी गांड मे कम थिरकन ,कम हो,,,, लेकिन जैसे चढ़ती जवानी अपना असर दिखाने से बाज नहीं आती ठीक उसी तरह से मटकती गांड भी अपनी थिरकन दिखाने से बाज नहीं आती,,,,,,,
निर्मला के लिए रोज का हो गया था लेकिन फिर भी अपने आप को संभालने की वह पूरी कोशिश करती ही रहती थी। निर्मला इतनी शर्मीली थी कि वह जब भी ब्लैक बोर्ड पर लिखती थी तो शर्म के मारे वह पीछे मुड़कर कभी नहीं देख पाती थी कि कौन-कौन उसकी कांड की तरफ नजर गड़ाए हुए हैं,,,, ब्लैक बोर्ड पर लिखते समय उसके दिल की धड़कन हमेशा बढ़ जाती थी।
फिर जैसे तैसे करके वह स्कूल में अपना समय बिताती थी और स्कूल से छूटने के बाद तुरंत शुभम को लेकर घर के लिए निकल जाती थी। यही उसकी रोज की दिनचर्या थी,,,, एक यही स्कूल ही तो था जहां पर वह हंस बोल लेती थी उसकी सह अध्यापिका उससे मजाक कर लेती थी। उसके उदास चेहरे पर थोड़ी बहुत हंसी के फुहारे फुटने लगते थे और वह कुछ समय के लिए अपना दर्द भूल जाती थी। लेकिन घर पर पहुंचने के बाद फिर से एक अजीब सी बेचैनी उसके अंदर घर कर जाती थी। और वह फिर उदास हो जाती थी,,,,
घर पर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी,,।
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10-05-2018, 08:37 AM
कोई सोच भी नहीं सकता कि निर्मला जैसी खूबसूरत और हसीन औरत भी प्यार के लिए तरस सकती है।
उसकी खूबसूरती देखकर हर इंसान यही सोचता होगा कि यह औरत इस दुनिया में सबसे ज्यादा खुश नसीब व होगी जो भगवान ने इसे इतनी ज्यादा सुंदरता तोहफे में दी है,,, बातें खुशनसीब है यही और वह लोग भी खुशनसीब होंगे जो इसके इर्द गिर्द और इससे रिश्ते में जुड़े होंगे,,,,, और सबसे ज्यादा नसीब वाला होगा ईसका पति,,,, जो इसके खूबसूरत बदन का दिन रात रसपान करता होगा इसको भोगता होगा,,,, उसके मखमली नाजुक रस से भरे अंगों को, अपने हाथों से छुता होगा,मसलता और रगड़ता होगा,, और अपने प्यासे होठों से उसके अंगों को चूमता होगा। निर्मला और उसके परिवार को बाहर से देखने वाले सभी यही सोचते होंगे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं होगा कि बाहर से खुश दिखने वाली निर्मला अंदर ही अंदर ना जाने कितनी वेदनाए लेकर कितनी पीड़ा सहन करके जिंदगी गुजार रही है।
इस पीड़ा इस दर्द को निर्मला अकेले ही बरसों से सहन करती आ रही थी,,, अशोक तो अपनी दुनिया में ही मस्त था। अपनी पत्नी की तड़प उसके दर्द की बिल्कुल भी उसी परवाह नहीं थी,,,,, लोग तरसते थे पत्नी के रूप में निर्मला जैसी जीवनसाथी पाने के लिए उसके लिए पूजा पाठ व्रत करते थे,,, लेकिन यहां तो अशोक की झोली में बिन मांगे ही इतना अनमोल हीरा भगवान ने दे दिया था।
लेकिन उसकी रत्ती भर भी उसे क़दर नहीं थी।

रात के 10:30 बज रहे थे निर्मला डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अशोक का इंतजार कर रही थी,,, शुभम खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था। यह निर्मला की रोज की आदत थी वहां अशोक के घर आने से पहले कभी भी खाना नहीं खाती थी और अशोक के बाद ही खाना खाती थी लेकिन,,, ज्यादातर निर्मला को अकेले ही खाना खाना पड़ता था क्योंकि अशोक बाहर से ही खाकर आता था उसे इस बात की भी परवाह नहीं होती थी कि उसकी पत्नी देर रात तक उसका खाने की टेबल पर इसलिए इंतजार करती रहती थी की अभी वह खाना नहीं खाया होगा,,,,,
लेकिन अशोक निर्मला की भूख प्यास की बिल्कुल भी परवाह किए बिना ही अपना पेट भर लेता था।
निर्मला को अशोक का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, निर्मला उठकर दरवाजा खोली तो अशोक ही था,,,,, अशोक के घर में प्रवेश किया और निर्मला दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,

आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,
( लेकिन अशोक निर्मला का कहा अनसुना कर के बिना कुछ बोले जाने लगा तो एक बार फिर से निर्मला उसे रोकते हुए बोली,,,,,)

खाना लग गया है मैं आपका कब से इंतजार कर रही हूं और आप हैं कीे बिना कुछ बोले चले जा रहे हैं।।

देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो,,,,,, ( इतना कहकर वह बिना निर्मला की तरफ नजर घुमाएं वह अपने कमरे की तरफ जाने लगा,,,, निर्मला की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार और लापरवाही की उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, लेकिन शायद उसकी किस्मत में यही लिखा था अपने पति का बर्ताव देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, अशोक केे व्यवहार से उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह भगवान से मन ही मन यही प्रार्थना करती रहती थी की हे भगवान कौन से जन्म का बदला मुझसे ले रहा है,,,,, मुझसे याद यह बिल्कुल भी सहा नहीं जाता मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,, इतना कहकर वह मन ही मन रोने लगी,,,,
थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,, अशोक अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। दरवाजा बंद करते हुए निर्मला एक नजर अशोक पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह लेपटॉप से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे,,, बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है,,,,,, लेकिन निर्मला की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था। निर्मला का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, निर्मला की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी। बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे,,,,,, और यही उम्मीद निर्मला के मन में हमेशा जागरुक रहती थी,,, आखिरकार वह भी एक औरत थी । दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है । इसी भूख से वह भी तड़प रही थी । अशोक को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन अशोक ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि निर्मला के कामुक हरकतों का विवाह बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था । निर्मला भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ निर्मला करती थी। लेकिन अशोक के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। निर्मला बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी। अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती,,,,, लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार ईजाजत नही देते थे। और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो । बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो। यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और स्कूल की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी,,,,, लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
निर्मला कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आदमकद़ आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,,,, सोने से पहले वह कपड़े बदल कर सकती थी इसलिए वह आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर के कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी,,,,, और फिर वह अपने साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी,,,,,, साड़ी के पल्लू के नीचे गिरते ही विशालकाय चुचियों की रंगत ब्लाउज में से बाहर साफ साफ नजर आ रही थी। आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था और निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी की कपड़े बदलते वक़्त वहां आईने में से अशोक को नजर आ रही होगी,,,,, वह जानबूझकर अशोक को रिझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन करो कि नजर अभी आईने पर नहीं घूमीें थी। लेकिन निर्मला की कोशिश जारी थी,,, वह धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के बटन को खोलने के लगी,, जैसे जैसे वह ब्लाउज के बटन को खोले जा रही थी,,, वैसे वैसे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज के बाहर आने को छटपटा रही थी। धीरे धीरे करके उसने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और उसकी नजर लगातार आईने में नजर आ रही है उसके ऊपर टिकी हुई थी। जो कि अभी भी लैपटॉप में ही व्यस्त था। ब्लाउज के बटन खोलने के बाद वह आहिस्ते आहिस्ते अपने ब्लाउज को अपनी बाहों से निकालकर वहीं पास में पड़ी टेबल पर रख दी।
चूचियां काफी बड़ी होने के कारण और ब्रा का साइज कुछ छोटा होने की वजह से चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आती थी। यह नजारा देखकर तो खुद निर्मला कि जाँघों के बीच भी सुरसुराहट होने लगती थी तो सोचो मर्दों का क्या हालत होता होगा। निर्मला जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से अशोक का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी अशोक का ध्यान लैपटॉप से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया,,,, अशोक की नजर आईने पर देखते ही निर्मला एक पल भी गंवाएं बिना अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, अगले ही पल उसने ब्रा के हुक को खोलकर धीरे धीरे अपनी ब्रा को बाहों में से निकालने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी। निर्मला की दोनों चुचीया एकदम आजाद हो चुकी थी। एकदम कसी हुई और तनी हुई जिसे के आकर्षण में अशोक अभी तक अपनी नजरें आईने में गड़ाए हुए था। निर्मला अशोक को उसकी तरफ से देखते हुए मन ही मन मुस्कुराने लगी और यह जाहिर नहीं होने दी कि वह अशोक को उस को निहारते हुए देख रही है। अशोक को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। सीधी सादी संस्कारी निर्मला की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर अशोक पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था। यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का संचार हो रहा था। अपनी हरकत की वजह से निर्मला को अपनी बुर से हल्का हल्का रिसाव सा महसूस हो रहा था, जोकि निर्मला के उन्माद को बढ़ा रहा था। अशोक की आंखे आईने पर टीकी हुई देखकर निर्मला एक पल भी करवाना उचित नहीं समझती थी इसलिए उसने तुरंत अपनी कमर में बनी हुई साड़ी को खोलने लगी और अगले पल उसके बदन से साड़ी भी उतर कर टेबल पर पड़ी हुई थी। निर्मला के बदन पर केवल पेटीकोट ही रह गई थी।
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10-05-2018, 08:39 AM
जिसमें से उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी जिस पर अब अशोक की नजर बराबर टिकी हुई थी।,,, अशोक की नजरें उसकी गांड पर टिकी हुई है यह जानकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी उसकी धड़कन तेज चलने लगी। और उसके हाथ धीरे से पेटीकोट की डोरी पर चली गई और हल्के से अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए पेटीकोट की डोरी को एक झटके से खींच दी,,
एक झटके से डोरी को खींचते ही पेटीकोट का कसाव कमर के ऊपर से ढीला पड़ गया,,, और पेटीकोट ढीली पड़ते ही,,,, निर्मला ने हाथ में पकड़ी हुई डोरी पेटीकोट सहित छोड़ दी,,, निर्मला ने यह हरकत जिंदगी में पहली बार करी थी न जाने कहां से उसमें यह करने की हिम्मत आ गई थी। निर्मला तो अशोक को रिझाने की कोशिश तो हमेशा से करती ही आ रही थी लेकिन आज इस कोशिश में यह हरकत पहली बार शामिल हुई थी,,, पेटीकोट के छोड़ते ही पेटीकोट सीधी कमर से फीसलती हुई,,, भरावदार नितंबों को उजागर करते हुए नीचे कदमों में आ गिरी,,,, जिससे निर्मला पूरी की पूरी आईने के सामने नंगी हो गई उसके बदन पर मात्र एक पेंटी ही बची थी,,, लेकिन पेंटी भी ऊसकी बड़ी बड़ी भरावदार गांड को ढंक पाने मे असमर्थ साबित हो रही थी। अशोक को आज अपनी बीवी को रिझाने का यह रवैया बहुत ही कामुक लगा वह इसलिए तो एकटक आंख फाड़े अपनी बीवी की खूबसूरती को देखे जा रहा था। और यह बात निर्मला को भी अच्छी लग रही थी।
और अगले ही पल निर्मला ने अपने हाथों की दोनों अंगुलियों को पैंटी के इर्द-गिर्द ऊलझाकर धीरे धीरे पेंटिं को नीचे सरकानै लगी। निर्मला की यह कामुक अदा और हरकत अशोक को इस समय बेहद अचंभे में डाल रही थी,,,, क्योंकि जिस तरह की हरकत निर्मला आज कर रही थी इस तरह की हरकत ऊसनें पहले कभी नहीं
की थी । वह पेंटिं उतारते समय जिस तरह से अपनी भरावदार बड़ी-बड़ी उभरी हुई गांड को दांए बांए कर के मटका रही थी,,,, कसम से अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसका तो खड़े खड़े ही पानी निकल जाए।
निर्मला जिस तरह से अपनी गांड मटकाते हुए पेंटी को उतार रही थी उससे एक अजीब प्रकार की थिरकन
हो रही थी,, और ऊस थिरकन को देखकर अशोक का मन एक पल के लिए ललच सा गया। इसमें अशोक का दोस्त बिल्कुल भी नहीं था निर्मला के बदन की बनावट ही भगवान ने कुछ इस तरह की बनाई थी की उसे अगर
दुनिया का कोई भी इंसान किस अवस्था में देख ले तो उसका मन उसे पाने को ललच जाएं। स्वर्ग की अप्सरा भी निर्मला की खूबसूरती देखकर शर्मा जाए इस तरह से भगवान ने उसे बनाया था। निर्मला अपनी खूबसूरती और अपनी कामुक अदाओं के जलवे बिखेरते हुए धीरे-धीरे अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए अपने भारी भारी गोल नितंबों के नीचे तक ला दी,,, नितंबों के ठीक नीचे
पैंटी की इलास्टिक रबर कसी हुई थी, और इस तरह से इलास्टिक की डोरी कसी होने की वजह से निर्मला की गोल गांड और भी ज्यादा कामुक और उभरी हुई लग रही थी। जिसे देख कर अशोक की सांसे थम गई निर्मला भी लगातार आईने में अशोक को निहारते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। आज जो उसने हिम्मत दिखाई थी उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था अपनी कामुक हरकतों की वजह से आज मन ही मन उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रहीे थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव बड़ी तेजी से हो रहा था। निर्मला का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था।
उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था।
अगले ही पल निर्मला ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, पेंटी को घुटनो से नीचे पहुंचते ही निर्मला सीधी खड़ी हो गई और केवल पैरों के सहारे से ही वहां अपनी पैंटी को नीचे कर के पेऱ से बाहर निकाल दी। अब निर्मला के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में अशोक की आंखें चौंधिया जा रही थी।
निर्मला मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे लगने लगा था कि आज अशोक जी भर के ऊसे प्यार करेगा। क्योंकि आज उसने अशोक को रिझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी। इस समय निर्मला बहुत ही पसंद नजर आ रही थी उसने कभी अपने मुंह से इस बात को जाहिर नहीं होने दी थी लेकिन मन ही मन यह जरूर चाहती थी कि उसका पति,,,,, संभोग करते समय से बेहद प्यार करे अपने लंड को उसकी बुर की गहराई तक जोर-जोर से डालते हुए उसे चोदे,,,,, लेकिन आज शोक ज्यादा देर तक टिक भी नहीं पाता था,,,, इसका एक कारण यह भी था कि अशोक उसे पहले की तरह प्यार नहीं करता था बल्कि उसकी खूबसूरती को उसके बदन को खुद निर्मला को नजरअंदाज करता था और दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि निर्मला अंदर ही अंदर बहुत ही प्यासी थी,,,,, हां यह बात अलग है कि उस के संस्कार नहीं इस बात को कभी जाहिर होने नहीं दिया लेकिन अंदर ही अंदर वहां जबरजस्त चुदाई को तड़प रही थी और इस कदर संभोग की प्यासी होने की वजह से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें इतनी ज्यादा गर्म होती थी कि,,,, अशोक अपना लंड डालते ही बुर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और कुछ ही मिनटों में,,,,, बिस्तर के मैदान पर हथियार नीचे रखते हुए हार मान लेता था। इस वजह से निर्मला हमेशा प्यासी ही रहती थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि परसों की दबी हुई प्यार आज भी जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे जो कि उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद निर्मला शर्मा करो और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और तुरंत अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली। गाऊन के पहनते ही एक बड़े ही उत्तेजक उन्माद से भरे हुए कामुक दृश्य पर पर्दा पड़ चुका था। उत्साहजनक और बेहद कामुकता से भरे हुए वातावरण को निर्मला की इस हरकत में निराशाजनक बना दिया। अशोक भी जोंकी उत्तेजित हुए जा रहा था निर्मला की इस हरकत से उस पर भी ठंडा पानी पड़ गया था। निर्मला की हरकत देखते हुए अशोक को आज निर्मला से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी उसे लगने लगा था कि निर्मला शायद आज और भी ज्यादा अपने बदन के जलवे बिखेरेगी,,,,लेकीन एेसा बिल्कुल भी नहीं हुआ इसलिए निराश होकर के वह वापस लैपटॉप में व्यस्त हो गया,,,,,,, और निर्मला मन में ढेर सारे उम्मीदे लिए अपने ऊपर खुशबूदार स्प्रे का छिड़काव कर रही थी ताकी कमरे का वातावरण और ज्यादा रोमांटिक हो जाए। निर्मला अपने आप को बिस्तर पर जाने से पहले पूरी तरह से तैयार कर ली थी और वह बिस्तर पर जाने के लिए कल भी तो अशोक को लैपटॉप में व्यस्त पाकर थोड़ा सा उदास हुई लेकिन शायद अशोक अपने पिछले व्यवहार के कारण इस तरह से कर रहा है यह सोचकर वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। निर्मला की पीठ अशोक की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि अशोक कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,। अशोक के ऊपर उसके तन-बदन में निर्मला काम भावना जगाने में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी लेकिन अंतिम क्षण में उसने गाउन पहन कर जो गलती कर दी थी उससे अशोक का मन बदल गया था।
इसलिए वह अब निर्मला पर ध्यान दिए बिना ही लैपटॉप में व्यस्त हो चुका था और दूसरी तरफ निर्मला अशोक का इंतजार करते-करते पेड़ से प्यार करते हुए थक हारकर नींद की आगोश में चली गई एक बार फिर से निर्मला को निराशा ही हाथ लगी थी।
निर्मला सो चुकी थी और अभी भी अशोक लैपटॉप पर ऑफिस का काम करने में व्यस्त था निर्मला के सोने के एकाध घंटे बाद ही अशोक की नजर फिर से निर्मला की भरावदार गांड पर गई जो कि गांऊन के अंदर थी लेकिन सोने की वजह से निर्मला का गांव अस्त व्यस्त हो चुका था और चढ़कर जांघो तक आ चुका था। निर्मला की आधी नंगी जांघ को देख कर अशोक से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से निर्मला के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे निर्मला की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। निर्मला के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए अशोक की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए अशोक के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही,,, और अशोक जी निर्मला की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।
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10-05-2018, 08:41 AM
निर्मला,,,,,, जिसके बदन के हर एक अंग से मदन रस टपक रहा है


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10-05-2018, 08:44 AM
रविवार का दिन था। स्कूल में छुट्टी होने की वजह से आज निर्मला की नींद थोड़ा लेट में ही खुली थी। नींद खुली तो देखी थी बिस्तर पर अशोक नहीं था ।वह उठकर जा चुका था, वैसे भी अगर बिस्तर पर होता तो क्या हो जाता। उसके रहने ना रहने का कोई मतलब नहीं निकलता था। रात वाली बात से निर्मला का मन उदास ही था। निर्मला को रात की बात याद आ गई और खुद की गई हरकत के बारे में सोच कर ही निर्मला शर्मा गई,,, सबसे पहले तो उसे इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह ऐसी हरकत कर गई थी। जिस तरह से वह अपने कामुक बदन को उत्तेजनात्मक तरीके से अशोक के सामने पेश करते हुए रचनात्मक तरीके से अपने वस्त्रों को एक-एक करके अपने संगमरमरी बदन से उतारने का कार्यक्रम पेस की थी। यह उत्तेजक और उमदा कार्य निर्मला के बस के बिल्कुल भी नहीं था लेकिन जिस तरह से वह हिम्मत दिखाते हुए बड़े ही कलात्मक तरीके से वस्त्र त्याग का अभूतपूर्व कार्यक्रम पेश की थी वह बहुत ही काबिल ए तारीफ थी। अगर अशोक की जगह दुनिया का दूसरा कोई भी मर्द होता तो इतने में ही वह ना जाने कितनी बार पानी छोड़ देता,,,,,
यहां पर घर की मुर्गी दाल बराबर की कहावत को बिल्कुल सार्थक करते हुए अशोक ने अपनी पत्नी के इस कामुक प्रदर्शन को लगभग नजरअंदाज कर दिया था। हाय पल के लिए जरूर अशोक मचलता गया था तड़पता गया था निर्मला के बदन को पाने के लिए लेकिन संपूर्ण नग्नावस्था का नजारा दिखाने के बाद जैसे ही निर्मला ने अपनी नग्न बदन पर गाउन डालकर,, अपनी संग-ए-मरमरी बदन को ढंकी वैसे ही तुरंत निर्मला के बदन का नशा अशोक के ऊपर से उतर गया। और नतीजा यह निकला की निर्मला एक बार फिर प्यासी रह गई लेकिन निर्मला की भराव दार नितंबों ने अपना असर अशोक पर जरूर कर दिया,,, जिससे सोने से पहले अशोक निर्मला पर चढ़कर अपना अहम पूरा किया। लेकिन अशोक जिस तरह श्री निर्मला के संभोग करता था ऐसे संभव से ना तो संपूर्ण संतुष्टि अशोक को ही मिल पाती थी और ना ही निर्मला की प्यास बुझ पाती थी। लेकिन इस बात को अशोक नजर अंदाज कर देता था उसे तो निर्मला कि अब बिल्कुल भी फिक्र नहीं होती थी।
रात वाली बात को याद करके निर्मला की सूखी पड़ी बुर एक बार फिर से गीली होने लगी,,,,, निर्मला की प्यास एक बार फिर भड़के इससे पहले ही निर्मला जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद वह डाइनिंग टेबल के करीब आए तो देखी की प्लेट में ब्रेड के कुछ टुकड़े पड़े हुए हैं जिससे वह समझ गई थी अशोक नाश्ता कर चुका है।
वह डाइनिंग टेबल के करीब खरीदी थी कि अशोक रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो निर्मला उससे बोली।

आप मुझे बुला ली होते तो मैं आपके लिए नाश्ता तैयार कर देती,,,,, इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता,,,,,,, आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें अच्छा नहीं लगता ना।

हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया। ( अशोक की बात सुनते ही निर्मला बोली।)

लेकिन आज तो संडे है ऑफिस में भी छुट्टी है तो आपको क्या जरूरी काम है।


देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और काम अपना है इसमें छुट्टी कैसी।।।( अशोक शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला,,, अशोक की बात सुनकर निर्मला उदास हो गई वह जितनी भी ज्यादा मीठी बातें करके अशोक का मन बहलाने की कोशिश करती लेकिन अशोक हमेशा कड़वी जुबान से ही बोलता था। निर्मला उदास होकर के रसोईघर में चली गई और अशोक ऑफिस के लिए निकल गया। रसोईघर में निर्मला शुभम के लिए नाश्ता तैयार करने लगी और बाहर गाड़ी की आवाज सुनकर उसे यह पता चल गया कि अशोक जा रहा है। अशोक की लगातार बढ़ती नजरअंदाजी की वजह से निर्मला का मन खिन्न होने लगा था वह अशोक के ऊपर से ध्यान ना हटाकर नाश्ता तैयार करने में जुट गई। समय ज्यादा दे चुका था इसलिए वह समझ गई थी कि शुभम पूजा-पाठ कर चुका होगा और नाश्ता भी कर चुका होगा। लेकिन आज रविवार था इसलिए वह उसके लिए पराठे बना रही थी क्योंकि रविवार के दिन बाद ज्यादातर समय घर के बाहर मैदान पर क्रिकेट खेल कर दोस्तों के साथ ही बिताता था।
निर्मला का मन किसी काम में नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से वह शुभम के लिए परांठे तैयार कर रही थी और मन में ढेर सारी वेदनाएं,,, दर्द,,,,, तड़प उसे पल-पल तड़पा रही थी। उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया था धीरे-धीरे करके समय रेत की तरह उसकी हथेली से निकल चुका था। वह तो भगवान की बड़ी कृपा थी कि अब भी उसकी खूबसूरती बरकरार थी। पराठा तैयार हो चुका था निर्मला ने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया क्योंकि उसे भूख ही नहीं थी और जिस चीज की भूख थी,,,, वह उस के नसीब में ही नहीं था या उसे पाने का उसने पूरी तरह से प्रयास ही नहीं की थी ।
कभी-कभी तो वह मां बाप से पाई हुई तहजीब और संस्कार को लेकर के भगवान से मन ही मन बोला करती थी कि भगवान तूने इतनी संस्कारी क्यों बनाया क्यों दूसरी औरतों के तरह थोड़ी सी बेशर्मी नहीं भर दी।
तहजीब और संस्कार किसी के लिए दुख का कारण बन सकते हैं,,, यह बात निर्मला से ज्यादा अच्छी तरह भला कौन जान सकता है ।
पराठा बन चुका था शुभम पढ़ाई में लगा हुआ था वह जानती थी कि शुभम थोड़ा लेट ही खाएगा इसलिए वह घर के काम में लग गई।

दूसरी तरफ अशोक अपनी ऑफिस में बैठा हुआ था घर से तो निकला था यह कहकर, कि काम बहुत है लेकिन यहां आराम से सिगरेट का कश लगाते हुए रीता का इंतजार कर रहा था। रीता उसकी पर्सनल असिस्टेंट थी। अशोक तीन चार साल से ज्यादा किसी को भी अपना पर्सनल असिस्टेंट नहीं रखता था। तीन चार साल से ज्यादा वह किसी को भी अपनी कंपनी में नहीं रखता था । उसने अभी तक आठ से दश लेडी असिस्टेंट को बदल चुका था। अशोक बड़ी बेसब्री से रीता का इंतजार कर रहा था अब तक उसने चार पांच सिगरेट पी चुका था। उसकी नजर एक बार बार ऑफिस के दरवाजे पर चली जा रही थी और बार-बार दीवार पर लगी हुई परियार पर टिक टिक करती सुईयों के साथ साथ उसकी नजरें भी घूम रही थी। तभी दरवाजे की घंटी बजी और अशोक बिना एक पल की भी विलंब किए बिना तुरंत कुर्सी पर से उठ करके दरवाजा खोलने गया और जैसे ही दरवाजा खोला,,,,, सामने २८ से ३० साल के लगभग खूबसूरत लेडी खड़ी थी। यह रीता ही थी जिसका इंतजार अशोक बड़ी बेसब्री से कर रहा था दोनों एक दूसरे को देखते ही मुस्कुराने लगे अशोक तो लगभग उसका हाथ पकड़ कर अंदर खींचते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया। छरहरे गोरे बदन की रीता अपने आप को ऊसकी बाहों कें सुपर्द करके एकदम से सिमट गई और अपने होंठ को अशोक के हॉठ पर रखकर चूसने लगी। राहुल का हांथ रीता की पीठ पर से होता हुआ उसके कमर के नीचे उसके नितंबों पर चला गया,,,, और जैसे ही अशोक की दोनों हथेलियां रीता के ऊभारदार नितंबो पर गए अशोक ने तुरंत उसे अपनी दोनों हथेलियों में दबोच लिया,,,,

आऊच्च,,,,,,, क्या कर रहे हो मुझे दर्द हो रहा है।

ओहहहहह मेरी जान मेरी तो मुझे कितना दर्द हो रहा है इसका तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कितनी देर से मैं यहां तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं और तुम हो कि ना जाने किस दुनिया में खोई हुई हो,,,,,,,
( अशोक की बात सुनकर रीता हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

क्या अशोक रोज तो तुम्हारे साथ ही रहती हूं फिर भी मेरे इंतजार में तुम इतने पागल हो जाते हैं कि एक पल भी मेरे बगैर गुजार पाना तुम्हारे लिए मुश्किल हुआ जाता है।

क्या करूं रानी तुम माल ही कुछ ऐसी हो की तुम्हारे बिना एक पल भी गुजार पाना मेरे लिए मुश्किल हो जाता है। ( अशोक रीता को फिर से अपनी बाहों में भऱते हुए बोला। )


क्या करूं अशोक मेरा शराबी पति दिन रात मुझसे झगड़ते रहता है आज भी यहां आने से पहले मेरे साथ झगड़ा हो गया और उसी झगड़े के चक्कर में लेट हो गई।
( अशोक कुछ सोचते हुए बोला)

मेरी जान तुम जैसी बीवी पाकर के तो तुम्हारे पति को खुश होना चाहिए और उल्टा वह तुमसे झगड़ा करते रहता है साला नासमझ है जो एक कोहिनूर हीरे की कदर नहीं कर पा रहा है।।
( रीता अशोक की यह बात सुनकर खुश हो गई हो अपनी खुशी का जिक्र उसने अपने होठों को अशोक के होठ पर रखकर उसे किस करते हुए बोली।)

खुशनसीब तो तुम अभी हो सर जो तुम्हें इतनी खूबसूरत बीवी मिली है।( रीता की बात सुनकर अशोक रीता की आंखों में देखने लगा) मे देखी हूं तुम्हारी बीबी को ऐसा लगता है कि मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर के नीचे आ गई हो,,,,, बहुत खूबसूरत है।


अरे यार एैसे रोमांटिक मौसम में तुमने किसका नाम ले ली ।

क्यों क्या हुआ सर (रीता आश्चर्य के साथ बोली)

वह ऊपर से ही खुबसुरत लगती है। अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है यह कला उसमे बिल्कुल भी नहीं है एकदम ठंडी है ठंडी,,,,,,,,,, मेरी तो नसीब खराब थी जो मेरी शादी उसके साथ हो गई मुझे तो तुम्हारी जैसी बीवी चाहिए थी,एकदम गरम जो बिस्तर पर अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है अच्छी तरह से जानती हे।
( इतना कहते हुए अशोक ब्लाउज के ऊपर से ही रीता की चुचियों को दबाने लगा,,,, रीता चूचियों पर अशोक की हथेली का दबाव पाकर मस्त होने लगी वह अशोक की बातें सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। रीता यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि अशोक,,,,, कंपनी का मालिक उसकी खूबसूरती का दीवाना है और इस बात का वह पूरी तरह से फायदा उठातीे थी। एक मर्द की उन्नति और बर्बादी के पीछे औरत का ही हाथ होता है। अशोक भी औरतों के पीछे कंपनी का अच्छा खासा फायदा लुटा चुका था और लुटाता आ रहा था। रीता की माली हालत अच्छी नहीं थी वह बड़ी गरीबी में जी रही थी और ऐसे में उसकी शादी उसके मां बाप ने ऐसे लड़के से कर दी जो कि कुछ भी कमाता नहीं था। शादी के बाद उसकी जिंदगी और बदतर होने लगी क्योंकि उसका पति तो कुछ कमाता नहीं था।
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