चचाजान का खत आया कि वो तीन चार दिन के लिये हमारे यहाँ आ रहे हैं। जब मैंने काशीरा को चचा-चचीजान के आने की बात बताई, तो वो बोली "अहमद चचा आ रहे हैं? ये वही वाले चाचा हैं ना जो हमारी शादी में थे, अच्छा गठा बदन है, ऊँचे पूरे हैं और वो उनकी घरवाली वही है ना मोटी मोटी गोरी गोरी लैला चाची?"
"हाँ हाँ वही ! लैला चची के साथ वो हमारी शादी में थे !"
"अरे तो आने दो ना, बड़ा मजा आयेगा, काफ़ी रसिया किस्म के मर्द लगे थे मुझको !" मेरा लंड पकड़कर काशीरा बोली।
"अरे अब उनके पीछे पड़ोगी क्या? पिछले हफ़्ते मेरे दो दोस्तों से चुदवा कर तुम्हारा मन नहीं भरा?" मैंने काशीरा की चूची दबा कर कहा।
"और तुमने नहीं उनकी बीवियों को चोदा? उस जोया की तो गांड भी मारी !" काशीरा ने उलट कर कहा।
"हाँ डार्लिंग वो ठीक है पर मैं इसलिये कह रहा था कि यह घर की बात है, चाचा-चाची की बात और है।"
"अरे अगर ये वही वाले चचा हैं जो शादी में थे तो मजा आ जायेगा। तब भी मुँह दिखाई के वक्त मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे खा जायेंगे। वैसे हैं बड़े प्यारे और सजीले, सच कहूँ, उनको देख कर वहीं मेरी बुर में गुदगुदी होने लगी थी।"
"क्या चुदैल रंडी है तू काशीरा, अब देख, उनके सामने तमाशा नहीं करना !"
"ठीक है देख तो लूँ उनके रंग ढंग, और चाची भी हैं ना, उनको तुम देख लेना, वैसे मुझे जैसा याद है, बड़ी चिकनी गोल मटोल थीं चाची, वहाँ शादी में जब तुम्हारे परिवार की औरतों के साथ थी तब उनका पल्लू गिरा था, तब मैंने चूचियाँ देखी थीं, ये बड़ी बड़ी...!" काशीरा बोली और मुझे आँख मार कर हंसने लगी।
मैं समझ गया कि इसको जो करना है वो करके रहेगी।
चचा-चाची आये, काशीरा ने अच्छी आवभगत की। दोपहर के खाने पर भी खूब सारी चीजें बनाईं। अहमद चचा ने तारीफ़ के पुल बांध दिये, मेरा माथा ठनका क्योंकि काशीरा अब बड़े जोश से उनकी खातिर में जुट गई थी- चचाजान, और मिठाई लीजिये ना ... चाची, आप ने तो कुछ खाया ही नहीं !
उनके दो दिन एक शादी अटेंड करने में निकल गये। रात को देर से आते थे। एक रात वे वहीं शादी के घर सोये। फ़िर दूसरे दिन दोपहर को आये। आकर नहाए-धोए क्योंकि शादी के घर में काफ़ी भीड़ भाड़ थी।
जब दोपहर का खाना खाने के बाद वे दोनों आराम करने चले गये तो काशीरा मेरे पास आई- इमरान राजा, चचा को आज फ़ांस ही लेती हूँ। उनके बड़े लंड को लिये बिना चैन नहीं आयेगा !" काशीरा मेरे लंड को सहलाती हुई बोली।
"तूने कब देखा उनका लण्ड?"
"अरे अभी जब वो नहाने के बाद कपड़े बदल रहे थे तब दरवाजे की चीर में से देखा था। बैठा था फिर भी चड्डी में समा नहीं रहा था। मैं तो असल में बाथरूम में झांक कर देखने वाली थी पर चाची कमरे में थीं इसलिये लौट गई !" काशीरा बोली।
"मेरी चुदैल रानी, इतने लंड पिलवा चुकी है तू अपने अन्दर, मेरे तीन चार दोस्तों से चुदवाती है, जब भी मौका आता है, मैं तुझे तेरी पसंद के और मर्दों से भी चुदवा देता हूँ, फिर भी तेरा मन नहीं भरा। अब चचा के पीछे पड़ गई? वो क्या सोचेंगे कि उनके सगे भतीजे की बीवी कैसी चुदक्कड़ है !" मैंने काशीरा की चूची दबा कर पूछा।
"तो तुम भी तो अपने दोस्तों की बीवियों को चोदते हो, कैसे लपलपा कर पीछे पड़ जाते हो। पिछले माह जब हम तुम्हारे दूसरे दोस्त के यहाँ गये थे तो उसकी नौकरानी पर ही फ़िदा हो गये थे, तब मैंने नहीं मदद की थी तुम्हारी? दो दिन तक हर दोपहर को तुमको उस छम्मक छल्लो के साथ छोड़कर तुम्हारे दोस्त की बीवी को शॉपिंग के लिये ले गई थी।"
"हाँ मेरी रानी, नाराज मत हो, मैं कहाँ तुमको ये सब बंद करने को कह रहा हूँ? तुम खूब चुदवाओ, मुझे तो बस तुम्हारी खुशी चाहिये मेरी जान। पर अहमद चचा...?" मैंने कहा तो काशीरा बोली,"अहमद चचा के लंड की बात ही और है। सगे चचा हुए तो क्या हुआ, बड़े रसिया हैं, कैसे मेरी ओर देखते हैं, जैसे बस चले तो अभी पटक कर चढ़ जायें मुझपे। और मैं सिर्फ़ अपने बारे में ही थोड़े सोच रही हूँ, वो मुटल्ली चची भी तो माल है। मैं आज चचाजी का लंड खा ही लेती हूँ, तुम चाची की बुर चख लो, सच पाव रोटी जैसी गुदाज होगी !" काशीरा अपनी बुर को प्यार से सहलाते हुए बोली।
"हाँ रानी, बात तो सच है, चाची का बदन तो खोवा है खोवा, मुँह मारने का मन करता है। चलो ठीक है, करके देखते हैं। चचाजान तो तेरे एक इशारे पर तुझ पर टूट पड़ेंगे। कैसे घूर रहे थे तुझे दोपहर खाने पर !" मैं काशीरा की चूचियाँ दबाकर बोला "तू भी उस्ताद है अपना जोबन दिखा कर लोगों को रिझाने में, कैसे बार बार आंचल गिरा कर झुक रही थी तू आज दोपहर के खाने के वक्त ! जानबूझ कर दिखा रही थी चचाजी को ये अपना माल !"
"मैं तो उन्हें रिझा रही थी, पूरे फ़ंस गये हैं वे अब मेरे जाल में। तुम भी चची के साथ मजे कर लो आज, उनकी भी बड़ी नजर रहती है तुम पर। तब तक मैं चचाजी से चुदवा लेती हूँ !" काशीरा मुझसे बोली।
"ठीक है मेरी जान पर अकेले में नहीं। मैं भी देखूँगा चचाजी से तुझे चुदते वक्त। तेरी चूत को वो मूसल फ़ाड़ेगा तो कैसे रोयेगी मैं देखना चाहता हूँ, अभी तो बड़ी उचक रही हो, जब वो मूसल अंदर जायेगा तो चिल्ला चिल्ला कर रो पड़ोगी ! बोलोगी कि इमरान, बचाओ मुझे, तब मुझे ही आना पड़ेगा तेरे को बचाने को !" मैंने काशीरा को चिढ़ाया।
"रोये मेरी जूती ! मैं तो चचाजी को ही अंदर ले लूँ, लंड की क्या बात है, मेरी चूत की गहराई को अब तक नहीं पहचाना तुमने। चलो, तुम देख लेना मेरी चुदाई, और बातें मत बनाओ, बीवी को चुदते देख तुमको बड़ा मजा आता है, ये कहो। और नये नये लंड देखने की फ़िराक में भी रहते हो, है ना?"
मैं बोला- कहाँ? वो तो मैं बस तुम्हारे लिये...!
"अब गुस्सा मत दिलाओ मुझे। वो दोस्त है तुम्हारा सलमान, उसके लंड को पिछली बार कैसे चूस रहे थे" काशीरा बोली।
"वो तो तुमने कहा था, जब तुम उसकी बीवी जोया की बुर चूस रही थी तब !"
"हाँ पर बड़े मजे लेकर चूस रहे थे। मैं भी कहाँ मना कर रही हूँ तुमको, जैसे कभी कभी बुर का स्वाद अच्छा लगता है मेरे को, वैसे तुम भी लंड का मजा लिया करो !"
काशीरा से बहस में जीतना नामुमकिन है, मेरी सब कमजोरियों को अच्छे से पहचानती है, प्यार भी बहुत करती है मुझसे।
काशीरा थोड़ी देर चुप रही, खोई खोई सी थी, शायद चचाजी के लंड को याद कर रही थी, फ़िर अचानक बोली- पर चचा को कहोगे कैसे कि मेरे सामने चोद मेरी बीवी को? तुमको भी अगर साथ रहना है तो तुमको ही कहना पड़ेगा। मैं तो अकेले में ही फ़ांस कर चोद लूँगी उनको !"
"वो मैं कर लूँगा। खाने के बाद बात छेड़ता हूँ, तू दस मिनट में आ जाना और उनकी गोद में बैठ जाना, बाकी मैं संभाल लूंगा।" मैंने कहा।
खाने के बाद मैं चाचा के साथ बैठा था, बोला "चचाजान, एक बात कहूँ, काशीरा के बारे में?"
"हाँ कहो बेटा !" चचा संभल कर बैठ गये।
"आप को कैसी लगी काशीरा?" मैंने पूछा।
"अच्छी लड़की है, बहुत सुंदर है, तेरे भाग हैं कि तुझे ऐसी लड़की मिली !" चचा मुझे देख कर बोले।
"आप भी बड़े लकी हैं चचाजी, चाची भी क्या चीज हैं !" मैंने कहा।
"हाँ वो तो है। पन्द्रह बरस पहले देखते तो फ़िदा हो जाते, बड़ी तीखी छुरी थी, वैसे अब भी है पर मोटी हो गई है !" चचा मेरी ओर देख कर बोले।
"चचा, सच कहूँ, मुझे चाची बहुत अच्छी लगती हैं। वैसे ही जैसे आप को काशीरा अच्छी लगती है। वैसे बचपन से चाची मुझे बहुत भाती हैं पर अब जरा .. यानि बहुत मस्त लगती हैं।" मैंने कहा।
चचा मेरी बात में छुपा इशारा समझ गये,"अरे, तो शरमाता क्यों है, चाची से मेल जोल बढ़ा, उनसे गप्पें लड़ा, वो भी कह रही थी कि इमरान बड़ा प्यारा लड़का है। वैसे काशीरा के बारे में कह रहा था ना तू?"
मैं चचा के पास खिसका, "बड़ी गरम चीज है चाचाजी ! मुझसे नहीं संभलती !"
"याने बाहर मुँह मारती है क्या? इतनी चालू है? तुमने कहा उससे कि ऐसा न करे? आखिर बहू है घर की?"
"अब चचा, आप से क्या छुपाऊँ, मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ, बहुत सुख देती है मुझे, इसलिये उसके सुख का भी खयाल मुझे रखना पड़ता है। अब आप पर नजर है उसकी। कह रही थी कि अहमद चचा कितने अच्छे लगते हैं। उनके साथ मेल जोल बढ़ाने का दिल करता है।"
चचाजान मस्त हो गये,"अरे, तो इसमें पूछने की क्या बात है, बहू के लिये तो मेरी जान हाजिर है।"
"जान तो ठीक है चचाजी, आप उसे थोड़ी ठंडी कर दें तो..."
"अरे बिल्कुल ठंडी कर दूंगा। तू उसे मेरे पास छोड़ तो सही। बहू-बेगमों की तो हर इच्छा पूरी करनी चाहिये बेटे कि उन्हें घर के बाहर जाने की जरूरत न पड़े। और तू यहाँ क्यों बैठा है, जा ना चाची के पास, वो अकेली अपने कमरे में पड़ी है, कह रही थी कि सिर दुख रहा है, मैंने कहा कि भेजता हूँ किसी को खाने के बाद मालिश के लिये। मैं तो खुद तुझसे कहने वाला था, तू जा। मैं बहू का इंतजार करता हूँ यहाँ, जम जाये तो आज ही उसे खुश कर दूँगा।"